फ्री ट्रेड एग्रीमेंट : क्या मोदी और स्टार्मर एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं?

Free Trade Agreement: Can Modi and Starmer complement each other?

ललित मोहन बंसल

‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के भारतीय दर्शन को माने, तो हम, आप और अन्यान्य सभी की परस्पर
ज़रूरतें इतनी व्यापक हो गई हैं कि चाह कर भी अब एक सीमित दायरे में रह कर काम करना
मुमकिन नहीं है। ऐसे में, हिंदुत्व अथवा हिन्दू फोबिया को लेकर आये दिन नोंक-झोंक करने
अथवा एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने का समय नहीं रह गया है। अप्रैल महीने की बरसात
के बाद इंग्लैंड की इकॉनमी बुरे दौर से गुजर रही है। ऐसे में यूरोप में इटली, नीदरलैंड, स्वीडन
और फ़्रांस में कट्टरपंथी दक्षिण मार्गी राजनैतिक दलों के सतानशीं होने की खबरों के बीच अब
इंग्लैंड की लेबर पार्टी ने धमाकेदार जीत दर्ज कर एशिया में एक उभरती हुई इकानमी भारत
सहित इंडो पैसिफ़िक देशों के साथ व्यापारिक रिश्ते बढ़ाने का संकल्प दोहराया है, वह निस्संदेह
उत्साहजनक है।

इंग्लैंड में लेबर पार्टी ने चौदह वर्षों के वनवास के पश्चात सत्ता ग्रहण की है। मानवतावादी
अधिवक्ता कीइर स्टार्मर के नेतृत्व में शुक्रवार को मंत्रियों की जो सूची जारी की गई है, उनमें
चांसलर की भूमिका रेचल रीव्स को ज़िम्मेदारी मिली है। अब क़रीब दो वर्षों से लंबित फ्री ट्रेड
एग्रीमेंट पर भारतीय मंत्रियों को इन्हीं से जूझना होगा। पर्यवेक्षकों की मानें तो इस ट्रेड एग्रीमेंट
के लिये भारत को जितनी ज़रूरत है, इंग्लैंड को भू राजनैतिक कारणों से ज्यादा ज़रूरत है।

विश्व की पहली पाँच बड़ी इकॉनमी में भारत पहले ही इंग्लैंड को बाहर का मार्ग दिखा चुका है।
अब भारत (3.4खरब डालर) की निगाहें तीसरे पायदान पर आने के लिए क्रमश: तीसरे और चौथे
स्थान पर जापान 4.2 खरब और जर्मनी 4.1 खरब डालर को निपटाए जाने में लगी है। यह बड़ी
चुनौती नहीं है। इसके लिए ज़रूरी है तो वह यह कि राजनीतिक इच्छा शक्ति हो और प्रतिपक्षी
को यह जान माँ लेना ज़रूरी होता है कि सरकार स्थिर और उसकी नीयत और नीतियाँ सुस्पष्ट
हों। इंग्लैंड के सम्मुख एक ही लक्ष्य है कि वह राजनैतिक इच्छा शक्ति और स्थिर सरकार के
भरोसे कितनी जल्दी निर्णय लेने को तत्पर होती है? इसकी चर्चा हम आगे करेंगे।

ऐसी स्थिति में इंग्लैंड अपने नियोक्ताओं के लिए एक स्थिर और जाँची परखी मोदी सरकार के
संरक्षण में सस्ते श्रम, लचीले नियम, भरपूर ऊर्जा और बेहतर आवासीय सुविधाओं की छत्र छाया
में फ्री व्यापार संधि को सिरे चढ़ाती है, तो यह दोनों के लिए विन विन स्थिति होगी।

इंग्लैंड में 650 सदस्यीय हाउस ऑफ़ कामन्स में कीइर स्टार्मर (लेबर पार्टी-412) की धमाकेदार
जीत और भारतीय मूल के ऋषि सुनक के नेतृत्व (कंजर्वेटिव पार्टी-121) की भारी पराजय से एक

