सीता राम शर्मा ” चेतन “
मोदी सरकार देश के लिए जरुरी भी है और मजबूरी भी । जरुरी और मजबूरी का सबसे बड़ा कारण योग्य और ठोस विकल्प का नहीं होना है । गौरतलब है कि अच्छे का विकल्प बहुत अच्छा हो सकता है पर बहुत बूरे का प्राथमिक विकल्प तो कम बूरा या अच्छा ही होगा । इस दृष्टिकोण से सोचें और समझे तो मोदी सरकार का विकल्प इससे एक और बेहतर सरकार हो सकती है, जिसके बारे में सोचा जा सकता है क्योंकि वर्तमान समय में वह स्वंय और बेहतर हो सकती है, यह संभव है पर बहुत बूरे वर्तमान विपक्ष का विकल्प तो कम बूरा और अच्छा विपक्ष ही है, जिसकी संभावना संभवतः आज किसी को नहीं है और ना ही कोई ऐसा सोच भी सकता है । अतः अब बात सिर्फ मोदी सरकार की तो इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी सरकार ने अपने दस वर्षीय कार्यकाल में कई अभूतपूर्व और अनुकरणीय काम किए हैं पर एक सच्चाई यह भी है कि ऐसा करते हुए इसने कुछ बड़ी गलतियां की है और कुछ क्षेत्रों में इसकी ऐसी नाकामियां भी हैं, जो किसी भी स्थिति में स्वीकार्य और बिना विरोध के सहन करने योग्य नहीं हो सकती । इस सरकार के द्वारा किए गए बड़े कामों, महत्वपूर्ण बदलावों और इसकी उपलब्धियों की बात करें तो स्वच्छता अभियान, जनधन योजना, शौचालय निर्माण, आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, उज्ज्वला गैस योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, नल-जल योजना, वृहद स्तर पर सड़कों का निर्माण एंव विस्तार तथा राष्ट्रीय सुरक्षा और शांति के लिए किए गए अत्यंत प्रभावी प्रयासों, निर्माण कार्यों के साथ कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति, बहुप्रतीक्षित राम मंदिर निर्माण और अंतरराष्ट्रीय ख्याति में सम्मानजनक वृद्धि इसकी मुख्य उपलब्धियां रही हैं ।
अब बात यदि मोदी सरकार की बड़ी गलतियों और नाकामियों की करें तो कृषि कानून के विरुद्ध किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के आंदोलन में त्वरित निर्णय ना करने की गलतियों के साथ देश के लिए बेहद जरुरी जमीनी कामों में शैक्षणिक व्यवस्था में सुधार और नशामुक्ति के साथ भ्रष्टाचार मुक्ति जैसे कुछ ऐसे काम थे जिन पर इस सरकार को आवश्यक रुप से काम करना चाहिए था, जिसमें वह आंशिक और दिखावी प्रयासों के साथ नाकाम सिद्ध हुई है । ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि पिछले दस वर्षों में नशामुक्ति के क्षेत्र में स्थिति पहले से ज्यादा चिंताजनक और विस्फोटक हो चुकी है । सरकारी अदूरदर्शिता और नाकामी के कारण आज देश के लाखों युवा नशों के गिरफ्त में जा चुके हैं और जा रहे हैं । मोदी सरकार की पहली बड़ी नाकामी की बात करते हुए बात बदहाल शिक्षा व्यवस्था की करें तो नई शिक्षा नीति लाने और कई शैक्षणिक संस्थानों को बनाने बढ़ाने के बावजूद देश की शैक्षणिक व्यवस्था को दुर्दशा और घोर अव्यवस्था से मुक्त करने में यह सरकार पूरी तरह असफल और नाकारा सिद्ध हुई है । गौरतलब है कि राष्ट्रीय चौमुही विकास और उसके स्थायित्व में सबसे बड़ी भूमिका उसके नागरिकों के चरित्र निर्माण और उनके