संजय सक्सेना
लखनऊ : भारतीय जनता पार्टी और मोदी सरकार एसटी-एससी आरक्षण में कोटे में कोटा को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ खड़ी है। वहीं एससी/एसटी एक्ट के आरक्षण दायरे से इस समाज के क्रिमी लेयर को बाहर करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मोदी सरकार ने संविधान विरोधी करार देते हुए इसे मानने से इंकार कर दिया है। इसके बावजूद विरोधी दलों के नेता मोदी सरकार पर हमला करने से बाज नहीं आ रहे हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव आरक्षण के भीतर आरक्षण के मुद्दे पर अपनी पार्टी को बीजेपी से बड़ा दिखाने के लिये हर वह कदम उठा रहे हैं जिससे उन्हें राजनैतिक फायदा हो सकता है। इसी क्रम में अखिलेश यादव ने एक बयान में कहा कि किसी भी प्रकार के आरक्षण का मूल उद्देश्य उपेक्षित समाज का सशक्तिकरण होना चाहिए, न कि उस समाज का विभाजन या विघटन। इससे आरक्षण के मूल सिद्धांत की ही अवहेलना होती है। उन्होंने कहा कि पीडीए के लिए संविधान संजीवनी है, तो आरक्षण प्राणवायु। अखिलेश का यह बयान आरक्षण के उप वर्गीकरण के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले को देखते हुए अहम माना जा रहा है। इससे पूर्व बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी प्रेस कांफ्रेंस करके आरक्षण के भीतर आरक्षण (उप वर्गीकरण) का विरोध करते हुए इस मामले में सपा और कांग्रेस की नीयत भी साफ न होने की बात कही थी।
अखिलेश यादव ने 11 अगस्त को जारी आधिकारिक बयान में कहा कि पीढ़ियों से चले आ रहे भेदभाव और मौकों की गैर बराबरी की खाई चंद पीढ़ियों में आए परिवर्तनों से नहीं पाटी जा सकती। आरक्षण शोषित, वंचित समाज को सशक्त व सबल करने का सांविधानिक मार्ग है। इसी से बदलाव आएगा। इसके प्रावधानों को बदलने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार हर बार अपने गोलमोल बयानों के माध्यम से आरक्षण की लड़ाई को कमजोर करने की कोशिश करती है। जब पीडीए के विभिन्न घटकों का दबाव पड़ता है, तो दिखावटी सहानुभूति दिखाकर पीछे हटने का नाटक करती है। अखिलेश ने कहा कि भाजपा की अंदरूनी सोच सदैव आरक्षण विरोधी रही है। आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा की विश्वसनीयता शून्य हो चुकी है। कुल मिलाकर आरक्षण के सहारे अखिलेश यादव बीजेपी से दो-दो हाथ करके उस दलित वोट बैंक को अपने पास रोके रखना चाहते हैं जो लोकसभा चुनाव में बसपा का दामन छोड़कर उनके साथ आ गया था।