ललित मोहन बंसल, लास एंजेल्स से
डॉनल्ड ट्रंप (79) जानलेवा हमले के बाद सहानभूति की लहर से हवा में उड़ान पर हैं, तो जोई बाइडन (81) को पार्टी के अपने ही लोग उन्हें चुनावी मैदान से हटने हटाने के निष्फल प्रयासों में आये दिन अपनी मिट्टी खोदने में जुटे हैं। हो सकता है, वह चुनाव मतदान के अंतिम दिन तक जुटे रहें। ये ‘मिट्टी खोदने’ वाले नेता डेमोक्रेटिक पार्टी के विधान के अनुसार दूसरी टर्म के लिए चुनाव में खड़े अपने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पर कीचड़ तो उछाल सकते हैं, उन्हें उम्मीदवारी के पद से हटा नहीं सकते।
इसके लिए अगले महीने, 19 अगस्त को शिकागो में डेमोक्रेटिक पार्टी की नेशनल कांफ्रेंस हैं। इसमें ब्लॉक, ज़िला और प्रदेश स्तर पर चुने हुए डेलीगेट व सुपर डेलीगेट आएँगे। जोई बाइडन ने भी कहा है कि ‘मैं मैदान में हैं। उन्हें आने दो, निर्णय लेने दो, बहुमत से निर्णय लेंगे तो हट जाएँगे।’ अब शीर्ष नेताओं की पंक्ति में यहाँ बराक ओबामा हों अथवा नैन्सी पेलोसी। इनके यह कहने से कितना फ़र्क़ पड़ता है कि जोई बाइडन चुनाव मैदान में डॉनल्ड ट्रंप को हरा नहीं सकते? भारत की तरह पोल सर्वे तो यहाँ भी नियोजित होते हैं। यहाँ भी एक गोदी मीडिया है। उसने जोई बाइडन की उम्मीदवारी के पद को लेकर तीन रुचिकर विकल्प सुझाए हैं। एक, सहयोगी डेमोक्रेट के आग्रह को मान कर स्वतः पद से हट जाओ। दूसरे, पद छोड़ दें तो इतना भरोसा दिलाया जा सकता है कि उनकी विरासत को अक्षुण्ण रखा जाएगा। तीसरे, ये दोनों विकल्प मंजूर नहीं हैं, तो समझ लें कि ‘संविधान की धारा 25’ के अनुरूप पद गँवाने के साथ साथ मान-सम्मान और विरासत भी खतरे में पड़ेगी। बता दें, जोई अभी कोविड से पीड़ित हैं और स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं, जबकि उनकी परम सहयोगी कमला हैरिस ने आज शुक्रवार को डेमोक्रेट डॉनर्स की एक बैठक में उन्हें भरोसा दिलाया है, ‘डटे रहें। जोई और मैं मिल कर ट्रंप को हरा सकते हैं। यह बात मैं दिल से कह रही हूँ। मेरे पर विश्वास करे ।’
डेमोक्रेट के गढ़ ‘मिल्कवाई’ (विस्कांसिन) में गुरुवार (18 जुलाई) को संपन्न चार दिवसीय रिपब्लिकन पार्टी की नेशनल कॉन्फ्रेंस में क़रीब पच्चास हज़ार प्रतिनिधि जुटे थे। पेंसलवेनिया में डॉनल्ड ट्रंप पर विफल जानलेवा हमले के बाद प्रतिनिधियों ने सौल्लास स्वागत अपने नेता का स्वागत किया, राष्ट्रपति की उम्मीदवारी के पद पर अधिकृत तौर पर ‘मोहर’ लगाई, वह अद्भुत थी। ट्रंप ने उसी गर्मजोशी से प्रतिनिधियों को भरोसा दिलाते हुए रिपब्लिकन योजना में कांग्रेस के निचले सदन प्रतिनिधि सभा और ऊपरी सदन सीनेट में एक बड़े अंतर से जीत के लिए एकजुट होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि गत 27 जून की डिबेट में जोई बाइडन को चारों खाने चित करने के बाद वह राष्ट्रपति चुनाव में ‘लैंड स्लाइड’ विजय की कामना से व्यूह रचना में जुट गये है।
