ऋतुपर्ण दवे
मोदी 3.0 का पहला बजट सामने है। कई राज्य खाली हाथ हैं। लेकिन गठबन्धन धर्म की रीत निभाता यह बजट हमेशा की तरह आंकड़ों, गणित और पहेलियों में उलझा हुआ है। आम आदमी बस इतना समझता है कि क्या सस्ता हुआ, क्या मंहगा, किसे क्या मिला और सीधे-सीधे टैक्स में कितनी बचत हुई? अभी इतना समझ आ रहा है कि मोबाइल और चार्जर सस्ते हुए और सोने-चांदी के दाम भी थोड़ा घटेंगे। प्राइवेट जॉब में युवाओं को आस है। टॉप देशी 500 कंपनियां 5 वर्षों में 1 करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप का मौका देंगी और 5 हजार रुपए मासिक, और एकमुश्त 6 हजार की अतिरिक्त सरकारी मदद तथा इस दौरान कैंपस सुविधा मिलेगी। यह नियमित नौकरी तो नहीं होगी लेकिन पीएम इंटर्नशिप स्कीम की पात्रता शर्तों को भी पूरा करना होगा। वहीं 5 वर्षों में 20 लाख युवाओं को स्किल ट्रेनिंग की तैयारी भी है।
रेलवे को रेकॉर्ड पैसा देने के बावजूद खास चर्चा नहीं हुई। सुरक्षा पर ही ध्यान रहा। बीते वित्त वर्ष में 700 करोड़ से अधिक लोगों ने सफर किया। चालू वित्त वर्ष में 2500 अतिरिक्त जनरल कोच बनेंगे। गठबंधन धर्म के बावजूद आम आदमी की खास जरूरत जिसमें सीनियर सिटीजन, वेटिंग लिस्ट और यात्री सुविधाओं का जिक्र तक नहीं हुआ।
टीडीएस नियमावली आसान होगी और क्रिमिनल लॉ बाहर होंगे। जीवन बीमा पॉलसियों जिनका सम एश्योर्ड 10 प्रतिशत से ज्यादा हैं उनकी मैच्योरिटी पर भी 5 प्रतिशत टीडीएस कटता है जो घटाकर अब 2 प्रतिशत किया गया है। रियल एस्टेट भी बजट से निराश है। अब प्रॉपर्टी दो साल के लांग टर्म की श्रेणी में आएगी। पहले तीन साल में थी। मतलब इस सेक्टर को इंडेक्सेशन का फायदा नहीं मिलेगा।
भाजपा ने खास सहयोगियों बाबू नीतिश और चंद्रबाबू को साधा जरूर लेकिन स्पेशल स्टैटस का दर्जा नहीं दिया। उनकी विभिन्न योजनाओं और परियोजनाओं पर धनवर्षा खूब की। बाढ़ प्रभावित राज्यों बिहार, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, असम सिक्किम को मदद का ऐलान हुआ तो मणिपुर में बाढ़ विस्थापितों को राहत या पुनर्वास की चर्चा तक नहीं हुई। उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ मणिपुर, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना और गोवा को बजट में कुछ खास मिला नहीं। शिक्षा, स्वास्थ्य पर विशेष तो और दीगर जरूरतों पर मरहम की घोषणाओं का महज इंतजार होता रहा।
मध्यम तबके को साधने की कवायद जरूर दिखी। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में एक करोड़ घर बनाने का लक्ष्य है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल (पीपीपी) के तहत 30 लाख से अधिक आबादी वाले 14 बड़े शहरों में औद्योगिक कामगारों खातिर डॉरमेट्री जैसी सुविधाएं तो आधी आबादी को साधने हेतु उनके पोषण से लेकर स्वास्थ्य, आत्मनिर्भरता और कामकाजी महिलाओं के लिए हॉस्टल व शिशु गृह तैयार करने पर घोषणा हुई। इससे महिलाओं का घर व काम के बीच बेहतर ढ़ंग से तालमेल होगा। वहीं एक करोड़ घरों को सोलर पैनल के जरिए 300 यूनिट फ्री बिजली की जगमगाहट का इंतजार है।
