- कोचिंग के लिए आने वाले बच्चों के बढ़ते सुसाइड मामलों ने बढ़ाई चिंता
गोपेन्द्र नाथ भट्ट
राजस्थान के दक्षिण पूर्व में चंबल नदी के तट पर बसा सुंदर शहर कोटा किसी जमाने में राजस्थान की औद्योगिक राजधानी माना जाता था लेकिन पिछले कुछ दशकों से कोटा को भारत का सबसे बड़ा कोचिंग हब और ‘कोचिंग राजधानी’ कहा जाने लगा है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से 240 किमी दूरी कोटा शहर में सैकड़ों कोचिंग सेंटर हैं जी नीट, जी मेन,जी एडवांस, इंजीनियरिंग और मेडिकल की प्रवेश परीक्षाएं,बैंक और दूसरी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराते हैं। बताया जाता है कि कोटा में क़रीब सवा दो लाख छात्र नीट, जेईई, इंजीनियरिंग एवं मेडिकल की अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। ये छात्र कोटा में चार हज़ार हॉस्टल या फिर पांच हज़ार रजिस्टर्ड पीजी में रहते हैं।
कोटा को इंजीनियरिंग और मेडिकल की कोचिंग का गढ़ माना जाता है। यहाँ हर साल हज़ारों बच्चे इंजीनियरिंग और मेडिकल की प्रवेश परीक्षा की कोचिंग के लिए आते रहे हैं। हर साल देशभर से सैकड़ों छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने का सपना लेकर शिक्षा नगरी कोटा आते हैं, लेकिन यहां कोचिंग के लिए आए बच्चों के बढ़ते सुसाइड के मामलों ने सबकी चिंता बढ़ा दी है। मीडिया रिपोर्टस में कहा गया है कि जिन छात्रों ने आत्महत्याऐं की है, उनमें से ज़्यादातर ग़रीब या निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि आत्महत्या करने वाले ज़्यादातर लड़के थे और ये छात्र मेडिकल की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। ये छात्र उत्तर भारत ख़ासकर उत्तर प्रदेश और बिहार के थे।
कोटा में हाल ही हरियाणा के सुमित (20 वर्ष) ने फांसी का फंदा लगा कर आत्महत्या कर ली। उसकी 5 मई को नीट की परीक्षा थी। सुमित पिछले एक साल से कोटा की कुन्हाड़ी हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी के एक निजी हास्टल में रह कर परीक्षा की तैयारी कर रहा था।
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार 2023 में यहां 29 छात्रों ने आत्महत्या की थी और इस वर्ष 2024 में अब तक 9 बच्चे सुसाइड कर चुके हैं। राजस्थान पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, कोटा में वर्ष 2015 से 2023 तक 120 छात्र सुसाइड कर चुके हैं। 2023 में कोटा में सबसे ज्यादा 25 छात्रों ने सुसाइड किया।2024 में चार छात्रों को जोड़कर 10 सालों में अब तक सुसाइड करने वाले छात्रों का आंकड़ा 124 हो गया हैं। आंकड़ों के अनुसार 2022 में 15, 2019 में 18, 2018 में 20, 2017 में 7, 2016 में 17 और 2015 में 18 छात्रों ने आत्महत्या की। हालांकि, कोविड महामारी के कारण 2020 और 2021 में कोटा में किसी भी छात्र की आत्महत्या की सूचना नहीं मिली थी, क्योंकि कोविड की त्रादसी के बाद से कोचिंग संस्थान बंद पड़े थे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, देशभर में साल 2021 में 13,089 छात्रों ने आत्महत्या की हैं, जो कि पिछले एक दशक में 70 प्रतिशत की चौंकाने वाली बढ़ोतरी है। यानी कि औसतन हर दिन देश में 35 छात्र आत्महत्या कर रहे हैं। वर्ष 2011 में आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या 7696 थी। इनमें से 1673 मामलों में परीक्षा में असफलता को आत्महत्या का करण बताया गया था। इनमें से भी 991 पीड़ित पुरुष थे। 2021 में भारत में आत्महत्या से मरने वाले छात्रों की हिस्सेदारी आत्महत्या से होने वाली कुल मौतों की संख्या का 8 प्रतिशत थी।
