राजस्थान में भाजपा की हार : ठीकरा किस के सिर मढ़ा जाएगा

BJP's defeat in Rajasthan: on whom will the blame be placed?

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की 11 लोकसभा सीटों पर हुई पराजय को लेकर इन दिनों राज्य से राष्ट्रीय स्तर पर समीक्षाओं का दौर चल रहा हैं। मुख्यमन्त्री भजन लाल शर्मा ने हाल ही राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी से दो घण्टे लम्बी भेंट की है। इसके अलावा उन्होंने केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्री जे पी नड्डा के साथ ही अन्य नेताओं से भी मुलाकात की हैं। अनुमान है कि इन मुलाकातों के दौरान उन्होंने प्रदेश के सर्वांगीण विकास और लंबित प्रकरणों के विभिन्न मुद्दों के साथ ही प्रदेश में 11 लोकसभा सीटों पर हुई भाजपा की पराजय पर भी अवश्य ही चर्चा की होगी तथा उन्होंने मोटे तौर पर इस हार के पीछें के कारण भी गिनाए होंगे। बताते है कि मुख्यमंत्री शर्मा अपने साथ प्रदेश की सभी लोकसभा सीटों की एक रिपोर्ट भी लेकर दिल्ली आए थे। इसके पहले प्रदेश भाजपा ने भी जयपुर में दो दिनों तक बैठक आयोजित कर हार के कारणों की समीक्षा की थी। इस बैठक में प्रदेश की राष्ट्रीय सह प्रभारी विजया राहटकर, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद सी पी जोशी, खुद मुख्यमन्त्री भजन लाल शर्मा लोकसभा चुनाव के प्रभारी और शहर प्रभारी तथा हारने वाले प्रत्याक्षी और अन्य नेता भी मौजूद थे।

बताया जा रहा है कि प्रदेश भाजपा ने राजस्थान में 11 लोकसभा सीटों पर हुई पार्टी की पराजय पर अपनी एक रिपोर्ट तैयार कर ली है। हालाँकि यह रिपोर्ट अभी जाहिर नहीं हुई हैं लेकिन जो मीडिया रिपोर्टस सामने आ रही है उसमें हार का ठीकरा केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा मनमाने ढंग से किए गए टिकटों के वितरण, विशेष कर चुनाव से पूर्व कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए नेताओं को टिकट देने से भाजपा कार्यकर्ताओं में पसरी नाराजगी, आरएसएस कार्यकताओं की बेरुखी, सीटिंग सांसदों के टिकट काट देने से उपजे असन्तोष, जनता की नाराजगी से घिरे सांसदों को टिकट देने, प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी होने से उनके चुनाव में सक्रिय नहीं होने, प्रदेश के जातीय सन्तुलन को सही ढंग से नहीं साधने, विशेष कर किसानों, जाटों, गुर्जरों, आदिवासियों, राजपूतों, पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों आदि के लामबन्द होने से भाजपा प्रदेश के गंगानगर, चूरू, सीकर, झुंझुनूं, नागौर, बाड़मेर-जैसलमेर, टोंक-सवाईमाधोपुर, दौसा, भरतपुर, करौली-धौलपुर, बांसवाड़ा-डूँगरपुर लोकसभा सीटों पर चुनाव हारी है। इन 11 लोकसभा क्षेत्रों के 88 विधानसभा क्षेत्रों में से 49 विधानसभा सीटों पर भाजपा अपने विरोधी उम्मीदवारों से पीछें रही है, जबकि इन 49 विधानसभा सीटों में से 27 विधानसभा सीटों पर अभी सभी मौजूदा विधायक भाजपा के ही हैं।उसके बावजूद भी भाजपा इनमें हारी है। हार के बाद प्रदेश भाजपा द्वारा की गई समीक्षा के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट में हार के कारणों का संसदीय क्षेत्रवार विस्तृत ब्यौरे का पूरे विस्तार से जिक्र किया गया है और इसे अब शीर्ष नेतृत्व को भेजा जाएगा।

लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान विधानसभा में इस बार भी हर पाँच वर्षों में सरकार बदलने का रिवाज बदस्तूर जारी रहा और अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार को विधानसभा चुनाव में सत्ता से हाथ धोना पड़ा। विधानसभा में भाजपा को बहुमत मिलने पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को जयपुर भेजा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा अनुसार दो बार की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित मुख्यमन्त्री पद के अन्य सभी वरिष्ठ दावेदारों को दरकिनार कर पहली बार विधायक बने और अब तक संगठन से जुड़े भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया । मुख्यमन्त्री के नाम की पर्ची भी वसुंधरा राजे के हाथों से निकलवाई गई जैसा गुजरात में मुख्यमन्त्री बदलते समय आनन्दी बेन के हाथों खुलवाई गई थी। अब राजस्थान में भजनलाल सरकार के छह माह भी पूरे हो गये हैं लेकिन इसके पहले अप्रैल में हुए लोकसभा आम चुनावों में भाजपा को प्रदेश में करारी हार का सामना करना पड़ा है जबकि 2014 और 2019 के दोनों आम चुनावों में भाजपा ने प्रदेश की सभी 25 सीटों पर विजय पताका फहराई थी। भाजपा को इस बार राजस्थान की 11 लोकसभा सीटें खोनी पड़ी है जबकि कांग्रेस और उसके इण्डिया गठबन्धन को दो आम चुनावों में एक भी सीट पर जीत नहीं मिलने के मुकाबले इस बार 14 लोकसभा सीटों पर भारी जीत मिली हैं।

इस बार भाजपा को लोकसभा आम चुनावों में उत्तर भारत की हिन्दी पट्टी में विशेष कर उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा आदि प्रदेशों में जोकि उसके मजबूत गढ़ रहें हैं, में अपेक्षा के अनुरुप सफलता नहीं मिली हैं तथा यही कारण रहा कि ओभाजपा को अपने बलबूते पर लोकसभा में बहुमत नहीं मिल पाया है एवं उसे अपने एनडीए सहयोगी दलों की मदद से तीसरी बार मोदी 3.0 सरकार का गठन करना पडा हैं। वैसे भी गठबन्धन सरकार की अपनी अलग मजबूरियाँ होती हैं। देश ने पिछलें दशकों में गठबन्धन सरकारों का हश्र भी देखा हैं लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और उनके चाणक्य अमित शाह ऐसे रणनीतिकार है जिन्हें हर परिस्थिति के अनुसार काम करने की कला आती है। वर्तमान में उनके सहयोगी दलों टीडीपी और जेडीयू दोनों की भी एनडीए गठबन्धन के साथ ही रहने में भलाई हैं। इसलिए उन्हें विश्वास है कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी इस बार भी पाँच वर्ष का अपना कार्यकाल पूरा करेंगे। हाँ ! भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अबकी बार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का पहले से भी अधिक विश्वास जीतना होगा तथा पूरे पाँच साल सरकार चलाने के लिए सहयोगी दलों के साथ भी सन्तुलन बनाये रखने की चुनौती पर भी खरा उतरना होगा। साथ ही देश के कुछ प्रदेशों में होने वाले लोकसभा के उप चुनावों और विधानसभा चुनावों में भी नईं रणनीति के साथ उतरना होगा तथा पिछलें चुनाव में हुई ग़लतियों को भी सुधारना होगा।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अनदेखी से भाजपा को नुकसान हुआ है । अब रही सही कसर उनके पुत्र लगातार पाँचवीं बार सांसद बने दुष्यंत सिंह को केंद्र में मंत्री पद से वंचित रखने से पूरी कर दी गई है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि दुष्यंत सिंह को मंत्री पद से वंचित रख कर राजस्थान की राजनीति में आग में घी डालने का काम किया गया है। इससे राजस्थान की भजनलाल सरकार की स्थिरता पर भी सवाल उठने लगे है। राजे को राजस्थान का मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने के बाद अबकी बार सभी को उम्मीद थी कि दुष्यंत सिंह को इस बार केंद्र में मंत्री जरूर बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे एक बड़े जन आधार वाली लोकप्रिय नेता हैं। आज उनके भी धैर्य की परीक्षा चल रही है। राजनीतिक समीक्षकों का यह भी मानना है कि मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान की तरह वसुन्धरा राजे को भी समय की नाजुकता को देखते हुए केन्द्रीय नेतृत्व के साथ संतुलन बैठाना चाहिए था लेकिन सभी मोदी और राजे के मिजाज को भलीभांति जानने हैं।

अब यह देखना है कि राजस्थान में लोकसभा की 11 सीटों पर भाजपा की हार का ठीकरा किस के सिर मढ़ा जाएगा और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की गाज किस पर गिरेगी?