विनोद तकिया वाला
प्रकृत्ति के बदलते परिवेश में गोलोबल वार्मिग में प्रदुषण रूपी दानव नें ताड़व मचा रखाहै। प्रदुषण की श्रेणी में हवा प्रदुषण ‘ जल प्रदुषण,ध्वनि प्रदूषण है जो श्रृष्टि के विनाश के लिए जिम्मेदार है।समय समय पर प्रदुषण रूपी राक्षस को रोकने के लिए माननीय न्यायालय को दिशा निर्देश जारी करना पड़ता है।प्रदुषण के श्रेणी में ध्वनि प्रदुषण को लेकर चिन्ता व चिन्तन का दौर से सम्पूर्ण देश दर्दनाक दौर से गुजर रहा है। आज मै आप के समक्ष सता के गलियारो में लाउडस्पीकर की गर्जना से उपन्न ध्वनि प्रदूर्षण के बारे चर्चा करने वाला है।ध्वनि प्रदुषण की गुंज उत्तर प्रदेश के बाद अब देश की राजधानी दिल्ली में भी राजनीति ने तूल पकड़ लिया है।विगत दिनों भाजपा के सांसद प्रवेश वर्मा द्वारा दिल्ली के उपराज्यपाल और तीनों नगर निगमों को पत्र लिखे जाने के बाद अब दिल्ली बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने भी इस मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखा है. आदेश गुप्ता ने अपने पत्र में मांग की है कि राजधानी दिल्ली में माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार सभी धार्मिक स्थलों व अन्य जगहों पर लगे लाउडस्पीकर को तुरंत हटाया जाए क्योकि लाउडस्पीकर ध्वनि प्रदूषण का प्रमुख कारण हैं, जिससे छोटे बच्चों, बुजुर्गों और लोगों को परेशानी होती है।
दिल्ली में लाउडस्पीकर पर मचे विवाद को लेकर राजनीति ने तुल पकड़ लिया है।इसमें अब दिल्ली बीजेपी भी कूद गई है।बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष द्वारा पूरे मामले पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए निर्देशों के आधार पर राजधानी में सभी धार्मिक स्थानों से लाउडस्पीकर्स हटाने की कार्रवाई करने की मांग की गई है।उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर के आधार दिल्ली सरकार बिना तुष्टीकरण के दिल्ली में सभी धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर्स हटाने की कार्रवाई शुरू करे।
पूरे देश भर में इन दिनों धार्मिक स्थानों पर लगे लाउडस्पीकर को लेकर जमकर राजनीति हो रही है ।पहले उत्तर प्रदेश और फिर महाराष्ट्र और दिल्ली में भी इस पूरे मामले ने तूल पकड़ लिया है। दिल्ली के अंदर भी लाउडस्पीकर के मामले को लेकर सियासी दलों की खींचतान शुरू हो गई है।
लाउडस्पीकर्स को हटाने को लेकर दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष आदेश गुप्ता की पीसीइस सबके बीच मंगलवार सुबह दिल्ली बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने पूरे मामले पर मीडिया के सामने आकर बातचीत की। उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा कि “वर्तमान समय में राजधानी दिल्ली के अंदर चाहे वह वायु प्रदूषण,जल प्रदूषण या फिर ध्वनि प्रदूषण हो सब अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका है. जिस पर अब लगाम लगाना आवश्यक है. आज देश के कई राज्यों में ध्वनि प्रदूषण पर लाउडस्पीकर को लेकर न सिर्फ गंभीर चर्चा हो रही है बल्कि कुछ राज्यों में लाउडस्पीकर पर रोक भी लगा दी गई है।इस तरह के फैसले का नागरिकों ने भी स्वागत किया है।लाउडस्पीकर के शोर के चलते पढ़ने वाले छात्रों-छात्राओं, छोटे बच्चों, बुजुर्गों और मरीजों को तकलीफ का सामना करना पड़ता है।सुप्रीम कोर्ट द्वारा जो दिशा-निर्देश दिए गए हैं उसके तहत राज्य सरकारों को ही निर्धारित करना है कि सभी धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाए जाएं।देश के अंदर बहुसंख्यक समाज ने लाउडस्पीकर्स पर रोक लगाए जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को गंभीरता से लेने के साथ उसका समर्थन किया है।
लाउडस्पीकर्स हटाने की कार्रवाई शुरू करे।अगर लाउडस्पीकर्स बजाने भी हैं कोई तो उसके लिए प्रशासन से पहले इजाजत लेना अनिवार्य है।जब दुबई और इंडोनेशिया जैसे देशों में लाउडस्पीकर्स पर रोक लगा दी गई है तो दिल्ली में क्यों नहीं लगाई जा सकती है।गुप्ता ने इस प्रकरण पर दिल्ली सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि जो आदेश जारी किये गए हैं उसमें संस्थानों, बैंक्विट हॉल और अन्य बंद जगहों पर लाउडस्पीकर बजाने के मद्देनजर समय को निर्धारित किया गया है,लेकिन मस्जिदों को लेकर कोई भी जिक्र नहीं किया गया है।दिल्ली सरकार तुष्टीकरण की नीति छोड़ सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का करे।
