गोविन्द ठाकुर
“…लालू प्रसाद मॉडल से अलग दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने एक नया मॉडल को ईजाद किया.. चाहे जो भी हो जाय इस्तिफा नहीं देना है बसर्ते जेल से ही सरकार क्यों ना चलानी पड़े.. सही भी है अगर हेमंत और नीतीश की तरह केजरीवाल भी किसी को कुर्सी दे देते तो क्या होता.. दिल्ली में भी एक चंपई खड़ा हो जाता.. और जो दिल्ली की राजनीति है यह संभव हो जाता… केजरीवाल ने पत्नी सुनीता को भी कुर्सी नहीं दी इससे साथियों में असंतोष होता… आज देख सकते हैं कि सरकार गिराने के लाख कोशिश के बाद भी केजरीवाल सरकार कायम है… “
लालू प्रसाद मॉडल से अलग एक नया मॉडल अरविंद केजरीवाल ने विकसित किया है। वे राजनीतिक इतिहास में बहुत रूचि रखने वाले नेता हैं। उनको पता है कि मुख्यमंत्री या पार्टी प्रमुख के लिए किसी व्यक्ति पर भरोसा करना कितना मुश्किल है। साथ ही उनको संवैधानिक व्यवस्था के लूपहोल्स का भी पता है। तभी उन्होंने किसी हाल में इस्तीफा नहीं देने का फॉर्मूला बनाया। दिल्ली की शराब नीति से जुड़े मामले में उनको पहले ईडी ने गिरफ्तार किया और फिर सीबीआई ने गिरफ्तार किया लेकिन उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया। सोचें, झारखंड के राजभवन में हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और राजभवन में ही ईडी ने उनको गिरफ्तार कर लिया। लेकिन केजरीवाल ने ऐसा नहीं किया
दूसरी पार्टियों ने इस तरह का फॉर्मूला मंत्रियों के मामले में लागू किया। जैसे ममता बनर्जी ने अपने कई मंत्रियों को गिरफ्तारी के बाद लंबे समय तक मंत्री बनाए रखा। एमके स्टालिन ने भी किया और उद्धव ठाकरे की सरकार ने भी किया। कुछ समय तक केजरीवाल ने भी सत्येंद्र जैन के मामले में किया। मुख्यमंत्री के मामले में इस फॉर्मूले का इस्तेमाल पहली बार केजरीवाल ने ही किया। उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया तो कोई उनको हटा नहीं सकता है। आगे राज्यों के मुख्यमंत्री खास कर प्रादेशिक पार्टियों के नेता लालू प्रसाद और अरविंद केजरीवाल दोनों मॉडल का ध्यान रखेंगे। वैसे भी केजरीवाल इस मामले में सबसे चतुर हैं। उन्होंने अपने लिए कोई खतरा कभी पैदा नहीं होने दिया। पार्टी के पहला चुनाव जीतते ही उन्होंने तमाम उन नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया, जो उनके नेतृत्व के लिए चुनौती बन सकते थे। उन्होंने योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास, प्रोफेसर आनंद कुमार आदि सबको पहले ही बाहर कर दिया।