ललित मोहन बंसल
नाटो समिट ने पश्चिम और पूर्व के बीच शांति मार्ग में एक और दीवार खड़ी कर दी है। अमेरिका के नेतृत्व में
तीन दिवसीय नाटो शिखर सम्मेलन में राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन-रुस के बीच ढाई वर्षों के युद्ध में पहली
बार मुखरित स्वर में रुस के कंधों पर चीन और उत्तरी कोरिया को लपेटा है, इस से पूर्व और पश्चिम के बीच
शांति मार्ग में स्थितियाँ और अधिक उलझ गई हैं। इसे अमेरिका में अगली 5 नवंबर को होने वाले राष्ट्रपति
चुनाव में डेमोक्रेट जो बाइडन ( 81 वर्ष) की कथित मानसिक और शारीरिक स्थिति को अमेरिकी मीडिया में
जोड़ कर देखा जा रहा है। गुरुवार को नाटो सम्मेलन के समापन पर ‘हंगामेदार’ प्रेस कांफ्रेंस में जो बाइडन ने
मीडिया के हर सवाल का जवाब में पुरज़ोर ढंग से दोहराया कि वह चुनाव मैदान में हैं, और किसी भी शर्त पर
पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने सवालों के जवाब में अपने राजनैतिक सफ़र, राष्ट्रपति के कार्यकाल और
फिर से चुनाव मैदान में डटे रहने के जवाब दिये। हालाँकि प्रेस कॉन्फ़्रेंस के बाद उनकी ज़ुबान फिसली और वह
कमला हैरिस की बजाए ट्रंप को अपना उपराष्ट्रपति कह बैठे। इस पर डेमोक्रेट सांसद और उग्र हो गये हैं। यही
नहीं, वह मंच पर जब यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की का परिचय कराने लगे तो उन्हें प्रेज़िडेंट पुतिन के रूप में
इंट्रोड्यूज करा बैठे।पहली बार जो बाइडन की ज़ुबान 27 जून को राष्ट्रीय टीवी डिबेट में ट्रंप के विरुद्ध लडखड़ा
गई थी और वह शारीरिक रूप से बड़े थके माँदे नज़र आ रहे थे। उन्होंने कहा कि मीडिया के शोर-शराबे में वह
एक नहीं, आने डाक्टरों को भी दिखाएं, तो उन्हें संदेह की नज़र से एखा जाएगा। इसके बावजूद डेमोक्रेट सांसदों
और प्रतिनिधियों का जो बाइडन पर चुनाव मैदान से हटने का आग्रह बढ़ता जा रहा है। डेमोक्रेट पार्टी का अगले
महीने राष्ट्रीय सम्मेलन है और तब तक डेमोक्रेट डॉनर्स और रजिस्टर्ड मतदाताओं के साथ स्विंग स्टेट का बाइडन
से और मोह भंग हो सकता है।
बता दें, डेमोक्रेट समुदाय में विदेश और रक्षा नीति में सर्वाधिक अनुभवी, सीनेटर से उपराष्ट्रपति और फिर एक
टर्म के राष्ट्रपति जो बाइडन के ख़िलाफ़ उम्र में तीन वर्ष कम रिपब्लिकन उम्मीदवार और पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड
ट्रंप की जो बाइडन से सीधी टक्कर है। ट्रंप की व्हाइट हाउस में संभावित वापसी और रुस के राष्ट्रपति व्लादिमीर
पुतिन से मित्रतापूर्ण संबंधों को लेकर यह आशंकाएं जताई जा रही हैं कि वह नाटो के ख़िलाफ़ फिर से विष
वमन करना करना न प्रारंभ कर दें। इसे रुस के साथ चीन और उत्तरी कोरियाई ‘तानाशाहों’ की तिकड़ी से
नाटो नेताओं के मन में ‘आंतरिक भय’ के रूप में भी देखा जा रहा है। नाटो सदस्य देशों ने अगले एक साल में
‘बिना पीछे हटे’ यूक्रेन को 43 अरब डालर देने और परिस्थियाँ अनुकूल होने तक नाटो सदस्यता दिए जाने पर
भी सहमति जताई है।
नाटो सहयोग को लेकर जेलेंस्की आशंकित क्यों है?
यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोडोमिर जेलेंस्की सम्मेलन में परस्पर और सामूहिक स्तर पर यह बार बार कहते रहे हैं कि
मौजूदा युद्ध में उन्हें तत्काल आर्थिक और मिलिट्री मदद मिले। मीडिया खबरों में जो बाइडन के भरपूर समर्थन,
उनकी राष्ट्रपति की उम्मीदवारी के प्रति उपजे संकट के बावजूद यूक्रेन राष्ट्रपति जेलेंस्की डेमोक्रेट सीनेटरों और
अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के प्रतिनिधियों से मेल-जोल बढ़ाने में लगे रहे। उन्होंने इस बीच रिपब्लिकन पार्टी के
भी सीनेटरों से मुलाक़ात की है। जेलेंस्की चाहते हैं कि यूक्रेन को रूस की मिसाइलों के जवाब में मिसाइलों से
हमले करने की इजाज़त मिले। इस पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने रुस के सीमावर्ती क्षेत्रों और मिलिट्री संसाधनों पर
यूक्रेनी मिसाइली आक्रमण करने पर रज़ामंदगी व्यक्त की है, लेकिन वह रुस के अंदरूनी बस्तियों में मिसाइल
हमलों से सहमत नहीं हैं। अमेरिका के बाद नाटो के एक अन्य मज़बूत नेता फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युएल मैक्रो
सम्मेलन शुरू होने के छतीस घंटे बाद पहुँचे और पहुँचने के बाद भी उन्होंने यूरोप के एक अन्य शीर्ष नेता के
पिछले रविवार को हुए चुनाव में उठापटक के बारे में जानने की ओशिश की तो ‘बातूनी’ मैक्रो ने यह कह कर
टाल दिया कि विदेशी मंच पर घर की बातें करना उचित नहीं है। ‘रायटर’ न्यूज़ एजेंसी से प्रसारित खबर के
अनुसार इस पर एक यूरोपीय राजनयिक ने टिप्पणी की कि ‘’ अपने घर की राजनीति ही जब उलझी हुई हो तो
वह वैश्विक मंच पर क्या सहयोग दे सकते ऐन। बता दें, पाँच साल पहले नाटो के ७०वें सम्मेलन में फ़्रेंच राष्ट्रपति
मैक्रो ने कहा था कि नाटो ‘ब्रेन ट्यूमर’ से ग्रस्त है। उस समय राष्ट्रपति ट्रैम्प ने नाटो को रुग्ण अवस्था में बताया
था और तब छोटे देशों की और से अपनी जी डी पी का दो प्रतिशत एना तो दूर जर्मनी तक बकाया नहीं दे सके
थे। आज स्थिति पहले से आर्थिक सुदृढ़ हुई है। इसके बावजूद हंगरी के राष्ट्रपति ऑर्बन ने सम्मेलन से पूर्व मॉस्को
की यात्रा की और वह क्रैमलीन में पुतिन से मिल कर यूक्रेन सहित अनेक मुद्दों पर चर्चा की। भारत का नाटो से
दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है, तो भी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी दो साल बाद मॉस्को पहुँचे और उन्होंने अपने
मित्र पुतिन से परस्पर बातचीत में आग्रह किया था कि युद्ध और युद्ध के मैदान में मिसाइलों और बमबारी से
शांति स्थापित नहीं हो सकती। इसके विपरीत इंग्लैंड के नवनिर्वाचित प्रधान मंत्री किइर स्टार्मर ने यूक्रेन युद्ध में
पूर्ववर्ती टॉरी सरकार की नीतियों को स्वीकार करते हुए अपनी तेज तरार लंबी दूरी की मिसाइलें दिये जानर
सहमति जताई।
इस शिखर सम्मेलन में इंडो पैसिफ़िक क्षेत्र के चार सदस्य देशों-आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, जापान और दक्षिण
कोरिया के प्रतिनिधि भी मौजूद थे। इन प्रतिनिधियों ने भी चीन से दूरियाँ बढ़ाए जाने को उपयुक्त नहीं बताया।
ये चारों देश ऐसे हैं, जिनका समुद्री व्यापार दक्षिण चिन सागर के मार्ग से होता है, जहां चीन के समुद्री बेड़े के
साथ साथ ढेरों समुद्री बंधन और अड़चने हैं। यही नहीं, इन चारों देशों का चीन के साथ एक बड़ी मात्रा में
व्यापार है।
नाटो घोषणा पत्र के जवाब में रुस का जवाबी हमला!
