नरेंद्र तिवारी
मध्यप्रदेश का निमाड़ आजादी के सात दशकों के बाद भी रेल की राह तकता दिखाई दे रहा है। निमाड़ का आदिवासी बाहुल्य खरगोन–बड़वानी जिला ट्रेन सुविधाओं से पूरी तरह वंचित है। निमाड़ अंचल के रहवासियों के निकटवर्ती रेलवे स्टेशन खंडवा, इंदौर नरडाना महाराष्ट्र है। इन सभी से निमाड़ अंचल की दूरी 100 से 175 किलोमीटर है। क्षेत्र के नागरिकों ने आजादी के बाद छुक–छुक की आवाज सुनने के लिए लगभग सभी दलों के नेताओं पर भरोसा जताया। जिसने भी रेल का सपना दिखाया उसकी झोली वोटों से भर दी गई। उसे अपना प्रतिनिधि बनाकर दिल्ली पहुंचाया। किंतु आजादी के 77 बरसो के बाद भी रेल सुविधाएं निमाड़ के लिए सपना है, एक खूबसूरत सपना जो नेताओं और राजनीतिक दलों द्वारा हर पांच साल में दिखाया जाता है। कहते है, सपने सच होते है, किंतु निमाड़ में आजादी के बाद से छुक–छुक का सपना देखते–देखते अनेकों नागरिकों की आखें बौरा गई।अनेकों कालकलवित हो गए किंतु सपना अब तक सपना बना हुआ है। जिसने भी सपना दिखाया निमाड़ के रहवासियों ने उस पर विश्वास किया किंतु जमीनी स्तर पर कुछ दिखाई नहीं देता जो आमजन के विश्वास को पुख्ता कर सकें। खरगोन लोकसभा क्षेत्र के लिए रेल का सपना कब पूरा होगा कहा नहीं जा सकता है। निमाड़ में रेल की चर्चा और रेल पर राजनीति कोई नई नहीं है। इस विषय पर समाज के वरिष्ठ जनों से बातचीत करने पर ज्ञात हुआ कि वर्ष 1967 के चुनाव में कांग्रेस के शशिभूषण वाजपेई ने निमाड़ में रेल लाने का आश्वासन दिया था। रेल के इस आश्वासन ने शशिभूषण वाजपेई को विजय मिली थी। लोकसभा क्षेत्र के अनेकों वरिष्ठजनों का यह भी कहना है की इस दौरान रेल की पटरियां भी खरगोन जिले की सड़को ,खेतो के निकट डाली गई थी। कुछ ने बताया की विद्युत के पोल को उस समय निमाड़वासियों ने रेल की पटरी समझा और यह खबर ऐसी फैली की बाहरी उम्मीदवार शशिभूषण वाजपेई ने लोकसभा क्षेत्र के तत्कालीन सांसद रामचंद्र बड़े को हराकर चुनाव में विजय प्राप्त की। शशिभूषण रेल के नाम पर जीत तो गए, किंतु दोबारा इस लोकसभा से चुनाव नहीं लडा और रेल का आश्वासन भी अधूरा का अधूरा रह गया। खरगोन लोकसभा के 1962 और 1971 में सांसद रहे रामचंद्र विट्टल बड़े ने भी रेल को निमाड़ के लिए बहुत आवश्यक माना था। निमाड़ अंचल में यह जनचर्चा है की अटल बिहारी वाजपेई जब भारत सरकार के विदेश मंत्री के रूप में तत्कालीन खरगोन जिले की सेंधवा तहसील आए तब मंच से रामचंद बड़े ने निमाड़ में रेल की आवश्कता से अटलजी को अवगत कराया था। रेलपथ की मांग लंबे समय से इस क्षेत्र में उठती रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान रेलपथ की मांग भी रफ्तार पकड़ लेती है। खरगोन लोकसभा क्षेत्र में दो तरफ से रेलमार्ग की मांग की जा रही है। एक इंदौर मनमाड और दूसरी खंडवा खरगोन धार से गुजरात को जोड़ने वाला रेल मार्ग इसे ताप्ती नर्मदा रेल मार्ग संघर्ष समिति द्वारा बरसो से उठाया जा रहा है। मनमाड इन्दौर रेल मार्ग के लिए बरसो से नागरिक आंदोलन भी चल रहे है। यह समिति मध्यप्रदेश की अपेक्षा महाराष्ट्र में अधिक सक्रिय रही है। समय के साथ इस संघर्ष समिति ने सरकार का ध्यान आकर्षित किया किंतु जमीनी स्तर पर कुछ दिखाई नहीं दिया। मनमाड इन्दौर रेल मार्ग संघर्ष समिति ने जिसमे धूलिया लोकसभा के पूर्व सांसद बापू चौरे भी शामिल रहे है ने 1995 के दरमियान एक पद यात्रा मनमाड से इंदौर तक निकाली थी। इस यात्रा में लकड़ी से बनी रेल भी शामिल थी। इस संघर्ष में धूलिया के पूर्व विधायक अनिल गोटे का नाम भी शामिल रहा है। निमाड़ में रेल के लिए संघर्ष की दूसरी धारा ताप्ती नर्मदा रेलपथ को लेकर है। इस रेल पथ में खंडवा से धार वहाया खरगोन बड़वानी शामिल है। इसे लेकर वर्ष 2023 के दिसंबर माह में स्थानीय सांसद गजेंद्र पटेल के नेतृत्व