अजय कुमार
तोता-मैना की कहानी की तरह समाजवादी पार्टी का एम-वाई(मुस्लिम-यादव) समीकरण भी पुराना हो गया है। अब सपा के अंदर पीडीए की बात होती है। आम चुनाव में पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की सफलता से उत्साहित समाजवादी पार्टी के प्रमुख आने वाले दिनों में पीडीए की धार और तेज करने जा रहे हंै। अब सपा पीडीए को विधान सभा उप-चुनाव में आजमायेगी। फिलहाल पार्टी की नजर दस विधान सभा सीटों पर होने वाले होने वाले उपचुनाव पर है। इसके बाद 2027 के विधानसभा चुनाव में भी पीडीए को अपनाया जायेगा। इसके लिए समाजवादी पार्टी गांव-गांव पीडीए पंचायत का आयोजन करने जा रही है। सपा पीडीए में आने वाली जातियों को एकजुट करेगी और उन्हें अधिकारों के प्रति जागरूक करेगी।
पीडीए के सहारे सपा ने लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत व सीटों दोनों के लिहाज से अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है। उसे 37 सीटों के साथ ही 33.59 प्रतिशत वोट मिले हैं। पार्टी अपने इस प्रदर्शन के लिये पीडीए का अहम योगदान मान रही है। पार्टी ने गैर यादव ओबीसी पर फोकस किया तो उसे अच्छे परिणाम मिल गए। लोकसभा चुनाव में 10 कुर्मी-पटेल नेताओं को टिकट दिया गया जिसमें से सात चुनाव जीत गए। निषाद, बिंद, जाट, राजभर, लोधी, भूमिहार, मौर्य,शाक्य, कुशवाहा जातियों पर भी पार्टी ने फोकस बढ़ाया है। सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेन्द्र चैधरी कहते हैं कि पीडीए पंचायत के जरिए सपा पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों को भाजपा सरकार द्वारा उनके अधिकारों पर किए जा रहे हमले व संविधान के साथ किस तरह खिलवाड़ किया जा रहा है उसके बारे में शिक्षित किया जाएगा। संसद सत्र खत्म होने के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव इस कार्यक्रम की विस्तृत रूपरेखा तय करेंगे। पार्टी इस पंचायत के जरिए अधिकतम गांवों तक पहुंचने की कोशिश करेगी।