उनके साथ उनके बेटे, बहु और बच्चे शामिल हैं, हाँ, पत्नी मेलेनिया नेशनल कांफ्रेंस के अलावा कहीं दिखाई नहीं पड़ीं। बेटा बैरन ट्रंप (18) बाहर बाहर रहा। एक बात और, ट्रंप ने लीक से हट कर उपराष्ट्रपति पद के लिए ओहायो से एक जूनियर और अप्रत्याशित सीनेटर जेम्स डेविड वाँस के नाम पर स्वीकृति हासिल की। यह वही हैं, जो सन् 2016 में ट्रंप के आलोचक थे और कहते थे यह व्यक्ति जीत गया तो अमेरिका के लिए हिटलर सिद्ध होगा। बाद में यही जेम्स डेविड ट्रंप का मुरीद बन गया। कहा जा रहा है कि जेम्स डेविड वाँस का चयन युवाओं, खासकर भारतीय-अमेरिकी मतदाताओं के लिए एक नायाब तोहफ़े से कम नहीं है। जेम्स डेविड वाँस की पत्नी ऊषा चिलकुरी तेलुगु हिन्दू है। वह अपने पति ही नहीं, अमेरिका के इवेंजिलिस्ट ईसाई समुदाय और भारतीय अमेरिकी समुदाय में एक सेतु का काम कर सकती है। अमेरिका में राष्ट्रपति के परोक्ष चुनाव के साथ साथ देश भर में एक साथ प्रतिनिधि सभा (435 सदस्य) और सौ सदस्यीय सीनेट में से रिटायर होने वाले एक तिहाई सदस्यों के चुनाव 05 नवंबर को होने तय हैं। डॉनल्ड ट्रंप पर एक युवा थामस क्रूक ने जानलेवा हमला क्यों किया, उसके पीछे मक़सद क्या था, सीक्रेट सर्विस सुरक्षा में क्यों चूक गई, इस पर उच्चस्तरीय जाँच की जा रही है।
इन चुनाव में भारतीय मतदाता कमोबेश एक प्रतिशत हैं। यह इन चुनाव के समीकरण को भले ही बदल नहीं पाएँ, अमेरिकी समाज में उच्च मध्यम वर्ग के शिक्षित और परिश्रमी होने के नाते ख़ासी पैंठ रखते हैं, और पिछले एक दशक से यहाँ के राजनैतिक जीवन में उनकी अच्छी खासी कद्र भी है। इनमें नियोक्ताओं का एक ऐसा भी समूह है, जो दशकों से यहाँ की मिट्टी में घुल- मिलने के कारण वोट के साथ नोट भी देता है। आज इस अल्प एक प्रतिशत भारतीय अमेरिकी समुदाय की देश के छोटे बड़े राज्यों–स्विंग स्टेट में इतनी पैंठ है कि वह चुनाव के रुख को बदल पाने की स्थिति में हैं। पिछले दशकों में इस भारतीय समूह में तीन चौथाई परंपरावादी, कट्टर ईसाई समुदाय में इवेंजिलिस्ट के अहंकारी स्वभाव के कारण डेमोक्रेट वॉटबैंक के रूप रहे हैं। इनमें भले ही ज़्यादातर डेमोक्रेट स्टेट न्यू यॉर्क, इलिनॉइस, पेंसलवेनिया, मिशिगन, टेक्सस और पश्चिम में कैलिफ़ोर्निया, वाशिंगटन और ऑरेगन में बहुतायत में हैं।
कमला हैरिस एक बेहतर विकल्प है?
जोई बाइडन हटते हैं, तो उपराष्ट्रपति कमला हैरिस राष्ट्रपति पद की सशक्त दावेदार हो सकती हैं। इसके लिए ‘शीर्षस्थ डेमोक्रेट’ ने इस पद के लिए एक आधा दर्जन नाम ‘शॉर्टलिस्ट’ किये हैं।
इनमें से एक बहुचर्चित मिशेल ओबामा का भी नाम हैं, जो पहले ही चुनाव मैदान में उतरने से इनकार कर चुकी हैं। यों अन्यान्य सर्वे में मिशेल ओबामा और ट्रंप के बीच कड़ी टक्कर दिखाई गई है तो कमला हैरिस बहुत कम अंतर से पिछड़ते दिखाया गया है।
भारतीय अमेरिकी समुदाय में दक्षिण भारतीय तेलुगु, तमिल, कन्नड़ और मलयाली में नब्बे प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने पिछले चुनाव में कमला हैरिस के नाम पर एक मुश्त ‘वोट और नोट’ डेमोक्रेट उम्मीदवारों को दिये थे। यह स्थिति इस बार और जोर पकड़ रही है। इस संदर्भ में दो तरह की शंकाएँ आशंकाएँ व्यक्त की जा रही हैं। एक, ‘क्या कमला हैरिस मौजूदा स्थितियों में ट्रंप की उड़ान को देखते हुए भारतीय मूल और अपने जैमैका मूल के पिता के नाम पर अफ्रीकी अमेरिकी, दोनों वोट बैंक को संजो रख पाएँगी? डेमोक्रेटिक पार्टी में ऐसे पंजीकृत मतदाताओं की संख्या ज्यादा है, जो मूलतःः इमिग्रेंट्स हैं, उदारवादी हैं और रिपब्लिकन इवेंजिलिस्ट धर्मानुयाइयों की परंपरागत नीतियों से इतफ़ाक़ रखते हैं। इनमें लैटिन अमेरिकी, एशियन, अफ्रीकी और रोमन, मध्य एशियाई अरब समुदाय के अलावा कैथोलिक अमेरिकी वोट बैंक हैं। एक पोल सर्वे ‘एशियन अमेरिकन एडवांसिंग जस्टिस’ में दावा किया गया है कि जोई बाइडन को पिछले चुनाव में 56 प्रतिशत एशियन वोट बैंक की तुलना में आठ प्रतिशत वोट कम मिलते दिखाई दे रहे हैं, जबकि एक अन्य पोल सर्वे में ट्रंप को इसी एशियन अमेरिकी समुदाय से पंद्रह प्रतिशत कम 31 प्रतिशत मत मिल रहे हैं। एक अन्य ताज़ा एशियन अमेरिकन वोटर सर्वे में कहा गया है कि एशियन अमेरिकन समूह तेज़ी दे बढ़ रहा है। इसमें पिछले चार वर्षों में पंद्रह प्रतिशत वृद्धि हुई है। इनमें ज़्यादातर मतदाता ऐसे हैं जो पहली बार वोट देंगे। इनमें से 18-34 वर्ष के आयु वर्ग में नब्बे प्रतिशत एशियन अमेरिकन हैं, जिनमें से 68 प्रतिशत युवाओं के वोट दिये जाने की बात की गई है। इस समुदाय के सम्मुख मुख्य मुद्दे रोज़गार, हेल्थ/मेडिकेयर, महंगाई और मकानों के बढ़ते किराए हैं। यह सर्वे कमला हैरिस के 13 जुलाई को फ़िलाडेल्फ़िया में ए पी आई ए वोट प्रेजिडेंशियल टाउन हाल में कमला हैरिस के उद्बोधन से
ठीक एक दिन पूर्व जारी किए गए है।
कमला हैरिस ने शुक्रवार को डेमोक्रेट डॉनर्स के बीच फिर से दावा किया है कि जोई बाइडन और वह मैदान में डेट हुए हैं और उनकी डॉनल्ड ट्रैप के विरुद्ध जीत निश्चित है। उन्होंने डॉनर्स को भरोसा दिलाया है कि डॉनल्ड किसी भी स्थिति में उन्हें परास्त नहीं कर सकता। जोई बाइडन जब ओवल आफ़िस में बैठते हैं, तो उनके हृदय में एक और सिर्फ एक बात रहती है कि कामगार अमेरिकियों के हित में कौन सा निर्णय उचित होगा। ने निर्णय से उनके जनजीवन पर क्या असर होगा। इस बीच जोई बाइडन के दो बड़े फंड रेज़र रेड हॉफमैन और जेफ़ काट्ज़नबर्ग ने कमला हैरिस के कथन का स्वागत किया है।