व्यक्तित्व के समुचित विकास की होती है और मनुष्यता के ज्ञान, आचरण, चरित्र, कर्म और व्यक्तित्व के समग्र विकास का मूल कार्य जिस शिक्षा व्यवस्था के द्वारा होता है उसके बारे में बहुत स्पष्टता से कहा जा सकता है कि मोदी सरकार कम से कम सरकारी शैक्षणिक संस्थानों के द्वारा ऐसा करने में पूरी तरह असफल रही है । राष्ट्रीय कोष के लाखों करोड़ रुपए खर्च करने, जिसे बर्बाद करने की बात कहना ज्यादा उचित होगा, के बावजूद वह राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा, समृद्धि और विकास के मुख्य आधार देश की शैक्षणिक व्यवस्था को उत्कृष्ट बनाने की बात तो दूर स्तरीय बनाने में भी पूरी तरह असफल सिद्ध हुई है और उसका सबसे बड़ा कारण इस क्षेत्र में उसके द्वारा बरती जा रही घोर सरकारी अदूरदर्शिता, कर्तव्यहीनता और अफसरशाही के साथ उसका अप्रत्यक्ष भ्रष्टाचार भी है । आए दिन उच्च स्तरीय पाठ्यक्रमों के नामांकन के साथ प्रतियोगिता परीक्षाओं में हो रही अनियमितताओं और पेपर लीक जैसी धांधलियो के समाचार आते रहते हैं पर हर बार सरकार लंबी चुप्पी के बाद उचित जांच और कठोर कार्रवाई के दिखावी आश्वासनों से ज्यादा कुछ नहीं करती ! कई बार संबंधित त्रस्त हुए छात्र पढ़ाई छोड़कर या तो न्याय हेतु विरोध प्रदर्शन करते रहते हैं या फिर कोर्ट के चक्कर लगाते हैं और सरकार कान में तेल डालकर सिर्फ गंभीर होने का नाटक करती रहती है ! अभी भी नीट रिजल्ट में हुई अनियमितताओं को लेकर कोहराम जारी है और सरकार – – – ? पिछले दिनों भारत सरकार के एक प्रमुख महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थान केंद्रीय विद्यालय संगठन की कार्यशैली और उसकी आंतरिक शैक्षणिक और प्रशासनिक व्यवस्था, दुर्दशा को बहुत करीब से देखने समझने का अवसर मिला, जो अत्यंत चिंतनीय, निंदनीय, अव्यवहारिक, त्रुटिपूर्ण और घोर अफसरशाही से त्रस्त दिखाई देती है !
जहां पढ़ाई की स्थिति निम्न स्तरीय है और विद्यालयों में केंद्र सरकार की कई योजनाओं से संबंधित कार्यक्रमों का दौर निरंतर ऐसे चलता रहता है, जैसे वो विद्यालय ना होकर सरकार के राजनीतिक मनोवैज्ञानिक प्रचार-प्रसार के केंद्र हों । शिक्षकों को लेकर हैरान करने वाला सच यह है कि प्रतिदिन विद्यालय की छुट्टी के पश्चात भी नियमतः आवश्यक रुप से उन्हें घंटे-डेढ घंटे विद्यालय में रहना पड़ता है क्योंकि लगभग हर दूसरे दिन क्षेत्रीय कार्यालय के अधिकारियों द्वारा उनके और छात्रों के लिए कुछ न कुछ टास्क अथवा कार्यक्रमों के आदेश निर्देश दिए जाते हैं ! अलग-अलग कार्यक्रमों के नाम पर आए दिन बेतहाशा केंद्रीय फंड आने और उसके बंदरबांट होने की स्थिति भी आश्चर्यजनक है ! सबसे ज्यादा हैरान करने वाली स्थिति यह है कि केंद्रीय विद्यालय संगठन के शिक्षक होने के बावजूद उनकी बात सुनने वाला कोई नहीं है ! ना क्षेत्रीय कार्यालय, ना केंद्रीय कार्यालय और ना ही सरकार का शिक्षा मंत्री ! कुलमिलाकर यह उच्च स्तरीय और प्रतिष्ठित दिखाई देता शैक्षणिक संस्थान घोर अफसरशाही, अनियमितताओं और केंद्र सरकार के उन कार्यक्रमों, जो विद्यालय और छात्र के लिए आवश्यक