श्रीजेश के अंतर्राष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कहने के साथ सीनियर हॉकी टीम से उनकी 16 नंबर की जर्सी भी रिटायर

With Sreejesh saying goodbye to international hockey, his number 16 jersey also retired from the senior hockey team

  • श्रीजेश के विदाई समारोह में पूरी उन सहित पूरी भारतीय टीम 16 नंबर की जर्सी में थी
  • जू.भारतीय हॉकी टीम के लिए बतौर कोच नया श्रीजेश तैयार की जिम्मेदारी श्रीजेश की
  • श्रीजेश बोले, भारत को विश्व कप में पदक न जिता पाने का मलाल रहेगा
  • श्रीजेश ने कहा, उम्मीद हमारी भारतीय टीम 2026 विश्व कप में पदक जरूर जीतेगी

सत्येन्द्र पाल सिंह

नई दिल्ली : हॉकी में भारत के लिए चार ओलंपिक, चार विश्व कप और चार एशियाई खेलों में खेलना एक अनूठी उपलब्धि है। ’अन्ना‘ धनराज पिल्लै को भारत के लिए विश्व मंच और एशिया में सभी में चार -चार बड़े हॉकी टूर्नामेंट खेलते देख कर ही भारत के 36 बरस के गोलरक्षक पीआर श्रीजेश ने उनकी तरह ही बचपन में भारत के लिए हॉकी खेलने का आगाज कर उनके नक्शे कदम पर चल कर ही ऐसा करने का सपना संजोया था। श्रीजेश अपने इस सपने को करीब करीब पूरा करने के साथ अंतर्राष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कहने से बेहद खुश भी हैं। इस बात का खुलासा श्रीजेश ने देशबंधु ravivardelhi.com के सवाल के जवाब में किया। यह भी संयोग है कि अपने ’अन्ना‘ धनराज की तरह 36 बरस के गोलरक्षक ‘दीवार‘ के नाम ख्यात श्रीजेश ने बतौर गोलरक्षक 16 नंबर की जर्सी पहन 18 बरस तक भारतीय सीनियर टीम के लिए चार ओलंपिक, चार विश्व कप और तीन एशियाई खेलों, तीन राष्ट्रमंडल खेल में खेलने का अपना सपना पूरा करने कर पेरिस में स्पेन को हरा कर भारत को लगातार दूसरी बार ओलंपिक में कांसा जिताने के साथ अंतर्राष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कह पूरा किया। हॉकी इंडिया ने श्रीजेश की विदाई के लिए बुधवार को बड़ा विदाई समारोह आयोजित किया। भारतीय हॉकी के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी खिलाड़ी के लिए इतने बड़े स्तर पर इस तरह का विदाई समारोह आयोजित किया। श्रीजेश के सम्मान में आयोजित समारोह में हॉकी में भारत के लिए डेढ़ दशक से ज्यादा के कामयाब करियर के लिए हॉकी इंडिया ने 25 लाख रुपये का चेक भी दिया। श्रीजेश भारत के लिए लगातार चार ओलंपिक खेलने वाले, दो ओलंपिक कांसा जीतने वाले तथा सबसे ज्यादा कुल 27 ओलंपिक खेलने वाले भारतीय गोलरक्षक हैं। श्रीजेश के बाद भारत के लिए सबसे ज्यादा तीन ओलंपिक और इसमें सबसे ज्यादा 20 मैच दद्दा के नाम से ख्यात गोलरक्षक शंकर लक्ष्मण के नाम हैं। इस मौके पर पूर्व कप्तान हरबिंदर सिंह, अजितपाल सिंह, अशोक दीवान, मीर रंजन नेगी, जगबीर सिंह, रोमियो जेम्स मोहिंदर पाल सिंह, हरेन्द्र सिंह जैसे भारत के कई पूर्व अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी, हॉकी इंडिया के अध्यक्ष पूर्व ओलंपियन दिलीप तिर्की भी मौजूद थे। साथ ही श्रीजेश का परिवार भी इस मौके पर मौजूद था और हॉकी इंडिया ने उनका स्वागत किया।

