डॉ. सुधीर सक्सेना
यह सियासी समीकरणों का नया दौर है, दक्खिनो राज्यों में बनते-बिगड़ते समीकरणों का दिलचस्प दौर। रास्तों पर फिसलन है और वक्त की दरो- दीवार पर अटकलों के सब्जे उग आये हैं। सियासत भी परखनली की मानिंद है, जिसमें क्रियाएं लगातार होती रहती हैं। क्रियाएं तब भी बदस्तूर हो रही होती है, जब हमें सतह पर अवक्षेप नजर नहीं आता। यह भी गौरतलब है कि बहुतेरी घटनाएं इनमें उत्प्रेरक का काम करती है और पारस्परिक क्रिया-प्रतिक्रिया को मंद या तीव्र कर देती हैं। छहों दक्खिनी राज्यों में इन दिनों यही हो रहा है। लोकसभा- चुनाव के नतीजों के बाद भी यह दौर थमा नहीं है, बल्कि यह एक ऐसे नये पेचीदा गलियारे में खुला है, जिसमें घुमावदार गलियां हैं और कुल्हियां भी। यही वह सन्दर्भ है, जो राजनीति में अनिश्चितता, उत्सुकता और उत्तेजना का खमीर उपजाता है।
बात वर्णमाला के पहले अक्षर ‘अ’ यानि आंध्र से शुरू करें, जहां चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में तेलुगुदेशम गठबंधन हाल में सत्ता में आया है। चंद्रबाबू विजनरी-नेता हैं। वह रफ्तार और नतीजों में यकीन रखते हैं। जुलाई को वह विशाखापटनम में एएमटीजेड के समारोह में थे। उनके सारगर्भित संबोधन ने इस बात को बरबस दर्शाया गया कि उन्हें विकास-पुरुष क्यों कहा जाता है? चंद्रबाबू ने नायाब उपलब्धियों के लिए एएमटीजेड के संस्थापक सीईओ डॉ. जितेन्द्र शर्मा की मुक्तकंठ सराहना की और पीठ थपथपायी, जिन्हें उन्होंने इस्पात संयंत्र के समीप करीब 270 एकड़ ऐसी भूमि आवंटित की थी, जहां न सड़क या पगडंड़ी थी, न चांपाकल या बिजली का खंबा, और न ही झोपड़ी या कोई रिहाइश। और तो और डा. शर्मा की चुनी इस भूमि का कोई पिनकोड नंबर भी नहीं था। लेकिन आज वहां अत्याधुनिक और चित्ताकर्षक परिसर में विश्व की 140 से अधिक चुनींदा कंपनियां कार्यरत हैं। डॉ. शर्मा ‘मेड टेक’ मैन कहे जाते हैं। हेल्थकेयर की दुनिया में एएमटीजेड की अपनी प्रतिष्ठा है और उसकी बदौलत भारत वहां शीर्षस्थ देशों में शुमार है। सोचिये कि क्या यह गौरवपूर्ण और श्रेष्ठ मानकों की रचना-यात्रा चंद्रबाबू नायडू की वैज्ञानिक सोच और औदार्य के बिना संभव थी? बाबू ने इसे चिकित्सा प्रौद्योगिकी का हब बनाने का सुझाव दिया, आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस की बात की, स्वर्णिम युग का आह्वान किया और जाहिर है कि हर संभव मदद का आश्वासन भी।
वाइजैग-प्रसंग का जिक्र इसलिये कि विकास के प्रति गहरी वचनबद्धता ही वह कारक है, जो अप्रत्याशित चुनाव के बाद तमाम अटकलों के घटाटोप में भी बाबू को बीजेपी से जोड़े हुए हैं। यह नये समीकरणों का का ही तकाजा है कि गहन संशयों के बीच चंद्रबाबू ने समर्थन के बदले सौदा को कोई तरजीह नहीं दी। उन्होंने टीडीपी के लिए स्पीकर या डिप्टी स्पीकर अथवा मलाईदार महकमों की कोई मांग नहीं की। उनके बयानों से साफ है कि वह प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति गहरी कृतज्ञता और पवन कल्याण के प्रति गहरी आत्मीयता से भरे हुए हैं। तय है कि त्रोइका की यात्रा जारी रहेगी। चंद्रबाबू की अभी तात्कालिक और पहली वरीयता आंध्र की वित्तीय स्थिति को पटरी पर लाना है। उन्हें कर्ज की गठरी तले दबा जर्जर प्रदेश विरासत में मिला है, जहाँ उन्हें अपने वायदों और सपनों को अमली जामा पहनाना है। यकीनन विशेष राज्य का दर्जा (एससीएस) का मुद्दा एक बड़ा मुद्दा है, जिस पर करीब पांच साल पहले उन्होंने मोदी सरकार से समर्थन वापस लिया था। बाबू बखूबी जानते है कि केन्द्र सरकार किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने के मूड में नहीं है। यूं भी यह बर्र के छत्ते में हाथ डालने जैसा होगा। 