राजद्रोह कानून का विकल्प खोजना ही होगा

सुशील दीक्षित विचित्र

राजद्रोह कानून की प्रासंगिकता पर इस समय मंथन चल रहा है | सुप्रीम कोर्ट ने कानून पर रोक लगाकर एक तरह से विधायिका से टकराव के दरवाजे खोलने की ओर कदम बढ़ा दिया है | केंद्रीय क़ानून मंत्री किरन रिजजू कोर्ट के इस फैसले को लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन मानते हैं क्योंकि सरकार ने कोर्ट में कहा था कि वह कानून पर पुनर्विचार करने को तैयार है | जबकि अदालत ने सरकार की दलील पर बिना विचार किये कानून पर तत्काल प्रभाव से रोक का फैसला सुना दिया | पूरा विपक्ष ख़ासकर कांग्रेस हमेशा की तरह केंद्र सरकार पर हमलावर है | चूँकि मोदी सरकार कानून के पक्ष में नहीं है तो खिलाफ जाती भी नहीं दिखती इसलिए कांग्रेस खुलकर कानून के विरोध में आ गयी | जबकि राजद्रोह कानून की धाराओं को कांग्रेस के युग में ही सख्त किया गया और इंदिरा गांधी ने 124 A को संज्ञेय अधिकार घोषित किया था |

केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजजू ने एक कार्यक्रम में राजद्रोह कानून पर रोक लगाए जाने के कोर्ट के फैसले पर पूछे गए सवाल के जबाब में कहा था कि किसी को लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए | इस पर पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने उन्हें नसीहत देते हुए कहा कि क़ानून मंत्री को मनमाने ढंग से लक्ष्मण रेखा खींचने का अधिकार नहीं है | ऐसे कानूनों को किताब में नहीं रहने दिया जा सकता जो मौलिक अधिकारों का हनन करने वाले हो | केंद्रीय कानून मंत्री रिजिजू ने जबाब में कहा कि , इसीलिए नेहरू पहला संशोधन लाए और श्रीमती इंदिरा गांधी ने धारा 124 A को संज्ञेय अपराध बनाया। इसी कारण अन्ना आंदोलन और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों के दौरान लोगों को उत्पीड़न झेलना पड़ा और गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा। यह ट्विटर पर लड़ी जाने वाली लड़ाइयां है | फिर भी यह कहा जा सकता है कि किसी भी मामले पर मोदी सरकार विरोधी टिप्पणी करते समय कांग्रेस के नेता यह भूल जाते हैं कि उसी मामले में कांग्रेस के सात दशक के शासनकाल में कैसा रुख रहा ? आगर पी चिदंबरम को लगता है कि यह क़ानून असंवैधानिक है और अभिवक्ति की आजादी के खिलाफ है तो यह इल्हाम उन्हें आज क्यों हुआ ? तब क्यों नहीं हुआ जब वे खुद केंद्रीय मंत्री थे ?

यह ट्वीटर की लड़ाइयां है लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि किसी भी मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरते समय कांग्रेसी नेता यह भूल जाते हैं कि उनका इतिहास क्या है | ऐसे एक दो नहीं तमाम ऐसे मुद्दे है जिनको कांग्रेस शासन काल में ही मजबूती दी गयी लेकिन आज उन्हीं को लेकर जब कांग्रेस मोदी सरकार को घेरने का प्रयास करती है तो वह खुद ही घिरने लगती है | इसी को सेल्फ गोल करना कहते हैं जिसमें पिछले आठ वर्षों में कांग्रेसी नेता बहुत माहिर हो गए हैं | जिस तरह पी चिदंबरम सवाल उठा रहे हैं उससे भी यही लगता है है कि राजद्रोह क़ानून मोदी सरकार का बनाया हुआ है और केवल वह ही इसका इस्तेमाल कर रही है | कांग्रेस के कपिल सिब्बल खुद मामले में कानून विरोधी पक्ष के वकील हैं | हमेशा की तरह कांग्रेस यह दुष्प्रचार भी कर रही है कि मोदी सरकार कानून को निरस्त नहीं करना चाहती थी | राहुल गांधी इसे सच की जीत बताते हुए कह रहे हैं कि यह सच की जीत है | भाजपा नेता उनके हर ट्वीट पर उनके आमने वह आइना रख देते हैं जो कांग्रेस की तानाशाही को दिखाता है | राहुल गांधी से जब यह सवाल किया गया कि महाराष्ट्र , राजस्थान और छत्तीस गढ़ में धारा 124 A के सर्वाधिक मामले हो रहे हैं तो इसका कांग्रेस खेमें ने कोई जबाब नहीं दिया |

