- राज्य सभा सांसद मदन राठौड़ को राजस्थान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नियुक्त किया
- सांसद राधा मोहन दास अग्रवाल होंगे प्रदेश प्रभारी
- राजस्थान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने अपना पद छोड़ने की पेशकश की थी
गोपेन्द्र नाथ भट्ट
नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव में अपेक्षित परिणाम नहीं आने के बाद भाजपा अब नए सिरे से भविष्य की रणनीति का तानाबाना बुनने जा रही है। इसके तहत पार्टी की पहली कोशिश राज्यों में मतदाताओं के बीच नए सिरे से पैठ बनाने, विपक्ष की ओर से संविधान-आरक्षण खत्म करने की बनाई गई धारणा को खत्म करने के लिए रणनीति बनाने जा रही है। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए पार्टी ने अपने सभी राज्यों के संगठन मंत्रियों और इसके तत्काल बाद पार्टी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई है। गुरुवार से संगठन मंत्रियों की बैठक शुरू भी हो गई।
इस मध्य भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने गुरुवार देर रात सांसद राधा मोहन दास अग्रवाल को प्रदेश प्रभारी तथा राजस्थान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर राज्य सभा सांसद मदन राठौड़ को अध्यक्ष नियुक्त किया है। वर्तमान राजस्थान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद सीपी जोशी ने हाल ही अपना पद छोड़ने की पेशकश की थी। बताया जा रहा है कि जातिगत समीकरण साधने के लिए जोशी ने की यह पेशकश की। आने वाले समय में राजस्थान की 5 विधान संभव सीटों पर उपचुनाव होने है। ये सीटे यहां के विधायकों के सांसद बन जाने से रिक्त हुई है। लोक सभा चुनाव में विभिन्न जातियों की नाराजगी से भाजपा को प्रदेश की 11 सीटों पर पराजय का मुंह देखना पड़ा था। ऐसे में पार्टी के जातिगत समीकरण साधना बेहद जरूरी है। हालांकि पार्टी आलाकमान की तरफ से फिलहाल जोशी को हटाने के लिए कोई जल्दबाजी नहीं की जा रही थी, लेकिन जोशी ने पद छोड़ने की पेशकश कर दी है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अब जल्दी ही भाजपा को नया प्रदेश अध्यक्ष मिल सकता है।
पार्टी के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बताया गया था कि मूल ओबीसी जाति से नया प्रदेश अध्यक्ष होगा और ऐसा ही हुआ और मदन राठौड़ को अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। इस रेस में सांसद राजेन्द्र गहलोत , प्रभुलाल सैनी और अलका गुर्जर के नाम भी शामिल थे। सांसद राजेंद्र गहलोत की हाल ही अमित शाह से मुलाकात भी हुई थी । सूत्रों की माने तो मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और अमित शाह के बीच भी इस मसले को लेकर बातचीत हुई । मुख्यमंत्री शर्मा के हाल ही दिल्ली दौरे के दौरान इस मुद्दे को लेकर बातचीत होना बताया जा रहा है। राजनीतिक जानकारों ने बताया 23 जुलाई को प्रदेशाध्यक्ष को बदला जाना था लेकिन बजट आने के कारण प्रदेशाध्यक्ष नहीं बदला गया।
सूत्रों के अनुसार सीपी जोशी ने तीसरी बार इस्तीफे की पेशकश की । विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद पहली बार पेशकश की थी. फिर लोकसभा चुनाव में टिकट मिलने के बाद पेशकश की थी और अब तीसरी बार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सामने की इस्तीफे की पेशकश की गई है।
तब सीपी जोशी ने आलाकमान से मुलाकात की थी। लोकसभा चुनाव के वक्त भी कहा था कि मैं लोकसभा चुनाव में व्यस्त रहूंगा। ऐसे में आप अध्यक्ष की जिम्मेदारी से मुक्त कीजिए।
आलाकमान के सामने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा यह दलील रखी गई कि एक ही जाति ब्राह्मण के प्रदेशाध्यक्ष और मुख्यमंत्री रहने से अच्छा संकेत नहीं जा रहा।
चुनाव आयोग ने लोकसभा के नतीजे आने के साथ ही सात राज्यों की 13 सीटों पर उपचुनाव का ऐलान कर दिया था। तब सबको हैरानी हुई थी कि आखिर अभी तीन महीने तक चली चुनाव प्रक्रिया समाप्त हुई है तो अभी तुरंत क्यों चुनाव कराए जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल की चार सीटों पर उपचुनावों की घोषणा हुई थी और राज्य सरकार ने आयोग से इसकी शिकायत करते हुए कहा था कि उसके यहां छह और सीटें खाली हुई हैं तो सारे चुनाव एक साथ ही क्यों नहीं कराए जा रहे हैं? लेकिन आयोग ने इस पर ध्यान नहीं दिया। सिर्फ चार सीटों पर उपचुनाव हुए, जिनमें से तीन सीटें 2021 में भाजपा ने जीती थीं। इस बार सभी चार सीटों पर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस जीत गई। उसके बाद चारों तरफ सन्नाटा फैल गया। सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों में से एनडीए सिर्फ दो सीट जीत सका।