बार झटका ज़रूर लगा होगा। लेकिन मीडिया में पर्यवेक्षको का अनुमान है कि इंग्लैंड की आर्थिक
स्थिति को उबारने के लिए बहुत थोड़े समय के लिए आये भारतीय मूल के ऋषि सुनक को फ्री
ट्रेड एग्रीमेंट को सिरे चढ़ाने में अपेक्षाकृत समय मिला नहीं। वह अपने ही पूर्ववर्ती नेता बोरिस
जानसन के नेतृत्व में पहले ब्रेक्सिट और फिर सन् २०१९ चुनाव में शानदार सफलता के बाद
यूरोपीय समुदाय से व्यापारिक लेन-देन में नफ़ा नुक़सान पर मंथन कर ही नहीं पाये। अनुमान
यह लगाया गया था कि ब्रेक्सिट के बाद यूरोपीय समुदाय से व्यापारिक आयात निर्यात ८६
ब्रिटिश पाउंड पहुँच जाएगा, जबकि व्यापार मात्र एक प्रतिशत तक सीमित रह गया। स्थिति यहाँ
तक बिगड़ गई कि लीज़ ट्रूस के ६६८ दिनों की चलताऊ सरकार के बाद सुनक आये तो उनके
सम्मुख सरकारी कामकाज के लिए राजकोषीय ख़ज़ाने को भरने के लिए टैक्स पर टैक्स लगाने
के सिवा कोई चारा नहीं रह गया था। ऐसे में इंग्लैंड की मौजूदा लेबर पार्टी की सरकार में
चांसलर रेचल रीव्स को कहना पड़ रहा है कि कंजर्वेटिव सरकार ख़ज़ाना ख़ाली छोड़ कर गई है?

स्टार्मर के सम्मुख दलदल भरा मार्ग और चुनौतियाँ:
यहाँ सुनक और स्टार्मर, दोनों की सराहना करनी होगी। उन्होंने परस्पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने
की बजाए एक दूसरे की सराहना की। लेबर पार्टी को जैसे ही अपार बहुमत मिला, सुनक ने
पराजय को स्वीकार करते हुए उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाने के लिए ‘जनआक्रोश’ पर
माफ़ी माँगी और स्टार्मर को एक कुशल नेता के साथ साथ देश को आगे ले जाने के लिए बधाई
दी। इस पर स्टार्मर ने भी देश सेवा में सुनक के योगदान को उल्लेखनीय बता दिया। बेशक,
लेबर पार्टी अपने चौदह वर्षों के बनवास के बाद सतानशीं हुई है। यह भी उतना ही सच है कि
इंग्लैंड कंजर्वेटिव पार्टी के ब्रेक्सिट ‘घावों’ से उबर नहीं पा रहा है। ब्रेक्सिट घावों की मुखर रूप में
चर्चा तो नहीं हो रही है, लेकिन यह कहा ज़रूर जा रहा है कि एक वक्त दुनिया पर राज करने
वाले इंग्लैंड में राजघराना रॉयल पैलेस तक सीमित रह गया है। उसकी शान शौक़त बनाए रखने
के लिए एक वर्ग चिंतित है। इसके विपरीत आम नागरिक पाँच प्रतिशत से ऊँची ब्याज दरों से
दुखी है, औद्योगिक निर्माण क़रीब क़रीब ठप्प है, आवासीय क्षेत्र में नये मकानों के निर्माण में
भारी क़िल्लत और ब्याज की दरें ना चुका पाने से पारिवारिक और सामाजिक संरचना में आ रही
विषमताओं तथा एक वक्त स्वास्थ्य के क्षेत्र में सर्वोन्नत राजकीय ‘एन एस एच’ ढाँचे में आमूल-
चूल परिवर्तन की गुंजाइश बताई जा रही है। यही नहीं, सरकारी सुविधाएँ जैसे पेयजल की
आपूर्ति एवं सीवेज़ की निकासी, स्कूल और लाइब्रेरी की दुर्दशा बद से बदतर हो चुकी हैं। और
तो और मानवीय पक्ष का जब तब ढिंढोरा पीटने वाली ब्रितानिया सरकार की स्थिति यह बनती
जा रही है कि वह क्षेत्रीय असंतुलन और ग़रीबी रेखा से नीचे लोगों के जीवन-यापन को सुधार
पाने में ही विफल सिद्ध हो रही है। ऐसे में शिक्षा के क्षेत्र में कोई बड़ा अलंकार सामने नहीं आ