कांग्रेस भले ही आज इसको लेकर जीत का जश्न मना रही हो लेकिन असलियत यह है कि कांग्रेस ने ही इसे बनाये रखा और समय -समय पर इस कानून को और भी धारदार बनाने के लिए कठोर प्रावधान जोड़े गये | 1947 में जब देश आजाद हुआ था तो कई नेताओ ने कहा कि 1870 के राजद्रोह कानून को समाप्त कर दिया जाए | जवाहरलाल नेहरू इस पर राजी नहीं हुए | 1951 में जवाहर लाल नेहरू की सरकार अनुच्छेद 19(1)(A ) के तहत बोलने की आजादी को सीमित करने के लिए संविधान संशोधन लायी | इसमें अधिकार दिया गया कि आजादी पर तर्कपूर्ण प्रतिबंध लगाया जा सकता है | इंदिरा गांधी सरकार के दौरान 1974 में इस कानून को और भी सख्त किया गया | देशद्रोह को ‘संज्ञेय अपराध’ बनाया गया | इस कानून के तहत पुलिस को किसी को भी बिना वारंट के पकड़ने का अधिकार दे दिया गया |

कपिल सिब्बल ने अदालत में तर्क दिया कि इसका सरकारें दुरूपयोग करती हैं | जरूर दुरूपयोग किया जाता है | देश में अपनी सार्वभौमिक सत्ता बनाये रखने के लिए कांग्रेस ने स्वयं ही इसका दर्जनों बार दुरूपयोग किया | आपातकाल इसका बड़ा उदाहरण है | अदालतों ने भी इसके खिलाफ फैसले दिए लेकिन तब भी नेहरू युग से लेकर राहुल गांधी तक किसी ने इसमें बदलाव की जरूरत नहीं समझी | आजादी के बाद 1951 में तारा सिंह गोपी चंद मामले में पहली बार पंजाब हाईकोर्ट ने धारा 124 A को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध माना था | बिहार के केदारनाथ सिंह पर भाषण देने पर राज्य सरकार ने राजद्रोह का केस दर्ज किया | इस मामले में 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार की आलोचना कर देने भर से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता | दिवंगत पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ हिमाचल प्रदेश में देशद्रोह का केस दर्ज किया गया था | जून 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को निरस्त कर दिया था | तब सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ सिंह मामले का जिक्र करते हुए कहा था कि हर नागरिक को सरकार की आलोचना करने का हक है, बशर्ते उससे कोई हिंसा न भड़के |

निसंदेह सरकार की आलोचना भर राजद्रोह नहीं हो सकती लेकिन देश की आलोचना और उसके खिलाफ षड्यंत्र रचने वालों से क़ानून और सरकार कैसे निपटेगी ? दुरूपयोग तो हर कानून का होता है लेकिन उसे समाप्त करना विकल्प नहीं इसलिए हमारे सामने सवाल यह होना चाहिए कि राजद्रोह क़ानून का विकल्प क्या है ? मंथन भी इसी मुद्दे पर होना चाहिए कि यदि राजद्रोह कानून को समाप्त कर दिया जाए तो ऐसा कौन सा क़ानून लाया जाए जिससे राष्ट्र , राज्य के खिलाफ षड्यंत्र रचने वालों को न्यायिक ढंग से दंड दिलाया जा सके | इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि राजद्रोह के मामले में बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुईं लेकिन इसकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि पिछले आठ वर्षों में मोदी सरकार को अस्थिर करने , देश को गृहयुद्ध में झोंकने , भारत की अखंडता को चुनौती देने और इस या उस बहाने सड़क पर उतर कर हिंसा करने के जितने मामले आये उतने इससे पहले कभी नहीं आये | सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान पूर्वोत्तर भारत को शेष भारत से काट कर इस्लामिक राज्य बनाने की तक की दुःसाहसी कोशिश शरजील इमाम द्वारा की गयी | देश के नीतिनियंताओ और उनके विरोधियों को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत तमाम इस्लामी संगठनों के निशाने पर है | इन संगठनों के स्लीपर सेल भी बड़ी तादाद में हैं जिनके सहयोग से देश में हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया जाता है | लोकतंत्र के देश में जो चार पाये बताये जाते हैं , उनको यह ध्यान रखना होगा कि देश से बड़ा कोई नहीं , देश से ऊंचा कोई नहीं और देश हित से पहले कोई हित नहीं फिर चाहे मानवाधिकार हो चाहे कानून हो व खुद चारो पाये |

भले ही राजद्रोह क़ानून समाप्त कर दिया जाए लेकिन कोई ऐसा कानून अवश्य होना चाहिए जो देशद्रोहियों के खिलाफ कारगर ढंग से किया जा सके और जिसका दोषियों में भय भी हो | देशद्रोहियों को छुट्टा नहीं छोड़ा जा सकता | राजद्रोह जैसे कानून के बिना सरकारें कार्यवाही में लाचार हो सकती हैं और षड्यंत्रकारियों के मनोबल बढ़ सकते हैं | मौलिक अधिकार की आड़ में टुकड़े -टुकड़े गैंगों को बचाना आम नागरिकों के ज़िंदा रहने के मौलिक अधिकारों का हनन करना होगा | इसलिए विकल्प खोजना ही होगा ताकि षड्यंत्रकारियों की नहीं जनता के मौलिक अधिकारों की रक्षा हो सके और देश सुरक्षित हो सके क्योंकि देश ही यदि असुरक्षित होगा सब कुछ बेमानी ही माना जाएगा |