श्रीजेश के इस अनूठे और पहले विदाई समारोह में भारत की 2024 के पेरिस ओलंपिक में कांसा जीतने वाली पूरी 16 सदस्यीय टीम, चीफ कोच क्रेग फुल्टन, सहायक कोच शिवेंद्र सिंह सभी श्रीजेश की 16 नंबर की जर्सी पहन कर मौजूद थे। हॉकी इंडिया के महासचिव भोलानाथ सिंह ने इस विदाई समारोह मे श्रीजेश की 16 नंबर जर्सी को सीनियर भारतीय टीम के लिए रिटायर करने की घोषणा की। हॉकी इंडिया के महासचिव भोलानाथ सिंह ने श्रीजेश को भारतीय जूनियर पुरुष हॉकी टीम का कोच भी नियुक्त करने की घोषणा की। श्रीजेश ने माना की कि वह भारतीय जूनियर पुरुष हॉकी टीम के कोच की जिम्मेदारी संभालने को तैयार हैं। भोलानाथ सिंह ने कहा, ’ श्रीजेश पर अब जूनियर भारतीय हॉकी टीम के कोच के रूप में16 नंबर की जर्सी में जूनियर श्रीजेश तैयारी करने की जिम्मेदारी रहेगी।‘

आधुनिक भारतीय हॉकी के भगवान के नाम से पुकारे जाने वाले श्रीजेश ने भारतीय सीनियर टीम के लिए अपनी इस लंबी यात्रा पर कहा, ’ मुझे हॉकी के इस 18 बरस लंबे उतार चढ़ाव वाले सफर में अपने परिवार, अपने हॉकी उस्तादों, पूर्व कप्तान सरदार, मनप्रीत सिंह और मौजूदा कप्तान हरमनप्रीत सिंह का पूरा साथ मिला। मैंने हॉकी मैदान पर भारत के लिए खेले हर पल का लुत्फ उठाया। मुझे अपने ’दूसरे परिवार‘ भारतीय हॉकी टीम की कमी बहुत अखरेगी। शुरू में हॉकी में मैंने दद्दा हॉकी के जादूगर ध्यानचंद का नाम ही सुना था। मैं देश में केरल से आता हूं जहां बहुत बच्चे हॉकी नहीं फुटबॉल खेलते हैं। फिर भी मैंने 12 बरस की उम्र में हाथ में हॉकी क्या थामी यह फिर कभी छूटी ही नहीं। हॉकी हाथ में थामते ही नया विश्वास आ जाता है।

धनराज को मैं ’अन्ना‘ मानता हूं और उनकी तरह चार ओलंपिक, चार विश्व कप, चार एशियाई खेलों का सपना संजोया था और इसे मैं करीब करीब पूरा करने में सफल रहा। मैं ’अन्ना‘ धनराज से बस एक एशियाई खेल कम खेला। मैं बतौर गोलरक्षक भारतीय गोलरक्षकों में एड्रियन डिसूजा से और नीदरलैंड के जेप स्टॉकमैन से बहुत प्रभावित रहा। मैं भारत की दो एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने और दो ओलंपिक में कांसा जीतने वाली टीम का सदस्य रहा।मुझे बस मलाल यह रहा गया कि मैं चार विश्व कप में भारत के लिए खेलने के बाद पदक के करीब पहुंचने के बाद उसमें उसे पदक जिताने में कामयाब नहीं हो सका। मुझे पूरा भरोसा है कि हमारी नौजवानों से सज्जित टीम अब 2026 में विश्व कप में मेरे पदक जीतने को अधूरे सपने को पूरा करने के साथ 2028 के ओलंपिक में इस बार के कांसे के रंग को और चमकदार करने में कामयाब रहेगी। बेशक भारत में क्रिकेट ज्यादा लोकप्रिय है, लेकिन हमारी भारतीय टीम के लगातार दो बार कांसा जीतने से देश में अब ज्यादा नौजवान हॉकी खेलने को प्रेरित होंगे। मैंने सुबह शाम पिछले करीब दो दशक से हॉकी खेली है। भारत के स्पेन के खिलाफ ओलंपिक में कांस्य पदक मैच से पहले हरमनप्रीत सिंह ने मुझे याद दिलाया कि मेरा यह आखिरी मैच और मैंने उनसे कहा था कि खेलूंगा भी ऐसे ही। मैं ओलंपिक में पदक के साथ हॉकी को अलविदा कहना चाहता था और ऐसा करने में सफल रहा। मैदान पर मैं पीछे रहकर बतौर गोलरक्षक बराबर अपने साथियों को गरियाता भी था लेकिन इसमें कभी कोई दुर्भावना नहीं रही। जब टीम के पिछड़ने पर मुझे चीफ कोच ने मैदान से बाहर बुलाया तो मैंने कभी इसका बुरा नहीं माना क्योंकि हमारी टीम का मकसद तब गोल कर बराबरी पाना अथवा जीतना होता है। मैदान से बाहर आने पर मैं भी कोच की तरह खिलाड़ियों का मार्गदर्शन कर उनका हौसला बढ़ाता था। मैंने भारतीय जूनियर पुरुष हॉकी टीम के कोच की जिम्मेदारी इसलिए संभाली क्योंकि मैं अब अपने लंबे अनुभव को भारत के नौजवान खिलाड़ियो के साथ बांटना चाहता हूं।‘