पा रहा है। इंग्लैंड सहित यूरोपीय देश सर्दियों की आहट से पहले ही गुनगुनी शामें और ठिठुरन
भरी लंबी रातों में इन देशों के निर्धन बच्चे और बूढ़े अपनी रज़ाई और कंबल में ताप की कमी
महसूस करने लगें, तो समझ लेना चाहिए कि पिछले दो दशकों में ऊर्जा संकट कितना भयावह
हो चुका है, बिजली के दाम कितने बढ़ चुके हैं।

यूरोपीय देशों को ग्लोबल क्लाईमेट चेंज के लिए अमेरिका, चीन और भारत की कितनी यादें
सताती होंगी ? ये तीन ही देश तो हैं, जो मूलतः प्रदूषण और पर्यावरण नियंत्रण में सहायक हैं।
क्या ऐसे में, इंग्लैंड ‘एकला चलो’ की नीयत और नीति पर रहते हुए आगे बढ़ सकता है?

हांगकांग में वर्षों ब्रिटिश हुकूमत की सलामती और लाखों ब्रिटिश मूल के अपनों को स्वदेश
लौटने और उन्हें उनके अधिकार सौपने की बात आई तब चीन ने किस तरह मार्ग में रोड़े
अटकाए, तो इसका जवाब ब्रितानिया सरकार और ब्रिटिश लोग उसका नजारा देख चुके हैं। इसे
कुल मिला कर यह कहा जाए कि इंग्लैंड को ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में भू राजनैतिक कारणों
से एक ऐसे मित्र देश की ज़रूरत होगी, जो आर्थिक, टेक्नॉलाजी, क्लाइमेट चेंज और इमिग्रेशन
की दृष्टि से चीन से एक बेहतर साथी हो। भारत को क्या चाहिए?

स्टार्मर और मोदी पूरक कैसे हो सकते हैं?
स्टार्मर ने चुनाव से पूर्व पार्टी के घोषणा पत्र और फिर लेबर पार्टी के एक बड़े बहुमत की ओर
बढ़ते हुए भारत के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के संकल्प को दोहराते हुए कहा कि एग्रीमेंट को सिरे
चढ़ाना उनकी प्राथमिकता होगी। यों यह एग्रीमेंट की संरचना जनवरी, 2022 में ऋषि सुनक की
कंजर्वेटिव सरकार के साथ हुई थी। इस पर दोनों पक्षों के बीच व्यापार प्रतिनिधि मंडलों सहित
प्रधान मंत्री स्तर तक ही वार्ताएँ हुई हैं। इन वार्ताओं को ले कर अभी तक यही कहा जाता रहा है
कि ज़्यादातर मुद्दों पर एक राय बन चुकी है अथवा अंतिम चरण में है। इन वार्ताओं में दोनों
ओर से सन् २०३० तक ८६ अरब डालर के व्यापार पर सहमति जताई गई थी। इन वार्ताओं में
भारत की ओर से भारत में प्रमुखता से निर्मित लेदर और इसके उत्पाद, जवाहरात,
टैक्सटाइल्स, प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद, पोस्ट स्टडीज़ वीज़ा और इमिग्रेशन आदि मुख्य बिंदु रहे
हैं। इसके विपरीत इंग्लैंड ने मुख्यतया अपने देश में बने मोटर वाहन और स्काच विहस्की पर
सीमा शुल्कों में कमी लाए जाने पर ज़ोर दिया गया था। इसके अलावा ब्रिटिश उद्यमियों के
लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक व्यापार की संभावनाओं पर भी चर्चाएँ हो चुकी हैं। इस चढ़ा
में नवाचार और और डिजिटल एरा की नई चुनौतियों पर भी वार्ताएँ हो हुकी हैं। इस से निस्संदेह
ब्रिटिश उद्यमियों को भारत में व्यापार और विनियोजन के नये अवसर और चुनौतियाँ मिलना
संभावित बताया गया है।