कानून की नजर में लाउडस्पीकर्स का विरोध; सुप्रीम कोर्ट अपना रुख स्पष्ट कर चुका है।माननीय न्यालाय के द्वारा जबरन ऊंची आवाज नागरिको के मौलिक अधिकार का उल्लंघन
मौजूदा वक्त में मस्जिदों में लाउडस्पीकर्स बजाने को लेकर उपजे विवाद ने सियासी रंग अख्तियार कर लिया है लेकिन इसके वैज्ञानिक और कानूनी पहलू भी हैं जिसको नजरंदाज नहीं किया जा सकता है।
आप को बता दे कि ध्वनि प्रदूषण पर क्या कहता है हमारा कानून ।
सुप्रीम कोर्ट ध्वनि प्रदूषण पर रोक के मामले में दिए अपने फैसले में कह चुका है कि जबरदस्ती ऊंची आवाज यानी तेज शोर सुनने को मजबूर करना मौलिक अधिकार का दुसरे को भी शांति से रहने का अधिकार है और यह अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है। लाउडस्पीकर्स या तेज आवाज में अपनी बात कहना अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार में आता है,लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी जीवन के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकती।
किसी को भी शोर करने का अधिकार नहीं है जिससे उसके घर से बाहर जाकर पड़ोसियों और अन्य लोगों के लिए परेशानी पैदा करे। माननीय न्यायालय ने कहा था कि शोर करने वाले अक्सर अनुच्छेद 19(1)ए में मिली अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की शरण लेते हैं। लेकिन कोई भी व्यक्ति लाउडस्पीकर चालू कर इस अधिकार का दावा नहीं कर सकता।
हमारा संविधान अगर किसी के पास बोलने का अधिकार है तो दूसरे के पास सुनने या सुनने से इन्कार करने काअधिकार है। लाउडस्पीकर से जबरदस्ती शोर सुनने को बाध्य करना दूसरों के शांति और आराम से प्रदूषणमुक्त जीवन जीने के अनुच्छेद-21में मिले मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।अनुच्छेद 19(1)ए में मिला अधिकार अन्य मौलिक अधिकारों को हतोत्साहित करने के लिए नहीं है।
एक अंहम फैसले में कोर्ट ने आदेश दिया था कि सार्वजनिक स्थल पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज उस क्षेत्र के लिए तय शोर के मानकों से 10 डेसिबल (ए) से ज्यादा नहीं होगी या फिर 75 डेसिबल (ए) से ज्यादा नहीं होगी, इनमें से जो भी कम होगा वही लागू माना जाएगा।जहां भी तय मानकों का उल्लंघन हो,वहां लाउडस्पीकर व उपकरण जब्त करने के बारे में राज्य प्रविधान करे।आप को बना दे कि ध्वनि के तय मानक है।न्यायलय केआदेश तब तक लागू रहेंगे जब तक कोर्ट स्वयं इसमें बदलाव न करे या इस बारे में कानून न बन जाए।ज्ञात्वय रहे कि डेसिबल ध्वनि की तीव्रता मापने का मानक है। पर्यावरण संरक्षण कानून,1986 के तहत ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने और तय मानकों के उल्लंघन पर सजा के प्रविधान दिए गए हैं। इसके तहत ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण नियम, 2000 बने हैं जिनमें ध्वनि के मानक तय हैं। सार्वजनिक स्थल पर लाउडस्पीकर्स के लिए पुलिस और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से इजाजत लेनी पड़ती है।
लोकसभा सांसद नवनीत कौर राणा की याचिका पर जुलाई में सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट,जानें क्या है पूरा मामला विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक समारोह में रात 10 से 12 बजे तक लाउडस्पीकर बजाने के लिए विशेष इजाजत की जरूरत होती है जो अधिकतम 15 दिन के लिए ही मिल सकती है और आवाज की अधिकतम सीमा 75 डेसिबल हो सकती है।लंबे समय तक सुप्रीम कोर्ट में ध्वनि प्रदूषण के मामले में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से पेश होते रहे वरिष्ठ वकील विजय पंजवानी कहते हैं कि कानून में ध्वनि की सीमा उल्लंघन पर धारा 15 में सजा का प्रविधान है, लेकिन ये प्रभावी ढंग से लागू नही होती।नियम का उल्लंघन पर पांच साल तक की कैद और एक लाख रुपये तक जुर्माने की सजा हो सकती है।लगातार उल्लंघन पर 5,000 रुपये रोज जुर्माने का प्रविधान है। ध्वनि प्रदूषण पर पुलिस परिसर में घुसकर लाउडस्पीकर्स जब्त कर सकती है।
फिलहाल आप से यह कहते हुए विदा लेते है कि ” ना ही काहुँ से दोस्ती ‘ ना ही काहूँ से बैर ।
खबरी लाल तो मांगे, सबकी खैर ॥
लेखक स्वतंत्र पत्रकार व स्तंभकार है।