लोकनीति-सीएसडीएस ने अक्टूबर 2023 में कोटा में पढ़ने वाले छात्रों पर सर्वे किया. इसमें 30% छात्राएं थीं। सर्वे में पाया गया कि ज्यादातर छात्र बिहार (32%), उत्तर प्रदेश (23%), राजस्थान (18%) और मध्य प्रदेश (11%) से आते हैं। लगभग आधे छात्र छोटे या बड़े शहरों से आते हैं, केवल 14% गांवों से आते हैं. कोटा आने वाले छात्रों के माता-पिता सरकारी सेवा (27%), व्यवसाय (21%) या कृषि (14%) में लगे हुए हैं।
सबसे चिंताजनक बात ये है कि फिलहाल कोटा में पढ़ रहे 7 प्रतिशत छात्रों ने कम से कम एक बार आत्महत्या करने के बारे में सोचा है। यह जानकारी द हिंदू और लोकनीति-सीएसडीएस की ओर से किए गए एक अध्ययन से मिली है। सर्वे के जरिए छात्रों की चिंताओं का उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने की कोशिश की गई थी। रिसर्च में पाया गया कि कोटा में पढ़ने वाले बहुत से बच्चों को लगता है कि एक बेहतर जिंदगी पाने के लिए नीट या जी परीक्षा पास करना बेहद जरूरी है। यही सोच उन्हें पढ़ाई करने का जोश देती है, लेकिन अगर वो परीक्षा पास नहीं कर पाते हैं तो इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। शायद यही वजह है कि करीब 10 में से 2 बच्चे अक्सर ये सोचते हैं कि अगर उन्होंने अच्छा नहीं किया तो क्या होगा? बाकी बच्चों में से एक-तिहाई से ज्यादा कभी-कभी ऐसा सोचते हैं। 10 में से 2 बच्चों ने बताया कि वो बहुत कम ही ऐसा सोचते हैं।कुछ आसपास के लोग भी छात्र छात्राओं की चिंता बढ़ा देते हैं। कोटा में रहते हुए लगभग 10 में से 1 छात्र अक्सर माता-पिता के दबाव का अनुभव करता है। लड़कियों की तुलना में लड़कों पर दबाव थोड़ा अधिक है।सर्वे में करीब आधे 46 फीसदी छात्रों ने बताया है कि वह समय-समय पर तनाव महसूस करते हैं जबकि 12 फीसदी ने अक्सर तनाव महसूस करने की बात कही है। सर्वे में कोटा के छात्रों के तनाव में रहने के कुछ कारण भी सामने आए हैं। 53 फीसदी छात्रों का कहना है कि वह कभी-कभी अकेलापन महसूस करते हैं। छह फीसदी छात्रों ने पैसे की कमी भी तनाव का एक कारण बताया, जबकि अन्य एक चौथाई छात्र कभी-कभी इस कारण तनाव महसूस करते हैं। इसके अलावा बढ़ता हुआ कंप्टीशन भी कभी-कभी छात्रों को प्रभावित करता है। सर्वे में 4 फीसदी छात्रों ने माना है कि वह अक्सर अपने साथियों के दबाव का सामना करते हैं।
सर्वे में छात्रों से पूछा गया कि जब आप तनाव में होते हैं तो क्या करते हैं? लगभग आधे 49 फीसदी छात्रों ने कहा जब बहुत अधिक तनावग्रस्त होते हैं तो वेअपने परिवार और दोस्तों से बात करते हैं। 46 फीसदी छात्र जब तनावग्रस्त महसूस करते हैं तो सो जाना पसंद करते हैं। 40% छात्र तनाव दूर करने के लिए ऑनलाइन वीडियो गेम खेलना, टीवी देखना या गाने सुनते हैं। 36% छात्र टहलने, व्यायाम करने या ध्यान लगाकर तनाव से बाहर निकलने की कोशिश करते हैं।13% ने स्टडी करने की बात कही। हालांकि ऐसे भी 5% छात्र हैं जो तनाव से लड़ने के लिए धूम्रपान करते हैं और 2% ऐसे है जो शराब पीते हैं। सर्वे के अनुसार 13% छात्रों के परिवार के सदस्य भी कोटा में पढ़ते हैं,जबकि 28% के दूर के रिश्तेदार कोटा में हैं। आधे से ज्यादा छात्रों (53%) का कोई भी रिश्तेदार कोटा में नहीं पढ़ा है। 44% छात्रों ने कहा कि उन्होंने कोटा शहर के बारे में सोशल मीडिया पर सुना। लगभग आधे 46% छात्र कोटा के कोचिंग संस्थानों की प्रतिष्ठा के कारण वहां पहुंचे। 39 प्रतिशत छात्र अपने माता-पिता के जोर देने पर आए और 10 फीसदी कोटा जाने वाले अपने दोस्तों से प्रभावित हुए थे।
बीते सालों से कोटा को कोचिंग फैक्ट्री माना जाता रहा है। कोटा में कम उम्र के बच्चे भी कोचिंग करने चले जाते हैं। नौवीं, दसवीं क्लास के बच्चे कोटा में रहकर 12वीं क्लास के बाद होने वाली प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने लगते हैं। कोटा की समस्या पर एक वेब सिरीज़ कोटा फैक्ट्री भी बनी थी। कोटा में कोचिंग का कारोबार काफ़ी बड़ा है। यहाँ से पढ़ने और प्रवेश परीक्षा पास करने वाले छात्रों की तस्वीरें विज्ञापनों में नज़र आती रही हैं,लेकिन जो छात्र सफल नहीं हो पाते हैं या प्रतियोगिता और उम्मीदों का दबाव किन्हीं कारणों से सह नहीं पाते हैं, उनकी चुनौतियां उन्हे ज़्यादा चिंताजनक नतीजों की ओर ले जाती हैं। आत्महत्या करने वाले एक छात्र के पिता ने कहा कि “अपने बच्चे को कहीं भी भेजिए, बस कोटा मत भेजिए।”
राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा कि हम बच्चों से उनकी क्षमता से अधिक अपेक्षा कर रहे हैं। बीते साल राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कोटा में होती आत्म हत्याओं के बारे में कहा था कि, हमने एक कमेटी बनाई है, लेकिन कमेटी की रिपोर्ट का पता नही लग पाया है। राजस्थान के पूर्व कैबिनेट मंत्री शांति धारीवाल ने कोटा में बढ़ते हुए छात्र आत्महत्या मामलों पर दावा किया था कि ये मौतें प्रेम संबंध और माता-पिता के दबाव के कारण हो रही हैं।
देश में कोचिंग हब के रूप में प्रसिद्ध राजस्थान के कोटा में छात्र-छात्राओं की बढ़ती आत्महत्या के मामले पर कोटा के जिला कलेक्टर रविंद्र गोस्वामी ने विद्यार्थियों एवं अभिभावकों को खुला पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने लिखा कि मैं खुद इसका उदाहरण हूं, मैं भी पीएमटी में फेल हो चुका हूं, असफलता ही सफलता का मार्ग बताती है। हम केवल मेहनत कर सकते हैं। फल देना ईश्वर का काम है। ईश्वर कभी अपने कर्तव्य से चूक नहीं कर सकता, इसलिए वो हमें सफल बना रहा है तो वो ठीक है। अगर असफल कर रहा है तो शायद वो हमारे लिए दूसरा रास्ता चुन रहा है। उन्होंने अभिभावकों को लिखा कि आप अपने बच्चों को गलती सुधारने का मौका दो, जैसा मेरे-माता पिता ने मुझे दिया था। इस साल के चार महीनों में नौ छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या की है। दो लापता हैं। पिछले साल 29 छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या की थी। जांच में सामने आया है कि अधिकांश मामलों में पढ़ाई के दबाव, प्रतिस्पर्धा और अभिभावकों की उम्मीदों के बीच फंसे छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या की है। उन्होंने बताया कि जिला प्रशासन द्वारा निर्मित तय गाइडलाइन का पालन नहीं करने वाले कोचिंग संस्थानों और हॉस्टल मालिकों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें सीज किया गया है। गाइड लाइन के अनुसार अब हॉस्टल में पंखों पर हैंगिग डिवाइस लगाना आवश्यक है। अब 16 साल से कम उम्र के बच्चों को कोचिंग सेंटर में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। कोचिंग संस्थान एवं हॉस्टल में मनोचिकित्सकों से नियमित जांच कराई जाएगी। इसके अलावा जिला प्रशासन की गाइडलाइन में प्रतिदिन पांच घंटे से अधिक क्लास नहीं लगाने,अभिभावकों एवं छात्र-छात्राओं की नियमित काउंसलिंग, प्रवेश से पहले स्क्रीनिंग टेस्ट सहित कई प्रावधान किए गए हैं।
देखना है जिला प्रशासन के ये प्रयास कोटा में बढ़ती सुसाईड की घटनाओं को रोकने में कितने सार्थक सिद्ध होते है ?