प्लूटो के ‘ग्रह-प्रवेश की संभावनाएं’

Pluto's 'planetary entry possibilities'

शिशिर शुक्ला

हाल ही में ग्रहों की नवीन परिभाषा को मान्यता दिलाने के प्रयासों की वजह से हमारे सौरमंडल का बौना ग्रह अर्थात प्लूटो एक बार पुनः चर्चा का विषय बना हुआ है। नई परिभाषा को संस्तुति मिल जाने के उपरांत हमारे सौरमंडल में ग्रहों की संख्या आठ से बढ़कर पुनः नौ हो जाएगी। ब्रह्मांड में कितने आकाशीय पिंड हैं, इसका अंदाजा लगा पाना बेहद मुश्किल कार्य है। और तो और, स्वयं ब्रह्मांड कितना बड़ा है इस प्रश्न का उत्तर भी फिलहाल हमारे वैज्ञानिकों के पास नहीं है। कारण यह है कि उत्पत्ति के क्षण से ही ब्रह्मांड में लगातार प्रसार हो रहा है, और ब्रह्मांड का यह फैलना थमने का नाम नहीं ले रहा है। ब्रह्मांड में असंख्य आकाशगंगाए हैं। एक आकाशगंगा में असंख्य तारे विद्यमान हैं। हमारी आकाशगंगा जिसे दुग्धमेखला के नाम से जाना जाता है, अगणित तारों को अपने में समाहित किए हुए हैं। सूर्य जो हमारे लिए ऊर्जा का सर्वप्रधान स्रोत है, इसी दुग्धमेखला का एक तारा है। वर्ष 2006 से पूर्व सूर्य के पास नौ ग्रह थे- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेप्चून एवं प्लूटो। 18 फरवरी 1930 को खोज के उपरांत प्लूटो को नवें ग्रह के रूप में मान्यता मिली। दरअसल उस वक्त किसी आकाशीय पिंड के ग्रह के रूप में परिभाषित होने के लिए जो मानक थे, प्लूटो उन पर खरा उतरता था। इन मानकों में मुख्यतः दो शर्तें थीं। पहला तो यह कि पिंड सूर्य (अथवा कोई भी तारा) की परिक्रमा करता हो एवं दूसरा यह कि उसके पास पर्याप्त गुरुत्वाकर्षण बल हो। किंतु 13 सितंबर 2006 को अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ की एक बैठक हुई जिसमें ग्रह की नवीन परिभाषा गढ़ी गई। इस नई परिभाषा में एक मानक और शामिल किया गया और वो यह कि कोई भी आकाशीय पिंड ग्रह तभी कहा जाएगा जबकि उसकी सूर्य के परित: कक्षा किसी अन्य ग्रह की कक्षा के साथ प्रतिच्छेद न करती हो। प्लूटो इस मानक पर खरा नहीं उतर सका क्योंकि उसकी कक्षा नेप्च्यून (वरुण) की कक्षा को काटती है। इस बैठक में खगोलीय पिंडों की एक नई श्रेणी को भी परिभाषित किया गया जिसे बौना ग्रह (ड्वॉर्फ प्लैनेट) कहा जाता है। प्लूटो, इरिस, सेरेस आदि को इसी श्रेणी के अंतर्गत रखा गया।

2006 के बाद से प्लूटो के बौना ग्रह की श्रेणी में आ जाने के कारण सूर्य के ग्रहों की संख्या आठ रह गई। प्लूटो के ग्रह परिवार से निष्कासन ने अनेक विवादों को जन्म दिया। प्लूटो सूर्य से अत्यधिक दूरी पर होने के कारण इसे सूर्य की एक परिक्रमा करने में 247.68 वर्ष लगते हैं। सूर्य के करीब होने पर इसकी सूर्य से दूरी 4.4 अरब किलोमीटर एवं सूर्य से दूर होने पर 7.4 अरब किलोमीटर होती है। सूर्य का प्रकाश प्लूटो तक पहुंचने में पांच घंटे से भी अधिक समय लेता है। आकार की बात करें तो प्लूटो सौरमंडल के वर्तमान आठ ग्रहों में से सबसे छोटे ग्रह बुध से भी छोटा है। प्लूटो की कक्षा 120 अंश के कोण पर झुकी है जिस कारण सूर्य के परित: परिक्रमण करते समय प्लूटो पर जलवायु परिवर्तन की एक बड़ी मात्रा देखने को मिलती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्लूटो का अर्थ है-यम, और इसे मृत्यु का देवता माना जाता था। किंतु प्लूटो की ग्रह परिवार से सदस्यता भंग होने की प्रमुख वजह इसकी कक्षा का नेप्च्यून की कक्षा के साथ ओवरलैप करना ही था। प्लूटो को बौने ग्रह की संज्ञा दे दिया जाना एक विवाद का विषय बन गया जो आज तक जारी है। दरअसल नेप्च्यून की कक्षा के आगे एक पट्टी पड़ती है जिसमें ढेर सारे बर्फीले क्षुद्र ग्रह मौजूद हैं। इस पट्टी को कूपर बेल्ट के नाम से जाना जाता है। अपनी खोज के 76 वर्ष बाद तक प्लूटो को एक ग्रह ही माना जाता रहा। कारण यह था कि खोजे जाने के 62 वर्ष बाद तक प्लूटो कूपर पट्टी में ज्ञात एकमात्र पिंड था। इस वजह से प्लूटो को लेकर कोई विवाद एक लंबे समय तक खड़ा नहीं हुआ। किंतु तकनीकी की प्रगति ने वैज्ञानिकों को अपेक्षाकृत अधिक दूरी तक स्पष्ट देखा पाने में समर्थ बना दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि कूपर पट्टी में वर्ष 1992 में एक अन्य पिंड की खोज कर ली गई। धीरे-धीरे इन पिंडों की संख्या सैकड़ों तक पहुंच गई। वर्ष 2005 में इसी बेल्ट में इरिस नामक एक पिंड खोजा गया जो आकार में प्लूटो से बड़ा था। अब समस्या यह थी कि क्या इरिस को भी ग्रह की श्रेणी में रख लिया जाए। अनेक ऐसे प्रश्न उत्पन्न हुए जिनके हल हेतु वर्ष 2006 में इंटरनेशनल एस्टॉनोमिकल यूनियन के खगोलविदों को मीटिंग करके प्लूटो को ग्रह की श्रेणी से निष्कासित करने का निर्णय लेना पड़ा। इस मीटिंग के साथ ही दो पृथक मतों ने भी जन्म ले लिया, एक प्लूटो को ग्रह मानने के पक्ष में और दूसरा विपक्ष में। हाल फिलहाल प्लूटो को पुनः ग्रह का दर्जा दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। अगर ऐसा होता है तो खगोलिकी के क्षेत्र में व्यापक स्तर पर परिवर्तन परिलक्षित होंगे।