अशोक मधुप
अली अकबर नातिक़ का नौलखी कोठी विभाजन -पूर्व पंजाब में उर्दू में लिखा गया उपन्यास है। इसकी कहानी विलियम के इर्द-गिर्द घूमती है। ये उपन्यास एक बीते समय की कहानी है।जो पुरानी यादों से भरी हुई है।
56 अध्यायों और 581 पेज के इस उर्दू उपन्यास का अनुवाद प्रसिद्ध उर्दू लेखिका और कहानीकार डा. रख्शंदा रूही मेंहदी ने किया है।
कहानी पंजाब की पृष्ठ भूमि पर है। यह ब्रिटिश भारत में शुरू होती है। विभाजन से पहले के वर्षों में चलती है और उन्नीस-अस्सी के दशक के आसपास समाप्त होती है। उपन्यास हमें इस जगह की जीवंत संस्कृति से रूबरू कराता है। पूरा ग्रामीण पंजाब क्षेत्र के हमारे सामने चित्रित हो उठता है।
नौलखी कोठी में तीन कहानी एक साथ चलती हैं। विलियम इंग्लैंड से पढ़कर आठ साल बाद भारत लौटता है। उसे जलालाबाद का सहायक आयुक्त नियुक्त किया जाता है। विलियम रेगीस्तान बने जलालाबाद को हरा भरा–करने की कोशिश में लगता है किंतु पंजाब के गांवों में मुसलमानों और सिखों के बीच के झगड़े उसके कार्य में व्यवधान पैदा करते हैं।वह ब्रिटिश प्रशासकों की भूमिका के दायरे में कानून और व्यवस्था बनाए रखने की कोशिश करता है। पूर्वी पंजाब के जलालाबाद में सहायक आयुक्त के रूप में काम करने के दौरान वह अपने दादा द्वारा बनवाए गए बंगले, नौलखी कोठी में बसने का सपना देखता था। विलियम को कठोर आयुक्त हैली द्वारा चेतावनी दी जाती है कि स्थानीय लोगों के प्रति उसका व्यवहार और नरमी हिंदुस्तान में रहने वाले किसी भी ब्रिटिश अधिकारी के लिए अच्छी नहीं है। उनसे कहा गया कि वे शासक और शासित के बीच दूरी बनाए रखें तथा न्याय करते समय स्वयं को गलत करने वाले और अन्याय का शिकार हुए व्यक्ति से दूर रखें।
जलालाबाद में चार साल तक तैनात रहने के दौरान विलियम ने कई क्रांतिकारी कदम उठाए। उन्होंने इतनी लगन से काम किया कि वे इस इलाके की सूरत ही बदल देने में कामयाब हो गए। शिक्षा का स्तर पंजाब की सभी तहसीलों से कहीं आगे निकल गया था । उन्होंने एक नई नहर और कई अन्य छोटी-छोटी धाराएँ भी बनवाईं। इसके परिणामस्वरूप, तहसील में पानी की भरपूर आपूर्ति होने लगी और गेहूँ, चावल और मक्के की फ़सलें भरपूर मात्रा में पैदा होने लगीं।लोगों के चेहरों पर एक सामान्य खुशहाली दिखने लगी। कई उतार-चढ़ावों के बाद, बार-बार तबादलों के बाद और युद्ध छिड़ जाने के बाद, उन्हें एहसास हुआ कि एक बड़ी साज़िश चल रही थी जिसमें हिंदू, मुसलमान और अंग्रेज़ सभी ने मिलकर उनके खिलाफ़ हाथ मिला लिया था। उपन्यास के अंत में अपनी पूर्व ब्रिटिश शान और शक्ति से वंचित होकर नौलखी कोठी में एकाकी जीवन जी रहा है। उसकी पत्नी और बच्चे उसे छोड़कर इंग्लैंड वापस चले गए। लेकिन जल्द ही उसे उस जगह से भी निकाल दिया गया । वह पास की एक नहरी कोठी में रहने लया, और अंत में वह एक कंगाल और लावारिस की तरह मर गया।
