ललित गर्ग
बेहतर सेवाओं के नाम पर सरकारें कई तरह के शुल्क वसूलती है, इसमें कोई आपत्ति एवं अतिश्योक्ति नहीं है। लेकिन सेवाएं बेहतर न हो फिर भी उनके नाम पर शुल्क या कर वसूलना आपत्तिजनक एवं गैरकाूननी है। यह एक तरह से आम जनता का शोषण है, धोखाधड़ी है। राजमार्ग एवं अन्य मार्गों पर बेहतर एवं सुविधाजनक सड़कों के नाम पर एजेंसियों द्वारा टोल टैक्स वसूला जाता है, लेकिन विडम्बना एवं त्रासदी यह है कि टूटी-फूटी सड़कों के नाम पर भी टोल वसूला जाता है, जो अन्यायपूर्ण एवं आपत्तिजनक है। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के हालिया बयान में जनता के इस बड़े होते दुःख, धोखाधड़ी एवं शोषण पर न केवल दुःख जताया बल्कि ऐसी जबरन की जा रही वसूली को रोकने के लिये अधिकारियों को चेताया है।
अपनी बात को बेबाकी से कहने वाले नितिन गडकरी ने अधिकारियों को दो टूक शब्दों में कहा कि यदि सड़कें अच्छी हालत में न हों और लोगों को लगातार परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हो, तो राजमार्ग पर एजेंसियों द्वारा टोल टैक्स वसूलने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा कि टोल टैक्स वसूलने से पहले हमें अच्छी सेवाएं देनी चाहिए। लेकिन हम अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिये टोल टैक्स वसूलने की जल्दी में रहते हैं। रोड टैक्स का उपयोग राज्य के भीतर सड़कों के रखरखाव और विकास के लिए किया जाना चाहिए न कि सरकार की आमद को बढ़ाने के लिये। ऐसे अनेक उदाहरण है कि बिना सुविधा एवं आवश्यकता के भी टोल टैक्स वसूला जा रहा है। राज्य सरकारें भी स्वतंत्र रूप से टोल वसूलती है। दूसरी ओर, टोल टैक्स एक उपयोगकर्ता शुल्क है जिसे वाहन मालिकों को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण या निजी ठेकेदारों को कुछ टोल सड़कों, जैसे राष्ट्रीय राजमार्ग, एक्सप्रेसवे, पुल और सुरंगों का उपयोग करने के लिए देना पड़ता है। जो अन्य सड़कों की तुलना में इन सड़कों को उच्च गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों की माना जाता है। निश्चित रूप से केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने सड़क-क्रांति की है बल्कि व्यवस्था की खामियों को सुधारने के भी सराहनीय प्रयास किये हैं।
किसी देश को विवेकपूर्ण, बेहतर सुविधाओं एवं विकास के नये मानकों के साथ चलाने के लिए सरकार को पात्र नागरिकों से बेहतर सुविधाओं के लिये कर एकत्र में कोई ऐतराज नहीं है; लेकिन सड़कें हो या अन्य सुविधाएं, अच्छी नहीं होने पर भी टोल टैक्स या अन्य टैक्स वसूलने पर उपभोक्ता स्वयं को ठगा हुआ एवं शोषित महसूस करता है, जिसके कारण टोल टैक्स या अन्य टैक्स वसूलने वाली एजेन्सियों के खिलाफ शिकायतें बढ़ती जा रही है। टोल टैक्स प्रणाली सरकार या निजी ठेकेदारों के लिए राजस्व सृजन का स्रोत नहीं होनी चाहिए, बल्कि जनता के लिए बेहतर और सुरक्षित सड़कें उपलब्ध कराने का साधन होनी चाहिए। निश्चित तौर पर गुणवत्ता की सेवा दिए बिना कोई टैक्स वसूलना उपभोक्ता के साथ धोखाधड़ी एवं अन्याय है। यह बात हर सरकारी व निजी महकमे पर भी लागू होती है। लेकिन यथार्थ में ऐसा होता नहीं है और बेहतर सेवा के बिना टैक्स वसूलने की स्थितियां लगातार बढ़ती जा रही है। इन स्थितियों को लेकर आम जनता एवं उपभोक्ताओं में विरोध एवं विद्रोह पनप रहा है, इसलिये सरकार एवं ऐसी एजेन्सियों के खिलाफ लोग लोक अदालतों से लेकर विभिन्न अदालतों के दरवाजे खटखटाते रहते हैं।
किसी भी विभाग को अपनी खामियों पर पर्दा डालने के बजाय सेवा में सुधार की पहल करनी चाहिए। अब चाहे मामला राष्ट्रीय राजमार्गों पर कार्यरत एजेंसियों का हो या फिर बिजली-पानी जैसे मूलभूत जरूरतों वाले विभागों का, अधिकारियों को उपभोक्ताओं के प्रति संवेदनशील एवं जिम्मेदार होना चाहिए।