डॉनल्ड ट्रंप ने चुनावी माहौल में नाटो से बाहर आने और व्हाइट हाउस में फिर से कदम रखने के संदर्भ में कहा
है कि वह रुस-यूक्रेन युद्ध को एक दिन में विराम दे सकते हैं, लेकिन नाटो देशों को अपनी सुरक्षा के लिए अपनी
जीडीपी का न्यूनतम दो प्रतिशत तो देना ही होगा। वह अपनी सुरक्षा के लिए पूरी तरह अमेरिका पर ईरभ्र नहीं
रह सकते। अभी नाटो के दो तिहाई देश ही अपनी जीडीपी का मात्र दो प्रतिशत दे पा रहे हैं। इस से यूरोपीय
देश रुस की विस्तारवादी नीतियों के कारण अपनी अपनी सुरक्षा के प्रति चिंतित है। सम्मेलन में नाटो के बत्तीस
देशों में हंगरी को छोड़ कर सभी देशों ने एकजुटता के साथ रुस ,चीन और उत्तरी कोरिया को सचेत किया है
कि वह रुस को लंबी दूरी की मिसाइल एवं आणविक हथियार जुटाने से बाज आये। नाटो सम्मेलन के लंबे चौड़े
घोषणा पत्र में यूरोपीय देशों ने भले ही जर्मनी में लंबी दूरी की मिसाइलें तैनात करने और नाटो सदस्य देशों के
विरुद्ध रुस की ख़ुफ़िया एजेंसियों, मिलिट्री और अंतरिक्ष मारक क्षमताओं की पलपल की जानकारियों के लिए
साइबर सेंटर बनाए जाने का निर्णय लिया है। इस का जवाब भी रुस और चीन ने हाथों हाथ सम्मेलन समाप्त
होने से पहले दे दिया है। रुस ने कहा है कि जर्मनी में तैनात नाटो की लंबी दूरी की मिसाइलों का जवाब लंबी
दूरी की मिसाइलों से दिया जाएगा। चीन ने नाटो के घोषणा पत्र को हल्के में लिया है। चीनी प्रवक्ता ने कहा है
कि यूक्रेन-रुस युद्ध में चीनी हथियारों की आपूर्ति का आरोप असत्य और भ्रामक है। यह मात्र अमेरिका की ओर
से चीन के ख़िलाफ़ एकतरफ़ा प्रचार है। चीन ने यह भी कहा है कि नाटो को इंडो पैसिफ़िक देशों-विशेष तौर पर
आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, जापान और दक्षिण कोरिया को घसीटना उचित नहीं होगा।हालाँकि इंडो पैसिफ़िक के
इन चारों सदस्य देशों ने भी नाटो के विस्तार और प्रसार में रुचि नहीं दिखाई है। इस से चीन और ताइवान के
बीच विषमताएँ बढ़ेगी और दक्षिण चीन सागर में समुद्री व्यापार में अन्यान्य बाधाएँ खड़ी होंगी और इसका
ज़िम्मेदार भी नाटो होगा। ताइवान को चीन अपना एक अभिन्न अंग मानता है।
नाटो शिखर सम्मेलन बुद्धवार को एक संयुक्त घोषणा पत्र में इस आशा और विश्वास के साथ संपन्न हो गया कि
यूक्रेन के हवाई क्षेत्र के बचाव के लिए ‘पेट्रियट एंटी मिसाइल’ छतरी तैनात होगी तो रुस के मिसाइल हमलों का
जवाब लंबी दूरी की सुपरसोनिक मिसाइलों से दिया जाएगा। ग्लैंड के प्रधान मंत्री कीर स्टार्मर ने यूक्रेन की मदद
के लिए सुनक सरकार की नीतियों को जारी रकने और ब्रिटेन की ‘स्टार्म शैडो लंबी दूरी की मिसाइलें’ इस्तेमाल
किए जाने का प्रस्ताव किया है।इसके लिए अमेरिका के नेतृत्व में नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाइजेशन ‘नाटो’ के
बत्तीस सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने जर्मनी में लंबी दूरी की मिसाइलें तैनात किए जाने और एक स्वर में अपने
अपने औद्योगिक परिसर में सैनिक साज सामान के निर्माण किये जाने, भविष्य में मिलिट्री साज सामान
उपलब्ध कराने और मिलिट्री ट्रेनिंग पर सहमति जताने के दावे किए हैं।
नाटो सदस्य देशों ने एक वर्ष के अंदर यूक्रेन को 43.28 अरब डालर देने की घोषणा की है।जानकारों का मत है
कि नाटो देशों ने यह व्यवस्था यह सोच कर कि है कि रिपब्लिकन उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप राष्ट्रपति निर्वाचित
होते हैं, तो संभव है, यूक्रेन को दे जा रही मदद रोक दी जाए। इधर डॉनल्ड ट्रैंप ने अपने पूर्व कथन के विपरीत
नाटो में बने रहने की बात तो स्वीकार की है, लेकिन साथ ही दोहराया है कि नाटो सदस्य देशों को अपनी
अपनी जी डी पी का दो प्रतिशत अंश ज़रूर जमा कराना चाहिए। यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की ने
बातों ही बातों में इशारा किया है कि अमेरिका में चुनाव सिर पर हैं । इसके चुनाव परिणामों पर यूक्रेन सहित
दुनिया भर की निगाहें लगी है।मौजूदा युद्ध में ट्रंप पर ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता।इसके बावजूद कुछेक
नाटो देशों ने रुस से संपर्क बनाए रखने पर ज़ोर दिया। घोषणा पत्र में कहा गया है कि उत्तरी कोरिया को
चाहिए कि वह रुस की आर्थिक, राजनैतिक और प्रोद्योगिकी मदद बंद करे, जबकि ईरान को आगाह किया गया
है कि वह भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल करने से बचे।