ऐसी स्थिति में इंग्लैंड अपने नियोक्ताओं के लिए एक स्थिर और जाँची परखी मोदी सरकार के
संरक्षण में सस्ते श्रम, लचीले नियम, भरपूर ऊर्जा और बेहतर आवासीय सुविधाओं की छत्र छाया
में फ्री व्यापार संधि को सिरे चढ़ाती है, तो यह दोनों के लिए विन विन स्थिति होगी।

समय बदला, अनुकूल हुई परिस्थियाँ:
जेर्मी कॉर्बिन के नेतृत्व में (सन् 2019) लेबर पार्टी की निराशाजनक पराजय और एक वकील के
ओहदे से राजनैतिक क्षितिज पर उभर कर आये कीइर स्टार्मर के हाथों में पार्टी की बागडोर
आई तो उन्होंने समाज के सभी वर्गों को साथ लेने का बीड़ा उठाया। जेर्मी कार्बिन ने एक वक्त
ब्रिटिश हिन्दू और ब्रिटिश यहूदी समाज के साथ श्वेत वर्गों को लेबर पार्टी का शत्रु बना लिया
था। स्टार्मर ने ब्रिटिश हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए उन्हें ‘हिंदू फोबिया’ से मुक्ति
दिलाने का उपक्रम तो किया ही, वहीं कथित ‘मानवता’ के नाम पर ‘कश्मीर घोषणा’ के मामले
को भी भारत का अंदरूनी मामला कहे जाने पर कोई कोताही नहीं बरती। यही नहीं, इस बार गत
मई में चुनाव की तिथि निश्चित होने पर फ़्रेंड्स ऑफ़ लेबर पार्टी के एक समागम और फिर
लेबर पार्टी के एक घोषणा पत्र में इन दोनों विषयों का खुल कर उल्लेख किया गया। लेबर पार्टी
की चेयरपर्सन एनेलीज़ डोडाज ने दावा किया है कि भारत के विरुद्ध कट्टर और वैमनस्य
विचार रखने वालों को पार्टी से दूर रखा गया है। इंग्लैड में ब्रिटिश भारतीय समुदाय सब से बड़ा
है।

इस घोषणा पत्र में स्पष्ट किया गया कि ‘’ भारत के संविधानिक मामलों में कोई भी विषय
संज्ञान में आता है, तो भारत की संसद ही एकमात्र उस पर निर्णय लेने में सक्षम है। यहीं नहीं,
कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय बता कर कन्नी काट ली गई। यही नहीं, स्टार्मर की इस बात के
लिए सराहना करनी होगी कि उन्होंने पार्टी के घोषणा पत्र में भारत के साथ एक नई सामरिक
रणनीतिक साझेदारी फ्री ट्रेड सहयोग तथा सुरक्षा, शिक्षा, टेक्नॉलाजी और क्लाइमेट चेंज आदि
मुद्दों पर एक साथ मिलबैठ कर काम करने का भरोसा दिलाया। इस बात का उल्लेख उन्होंने
इंडिया ग्लोबल फ़ोरम में भी क्या। उन्होंने कहा था कि लेबर पार्टी सत्ता में आई तो लेबर गवर्मेंट
डेमोक्रेसी के साझा मूल्यों के आधार पर काम करेगी। बता दें, स्टार्मर ने इस बार किंग्सबेरी
(इंग्लैंड) के स्वामी नारायण मंदिर में ‘’ जय स्वामीनारायण ‘’ के उद्घोष के साथ अपना वक्तव्य
पढ़ा और मौजूद सैकड़ों हिन्दू श्रधालुओं को संबोधित कर उन्हें आश्वस्त किया कि इंग्लैंड में हिंदू
फोबिया का कोई स्थान अहीन है। उन्होंने हिंदू मूल्यों के संरक्षण और उसे सुदृढ़ किए जाने का
आश्वासन भी दिया।