विलियम गाँव की मस्जिद के मुख्य इमाम करामत अली को स्कूल में छोटे बच्चों को उर्दू− फारसी पढाने के लिए 40 रूपये माहवार तन्खवाह पर मास्टर रख देता है। इससे पहले कयायत मुश्किल से अपना गुजाराकर पाता था।गाँव के गरीब लोग जो मुश्किल से अपना गुजारा कर पाते थे, उन्हें वेतन नहीं दे पाते थे, बल्कि उन्हें रोज़ाना रोटियाँ देते थे। धीरे− धीरे मौलवी की किस्मत चमकती है। धीरे-धीरे उनका बेटा फ़ज़ल दीन एक परिपक्व और समझदार सरकारी बाबू बन जाता है । गवर्नर हाउस में दो साल काम करने के बाद फ़ज़ल दीन के पास अपनी ज़मीन खरीदने और घर बनाने के लिए काफ़ी पैसे थे। विभाजन के बाद फ़ज़ल दीन का काम काफ़ी बढ़ गया और फ़र्जी संपत्ति के दस्तावेज़ तैयार करने के लिए पर्याप्त साधन होने के कारण वह भ्रष्टाचार में फंस गया और उसने काफ़ी धन इकट्ठा कर लिया।
कहानी में सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुसलमानों और सिखों के बीच निरंतर दुश्मनी है। शेर हैदर क्षेत्र का जमींदार था, उसे सरदार सौदा सिंह और उसके आदमियों ने सरे आम मार डाला शेर हैदर के बेटे गुलाम हैदर को उसकी प्रजा और रिश्तेदारों ने नया उत्तराधिकारी बनाया। दो प्रतिद्वंद्वी धार्मिक समूहों के बीच हुई कई घटनाओं, लूटपाट और लड़ाई के बाद, उनकी किस्मत में उतार-चढ़ाव आते रहे जबकि आम ग्रामीण पीड़ित होते रहे। हत्या का आरोपी सिख नेता अभी भी आज़ाद था । गुलाम हैदर खुलेआम हथियारों के साथ घूमकर अपनी वीरता दिखाई।सिख नेता के साथ उसके साथियों का भी कत्ल कर दिया। दस साल फरार रहा।इस दौरान फांसी की सजा हो गई किंतु मुस्लिम लीग के नेता क़ाईदे आजम जिन्ना की शिफारिश ने उसकी फांसी ही माफ नही हुई,अपितु जब्त की गई सारी संपत्ति उसे वापिस मिल गई।
इस उपन्यास में लेखक कथानक को पूरे उपन्यास में इतनी शानदार ढंग से पिरोया है, उसके साथ न्याय करना मुश्किल है। विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश शासकों के सामने आई समस्याएं, भारत छोड़ो आंदोलन के साथ देश में बदलते समीकरण, स्वतंत्र पाकिस्तान के लिए जिन्ना की नीति, मुस्लिम लीग की भूमिका, हिंदुस्तान छोड़कर अंग्रेजों का चुपचाप पलायन, विभाजन का विचार जिसने चुपचाप आबादी को चीरना शुरू कर दिया था, विभाजन की आधिकारिक घोषणा के बाद शरणार्थियों का प्रवाह, पलायन – इन सभी का भी कथा में विस्तृत उल्लेख है।
अली अकबर नातिक़ की अनूठी कथा शैली और डा. रख्शंदा रूही मेहदी का अनुवाद जो उर्दू कहानी के करीब रहता है और क्षेत्रीय बोली के साथ उर्दू के स्वाद को बनाए रखता है। उपन्यास सरल भाषा –शैली में होने के बहतु ही रोचक और पठनीय है।पूरे उपन्यास में पात्रों और घटनाओं का बहुत विस्तृत विवरण पाठक पर एक शानदार दृश्य प्रभाव पैदा करता है। नातिक़ ने अध्यायों को इस तरह से जोड़कर कहानी के कुशलता से पिरोया है कि उपन्यास पढ़ते वे हमारी आँखों के सामने नजर आते हैं। उपन्यास की मोटाई को देखकर एक बार डर लगता है किंतु जब पढ़ना शुरू हो जाता है तो पाठक उसे खत्म करके ही रूकता है। उपन्यास पाठक को पूरे समय अपने से जोड़े रखता है और उसे कहीं बोर नही होने देता ।
- शीर्षक: नौलखी कोठी (उर्दू उपन्यास)
- लेखक: अली अकबर नातिक़
- अनुवादक : डा. रख्शंदा रूही मेहदी
- प्रकाशक : रेख्ता पब्लिकेशन नोयडा, उत्तर प्रदेश
- समीक्षक: अशोक मधुप