संजय सक्सेना
लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी इस समय काफी बुरे दौर से गुजर रही है।उसके वोट बैंक में जबर्दस्त गिरावट आई है तो पार्टी से जुड़े करीब-करीब सभी पुराने नेताओं ने बसपा का दामन छोड़ दिया है। एक समय था जब उत्तर प्रदेश में मायावती दलितों की सबसे बड़ी नेत्री हुआ करती थीं। दलित वोटों की ताकत के बल पर वह अन्य दलों से राजनैतिक सौदेबाजी भी कर लेती थीे,परंतु जब से मायवती ने समाज के अन्य वर्गो खासकर मुसलमानों के बीच अपना दायरा बढ़ाने की कोशिश शुरू की हैं तब से पार्टी के भीतर दलित नंबर दो की हैसियत बनकर रह गये थे। यह बात दलितों को अखरती भी थी,लेकिन दलित वोटरों ने माया से कभी बेवफाई की नहीं सोची। परंतु पिछले कुछ वर्षो से यह सिलसिला टूट गया है। दलित वोटर अपने फायदे के लिये कभी भाजपा को कभी समाजवादी पार्टी का दामन थामने लगे।
इस वर्ष हुए आम लोकसभा चुनाव में सर्वजन को साधकर सत्ता की मास्टर चाबी तलाशती रहीं मायावती को इस लोकसभा चुनाव ने पूरी तरह से संदेश दे दिया है कि दलित वोटों की नींव पर टिकी उनकी पार्टी की राजनीतिक जमीन अब काफी खोखली हो चुकी है। मायावती की यह चिंता अब उनके शब्दों के साथ बाहर आ रही है।लोकसभा चुनाव के बाद से बसपा प्रमुख ने पार्टी कार्यकर्ताओं को जो भी संदेश दिया है, उसमें ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय‘ की ही बात कही गई है, जबकि इससे पहले उनकी पार्टी की रणनीति और बसपा शासन का भी सूत्र सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय ही था। इससे माना जा रहा है कि वह अब अपने कोर वोटबैंक रहे बहुजन समाज को फिर से आकर्षित करने के प्रयास में हैं।
उधर, बसपा प्रमुख मायावती को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में फिर से राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया है।उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को दिए संदेश में बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय की बात तो की, लेकिन एक बार भी सर्वजन यानी सभी समाज-वर्गों का उल्लेख नहीं आया। हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, जम्मू-कश्मीर व दिल्ली में होने जा रहे विधानसभा चुनाव का उल्लेख करते हुए कार्यकर्ताओं से भी यही अपील की कि वे अपने-अपने राज्यों बसपा मूवमेंट व बहुजन अस्मिता के हित में पूरे जी-जान से लगे रहें। सिर्फ यही बैठक नहीं, बल्कि 11 अगस्त, 2024 को उत्तर प्रदेश इकाई के पदाधिकारियों के साथ बैठक में दस विधानसभा सीटों पर उपचुनाव लड़ने की घोषणा की, तब भी संदेश दिया कि बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय की नीति एवं सिद्धांत पर जनता का भरोसा फिर से जीतने का प्रयास लगातार जारी रखना है।यहां गौर करने वाली बात है कि उत्तर प्रदेश में जब बसपा की सरकार थी, तो सरकार सूत्र वाक्य था- सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय। इतना ही नहीं, मायावती अपनी बैठकों में भी इस सूत्र वाक्य को दोहराना नहीं भूलती थीं।
उदाहरण के तौर पर लोकसभा चुनाव परिणाम से पहले 23 मई 2024 को गौतम बुद्ध की जयंती पर मायावती द्वारा जारी संदेश में खुद कहा था कि बसपा ने उत्तर प्रदेश में चार बार अपनी सरकार सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय के आदर्श के आधार पर चलाई और समतामूलक समाज स्थापित करने का पूरा प्रयास किया।इसी तरह 2024 में ही एक जनवरी, 15 जनवरी और 20 जनवरी को दिए गए संदेश में भी मायावती ने सर्वजन हिताय की बात कही। इन बयानों पर गौर करें तो पता चलता है कि सर्वजन का सूत्र लोकसभा चुनाव परिणाम आने के पहले तक रहा और उसके बाद से सिर्फ बहुजन की रट है। आखिर क्यों? इसका संकेत लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद मायावती द्वारा बुलाई गई पहली राष्ट्रीय स्तरीय बैठक के संबोधन में मिलता है।उसमें उन्होंने स्पष्ट कहा था कि इस बार विरोधी पार्टियों द्वारा चुनाव में विशेषकर संविधान बचाओ जैसे मुद्दों को उठाकर जनता को गुमराह किया, उससे बसपा का जबरदस्त नुकसान हुआ है। मायावती को इस लोकसभा चुनाव से संकेत मिल गया है कि जिस तरह 2014 और 2019 के चुनाव में भाजपा ने बसपा के दलित वोटबैंक में सेंध लगाई, अब उसमें सपा और कांग्रेस भी बड़ी सेंध लगाती दिख रही हैं।