डॉनल्ड ट्रंप की ध्रुवीकरण की राजनीति के माने क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों डॉनल्ड ट्रंप (79 वर्ष) के ख़िलाफ़ चार आपराधिक और 91 अन्यान्य मामलों में ‘इम्युनिटी’ राहत के रूप में उपहार दिया है, उस से वह सहज स्थिति में हैं। इस से डेमोक्रेट को धक्का पहुँचा है, तो कुछेक रिपब्लिकन को निराशा हुई है। पेंसलवेनिया में डॉनल्ड ट्रंप पर एक विफल जान लेवा हमले से बचते हुए उन्होंने एक मंजे हुए नेता के रूप में मुट्ठी भींचते हुए एकजुट होने और डेमोक्रेट को चारों खाने चित करने की अपील की है, रिपब्लिकन युवा और बुजुर्ग एकजुट हुए हैं। ट्रंप ने ‘अमेरिका ग्रेट अगेन’ के लिए अपनी ट्रेड और व्यापार नीतियों से ‘मेड इन अमेरिका’ जैसे स्लोगन से चीनी माल के आयात पर अंकुश लगाने, आउट सोर्सिंग पर प्रतिबंध लगाने के संकेत दे कह कर व्यापार जगत में बेचैनी फैलाई है। उन्होंने अवैध इमिग्रेशन इमिग्रेशन के लिए दीवार खड़ी करने के अपने पुराने ‘अलाप’ पर तो टिप्पणी नहीं की है, लेकिन लैटिन और अफ्रीकी देशों पर कड़ी कार्रवाई के संकेत दे कर इवेंजिलिस्ट ईसाई समुदाय में ध्रुवीकरण का बिगुल फूंका है। ट्रंप अपने 85 प्रतिशत कंजर्वेटिव (इवेंजिलिस्ट) ईसाई वोट बैंक पर निर्भर हैं, जबकि अश्वेत, लैटिन अमेरिकी और मध्य एशियाई देशों से कुल मिला कर दस से चौदह प्रतिशत वोट बैंक बटोर लेते हैं।
कमला हैरिस के खिलाफ़ क्यों हैं जोई बाइडन?
राष्ट्रपति जोई बाइडन (81 वर्ष) अपने लंबे राजनैतिक अनुभव और देश की सामरिक और विदेश नीति में पारंगत होने के कारण कमला हैरिस को इस पद के लिए सक्षम मानने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने चार वर्ष पूर्व कमला हैरिस को विश्वासपात्र के नाते उपराष्ट्रपति पद के लिए ले कर आये थे। उन्होंने कमला हैरिस को इमिग्रेशन समस्या के सिवा विशेष ज़िम्मेदारी नहीं दी। उनका भारतीय अमेरिकी तथा अफ्रीकी अमेरिकी समुदाय के वोट बैंक के लिए उपयोग किया है। जोई बाइडन एक ही दावा कर रहे हैं कि डॉनल्ड ट्रंप को वही परास्त कर सकते हैं। बाइडन ने मीडिया से बातचीत में यह भी कहा बताते हैं कि वह अपने माता-पिता की उस सीख को भूल नहीं पाते हैं, एक बहादुर सिपाही वही है जो गिर कर संभल जाए और फिर मैदान में उतर कर विजेता बने। यहाँ सच्चाई यह भी है कि पिछली 27 जून की राष्ट्रीय टी वी डिबेट में ट्रंप के सम्मुख उनकी जुबान लड़खड़ा गई थी। वह व्हाइट हाउस के चिकित्सकों की टीम की चौबीसों घंटों की निगरानी के बावजूद शारीरिक और मानसिक आघात से उबर नहीं पाए हैं? अमेरिकी मीडिया में खबरें आ रही हैं कि बाइडन पार्किन्सन रोग से ग्रस्त हैं। इस बीच दो सप्ताह में एक बार फिर नाटो के 75वें शिखर सम्मेलन के अंतिम दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में जोई बाइडन पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की को ‘प्रेजिडेंट पुतिन’ के रूप में परिचय करा बैठे तो फिर अपनी ही उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को ‘उपराष्ट्रपति ट्रंप’ के रूप में उच्चारित करने की भूल कर बैठे। हालाँकि उन्होंने तत्काल गलती सुधार ली। अब वह कोविड से पीड़ित हैं।
कमला आती हैं, तो एशियन, अफ्रीकन और लैटिन अमेरिकी एकजुट होंगे
भारत और अमेरिका के बीच सामरिक, ट्रेड और व्यापार संबंधी नीतियों का भारतीय अमेरिकी मतदाताओं पर बड़ा बुरा असर पड़ रहा है। डॉनल्ड ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में चीन से बढते आयात और घटते निर्यात की पृष्ठ भूमि में दस से बीस प्रतिशत सीमा शुल्क लगा कर चीनी कंपनियों को निरुत्साहित किया था। इस से दोनों देशों के बीच पारस्परिक संबंधों में दरार आ गई थी। इस बार ट्रंप व्हाइट हाउस में प्रवेश करते हैं और मध्य एशिया में इज़राइल के चहेते अमेरिका में अपने धन कुबेर व्यवसाइयों से रिश्ते प्रगाढ करते हैं, तो मुमकिन है इज़राइल और फ़िलिस्तीन युद्ध और आगे खर्षीच जाए। इसी तरह वह खाड़ी में तेल के खेल की राजनीति में सऊदी अरब के वोट बैंक को रिझाने के लिए ईरान, लेबनान और सीरियाई देशों के प्रति कड़ा
रुख अपना सकते हैं। अमेरिकी हितों के संरक्षण में चीन और भारत के विरुद्ध ट्रेड और व्यापार के साथ साथ सामरिक नीतियों में बदलाव लाते हैं तो निश्चित रूप से अमेरिका में रहे भारतीय अमेरिकी समुदाय पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। डॉनल्ड ट्रंप ने पिछले दिनों भारत और चीन में आउट सॉसिंग पर प्रतिबंध लगाए जाने की घोषणा कर भारत में आई टी और हेल्थ केयर में फ़ार्मा कंपनियों को रुष्ट कर लामबंद किया है। इसका डेमोक्रेट को आभ होना निश्चित है।
बाइडन खेमे में ‘वोट ट्रांसफर’ से खलबली निरर्थक है?
अरिजोना से विस्कॉन्सिन और उत्तर में मिशिगन से लेकर पूर्व में पेंसलवेनिया तक काँटे की टक्कर वाले राज्यों में एशियन समुदाय से डेमोक्रेट का पलड़ा भारी देखा गया है। पिछले चुनाव से पूर्व डॉनल्ड ट्रंप और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के बीच करीबी रिश्तों, सामरिक समझौतों, टेक्सस में ह्युस्टन स्टेडियम के बाद फ़रवरी में अहमदाबाद क्रिकेट स्टेडियम में ट्रंप परिवार का जिस तरह भव्य स्वागत किया गया, इसका भारतीय अमेरिकी वोट बैंक में कोई बड़ा बदलाव सामने नहीं आया। इसके लिए ट्रंप ने अपने चुनाव में मोदी के चित्र के साथ साथ अपना चित्र लगा कर भारतीय अमेरिकी समुदाय को लुभाने की कोशिश की थी। इस बार अभी तक ऐसे पोस्टर देखने को नहीं मिले हैं। रिपब्लिकन के पक्ष में भारतीय अमेरिकी वोटबैंक के ट्रांसफर नहीं होने का एक बड़ा कारण कट्टरपंथी दक्षिण मार्गी रिपब्लिकन का अल्पसंख्यक भारतीय अमेरिकी, मुस्लिम और अश्वेत अफ्रीकी समुदाय के प्रति घोर पक्षपात पूर्ण रवैया रहा है। कहा जा रहा है, इस पक्षपात रवैये के कारण डॉनल्ड ट्रंप भारतीय अमेरिकी समुदाय में ज्यादा सेंध नहीं लगा पाएँगे।