संदीप ठाकुर
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 1,अणे मार्ग खाली कर दिया है। वे
7, सर्कुलर रोड पर शिफ्ट कर गए हैं। मुख्यमंत्री आवास खाली कर दिए जाने
से इस चर्चा काे बल मिला है कि वे केंद्र में जाने की तैयारी कर रहे हैं।
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा बहुत दिनों से हो रही है कि बिहार में
मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भाजपा हर हाल में अपने किसी काे लाना चाहती है।
इसके लिए नीतीश कुमार का पद खाली करना जरूरी है। पिछले कई महीनों से यह
चर्चा है कि नीतीश बिहार छोड़ कर केंद्रीय भूमिका में जा सकते हैं। लगता
है नीतीश उसी की तैयारी कर रहे हैं।
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव कुछ महीने बाद ही हाेना है। चुनाव
को लेकर भाजपा ने तैयारी शुरू कर दी है। सूत्रों ने बताया कि सबसे पहले
पार्टी की ओर से जिन नेताओं से संपर्क किया गया है उसमें पहला नाम नीतीश
कुमार का है। तभी केंद्रीय शिक्षा मंत्री और बिहार के पूर्व प्रभारी
धर्मेंद्र प्रधान को हाल ही में चुपचाप पटना भेजा गया था। बिहार प्रदेश
भाजपा के नेताओं काे इस मामले से दूर रखा गया था। पता चला है कि प्रधान
ने कोई दो ढाई घंटे नीतीश कुमार के साथ बिताए। अन्य मुद्दों के अलावा
उन्होंने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव के बारे में नीतीश से बात
की। इस बात भी चर्चा है कि दोनों के बीच नीतीश की भूमिका को लेकर भी
बातचीत हुई। नीतीश काे भाजपा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति में से क्या
बनाएगी यह फिलहाल रहस्य है। भाजपा की राजनीति काे करीब से जानने बूझने
वालों का मानना है कि उपराष्ट्रपति बनाए जाने की संभावना अधिक है।
मानसिक तौर पर इसकी तैयारी नीतीश भी कर रहे हैं। पार्टी का अध्यक्ष पद वह
पहले ही छोड़ चुके हैं। अब सीएम का आवास भी खाली कर दिया है।
लेकिन नीतीश कुमार का ट्रैक रिकॉर्ड भाजपा के लिए परेशानी का सबब बना हुआ
है। भाजपा पूरी तरह नीतीश पर विश्वास नहीं कर पा रही है। कारण नीतीश ने
राष्ट्रपति के पिछले दो चुनावों में गठबंधन से अलग हट कर वोट किया था।
2012 में राष्ट्रपति चुनाव के समय नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा थे लेकिन
उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का
समर्थन किया था। इसी तरह 2017 के राष्ट्रपति चुनाव के समय वे राजद और
कांग्रेस के महागठबंधन का हिस्सा थे, लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में
उन्होंने एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का समर्थन किया था, जबकि
कांग्रेस ने बिहार की दलित नेता मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाया था।
जुलाई 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने कोविंद का समर्थन किया था
और जुलाई के आखिर में वे एनडीए में लौट गए थे। इस बार भी कहीं ऐसी कहानी
न दोहराई जाए इसलिए भाजपा पहले से घेराबंदी कर रही है। नीतीश को पता है
कि उनके पास भले 45 विधायक हैं लेकिन उनके बगैर किसी की सरकार नहीं
बनेगी। वे जिधर जाएंगे उधर की सरकार बनेगी। सो, भाजपा को चिंता है कि
कहीं 2017 की तरह उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के साथ गठबंधन बदल कर लिया
तो राज्य में राजद, कांग्रेस गठबंधन की सरकार बन सकती है और अगला लोकसभा
चुनाव मुश्किल हो सकता है। सनद रहे नीतीश कुमार के पास महज 45 विधायक
हैं, जबकि भाजपा 78 विधायकों के साथ बिहार विधानसभा की दूसरी बड़ी पार्टी
है। इसके बावजूद उसने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया है। अब भाजपा कुछ
ऐसा जाल बुन रही है जिससे नीतीश कुमार केंद्र में आ जाएं और बिहार में
उनका मुख्यमंत्री बन जाए।