में केंद्रीय रेलमंत्री से मिले निमाड़ के इस प्रतिनिधि मंडल में रेलवे सुविधाओं के लिए संघर्षरत ताप्ती नर्मदा रेल लाइन समिति के अध्यक्ष दामोदर अग्रवाल, ओमप्रकाश खंडेलवाल, बीएल जैन, महेश शर्मा, राहुल सोनी, नानूराम कुमरावत शामिल थै। इस प्रतिनिधि मंडल को रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने आश्वस्त किया था की निमाड़ को रेलवे की सौगात जल्द मिलेगी। निमाड़ में रेलवे के संघर्ष से समय–समय पर जाने कितने ही लोग जुड़े क्षेत्र के सांसदों ने भी निमाड़ से जुड़ी मांगो को दिल्ली तक पहुंचाया। इंदौर की पूर्व सांसद सुमित्रा महाजन और वर्तमान सांसद शंकर लालवानी ने भी दिल्ली में अपने प्रयास किए। इन प्रस्तावित रेलमार्गों में इंदौर मनमाड को लेकर काफी चर्चा है। रेलवे विशेषज्ञों के अनुसार इस रेलमार्ग के बन जाने से इंदौर से मुंबई की दूरी कम हो जाएगी। यह दूरी 659 किलोमीटर रह जाएगी और सफर नौ घंटे में पूर्ण हो जाएगा। इस रेल मार्ग को लेकर कुछ साल पहले 363 किलोमीटर लंबी परियोजना का एमओयू साइन हुआ था, उसमे 10 हजार करोड़ के प्रोजेक्ट के लिए मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सरकार ने 15–15 प्रतिशत की राशि देने के लिए कहा था। जबकि 15 प्रतिशत राशि जहाजरानी मंत्रालय और शेष राशि 55 प्रतिशत राशि जेएमपीटी को देनी थी। जमीन का सर्वे होने के बाद भी इसका काम शुरू नहीं हो पाया है। धूलिया से नरडाना के बीच में जरूर जमीन अधिग्रहण का काम शुरू हुआ है, लेकिन इसे फंड नहीं मिला है। जेएनपीटी ने फंड की कमी होना बताया है। इससे देरी होना स्वभाविक है। निमाड़ में रेल का सपना कब पूरा होगा यह तो कह पाना मुश्किल है, किंतु लंबे समय से लोकसभा चुनाव के दौरान रेलमार्ग का मुद्दा यहां के नागरिकों को प्रभावित जरूर करता है। 15 बरसो से खरगोन लोकसभा में भाजपा के लोकसभा उम्मीदवार प्रतिनिधित्व कर रहे है। क्षेत्र में कांग्रेस ने भी प्रतिनिधित्व किया। सुभाष यादव, अरुण यादव भी इस लोकसभा क्षेत्र के सांसद रहे है। भाजपा से कृष्ण मुरारी मोघे भी इंदौर से आकर खरगोन लोकसभा से चुनाव लडे और जीते भी किंतु रेल का सपना चरितार्थ नहीं हो पाया। लोकसभा क्षेत्र को दो राज्यसभा सदस्य भी मिले एक वर्तमान के सुमरसिंह सोलंकी एक पूर्व में विजयलक्ष्मी साधो सभी ने अपने स्तर पर पत्र व्यवहार किया, किंतु सपना सपना ही रहा। केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 10 बरसो से भाजपा की सरकार काबिज है। निमाड़ में रेल का सपना अभी भी सपना बना हुआ है। यह जानते हुए की इस आदिवासी अंचल में रेल का आना नए रोजगार पैदा करेगा। निमाड़ की तस्वीर को बदलेगा, विकास की नवीन संभावनाओं को जन्म देगा। रेलवे के आधुनिकीकरण का ढिढोरा पीटने वाली केंद्र सरकार निमाड़ के इस आदिवासी अंचल में रेल पथ को लेकर इतनी उदासीन क्यों है? आदिवासी समाज के विकास और तरक्की की बात करने वाली कांग्रेस और भाजपा दोनो ही दलों की केंद्र में सरकार रहीं है। दोनो ही दलों को इस लोकसभा क्षेत्र में सांसदी का अवसर मिला। किंतु निमाड़ के जनप्रतिनिधियों की आवाज दिल्ली में हर बार अनसुनी कर दी गई। निमाड़ का यह पिछड़ा आदिवासी अंचल परिवहन के साधनों की कमी से जूझ रहा है। एक छोटे से वाहन पर जिसकी क्षमता 10 सवारी की होती है उस वाहन में 50 से 60 सवारी बैठकर यात्रा करती है। निमाड़ अंचल से बड़े पैमाने पर रोजगार के लिए पलायन होता है। रेल का आगमन इस क्षेत्र में नवीन व्यवसायिक गतिविधियों की राह खोलेगा, आदिवासी समाज के विकास और तरक्की की इबारत लिखेगा। रेल मार्ग के सपना पूर्ण नहीं होने से निमाड़ अंचल के नागरिकों में सरकार के प्रति नाराजगी दिखाई देती है। निमाड़ की आवाज को दिल्ली में अनसुना करना निमाड़ अंचल के नागरिकों को दुखी और आक्रोशित दोनो कर रहा है।