ललित गर्ग
यह आशंका सच साबित हो रही है कि भाजपा को पूर्ण बहुमत न मिलने पर कश्मीर में आतंकी घटनाएं बढ़ेंगी एवं पाकिस्तान पोषित आतंकवाद फिर से फन उठाने लगेगा। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड मतदान से पाकिस्तान बौखलाया है। इसी का परिणाम है लगातार हो रहे आतंकी हमलें। इन हमलों ने आंतरिक सुरक्षा के लिये नये सिरे से चुनौती पैदा की है। जम्मू में रियासी, कठुआ और डोडा में चार दिनों में चार आतंकी हमले चिन्ता का बड़ा कारण बने है। रविवार को रियासी में श्रद्धालुओं से भरी बस के चालक पर हुए हमले के बाद बस अनियंत्रित होकर खाई में गिर गई थी। जिसमें नौ श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। फिर कठुआ व डोडा में हुए आतंकी हमलों में एक जवान और दो आतंकवादी मारे गए हैं। लम्बे समय की शांति, अमन-चैन एवं खुशहाली के बाद एक बार फिर कश्मीर में अशांति एवं आतंक के बादल मंडराये हैं। धरती के स्वर्ग की आभा पर लगे ग्रहण के बादल छंटने लगे थे कि एक बार फिर कश्मीर को अशांत करने की कोशिशें तीव्र होते हुए दिख रही है। केन्द्र में गठबंधन वाली मोदी सरकार के सामने यह एक बड़ी चुनौती है।
इन आतंकी घटनाओं को केन्द्र सरकार ने गंभीरता से लिया है। कुछ गिरफ्तारियां भी हुई और हथियार भी बरामद हुए हैं। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए गुरुवार को प्रधानमंत्री ने गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल व सुरक्षा एजेंसियों के साथ बैठक की है। इसमें आतंकवाद की नई चुनौती से मुकाबले की रणनीति पर विचार हुआ है। दरअसल, नई सरकार बनने की प्रक्रिया के दौरान हुए इन हमलों में पाक की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन पाकिस्तान यह बड़ी भूल कर रहा है, क्योंकि मोदी सरकार की दृढ़ता एवं साहस को चुनौती देना इतना आसान नहीं है। फिर भी लगातार हुए आतंकी हमले चिंता तो बढ़ा ही रहे हैं। एलओसी से लगते जम्मू के इलाके में आतंकवादी घटनाओं का बढ़ना गंभीर हैं, चिन्ताजनक है। मारे गये दो आतंकवादियों के पास से पाकिस्तानी हथियार व सामान की बरामदगी बताती है कि पाकिस्तान सत्ता प्रतिष्ठानों की मदद से यह आतंक का खेल फिर शुरू कर रहा है। कहीं न कहीं दिल्ली में बनी गठबंधन सरकार को यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि पाक पोषित आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में शांति एवं अमन को कायम नहीं रहने देंगे।
मैंने चुनाव से पूर्व अपनी एक सप्ताह की कश्मीर यात्रा में देखा कि केन्द्र सरकार ने कश्मीर में विकास कार्यों को तीव्रता से साकार किया है, न केवल विकास की बहुआयामी योजनाएं वहां चल रही है, बल्कि पिछले 10 सालों में कश्मीर में आतंकमुक्त करने में भी बड़ी सफलता मिली है। बीते साढ़े तीन दशक के दौरान कश्मीर का लोकतंत्र कुछ तथाकथित नेताओं का बंधुआ बनकर गया था, जिन्होंने अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिये जो कश्मीर देश के माथे का ऐसा मुकुट था, जिसे सभी प्यार करते थे, उसे डर, हिंसा, आतंक एवं दहशत का मैदान बना दिया। लेकिन वहां विकास एवं शांति स्थापना का ही परिणाम रहा कि चुनाव में लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेकर लोकतंत्र में अपना विश्वास व्यक्त किया। कहा जा सकता है कि राज्य में लोकतंत्र को मजबूत होते देख बौखलाहट में ये आतंकवादी हमले किये जा रहे हैं। दरअसल, केंद्रशासित प्रदेश का शांति-सुकून की तरफ बढ़ना आतंकवादियों की हताशा को ही बढ़ाता है। हाल के दिनों में रिकॉर्ड संख्या में पर्यटकों का घाटी में आना और लोकसभा चुनाव में बंपर मतदान सीमा पार बैठे आतंकियों के आकाओं को रास नहीं आया है।
