युवा पीढ़ी को इस राजनीतिक कमजोरी पर करना होगा फोकस

Young generation will have to focus on this political weakness

जिले के सभी बड़े गुर्जर नेताओं के भगवांधारी बनने के बाद अभी तक गुर्जर बाहुल्य गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट से किसी ने भी नहीं जताई दावेदारी

-कर्मवीर नागर प्रमुख

22 जनवरी को अयोध्या में श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद लोकसभा चुनाव का बिल्कुल बजने जा रहा है। जहां सभी दल अंदर खाने चुनावी रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं वहीं चुनाव लड़ने के दावेदार अपनी दावेदारी जता रहे हैं। अगर हम गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट की बात करें तो परिसीमन के बाद गौतम बुद्ध नगर सीट बनने पर इस सीट पर गुर्जर मतों की बहुलता की वजह से सबसे पहले सुरेंद्र नागर सांसद बने थे। इसके बाद अलग-अलग दलों से कई गुर्जर लड़ने की वजह से लगातार दो बार से डॉक्टर महेश शर्मा इस सीट से सांसद निर्वाचित हुए। लेकिन यह ऐसा पहला मौका है जब अन्य दलों के सभी बड़े गुर्जर नेता भाजपा में शामिल हो गए हैं लेकिन यह भी पहला मौका है कि एक ही झंडे के नीचे जाने के बाद किसी भी गुर्जर नेता की दावेदारी अभी तक गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट के लिए सामने नहीं आई है। ठाकुर समाज के कई नेता अपनी दावेदारी जता रहे हैं, वैश्य समाज के नेताओं ने भी अपनी दावेदारी जतानी प्रारंभ कर दी है, ब्राह्मण समाज से वर्तमान सांसद डॉ महेश शर्मा इस सीट पर हैट्रिक लगाने की तैयारी में है। लेकिन गुर्जर समाज के नेताओं द्वारा अभी तक भाजपा से दावेदारी न जताने की वजह से गुर्जर समाज में बेचैनी बढ़ना प्रारंभ हो गई है। गुर्जर समाज से दावेदारी के लिए किसी नेता का नाम अभी तक न आने से गुर्जर समाज की युवा पीढ़ी खासी बेचैन नजर आ रही है। टिकट देना ना देना तो राजनीतिक दलों के हाई कमान का विषय है लेकिन हम दावेदारी ही न करें तो इससे बड़ी कमजोरी कुछ नहीं है।

गौतम बुद्ध नगर में गुर्जर समाज का एक बहुत बड़ा वोट बैंक है। एक जमाना वह भी था जब दादरी के गुर्जर समाज की तरफ पूरे हिंदुस्तान का गुर्जर निगाह लगाकर देखता था। यहां के गुर्जर समाज द्वारा दिया गया संदेश संपूर्ण भारत के गुर्जर समाज के लिए महत्व रखता था। लेकिन देखते ही देखते गुर्जर बहुल जिला कहे जाने वाले गौतम बुद्ध नगर में गुर्जर समाज उस हासिये पर पहुंच गया है जहां लोकसभा सीट के लिए अपनी दावेदारी करते हुए भी हिचक रहा है। आखिर इस राजनीतिक बदहाली के लिए कौन जिम्मेदार है ? यह तो बहस का लंबा विषय है। इस वक्त इस पर बहस का उचित समय भी नहीं है। इस वक्त तो ख़ास तौर पर युवा पीढ़ी को जोरदार तरीके से जागरूक होकर अपने हक हकूक के लिए आगाज करने के लिए आगे आना होगा जोकि राजनीति में पिछड़ने की वजह से खासा बेचैन नजर आ रहा है। इसलिए इस बेचैनी को समय रहते हुए राजनीतिक दलों के सामने उजागर करना होगा।