डॉ रघुवीर चारण
आज विश्व के हर क्षेत्र में तकनीक का बोलबाला है तकनीकी नवाचार ने पिछले कुछ वर्षों में दुनिया को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसने हमारे जीवन को सरल और अधिक उत्पादक बना दिया है वर्तमान तकनीकी परिदृश्य में सबसे आकर्षक विकासों में से एक एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस है इसमें स्वास्थ्य सेवा,अन्तरिक्ष और कृषि क्षेत्रों में क्रांति लाने की अपार क्षमता है।
हालही में आज़ादी के अमृतकाल की 78वी वर्षगाँठ के अवसर पर केंद्र सरकार द्वारा एआई आधारित राष्ट्रीय कीट निगरानी प्रणाली का शुभारंभ हुआ ।राष्ट्रीय कीट निगरानी प्रणाली एक डिजिटल पोर्टल है जिसका उद्देश्य किसानों और कृषि वैज्ञानिकों के मध्य समन्वय स्थापित कर बेहतर कीट प्रबंधन प्रदान करना इस पहल में मोबाइल ऐप और वेब पोर्टल शामिल है जिसमें वास्तविक समय का डेटा और उन्नत विश्लेषणो की मदद से ये ऐप सटीक कीट की पहचान,निगरानी और प्रबंधन की सुविधा प्रदान करेगा।
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि देश की आधी आबादी कृषि पर निर्भर है ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आज़ीविका का आधार है हालाँकि बढ़ती जनसंख्या खाद्यान की उच्च माँग से देश का कृषि क्षेत्र कई चुनौतियों से जूझ रहा है उनमें से जलवायु परिवर्तन ,मिट्टी की उर्वरता में कमी और कीटनाशकों से निपटने के लिए रासायनिक उर्वरक पर निर्भरता प्रमुख है बीते कुछ सालों में कृषि के बदलते स्वरूप से इस क्षेत्र में प्रोद्योगिकी अर्थात् आधुनिक तकनीक की माँग बढ़ी है जो खेती को आसान व सुलभ बनाकर दुगुनी उत्पादकता में सहायक है।
सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में नवाचार लाने के लिए समय- समय पर कई योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया इसमें कीट नियंत्रण,फ़सलों का विविधीकरण,सब्सिडी प्रदान करना और खाद्यान को सुरक्षित बाज़ार तक पहुँचाना शामिल है सरकार का लक्ष्य उत्पादन बढ़ाना, खेती की लागत घटाना प्राकृतिक खेती को बढ़ावा व जलवायु अनुकूल क़िस्मों का विकास करना है ।वर्ष 1988 में सर्वप्रथम एकीकृत कीट प्रबंधन कार्यक्रम की शुरुआत हुई जिसका उद्देश्य फसल की बुवाई से लेकर कटाई तक हानिकारक कीड़ो, एवं बीमारियों से बचाना तथा किसानों को एक से अधिक तरीकों को जैसे व्यवहारिक, यांत्रिक, जैविक तथा रासायनिक नियंत्रण इस तरह से क्रमानुसार यथायोग्य प्रयोग में लेना जिससे पर्यावरण नुक़सान कम से कम हो।
कृषि क्षेत्र में फ़सलों को कीटों से बचाना एक मुख्य चुनौती है पिछलें कुछ दशकों में कृषि के औद्योगिकीकरण से रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग अंधाधुँध होने लगा जिसके परिणामस्वरूप दूषित भूमि, मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव और पर्यावरण असंतुलन देखने को मिला अब वक्त है कीट उन्मूलन की बजाय कीट प्रबन्धन को बढ़ावा मिले हानिकारक कीटों से बचाव के लिए जैविक तरीक़ों को अपनाया जाए जैविक नियंत्रण विधि अर्थात् नाशीजीव के प्राकृतिक शत्रुओं की पहचान कर उसका संवर्धित पोषण करके कीटनाशकों पर छोड़ा जाता है जो केवल अपने लक्ष्य पर प्रहार करते हैं इनसे मनुष्य , पशु- पक्षियों और पर्यावरण पर कोई कुप्रभाव नहीं पड़ता।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय की कीट प्रबन्धन पर डिजिटल पहल यदि धरातल पर सही सिद्ध होती है तो भारतीय कृषि के नवाचार में ऐतिहासिक कदम होगा कीट नियंत्रण में मुख्य समस्या सटीक कीट की पहचान व उचित कीटनाशक का चयन और उसकी मात्रा का है किसानों को इसके बारे जागरूक कर समय पर अवगत कराने से फसलों की बर्बादी कम होगी किसानों की कीटनाशकों के प्रति आत्मनिर्भरता बढ़ेगी फ़सलों को बुवाई से लेकर कटाई तक रोगमुक्त वातावरण मिलेगा ।।