5और 6 जुलाई को बाबू दिल्ली में थे। उन्होंने आंग्ल- दैनिक ‘द हिन्दु’ से बातचीत में कई मार्के की बातें कहीं। वह अपने चौथे मुख्यमंत्रित्व काल को पूर्वापेक्षा और सबसे कठिन मानते हैं। उन्होंने दो-टूक कहा कि जरूरत एसीएस की मांग से कहीं बड़ी है। सूबे में हरेक संस्थान को पुनर्रचना और पुननिर्माण की जरूरत है। उन्होंने खरोंच नहीं, बल्कि उसके काफी नीचे से शुरूआत करनी पड़ रही है। अपने दो दिनी प्रवास में चंद्रबाबू सुश्री सीतारमण और जेपी नड्डा समेत छह केंद्रीय मंत्रियों से मिले। उन्हें अमरावती और पोलावरम समेत समग्र विकास की चिंता है। वह बुंदेलखंड सरीखा स्पेशल पैकेज चाहते हैं। उनका कहना है कि उनके वायदे उनके नहीं, वरन त्रोइका के वायदे हैं।
चंद्रबाबू ने स्पष्ट कह दिया कि उनके और बीजेपी के दरम्या किसी ‘टकराव’ की हाल-फिलहाल कोई संभावना नहीं है। वह इसे बूझ रहे हैं कि बीजेपी के साथ रिश्तों में किसी तरह काटकटाव या किसी मुद्दे पर उतावलापन घाटे का सौदा होगा। आंध्र की घरेलू राजनीति का यही तकाजा है कि वह बीजेपी के साथ दोस्ताना रिश्ते कायम रखें और अपने वचनों को निभायें। यह बेतरह क्षीण हो चुकी जगनमोहन की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को कोई भी मौका नहीं देना चाहते हैं कि वह पांव जमा सके। चंद्रबाबू यह भी जानते हैं कि कांग्रेस आंध्र में वापसी के लिए लालायित और सचेष्ट है और यह भी कि स्वर्गीय राजशेखर रेड्डी के प्रति आंध्रजनों के मन में अभी भी श्रद्धा और सम्मान है। आंध्र में कांग्रेस ने पार्टी की कमान स्व. राजशेखर रेड्डी की बेटी शर्मिला को सौंपी है और उसे उम्मीद है कि वह आंध्र में कांग्रेस को पुनरूज्जीवित कर सकेंगी। राहुल गांधी ने 8 जुलाई को उनकी 75वीं जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि यदि याईएसआर जीवित होते तो आंध्र की दशा सर्वथा भिन्न होती। याईएसआर को जन-नेता निरुपित करते हुए राहुल ने कहा कि उन्होंने उनसे बहुत कुछ सीखा। यहाँ तक कि उन्हें कन्याकुमारी से कश्मीर तक की भारत जोड़ो यात्रा की प्रेरणा रेड्डी गारू की प्रजा प्रस्थानम पदयात्रा से मिली थी। इसी रोज सोनिया गांधी ने भी अपना स्मृति-संदेश भेजा।
सुश्री शर्मिला लोकसभा चुनाव में असफल रहीं, किंतु कांग्रेस नेतृत्व को उनसे बड़ी उम्मीदें हैं। सुश्री शर्मिला भी लगातार पिता की विरासत के उत्तराधिकार का दावा कर रही हैं। जगन के नेतृत्व में याईएसआर कांग्रेस पार्टी को हाशिये में सरकने को कांग्रेस आपदा में अवसर के तौर पर देख रही है। इसी के चलते तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी और उपमुख्यमंत्री भट्टी विक्रमार्क ने कांग्रेस के पूर्व नेताओं से खुली अपील की है कि इंदिराम्मा राज्यम की मजबूती के लिए वे लोग कांग्रेस में लौट आयें। चंद्रबाबू इस घटनाक्रम के प्रति सचेत है और वह कतई नहीं चाहेंगे कि बीजेपी और जनसेना पार्टी के साथ उनकी पार्टी के गंठजोड़ पर आंच आये।
बिलाशक समीकरण बदल रहे हैं। केसीआर और जगन की पार्टियां क्रमश: तेलंगाना और आंध्र में गर्दिश के दौर से गुजर रही हैं। तेलंगाना में विधान परिषद में भारत राष्ट्र समिति के 6 विधायक कांग्रेस में शरीक हो गये हैं। इससे परिषद में कांग्रेस की सदस्य संख्या बढ़कर 12 और बीआरएस की घटकर 21 रह गयी है। डी. विट्टल (आदिलाबाद), भानुप्रसाद (करीमनगर), प्रभाकर राव (रंगारेड्डी), ई. मल्लेशाम (बोग्गावरपू) दयानंद और बासवराजु सरैया के बीआरएस छोड़ने से निश्चित ही तेलंगाना में कांग्रेस का जनाधार मजबूत होगा। दिलचस्प तौर एमएलसी दो अन्य एमएलसी के. दामोदर रेड्डी और पी. महेंदर रेड्डी भी सदन में कांग्रेस सा आचरण कर रहे हैं। खबर गर्म है कि परिषद अध्यक्ष जी सुखेंदर रेड्डी भी कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं। उनका बेटा अमित रेड्डी पहले ही कांग्रेस में शरीक हो चुका है। गौरतलब है कि सुखेंदर रेड्डी कभी कांग्रेस के टिकट पर एमपी चुने गये थे। बाद में वह की बीआरएस में चले आये। इस निष्ठा-परिवर्तन की ताजा कड़ी दिल्ली में देखने को मिली, जब बीआरएस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य के. केशवराव ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की मौजूदगी में कांग्रेस ज्वाइन कर ली। इसके बाद उन्होंने अपना इस्तीफा सभापति जगदीप धनकड़ को सौंप दिया। तेलंगाना में दिनों-दिन दुबलाती बीआरएस की दिक्कत यह है कि उसकी नेत्री कविता पर केन्द्रीय एजेंसियों ने जाल कस दिया है। बीआरएस के एक विधायक प्रकाश गौड़ पहले ही पार्टी छोड़कर कांग्रेस के पाले में जा चुके हैं।
उधर काग्रेस में नरसापुरम के पूर्व सांसद के रघुरामकृष्ण राजू की शिकायत पर गुंटूर पुलिस ने पूर्व सीएम जगन और दो पुलिस अफसरों-पीवी सुनील कुमार और सीतारामंज -नेयुलु के खिलाफ उत्पीड़न का मामला दर्ज कर लिया है।
ज्ञातव्य है पूर्व सांसद ने याईएसआर सीपी छोड़कर टीडीपी का दामन थामा और अब वह उंडी से एमएलए है। उनका आरोप है कि पुलिस ने उन्हें सन् 2021 में अमानवीय यातनाएं दी।
खिचड़ी दक्षिण के सिंहद्वार कर्नाटक में भी पक रही है। डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार को केतली से भाप को निकलने से रोकने में मशक्कत करनी पड़ रही है। वहाँ दोनों प्रमुख संप्रदाय-लिंगायत और वोक्कालिंगा अपने-अपने राजनीतिक हितों के मान से सचेत और मुखर है। स्थिति यह है कि शिवकुमार को पार्टी नेताओं को पार्टी के अंदरूनी मुद्दों पर सार्वजनिक बयान न देने की चेतावनी देनी पड़ी है। इस बीच कर्नाटक के नतीजे बीजेपी लिए भले ही आश्वस्तकारी रहे हो, किंतु कर्नाटक और केंद्र के रिश्ते और बिगड़े हैं। राष्ट्रीय आपदा कोष से रकम के लिए कर्नाटक को सुप्रीम कोर्ट का द्वार खटखटाना पड़ा है। इस मद में कर्नाटक को केन्द्र से करीब 18,000 करोड़ रुपये लेने है, जबकि उसे बमुश्किल 3454 करोड़ रुपए मिले हैं। कर्नाटक का इसे ऊंट के मुंह में जीरा निरूपित करना सही है। दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट में दस्तक तमिलनाडू और केरल ने भी दी है। केरल में कर्ई बिल अभी भी गर्वनर की मेज पर अटके हैं और वित्तीय स्थिति विषम है। वाम नेताओं को डर सता रहा है कि लेफ्ट का यह आखिरी किला भी कहीं वह हाथ से गंवा न बैठे। मुख्यमंत्री स्तालिन अपने पत्ते चतराई से खेल रहे हैं। उन्होंने भी केंद्र पर मेट्रो रेल एवं अन्य परियोजनाओं के लिए फंड नहीं देने का आरोप लगाया है। उन्होंने रिटायर्ड जज सत्यानारायण की अध्यक्षता में केंद्र द्वारा पारित दंड विधानों की समीक्षा के लिए समिति का भी गठन किया है। उधर केरल में विजयन सरकार ने ईसाईयों को लुभाने को आयोग की सिफारिश लागू करने का फैसला किया है।