जम्मू के इलाके में आतंकी घटनाओं में वृद्धि शासन-प्रशासन के लिये गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। इन हमलों में पाकिस्तान की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। उल्लेखनीय है कि रविवार को हुए हमले की जिम्मेदारी जहां लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी गुट टीआरएफ ने ली तो डोडा में हुए हमले की जिम्मेदारी पाक पोषित जैश-ए-मोहम्मद के एक गुट कश्मीर टाइगर्स नामक आतंकी संगठन ने ली है। बहरहाल, भारतीय सेना व सुरक्षा बल आतंकवादियों को भरपूर जवाब दे रहे हैं। लेकिन इस माह के अंत में शुरू होने वाली अमरनाथ यात्रा का निर्बाध आयोजन सुरक्षा बलों के लिये बड़ी चुनौती होगी। जिसको लेकर विशेष चौकसी बरतने की जरूरत है। वहीं दूसरी ओर हाल के आतंकी हमले केंद्र सरकार व राज्य प्रशासन को भी आत्ममंथन का मौका देते हैं।
तीन दशकों से कश्मीर घाटी दोषी और निर्दाेषी लोगों के खून की हल्दीघाटी बनी रही है। लेकिन वर्ष 2014 के बाद से, नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से वहां शांति एवं विकास का अपूर्व वातावरण बना है। गठबंधन की केन्द्र सरकार के सामने अब बड़ा लक्ष्य है वहाँ आतंक से अमन-चैन तक लाने के चले आ रहे मिशन को सफल करने का, लोकतंत्र को सशक्त बनाने का, विकास के कार्यक्रमों को गति देने का एवं कश्मीर के लोगों पर आयी मुस्कान को कायम रखने का। बेशक यह कठिन और पेचीदा काम है लेकिन राष्ट्रीय एकता और निर्माण संबंधी कौन-सा कार्य पेचीदा और कठिन नहीं रहा है? इन कठिन एवं पेचीदा कामों को आसान करना ही तो नरेन्द्र मोदी एवं उनकी सरकार का जादू रहा है। अब गठबंधन सरकार में भी वे अपने इस जादू को दिखाये।
इन आतंकी हमलों ने अनेक प्रश्न खड़े किये हैं। सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि कश्मीर की जनता क्यों राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ नहीं पा रही है? क्या कश्मीरी लोगों में नई व्यवस्था में अपने अधिकारों की सुरक्षा व संपत्ति के अधिकारों को लेकर मन में संशय की स्थिति में वृद्धि हुई है? हमें यह तथ्य स्वीकारना चाहिए कि किसी भी राज्य में आतंकवाद का उभरना स्थानीय लोगों के सहयोग के बिना संभव नहीं हो सकता। वहीं यह भी हकीकत है कि कश्मीरी जनमानस का दिल जीतना शक्ति से नहीं बल्कि उनके अनुकूल नीतियां बनाने व लोकतंत्र की बहाली से ही संभव है। अब कश्मीर में आतंक का अंधेरा नहीं, शांति का उजाला होना ही चाहिए। आए दिन की हिंसक घटनाएं आम नागरिकों में भय का माहौल ही बनाती हैं। माना कि रोग पुराना है, लेकिन ठोस प्रयासों के जरिए इसकी जड़ का इलाज होना ही चाहिए। कश्मीरियों में अपनी सुरक्षा के प्रति भरोसा जगाना सरकार की पहली जिम्मेदारी है। घाटी में सक्रिय आतंकियों के खात्मे में सुरक्षा तंत्र ने काफी कामयाबियां हासिल की हैं। अब जरूरत है खुफिया तंत्र को दूसरी तरह की चुनौतियों का सामना करने को तैयार एवं सक्षम किया जाये। घाटी में हालात सुधरने के केंद्र सरकार के दावों की सत्यता इसी से परखी जाएगी कि घाटी में अल्पसंख्यक पंडित और प्रवासी कामगार खुद को कितना सुरक्षित महसूस करते हैं। वास्तव में देखा जाये तो असली लड़ाई कश्मीर में बन्दूक और सन्दूक की है, आतंकवाद और लोकतंत्र की है, अलगाववाद और एकता की है, पाकिस्तान और भारत की है। शांति का अग्रदूत बन रहा भारत एक बार फिर युद्ध के जंग की बजाय शांति प्रयासों एवं कूटनीति से पाकिस्तान को उसकी औकात दिखाये, यह अपेक्षित है।
पाकिस्तान एक दिन भी चुप नहीं बैठा, लगातार आतंक की आंधी को पोषित करता रहा, अपनी इन कुचेष्ठाओं के चलते वह कंगाल हो चुका है, आर्थिक बदहाली में कटोरा लेकर दुनिया घूम आया, अब कोई मदद को तैयार नहीं, फिर भी उसकी घरेलू व विदेश नीति ‘कश्मीर’ पर ही आधारित है। कश्मीर सदैव उनकी प्राथमिक सूची में रहा। पाकिस्तान जानता है कि सही क्या है पर उसकी उसमें वृत्ति नहीं है, पाकिस्तान जानता है कि गलत क्या है पर उससे उसकी निवृत्ति नहीं है। कश्मीर को अशांत करने का कोई मौका वह खोना नहीं चाहता। आज के दौर में उठने वाले सवालों में ज्यादातर का जवाब गठबंधन की मोदी सरकार को ही देना है, उसे सटीक जबाव देकर आतंकियों के मनसूंबों को ढे़र करना होगा, पडोसी देश की गर्दन को एक बार फिर मरोड़ना होगा। यह बात भी सही है कि इस मसले को दलगत राजनीति से दूर रखना होगा।