भारतीय अर्थव्यवस्था का नया प्रकल्प एमएसएमई कितनी ठोस स्थिति में ?

How solid is MSME, the new project of Indian economy?

मनोहर मनोज

एमएसएमई सेक्टर को भारतीय अर्थव्यवस्था का आगामी मेरूदंड बनाये जाने की बातें की जा रही है। सो इस बार बजट में सरकार द्वारा एमएसएमई सेक्टर को लेकर कई प्रोत्साहनों और स्कीमों तथा कई अन्य घोषणाओं की भरमार लगाई गई। पर देखा जाये तो अर्थव्यवस्था के विकास के मार्ग में एमएसएमई की राहें अभी भी आसान नहीं हैं । औद्योगिक प्लॉट, पूंजी, तकनीक, मशीनरी , प्रशिक्षण, कच्चे माल की आपूर्ति, बिजली, परिवहन, मार्केट आर्डर तथा सबसे उपर बड़े देशी विदेशी उद्योग से मिलने वाली प्रतियोगिता ये तमाम बाधाएं किसी भी छोटे कारोबारी के लिए बड़े कारोबारी से ज्यादा कठिन होती हैं । ऐसा देखा जाता है देश के अनगिनत छोटे उद्यमी कुछ सालों तक व्यवसाय कर बाद में उपरोक्त बाधाओं के आगे घुटने टेक देते हैं। अभी इस बार के बजट में एमएसएमई यानी छोटे, लघु व मध्यम उद्योग को आगामी 2047 तक विकसित भारत केे लक्ष्य का कर्णधार मानकर उन्हें प्रोत्साहन देने के हर संभव उपाय घोषित किये गए हैं। सरकार द्वारा दिये गए इन प्रोत्साहनो के पीछे कई कारक जिममेवार बताये जाते हैं। जैसे कि देश की बहुत बड़ी आबादी जिसमे युवाओं की करीब दो तिहाई हिस्सेदारी है , बेरोजगारी को लेकर स्वरोजगार पर अधिकाधिक संबल देने की सरकार की नयी नीति, बड़े पैमाने पर बेरोजगारों को कौशल विकास व इंटर्नशिप प्रदान कर निजी क्षेत्र को रोजगार देने के लिए प्रोत्साहित करने इन सभी में इनकी भूमिका बड़ी मानी जा रही है। दूसरा देश की अर्थव्यवस्था में उत्पादन, रोजगार, आमदनी, निर्यात , संतुलित क्षेत्रीय विकास तथा विकास के विकेन्द्रीकरण इन सभी को ध्यान में रखकर एमएसएमई अब सरकार द्वारा विकास की आगामी ब्यूह रचना का एक बेहद महत्वपूर्ण अवयव माने जा रहे है। यही वजह है कि अभी लघु मध्यम उद्योग को लेकर हो रहे विमर्श में अब कई नये पहलू जुड़ गए हैं। मसलन स्वरोजगार, स्टार्ट अप, कौशल विकास, सहकारी क्षेत्र उद्यमी, खाद्य प्रसंस्करण, रुफ टौप सोलर पैनल, हथकरघा, स्वसहायता समूह व लखपति दीदी, आदिवासी ग्राम विकास योजना, पीएम विश्वकर्मा, आवास विकास योजना इत्यादि कई शब्दावलियां,स्कीमें व वित्तीय योजना एमएसएमई के विराट इकोसिस्टम में समाहित कर दी गई हैं। इस बार के बजट में ये बात भलीभांति दृष्टिगोचर हुआ कि सरकार लघु मध्यम उद्योगों के लिए कच्चे माल, मशीनरी, फायनेंस, मार्केट, प्रशिक्षण और राजकोषीय प्रोत्साहन इन सभी सुविधाओं का एक बहुस्तरीय प्रोत्साहन पैकेज शुरू करने को लेकर काफी गंभीर है। इसके तहत सरकार द्वारा एमएसएमई का दायरा काफी विस्तृत कर दिया गया है। जैसे कि छोटे उद्योग के तहत निवेश सीमा मौजूदा 1 करोड से बढाकर 5 करोड़, लघु उद्योग की निवेश सीमा मौजूदा 10 करोड़ से बढाकर 50 करोड तथा मध्यम उद्योग की निवेश सीमा मौजूदा 50 करोड से बढाकर 250 करोड़ कर दी गयी है। इस क्रम में नयी घोषणा ये है कि सेवा और विनिर्माण उद्योग को उनकी निवेश सीमा के मुताबिक पूरे तौर पर एमएसएमई के मातहत रख दिया गया है जिसकी सारी सुविधाएं और प्रोत्साहन इन्हें प्रदत्त होंगी। तीसरी महत्वपूर्ण घोषणा ये है कि एमएसएमई सेक्टर को दिये गए सभी सप्लाई आर्डर का भुगतान 15 दिन तथा अधिकतम 45 दिन के अंदर करना होगा अन्यथा आर्डर देने वाले फर्म की टीडीएस कर देनदारी जब्त कर ली जाएगी। चौथी बात ये की गई है कि किसी मैन्युफैक्चरिंग एमएसएमई को मशीनरी खरीदने के लिए क्रेडिट गारंटी लोन बिना किसी कोले टरल या थर्ड पार्टी की गांरटी के प्राप्त होंगी।