नियंत्रण से बाहर होती हमारी व्यवस्था हमारे लोक-जीवन को न केवल अस्त-व्यस्त कर रही है, बल्कि आहत, पीड़ित एवं परेशान भी कर रही है। ऐसी अनेक सुविधाएं हैं जो सरकार के द्वारा जनता के लिये उपलब्ध कराई जाती है, इसके लिये सरकार टैक्स वसूलती है। लेकिन बिना सुविधा के भी टैक्स वसूलने की स्थितियां सरकार पर बदनूमा दाग है और ऐसे दाग लगातार बढ़ते जा रहे हैं। बहरहाल बात राजमार्गों पर वसूले जा रहे गैर वाजिब टोल टैक्स के बढ़ने की चिन्ता का है, जो एक त्रासदी है। इसी त्रासदी को केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री ने स्वीकारा और कहा कि सड़कें अच्छी नहीं होने पर तमाम शिकायतें हमें मिलती हैं।
दूसरी ओर सोशल मीडिया पर लोग अपना गुस्सा जाहिर करते हैं। सही मायनों में गुणवत्ता की सड़क प्रदान करने पर ही हमसे टोल वसूलने का अधिकार मिलता है। जाहिर सी बात है कि गड्ढों व कीचड़ वाली सड़कों पर टैक्स वसूलने पर पब्लिक की नाराजगी स्वाभाविक रूप से सामने आएगी। निस्संदेह, परिवहन मंत्री की स्वीकारोक्ति एक अच्छा कदम एवं स्वागतयोग्य कदम है और हर विभाग के मंत्री को अपने अधीनस्थ विभागों की ऐसी कारगुजारियों एवं ज्यादतियों पर नजर रखनी चाहिए। जरूरत इस बात की भी है कि ऐसी शिकायत दर्ज करने और शिकायतों के तुरंत निवारण हेतु एक स्वतंत्र तंत्र भी विकसित किया जाना चाहिए।
कई स्थानों पर सड़कों की गुणवत्ता में कमी, सड़कों के निर्माण में तकनीकी खामियों का उजागर होना, गैरवाजिब टोल टैक्स वसूला जाना, उपभोक्ताओं को परेशान करता है। राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल टैक्स चुकाने के लिये घंटों लाइन में लगना भी एक बड़ी समस्या है, भले ही इस समस्या से मुक्ति के लिये सरकार ने कदम उठाये हैं, फास्टैग व्यवस्था के लागू करने से लाइनें छोटी हुई है। आज 98 प्रतिशत वाहनों में स्मार्ट टैग के माध्यम से निर्बाध यात्रा की जा रही है। निश्चित तौर पर राष्ट्रीय राजमार्गों व एक्सप्रेस-वे आदि के बनने से यात्रियों का आवागमन सुविधाजनक हुआ है, पेट्रोल-डीजल में बचत हुई है एवं यातायात सुगम बना है। मोदी सरकार ने सड़कों को सुविधाजनक बनाया है। आने वाले कुछ वर्षों में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम आधारित टोल संग्रह प्रणाली को अंजाम देने की तैयारी में है। जिसके बाद राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल गेटों की जरूरत नहीं रह जाएगी। फिर टोल प्लाजा पर गाड़ी धीमी करने व रोकने की भी जरूरत नहीं रहेगी। इसे देश में चरणबद्ध तरीके से शुरू किया जाएगा। यह व्यवस्था सड़क-क्रांति को एक नई दिशा देगा। दरअसल, यह नया सिस्टम न केवल सही ट्रैकिंग कर पाएगा बल्कि यह राजमार्ग पर उपयोग की गई दूरी के आधार पर सटीक टोल गणना भी करेगा। बहुत संभव है आने वाले वर्षों में कार निर्माता कंपनियां अपने वाहनों पर ट्रैकिंग डिवाइस लगाएं। प्रारंभ में इस सिस्टम को प्रमुख हाईवे व एक्सप्रेस-वे पर लागू किया जाएगा। इसके बावजूद सरकार के लिये यह जरूरी है कि वह सड़कों की गुणवत्ता को बनाये रखे एवं गुणवत्ता वाली सुविधा की सड़कों पर ही टोल वसूले।
राजमार्गों पर यात्रा करने के दौरान आपके बैंक खाते या डिजिटल वॉलेट से पैसा कट जाता है। इसमें भी गलत तरीके से पैसे कटने की शिकायतें बढ़ती जा रही है। किसी व्यक्ति के फास्टैग से बिना टोल से गुजरे टोल टैक्स काट लिया जाता है या ज्यादा टोल वसूल लिया जाता है, जो उपभोक्ताओं के लिये परेशानी का सबब है। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, सड़क निर्माण और रखरखाव के अपने लक्ष्यों को हासिल करने में विफल रहा है। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि एचएचआई ने टोल अनुबंधों को आकार देने और निगरानी के लिए निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया है और टोल सड़कों की गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की है। रिपोर्ट में टोल संग्रह प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी और दोषपूर्ण टोल प्लाजा, ओवरचार्जिंग और लंबी कतारों के कारण सड़क उपयोगकर्ताओं को होने वाली परेशानी और असुविधा पर भी प्रकाश डाला गया है। इन सभी हालातों को देखते हुए भारत में राजमार्गों एवं सुविधा की सड़कों के नाम पर हो रही टोल टैक्स वसूली को औचित्यपूर्ण एवं न्यायसंगत बनाने की अपेक्षा है। सुविधा के नाम असुविधाओं, असुरक्षा एवं धोखाधड़ी की बढ़ती स्थितियों को गंभीरता से लेना होगा।