हॉकी इंडिया के अध्यक्ष दिलीप टिर्की ने कहा, ’यह श्रीजेश की हॉकी से विदाई नहीं बल्कि उनके भारत के लिए 18 बरस तक हॉकी खेल कर हासिल करने और भारतीय हॉकी के लिए खेलकर हासिल करने का जश्न है। श्रीजेश ने भारतीय हॉकी को जो दिया उसके लिए उन्हें आधुनिक भारतीय हॉकी का भगवान कहा जाना चाहिए। हम श्रीजेश के भारतीय हॉकी में अहम बड़े योगदान के लिए उनका आभार जताते हैं। हम श्रीजेश को उनके नए अवतार में देखना चाहते हैं।‘

शंकर लक्ष्मण की तरह भारत के सर्वश्रेष्ठ गोलरक्षक श्रीजेश : अशोक दीवान

भारत की 1975 का विश्व कप जीतने वाली टीम के गोलरक्षक अशोक दीवान ने कहा, ’भारत के लिए 18 साल से ज्यादा और लगातार चार ओलंपिक खेलना और दो में लगातार टीम को कांसा जिताना वाकई बहुत बड़ी उपलब्धि है। वह लगातार तीन ओलंपिक खेलने वाले और दो स्वर्ण और एक में रजत पदक जिताने वाले शंकर लक्ष्मण की तरह भारत के सर्वश्रेष्ठ गोलरक्षक हैं। वह भारतीय टीम की बराबर मजबूत दीवार रहे। वह आज की हॉकी के भारत ही नहीं दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गोलरक्षक हैं। श्रीजेश के संकट में धैर्य का जवाब नहीं हैं।

मॉडर्न हॉकी के शीर्ष गोलरक्षण हैं श्रीजेश: रोमियो जेम्स

1984 के ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम के गोलरक्षक रह रोमियो जेम्स ने कहा, ‘2008 में जब हरेन्द्र सिंह के भारतीय टीम के कोच रहते मैं सहायक कोच था तो तब श्रीजेश हमारी भारतीय टीम के गोलरक्षक थे। मेरी राय में श्रीजेश मॉडर्न हॉकी के शीर्ष गोलरक्षक में एक हैं। शंकर लक्ष्मण भारत के सर्वश्रेष्ठ गोलरक्षक रहे। उनके बाद एबी सुबैया के बाद श्रीजेश भारत के सर्वश्रेष्ठ गोलरक्षक है।श्रीजेश की बतौर गोलरक्षक मुस्तैदी और प्रतिभा लाजवाब रही।‘

श्रीजेश की ताकत थी उनका खुद पर भरोसा : नेगी

1982 के एशियाई खेलों में भारत के गोलरक्षक रहे मीर रंजन नेगी ने कहा, ’श्रीजेश भारत ही नहीं आज के जमाने के दुनिया के निर्विवाद रूप से सवश्रेष्ठ गोलरक्षक में से एक हैं। श्रीजेश की ताकत थी उनका अपना खुद पर भरोसा और दबाव में अपने साथियों से भी बेहतरीन प्रदर्शन कराना। श्रीजेश के हॉकी को अलविदा कहने से भारत के लिए उनकी कमी को पूरा करना बड़ी चुनौती होगा।