इस बजट से शेयर बाजार जरूर असंतुष्ट दिख रहा है। शॉर्ट टर्म कैपिटल टैक्स जो पहले 15 प्रतिशत था अब 20 प्रतिशत हो गया है। फ्यूचर और ऑप्शन पर सिक्योरिटी एण्ड ट्रांजेक्शन टैक्स बढ़ गया है। निश्चित रूप से इसका नकारात्मक परिणाम भी भाषण के साथ शेयर बाजार में दिखा। पूरे बजट को देखने से यह लगता है कि सरकार का फोकस नई टैक्स प्रणाली को भविष्य में मजबूती से लाना है। आयकर अधिनियम 1961 की धारा 16 में मानक कटौती का प्रावधान है जिसका ज्यादा फायदा नौकरीपेशा लोगों को ही होता है। इसमें एक तय राशि को ही टैक्सेबल आय से घटाया जाता है जिससे टैक्स पेयर की देनदारी कम जाती है। इसकी शुरुआत 1974 में हुई थी। बाद में इसे खत्म कर दिया गया लेकिन 2018 में स्टैंडर्ड डिडक्शन फिर शुरू हुआ। अब इसका लाभ नई और पुरानी कर प्रणालियों में लिया जा सकता है। इस बजट में यह कटौती 50 हजार रुपए से बढ़ाकर 75 हजार रुपए कर दी गई है।
कृषि क्षेत्र में 1 करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए अगले दो वर्षों में राजी किया जाएगा। जलवायु अनुरूप फसल उगाने के साथ सब्जी उत्पादन बढ़ाने हेतु कलस्टर विकसित होंगे। वहीं किसान संगठन से जुड़े नेताओं ने कहा है तो फिर उर्वरकों और रसायनों पर सब्सीडी कैसी? निश्चित रूप से बढ़ती मंहगाई को नियंत्रित करने के लिए कृषि क्षेत्र अहम है। इसलिए सबको लगता था कि इस पर ज्यादा चर्चा होगी।
बजट में पूर्वी क्षेत्र का पूरा ध्यान रखा गया है और पर्यटन की संभावनाओं के नाम पर बिहार खातिर बड़ी-बड़ी घोषणाएं हुईं। विष्णुपद मंदिर कॉरिडोर और महाबोधि मंदिर कॉरिडोर के व्यापक विकासित कर विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर की तर्ज पर विश्व स्तरीय तीर्थ और पर्यटन स्थलों में बदलने की बात कही गई। राजगीर और नालंदा विश्वविद्यालय के लिए व्यापक विकास की पहल है। नए हाथ आए राज्य ओडीशा की प्राकृतिक सुन्दरता के मद्देनजर वहां भी पर्यटन हब बनाने की घोषणा हुई।
मध्यम आय वर्ग बजट से ज्यादा संतुष्ट नहीं दिख रहा है। रसोई, सिलेण्डर का खर्चा बढ़ता जा रहा है। रिटायर्ड और मौजूदा सरकारी कर्मचारी भी बड़ी उम्मीदें पाले थे। हां कैंसर मरीजों को जरूर महंगी दवाओं से राहत मिलेगी। जबकि चुनावी राज्यों के हाथ मायूसी लगी। महाराष्ट्र, हरियाणा का जिक्र तक नहीं हुआ तो जम्मू-कश्मीर और झारखण्ड का नाम आया जरूर लेकिन वहां चुनावों के मद्देनजर खास कुछ मिला नहीं।
बिहार-आंध्रप्रदेश की तमाम योजनाओं पर 74 हजार करोड़ की धनवर्षा से लगता नहीं कि यह बजट सरकार के अपने अरमानों पर ज्यादा केन्द्रित है? फिर भी 7.75 लाख रुपए आय तक टैक्स नहीं लगने और कुल आय पर स्टैण्डर्ड 50 हजार से बढ़ाकर 75 करने से कुछ फायदा तो तय है। अब यह ऊंट के मुंह में जीरा होगा या जीरे मे ऊंट मुंह मारेगा? इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा।