गोविन्द ठाकुर
” कांग्रेस में कोई भी काम बड़े आराम से होता है..तभी तो एक बदलाव के लिए सालों लग जाता है.. अभी
ही कई राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों और पार्टी प्रभारी को बदलना है, जो महीनों से रुका पड़ा है… देश में
लगभग आधे राज्यों में अध्यक्ष और प्रभारी को बदलना है, मगर नेता महीनों नहीं सालों से दिल्ली की
परिक्रमा कर रहे हैं… मगर आलाकमान को तो अपने हिसाब से ही चलना है.. तो परिपाटी कायम ही
रहेगा… ”
कांग्रेस पार्टी में कई बदलाव होने वाले हैं। कई राज्यों में अध्यक्ष बदले जाने हैं और कुछ राज्यों
में प्रभारियों में भी बदलाव होना है। लेकिन कांग्रेस के एक बड़े जानकार नेता का कहना है कि ये
बदलाव एक साथ नहीं होंगे। कांग्रेस नेता ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि बिग बैंग किस्म
का बदलाव नहीं होगा क्योंकि पार्टी नहीं चाहती है कि इस पर बेवजह फोकस बने और ज्यादा
चर्चा हो। इसलिए चुपचाप और एक एक करके बदलाव होने की ज्यादा संभावना है। अगर कांग्रेस
के सूत्रों की मानें तो दक्षिणी राज्यों में बदलाव को लेकर पार्टी मे ज्यादा चर्चा हो रही है। बताया
जा रहा है कि दक्षिण में कर्नाटक, तेलंगाना और केरल में बदलाव होना है। इसके अलावा ओडिशा
और पश्चिम बंगाल में अध्यक्ष बदले जाने की चर्चा है। बिहार और झारखंड में भी बदलाव की
चर्चा सुनने को मिल रही है। प्रदेश अध्यक्षों के अलावा कुछ प्रभारियों की जिम्मेदारी बदलने पर
भी चर्चा हो रही है।
केरल को लेकर कांग्रेस में सबसे ज्यादा चिंता है क्योंकि वहां चुनाव के दो साल से कम रह गए
हैं और गुटबाजी खत्म नहीं हो रही है। प्रदेश अध्यक्ष के सुधाकरण और संसदीय दल के नेता
वीडी सतीशन के बीच तनाव बढ़ता ही जा रही है। रमेश चेन्निथला को महासचिव बना कर
महाराष्ट्र का प्रभारी बनाया गया है लेकिन उनका मन भी केरल में ही रमा होता है। ऊपर से
केरल के ही केसी वेणुगोपाल संगठन महासचिव हैं और राहुल गांधी के सबसे विश्वस्त हैं। सो,
राहुल गांधी के लिए केरल में गुटबाजी खत्म कराना और नए अध्यक्ष के पीछे पूरी पार्टी को
एकजुट कराना बड़ा काम है।
इसी तरह कर्नाटक में डीके शिवकुमार उप मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों पदों पर हैं। अगर
उनको अध्यक्ष पद से हटाया जाता है तो वे मुख्यमंत्री बनने के लिए दबाव बनाएंगे। तेलंगाना में
मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ही अभी अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं। उनको अध्यक्ष पद छोड़ना
है लेकिन कौन अध्यक्ष बने इसे लेकर खींचतान चल रही है। एक सांसद और एक कार्यकारी
अध्यक्ष के बीच खींचतान चल रही है। दक्षिण के हर राज्य में केसी वेणुगोपाल का दखल बढ़ने
से भी फैसला करने में मुश्किल आ रही है।
बहरहाल, पूर्वी राज्यों में पश्चिम बंगाल और ओडिशा में बदलाव होना है। कांग्रेस ने ऐतिहासिक
फैसला करते हुए ओडिशा की प्रदेश, जिला और प्रखंड तक की सारी समितियों को भंग कर दिया
है। वहां पूरा संगठन नए सिरे से बनना है। पश्चिम बंगाल में अधीर रंजन चौधरी का विकल्प
खोजना कांग्रेस के लिए मुश्किल हो रहा है। लेकिन दीपा दासमुंशी और अब्दुल्ल मन्नान सहित
आधा दर्जन नामों की चर्चा चल रही है। झारखंड में इसी साल विधानसभा के चुनाव हैं। सो,
चुनाव से ऐन पहले प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर को बदलने का फैसला तर्कसंगत नहीं होगा।
राज्य में कांग्रेस सरकार का हिस्सा है और पिछले दिनों मंत्रियों में बदलाव किया गया है। बिहार
में अखिलेश प्रसाद सिंह कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, जिनका परफेक्ट तालमेल राजद और दूसरी
सहयोगी पार्टियों के साथ है। बिहार में तेजस्वी यादव और ‘इंडिया’ ब्लॉक ए टू जेड जातियों की
राजनीति साधने का प्रयास कर रहा है, जिसमें वे फिट बैठते हैं। तभी कांग्रेस को उनका विकल्प
खोजने में भी मुश्किल हो रही है।