भाजपा और एनडीए चुनाव हार गए यह कारण तो नहीं हो सकता है कि उपचुनावों की घोषणा नहीं की जाए? आखिर चुनाव की घोषणा चुनाव आयोग को करनी है, जो कि एक संवैधानिक संस्था है! बहरहाल, भाजपा उपचुनावों को लेकर घबरा रही है। खासतौर से सात राज्यों के नतीजे आने के बाद। इसका कारण यह है कि इस बार ज्यादा सीटों पर उपचुनाव होना है और वह मिनी आम चुनाव की तरह है। जैसे उत्तर प्रदेश में 10 सीटें खाली हुई हैं। पश्चिम बंगाल में छह सीटें खाली हुई हैं। बिहार में चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है क्योंकि इन चार सीटों के विधायक इस बार लोकसभा का चुनाव जीत कर सांसद हो गए हैं। देश भर में करीब 30 सीटों पर उपचुनाव कराने की जरुरत है।
भाजपा उपचुनाव से इसलिए घबरा रही है क्योंकि अक्टूबर में चार राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। अगर उससे पहले उपचुनाव होते हैं और नतीजे मनमाफिक नहीं आते हैं तो विधानसभा चुनाव का माहौल बिगड़ेगा। अभी 13 सीटों के उपचुनाव की सफलता ने ही विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के नेताओं का हौसला बढ़ा दिया है। तभी कहा जा रहा है कि भाजपा चाहती है कि चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ ही इन सीटों पर उपचुनाव भी हो। जानकार सूत्रों का कहना है कि चुनाव आयोग भी इस संभावना पर विचार कर रहा है। कहा जा रहा है कि अभी देश के कई हिस्सों में मानसून की बारिश से जनजीवन अस्तव्यस्त हुआ है। ऐसे समय में चुनाव नहीं कराए जा सकते हैं। हालांकि मानसून के महीने में ही सात राज्यों की 13 सीटों के चुनाव हुए हैं, जिनके नतीजे 13 जुलाई को आए। तब भी पूरे देश में बारिश और बाढ़ के हालात थे। भाजपा की घबराहट के कारण ही इस बार लग रहा है कि महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के चुनाव एक साथ होंगे। पहले ये तीनों चुनाव अलग अलग होते थे।
इधर संगठनात्मक बैठक में लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन को लेकर सवाल उठ रहे हैं और पार्टी की समीक्षा बैठकों में उन पर निशाना साधा जा रहा है। कई जगह प्रत्यक्ष रूप से हमले हो रहे हैं तो कहीं कहीं परोक्ष रूप से मुख्यमंत्रियों को निशाना बनाया जा रहा है। भाजपा के जानकार सूत्रों के मुताबिक अभी तुरंत कोई बदलाव नहीं होगा लेकिन अगले तीन महीने मे होने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद कुछ बदलाव होने की संभावना है। जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं अगर भाजपा वहां जीतती है तो वहां भी नए चेहरों के साथ प्रयोग हो सकता है। भाजपा के जानकार सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा जो मुख्यमंत्री सबसे ज्यादा निशाने पर हैं वो उत्तराखंड के पुष्कर सिंह धामी हैं। उनके राज्य में दो सीटों पर उपचुनाव हुए थे और दोनों सीटों पर भाजपा हार गई। उपचुनाव में उत्तराखंड की बद्रीनाथ सीट हारने का बड़ा झटका भाजपा को लगा है। इस सीट के कांग्रेस विधायक को लोकसभा चुनाव से पहले तोड़ कर भाजपा में शामिल कराया गया था और लोकसभा के बाद हुए उपचुनाव में उनको टिकट दी गई लेकिन वे बड़े अंतर से हारे। इसी तरह मंगलौर सीट बसपा के विधायक के निधन से खाली हुई थी, जहां बाहर से लाकर करतार सिंह भड़ाना को भाजपा ने लड़ाया और वे चुनाव हार गए। सो, धामी के भविष्य पर सवालिया निशान लगा है। राज्य में 2027 के शुरू में चुनाव होंगे यानी करीब ढाई साल का समय बचा है। माना जा रहा है कि राज्य में बीच ही बदलाव हो सकता है, जैसा पिछले चुनाव से पहले हुआ था।
इसी तरह राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। 2023 के दिसंबर में वे मुख्यमंत्री बने और मई में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा झटका लगा। भाजपा राज्य में 11 सीटों पर चुनाव हार गई। भजनलाल शर्मा के साथ ही मोहन यादव मध्य प्रदेश में और विष्णुदेव साय छत्तीसगढ़ में सीएम बने थे। मध्य प्रदेश में भाजपा सभी 29 सीटों पर जीती और छत्तीसगढ़ में भी 11 में से 10 सीट जीती लेकिन राजस्थान में 25 में से 14 ही सीट जीत पाई। लेकिन, भजनलाल शर्मा को लोकसभा चुनाव के लिए बहुत कम समय मिला इसलिए उनके लिए आगे का रास्ता मुश्किल नहीं कहा जा सकता है।
भाजपा ने हरियाणा में जो प्रयोग किया है उसे लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। पार्टी के अंदर ही आशंका जताई जा रही है कि नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में भाजपा विधानसभा का चुनाव जीत पाएगी या नहीं। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले करनाल के सांसद नायब सिंह सैनी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था। वे पिछड़ी जाति से आते हैं और भाजपा ने पिछड़ा, पंजाबी और ब्राह्मण का समीकरण बनाने का प्रयास किया है। लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा पांच सीटों पर हार गई। 2019 में भाजपा राज्य की सभी 10 सीटों पर जीती थी लेकिन 2024 में पांच पर हार गई। बाकी सीटों पर भी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने अच्छी टक्कर दी। सो, सैनी की परीक्षा है। अगर भाजपा जीती तभी उनकी सारी भूलें माफ होंगी। पूर्वोत्तर के कुछ मुख्यमंत्री भी निशाने पर हैं। चार राज्यों के चुनाव के बाद यदि परिणाम आशानुरूप नहीं आया तो भाजपा की प्रदेशों की सत्ता और संगठन में बड़ा ऑपरेशन होगा।