हरीशचंद्र पांडे
सोहन और उनकी पत्नी वीरा दोनो ही रिटायर हो गये थे।उनके मित्र रोशन भी रिटायर हो गये थे।मगर वह रोज तीन चार घंटे समाज सेवा कर रहे थे।रोशन ने सोहन और वीरा को भी राय दी।मगर वह दोनों नहीं माने। बात यह थी कि उन
दोनों ने जीवन को आराम और आलस का दूसरा नाम बना लिया था।बहुत अच्छी पेंशन मिलती थी।नौकर-चाकर रख लिये थे।
खाना पीना आराम करना।कुछ महीने तो आनंद ही आनंद रहा।मगर उसके बाद दोनो ही चिड़चिड़े से रहने लगे।एक दूसरे से बार बार झगड़ने लगे।तनाव बढने लगा।अब मानसिक और शारीरिक दोनो ही चिकित्सकों का खर्च एक लंबा – चौडा बिल बनकर खिजाने लगा। अब रोशन जी की याद आई।रोशन जी इन दिनों एक सार्वजनिक बगीचे में रोजाना दो घंटे बागवानी करते थे।और उसके बाद उसी बगीचे में मुफ्त संगीत सिखाया करते थे।रोशन जी ने उन दोनो को वही बुला लिया ।रोशन जी का चेहरा तो और भी चमकदार और खिला खिला लग रहा था।रोशन जी ने उनको भी एक सुझाव दिया कि वह चाहे तो इसी सार्वजनिक बगीचे मे आर्ट एंड क्राफ्ट सिखा सकते है। यहां पास में दो सरकारी पाठशाला है। यहां के छात्र सीखने के उत्सुक हैं।
यह सुनकर वह दोनों चट तैयार हो गये।अगले ही दिन वीरा और सोहन ने माचिस के पुराने डब्बे से कितने ही उपयोगी क्राफ्ट बनाने सिखा दिये।शाम को जब लौट रहे थे तो उन दोनो के मन में अलौकिक सुकून था।अब उनको महसूस हो रहा था कि जिसतरह पतझड़ के बाद वसंत आता है, उसी तरह हमारी जिंदगी में नौकरी से अवकाश यानी रिटारयमेंट के बाद वसंत आता है। सेवानिवृत्ति के बाद एक नई जिंदगी मिलती है, जिसे अपने मन मुताबिक जी सकते हैं। मगर अक्सर लोग मान लेते हैं कि अब हम सेवानिवृत्त हो गए, किसी काम के लायक नहीं रहे, और सब कुछ समय पर ही छोड़ देते हैं। ऐसी स्थिति में कई बार घरों में कलह बढ़ने लगता है। उदासी और अवसाद की यह दशा सेवानिवृत्ति के बाद आए उससे पहले ही सेवानिवृत्त होने के बाद क्या करना है,अपने खाली समय को कैसे इस्तेमाल करना है? इस सबकी योजना बना लेनी चाहिए, ताकि आपके सेवानिवृत्ति के बाद जीवन सुखमय बीते।कुछ लोग योजना बनाते हैं कि हम सेवानिवृत्ति के बाद कहीं लंबी यात्रा पर निकल जाएंगे। कुछ की योजना होती है कि दोस्तों की मंडली बना कर खूब गप्प किया करेंगे। सभी अपनी इच्छानुसार जिंदगी जीना चाहते हैं। सरकार भी कर्मचारियों को पेंशन देती है। ऐसे में किसी भी सेवानिवृत्त अधिकारी की जिम्मेदारी बन जाती है कि उसने समाज से जो लिया है वह उसे वापस करे।अगर आप ऐसा करते हैं, तो आप खुद को भी सक्षम समझेंगे और आपके मन में कभी यह भाव भी नहीं आएगा कि मैंने समाज के लिए कुछ नहीं किया। आप अपने सेवानिवृत्ति के बाद के जीवन को उबाऊ न बनाएं, बल्कि उसे एक नई शुरुआत के रूप में लें।वीरा और सोहन को याद आया जैसे उनकी एक परिचित मोना भी कर रही हैं। मोना एक सेवानिवृत्त शिक्षिका हैं। सेवानिवृत्ति के बाद वे अपना खाली समय लिखने-पढ़ने में बिताती हैं। इसके अलावा वह कुछ संस्थाओ के लिए लोगों में खुशहाली का सर्वेक्षण करती हैं। और उस संस्था के लिए मेले आदि का तक आयोजन करती हैं। जो विचार लोगों को खुशी दे सकते हैं उन्हें हर तरह के लोगों में भेजती हैं। हौले हौले वीरा और सोहन में काफी बदलाव आने लगा । और यही बदलाव उन की जीवनशैली को खुशी से भी भरता जा रहा है। आज उनको समझ आया कि खुद को उम्र के इस पड़ाव में भी साबित कर सकते हैं। सेवानिवृत्त अधिकारी के पास अपने क्षेत्र का अथाह अनुभव होता है।वह अपने इस अनुभव को लोगों के साथ साझा कर देश की सेवा कर सकता है। एक शोध में सामने आया कि सेवानिवृत्त होने के बाद जीवन में अधिक सकारात्मकता आती है। क्योंकि इस समय हमारे खाने-पीने, सोने और दैनिक गतिविधियों की अवधि बढ़ जाती है और हम जीवन को उसकी रवानगी में जीते हैं।सोहन और वीरा को इसी तरह सामाजिक सेवा करते हुए दस साल बीत गए हैं । अब उनको न कलह के लिए समय है ।न विवाद के लिए। दोनों खुश होकर हर सामाजिक गतिविधि में सहभागी बनते हैं।
पहले तो ऐसा होता था कि वे दोनो ही बहुत अधिक टीवी देखने लगते थे। लंबे समय तक बैठे ही रहते थे। इस वजह से उनकी आंखों पर असर पड़ता था। जिन बीमारियों को वे अपनी सक्रियता से रोक सकते थे, उसे खाली बैठ कर बढ़ा लेते थे।अब उन दोनो को अच्छी सेहत का पूरा आनंद आ रहा है।तन स्वस्थ है और मन भी स्वस्थ है।
अब उन दोनो से जितना भी होता है, वह निर्धन बच्चों की मदद में रूपया लगा देते हैं। बच्चों को चाहे आर्थिक मदद चाहिए या भावनात्मक, आज वह दोनों स्तरों पर बच्चों की मदद करते हैं।वह हर रिटायर होने वाले अपने परिचित को जरूर सलाह देने जाते हैं कि आप खुद को अकेला महसूस न करे। सेवानिवृत्ति के बाद खुद को रचनात्मकता, उत्पादकता और भावनात्मकता के स्तर पर उदासीन न रखें। अगर आप सेवानिवृत्त होने के बाद भी खुद को सक्रिय रखते हैं, तो अवसाद आपके पास आ ही नही सकता।
हर व्यक्ति की किसी न किसी काम में रुचि जरूर होती है। जैसे किसी की पेंटिंग में, किसी की खाना बनाने में, किसी की सिलाई-कढ़ाई-बुनाई में, किसी की संगीत में, किसी की पढ़ने-लिखने में, किसी की गाना गाने में आदि। वैसे ही आप भी अपनी रुचि के अनुसार लोगों की सेवा कर सकते हैं। रिटारयमेंट के बाद ही वह समय आता है जब खुद को निखार सकते हैं। आप अपने बारे में सोच सकते हैं। खुद को निस्वार्थ सेवा में लगा सकते हैं। अगर आपको समाज सेवा में दिलचस्पी है तो कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ सकते हैं।
यह सोचें कि हमें अभी बहुत कुछ सीखना है। यह नहीं सोचना चाहिए कि आधी जिंदगी निकल गई और आधी बच गई है।अब बस काट ही लो। बल्कि यह सोचना चाहिए कि अब जो जिंदगी बच गई है उसे बहुत ही अच्छी तरह जीना है। सेवानिवृत्ति को सेवानिवृत्ति न समझ कर जीवन की नए सिरे से शुरुआत समझना चाहिए।उनकी सलाह मानकर जिसने भी जीवन उनकी तरह जिया।वह सत्तर ही नहीं अस्सी साल में भी आनंद से सराबोर है।