अमित कुमार अम्बष्ट ” आमिली “
दूरदर्शन ने जब दिनांक 16 अप्रैल को अपना नया लोगो लांच किया , अपने लांचिग के साथ ही दूरदर्शन का यह लोगो विवादों में आ गया , दूरदर्शन के इन नये लोगो पर तमाम विपक्षी दलों की तीखी प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गयी , इसका कारण महज़ इतना सा था कि दूरदर्शन ने डीडी न्यूज के लोगो का रंग बदलकर रूबी लाल से केसरिया कर दिया गया है , हालांकि, चैनल ने इस मुद्दे को केवल दृश्य सौंदर्य में बदलाव के रूप में पेश किया तथा लांचिग के बाद दूरदर्शन ने इस बदलाव पर अपनी बात रखते हुए , आधिकारिक एक्स हैंडल पर अपने नए लोगो का एक वीडियो, एक संदेश के साथ पोस्ट किया , जिसमें कहा कि ” हालांकि हमारे मूल्य समान हैं, हम अब एक नए अवतार में उपलब्ध हैं. एक ऐसी समाचार यात्रा के लिए तैयार हो जाइए जो पहले कभी नहीं देखी गई. बिल्कुल नए डीडी न्यूज का अनुभव करें।, एक्स पर लिखे संदेश में आगे कहा गया कि हमारे पास यह कहने का साहस है: गति से अधिक सटीकता, दावों से अधिक तथ्य, सनसनीखेज से अधिक सच्चाई. क्योंकि अगर यह डीडी न्यूज पर है, तो यह सच है! डीडी न्यूज़ – भरोसा सच का “
दूरदर्शन के उपरोक्त विचार से बहुत स्पष्ट है कि लोगो के रंग में बदलाव किसी भी राजनीतिक कारण से नहीं हुए अपितु जिस तरह से प्राईवेट चैनेल्स खुद को प्रस्तुत कर रहें हैं, ऐसे में अगर दूरदर्शन को इस प्रतिस्पर्धा में खड़ा उतरना है तो यह बदलाव बहुत जरूरी था , क्योंकि दूरदर्शन ने बहुत स्पष्ट किया है कि यह बदलाव सिर्फ लोगो तक सीमित नहीं है अपितु अपने कार्यक्रमों को कुछ अलग तरह से प्रस्तुत करने की तैयारी भी है ।
लेकिन विपक्षी दलों के नेताओं ने लोकसभा चुनावों से ठीक पहले बदलाव को लागू करने की आवश्यकता पर सवाल उठाये हैं , ख़ासकर पश्चिम बंगाल में टीएमसी के राज्यसभा सांसद जवाहर सरकार, जो 2012 और 2014 के बीच प्रसार भारती के सीईओ थे, उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय प्रसारक दूरदर्शन ने अपने ऐतिहासिक फ्लैगशिप लोगो को भगवा रंग में रंग दिया है, इसके पूर्व सीईओ के रूप में, मैं इसके भगवाकरण को चिंता के साथ देख रहा हूं और महसूस कर रहा हूं – यह अब प्रसार भारती नहीं है, यह प्रचार भारती है ।
मीडिया से बात करते हुए सरकार ने कहा कि यह सिर्फ लोगो नहीं है, सार्वजनिक प्रसारक का पूरी तरह से भगवाकरण हो गया है. जहां सत्तारूढ़ दल के कार्यक्रमों और आयोजनों को अधिकतम प्रसारण समय मिलता है, इतना ही नहीं पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी भी इसका मुखर होकर विरोध कर रहीं हैं । हालांकि दूरदर्शन के लोगो में पहली बार कोई बदलाव हुआ हो ऐसा नहीं है , इसके पहले भी बदलाव हुए है , अगर दूरदर्शन और उसके लोगो के इतिहास का अवलोकन कर तो
दिल्ली में 15 सितंबर, 1959 को पहली बार ‘टेलीविज़न इंडिया’ की शुरुआत हुई. उस समय इसका प्रसारण हफ़्ते में सिर्फ़ तीन दिन, वो भी आधे-आधे घंटे के लिए होता था, साल 1975 में ‘टेलीविज़न इंडिया’ का नाम बदलकर ‘दूरदर्शन’ कर दिया गया , साल 1982 में ‘रंगीन दूरदर्शन’ की शुरूआत हुई थी और अगर दूरदर्शन के लोगों के इतिहास की बात करें तो सबसे पहले दूरदर्शन के लोगों को एनआईडी के पूर्व छात्र देवाशीष भट्टाचार्य ने अपने 8 दोस्तों के साथ तैयार किया था , जब दूरदर्शन ने ऑल इंडिया रेडियो से अलग होने का फ़ैसला किया, उस वक़्त उनको अपना एक अलग लोगो भी चाहिए था, इसके लिए उन्होंने एनआईडी के छात्रों की एक टीम को ये ज़िम्मेदारी सौंपी, देवाशीष भट्टाचार्य ने इंसान की आंख के आकार का एक चित्र बनाया, जिसके दोनों तरफ़ दो घुमावदार कर्व ‘यिन और यांग’ के आकार बनाकर, इसे अपने टीचर विकास सतवालेकर को सौंप दिया, एनआईडी के आठ छात्रों और छः फ़ैकल्टी मेंबर्स के 14 डिज़ाइन में से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देवाशीष भट्टाचार्य के डिज़ाइन को चुना, देवाशीष के इस डिज़ाइन के लिए एनीमेशन एनआईडी के ही एक अन्य छात्र आरएल मिस्त्री ने तैयार किया , मिस्त्री ने देवाशीष द्वारा बनाये गए स्केच को कैमरे से शूट कर इनको तब तक रोटेट किया, जब तक कि वो एक लोगो का अंतिम रूप न ले ले , इसी आंख को आज हम ‘डीडी आई’ के नाम से जानते हैं , लोगो के साथ जो धुन सुनाई देता है
उसे पंडित रवि शंकर ने उस्ताद अली अहमद हुसैन ख़ान के साथ मिलकर बनाया।, लोगो के साथ ये धुन पहली बार 1 अप्रैल, 1976 को टेलीविज़न स्क्रीन पर सुनाई दी गयी थी लेकिन 80 और 90 के दशक में जब डीडी न्यूज, डीडी स्पोर्ट्स और कुछ रीजनल चैनल लांच हुए थे।, उस वक़्त भी इसके सिम्बाॅल या मोंटाज में भी कुछ बदलाव किये गए थे, ,ख़ासकर डीडी स्पोर्ट्स के मोंटाज में डिस्कस फेंकते हुए एथलीट को दिखाया गया था, जो बाद में दूरदर्शन का सिम्बाॅल बन गया था , शुरूआत के दिनों में डीडी के लोगो के साथ ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ भी लिखा हुआ आता था, जिसे बाद में साथ हटा दिया गया था । इसका मतलब यह हुआ कि दूरदर्शन द्वारा उसके लोगो में किया गया यह बदलाव पहली बार नहीं हो रहा है लेकिन इस बार बदलाव के बाद विपक्षी हंगामें का कारण महज़ लोग के रंग का केसरिया हो जाना है जो कि दुर्भाग्य पूर्ण है , क्योंकि केसरिया रंग तो भारत के झंडे का प्रतिनिधित्व करता है , विपक्षी राजनीतिक दलों को सरकार को किसी जरूरी मुद्दे पर घेरना चाहिए, ऐसा गैर जरूरी मुद्दे पर विरोध विपक्ष की वैचारिक संकीर्णता और उनके पास आवश्यक मुद्दे का आभाव को परिलक्षित करता है ।