इसी क्रम में मोदी सरकार की बहुप्रचारित मुद्रा लोन योजना में दी जाने वाली अधिकतम ऋण सीमा दस लाख से बढाकर बीस लाख कर दी गई है। इस लोन को तीन श्रेणियों मसलन शिशु किशोर व्यस्क में बांटा गया है जिससे अलग अलग लेवल के स्वरोजगार व्यवसाय को बढावा दिया जा सके।
एमएसएमई को लेकर इन सारे उपायों पर एक सरसरी निगाह डाली जाये तो इसमें दिक्कत बस ये दिखता है कि एमएसएमई सेक्टर को लेकर अभी सरकार के पास एक नहीं अनेक चैनल व एजेंसियां विराजमान हो गई है, लेकिन इनमे आपस में तादात्मय स्थापित होना बाकी है। मिशाल के तौर पर एमएसएमई मंत्रालय के अलावा केंद्र सरकार के कौशल विकास मंत्रालय, युवा विकास मंत्रालय,खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय, सहकारिता मंत्रालय, योजना मंत्रालय सभी एक तरह से छोटे उद्योगों के नोडल एजेंसी के बतौर कार्यरत हैं। इन के अलावा श्रम मंत्रालय व वित्त मंत्रालय अपनी अपनी तरफ से परामर्श , दिशा निर्देश व प्रोत्साहन प्रदान करते रहते हंै। राज्य सरकारों की भी अपनी संस्थाएं और स्कीमें अलग है। ऐसे में एमएसएमई में पंजीयन से लेकर तमाम सरकारी सहयोग व सुविधाओं का एक विंडो बनाया जाना बेहद महत्वपूर्ण है।

यदि हम देश में छोटे, लघु व मध्यम उद्योग की एक पूरी तस्वीर का अवलोकन करें तो देश में पंजीकृत एमएसएमई उद्योगों की कुल संखया 3.64 करोड़ है जिनके मातहत करीब 16 करोड़ लोगों की आजीविका चल रही है और यह हमारी कुल श्रमशक्ति का करीब 40 फीसदी है। इनमे देश के मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के कुल उत्पादन का 38 फीसदी तथा निर्यात क्षेत्र का 45 फीसदी योगदान दिया जाता है। हमारे सकल घरेलू उत्पाद में इसका कुल योगदान देखें तो यह 30 फीसदी है।

बताते चलें कि 1990 के दशक में नयी आर्थिक नीति के बाद यह बहस तेजी से छिड़ा कि उदारीकरण व भूमंडलीकरण से देश के बचे छोटे मध्यम उद्योग बड़े उद्योग के साये तले मिट जाएंगे या उनकी प्रतियोगिता में नहीं टिक पाएंगे। लेकिन छोटे, लघु व मघ्यम श्रेणी के उद्योगों ने देश की अर्थव्यवस्था में अपनी पहचान बनाये रखी बल्कि उत्पादन, रोजगार और निर्यात में भी अपनी महत्वपूर्ण हिस्सेदारी बनाये रखी। घरेलू औद्योगिक पटल पर जहां बड़े उद्योग के मातहत मध्यम उद्योग भी टिके रहे, मध्यम उद्योग के मातहत लघु उद्योग भी टिके रहे और लघु उद्योग के मातहत छोटे उद्योग भी टिके रहे। सेवा व्यापार क्षेत्र में यदि शॉपिंग मॉल आए तो छोटे किराने दूकानदार भी अस्तित्व में रहे।

नयी आर्थिक नीति के उपरांत उद्योगों में जिस इन्सपेक्टर राज का बारंबार जिक्र किया जाता था, कहीं न कहीं देश के लघु मध्यम उद्योग ही उसके ज्यादा भुक्तभोगी बनते थे। ये स्थिति अभी भी पूरे तौर पर समाप्त नही हुई है। आज भी अनेकानेक सेवा उद्योग में अलग अलग एजेंसियो की रूलिंग व दिशा निर्देशो की भरमार कायम हैं, बहुस्तरीय लाइसेंसिंग प्रणाली विराजमान है और इंसपेक्टर राज के साथ स्थानीय पुलिस की हफतावसूली भी बदस्तुर कायम है। बताते चले जब सरकार ने रियल इस्टेट क्षेत्र को लेकर ये स्पष्ट आदेश दिया कि इसमें पुलिस की दखलंदाजी निषिद्ध होगी तब जाकर यह क्षेत्र उत्पीडऩ से बचा।

कहना होगा की मोदी सरकार की मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सीमम गवर्ननेन्स अभी भी जमीन पर नहीं उतर पाई है । हालंाकि पिछले तीन दशक में लघु मध्यम उद्योग एक बार से सरकार की प्राथमिकता में अपनी महत्ता हासिल कर रहे है। उममीद है कि इस बार की बजट घोषणा में एमएसएमई सेक्टर को लेकर की गईं नयी कानूनी व नीतिगत पहल भारत की अर्थव्यवस्था में इसे एक नया स्वरूप प्रदान करने में मददगार साबित होगी।