नहीं हैं, का शिकार है और उसकी इस दुर्दशा को देखने सुनने वाला कोई नहीं है ! संभवतः शैक्षणिक क्षेत्र में लगभग ऐसी ही परिस्थितियां अन्य शैक्षणिक संस्थानों की भी है । मेरा स्पष्ट मानना है ( जो सरकार के लिए जानते समझते हुए भी बिल्कुल मान्य नहीं है ) कि मोदी 3.0 सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में अत्यंत गंभीरतापूर्वक विचार और व्यवहार करने की जरूरत है । इसके लिए जरुरी है कि वह एक योग्य शिक्षा मंत्री और उसकी टीम बनाने के साथ उसकी निरंतर माॅनिटरिंग भी करे । यहां स्पष्ट कर दूं कि निरंतर माॅनिटरिंग की जरूरत तो बहुत पहले से लगभग हर मंत्रालय की रही है ।
अब बात नशामुक्त भारत की, जिसकी बात लगातार सरकार के शीर्ष नेता भी करते रहते हैं पर वास्तविकता यह है कि मोदी सरकार के दस वर्षीय कार्यकाल में देश में घातक नशों के उपयोग और व्यापार में बेतहाशा वृद्धि हुई है ! एक तरफ जहां देश के लाखों युवा और बच्चे घातक नशों के दलदल में जा फंसे हैं वहीं दूसरी तरफ नक्सलवाद और राजनीतिक, आर्थिक अपराध से जुड़े लोग बड़ी संख्या में नशों के कारोबार में किसी ना किसी रूप में लिप्त होते चले गए हैं और सरकार इसके विस्तार को रोकने में असफल सिद्ध हुई है । अब जबकि स्थिति अत्यंत विस्फोटक हो गई है तब वह सक्रिय जरुर हुई है पर उसकी गति और नीति में अभी भी वह गंभीरता नहीं है, जो त्वरित और सार्थक परिणाम देने के लिए जरुरी हैं । यह आश्चर्य की बात है कि देश के हर गांव, शहर और कस्बे में नशे के सौदागर और अपराधियों को जनता तो जानती है पर वहां का सत्ता और शासन-प्रशासन उनसे अनभिज्ञ रहता है ! मैंने देश की सुरक्षा, शांति और विकास के लिए देश भर में प्राइवेट इंटेलिजेंस के विकास और विस्तार की बात कई बार कही है । आशा है मोदी 3.0 सरकार नशे की इस समस्या पर थोड़ी गंभीर होगी । हालाकि अनुभव तो ऐसी आशा करने की आज्ञा नहीं देता पर आशा और विश्वास ही तो जीवन का अंतिम श्रेष्ठ और सर्वसुलभ विकल्प है !
अंत में आज की अंतिम जरुरी बात मोदी 3.0 सरकार के द्वारा भ्रष्टाचार पर कुठाराघात करने के लिए लगातार लिए जा रहे दृढ़संकल्पों की, तो उसके लिए उसे सबसे पहले पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता, निष्ठुरता के साथ भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी को पुनर्परिभाषित करने की जरूरत है अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब उसके मुंह से भ्रष्टाचार की बात जनता के मन-मस्तिष्क के लिए पूरी तरह अप्रासंगिक होने के साथ उसके अपराध और पाप की ही प्रमाणिकता बन जाएगी । यह वो सत्य है जो विवशतापूर्ण स्थिति में दबी जुबान अब कई युवा भाजपाई कार्यकर्ता और बहुतायत मतदाताओं के साथ कई बुद्धिजीवी भी कहने स्वीकारने लगे हैं ! मोदी उपर लिखी गई सच्चाई को पूरी गंभीरता से ना सिर्फ समझेंगे बल्कि अपने नये कार्यकाल में इन सारे सच को ध्यान में रखते हुए ही पहले से बेहतर और भ्रष्टाचार मुक्त शासन के लिए आवश्यक नीति, नियम और नीयत से काम भी करेंगे, इन्हीं असीम शुभकामनाओं के साथ फिलहाल शब्दों को विराम देता हूं ।