प्रो. नीलम महाजन सिंह
हरियाणा विधानसभा के सभी 90 सदस्यों के चुनाव के लिए 01 अक्टूबर 2024 को हरियाणा विधानसभा के चुनाव होने हैं। 4 October को मतों की गिनती की जाएगी व परिणाम 04 अक्टूबर 2024 को घोषित किए जाएंगे। इलेक्शन कमिशन ने, ‘चट मंगनी पट ब्याह’ वाली बात कर दी है! बेरे है? सभी राजनीतिक दलों में सरगर्मियां तेज़ हो गई हैं। ‘आया राम गया राम’ की ख़बरें रोज़ आ रही हैं। भाजपा के लिए मुख्य चुनौती है, कांग्रेस की वापसी को नियंत्रित करना है। 2024 के लोक सभा चुनावों में भाजपा ने 2019 से पांच सीटें खो डाली हैं। 2019 में भाजपा को 10 से सीटें प्राप्त हुईं।
हरियाणा राज्य में अनेक चुनौतियां हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने आगामी हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए संभावित उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा करने के लिए पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के आवास पर बैठक की है। भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी CEC) की बैठक 01 सितंबर को है। सीईसी (Central Election Committee) में भाजपा प्रमुख जे. पी. नड्डा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह समेत अन्य लोग शामिल हैं। केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, जो हरियाणा में भाजपा के चुनाव प्रभारी हैं व शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल खट्टर, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी व भाजपा हरियाणा की इकाई के अध्यक्ष, मोहन लाल बडोली राज्य से भेजे गए संभावित उम्मीदवारों के नामों को फाइनल स्वरुप दे रहे हैं। इस बार टिकट ना मिलने पर अनेक ‘निर्दलीय प्रत्याशी’ भी चुनाव लड़ेंगें। ‘कॉंग्रेस की किरण ने तो कमल का फूल चुन लिया है’। हुड्डा से परेशान हो कर किरण चौधरी ने यह निर्णय लिया। हरियाणा के नायक, चौधरी बंसी लाल की बहु को भी हुड्डा ने कॉंग्रेस छोड़ने को मज़बूर किया। वे भाजपा के लिए प्राचार भी करेंगीं। अभी कॉंग्रेस पार्टी में बहुत कशमाकश का समय चल रहा है । 2009 में मुख्यमंत्री की कतार में; बी.एस. हुड्डा का नाम छटे नंबर पर था। चौधरी बीरेन्द्र सिंह, हरियाणा मुख्यमंत्री के दावेदार थे। ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि भजन लाल भी फ़िर से मुख्यमंत्री बनेंगें। परंतु भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने मोती लाल वोहरा (जो हरियाणा प्रभारी थे व कॉंग्रेस कोषाध्यक्ष भी); और अहमद पटेल को मुट्ठी में कर लिया था। उनके ‘दो बार विवाहित बेटे’ दपिंदर सिंह हुड्डा जिन्हें ‘दीपू’ भी कहते हैं 2019 में रोहतक से चुनाव हार गये थे। हुड्डा पानीपत से पराजित हुए, फ़िर भी दीपू को, सोनिया गांधी की रहमत से राज्य सभा में नामांकित किया। ‘दीपू’ ही हरियाणा के राजकुमार हैं, बाकी सब भाड़ में जायें।
हुड्डा भी महाभारत के धृतराष्ट्र की तरह पुत्र-मोह में अंधे हैं। पापा को ‘दीपू हुड्डा’ को राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने का भूत सवार है? ‘भूपी हुड्डा’ गांधी परिवार की चाटुकारिता व झूठ का पुलिंदा तो हैं ही। उनके सभी साथी यही कहते हैं कि वो सभी का प्रयोग कर, नींबू का रस निचोड़ कर फेंक कर अपना रास्ता बनाने में माहिर है। हरियाणा की राजनीति में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC), भारतीय जनता पार्टी (BJP), इंडियन नेशनल लोकदल (INLD), जननायक जनता पार्टी (JJP) और शेर सिंह राणा द्वारा संचालित राष्ट्रवादी जनलोक पार्टी (RJP) राज्य की प्रमुख राजनीतिक पार्टियाँ हैं। 2009 में सोनिया गाँधी राजनीतिक रूप से परिपक्व नहीं थीं।
फ़िर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने लिए सोनिया गांधी, राहुल व प्रियंका गांधी की चाटुकारिता में प्रथम स्थान हासिल कर ही लिया था। विंसेंट जॉर्ज (V. George) भी हुड्डा के पक्ष में नहीं थे। अवश्यंभावी सभी कांग्रेसी दिग्गज नेताओं को इस ‘दुम-छल्ले-पन’ से आहत हो कर कॉंग्रेस से बाहर अपना भविष्य ढूँढने का प्रयास करना पड़ा। क्या हरियाणा में ‘कॉंग्रेस भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही है’? ख़ैर उन्होंने अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा पूर्ति करने के लिए सभी को ‘खुडडे लाइन’ कर दिया है। हालांकि 10 जनपथ में हुड्डा के अनेक दुश्मन भी थे फ़िर भी अनेक उद्योगपतियों व बिल्डर गुटों से वे पार्टी को दान-दक्षिणा देते रहते थे। उनके लिए हरियाणा का हित नहीं, ‘अपने राजकुमार’ की गद्दी ज़रूरी है। किसानों के लिए क्या किया भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने? किसान आंदोलन में हिस्सा तक नहीं लिया? पिछले 10 वर्षों के परिदृश्य पर नज़र डालें तो ज्ञात होगा कि इस अवधि में कांग्रेस के 10 से अधिक वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी को अलविदा कह दिया। वे भाजपा में शामिल हो गए व उन्होंने यह आरोप लगाया कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कारण ही उन्हें पार्टी छोड़ने पर मज़बूर होना पड़ा है। इन में प्रमुख राजनीतिक नेता हैं, राव इंद्रजीत सिंह, जिन्होंने कांग्रेस छोड़ कर भाजपा का दामन थामा। भिवानी से पूर्व सांसद, धर्मवीर, सोनीपत से सांसद रमेश कौशिक, करनाल से पूर्व सांसद अरविंद शर्मा ने भी कॉंग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा। कांग्रेस छोड़ने वालों में अशोक तंवर भी शामिल हैं, जिन्हें हरियाणा प्रदेश में पार्टी अध्यक्ष होने के बावजूद, भूपेंद्र सिंह हुड्डा से अपमानित हुए। अशोक तंवर तो युवा नेता हैं, क्या उन्हें आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए था? हुड्डा की ‘गुलाबी पगड़ी व अशोक तंवर की लाल पगड़ी गुटों’ ने उन्हें कार्य नहीं करने दिया। अंतत: अशोक तंवर ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया व वे भाजपा में शामिल हुए। इसी तरह प्रदेश में कांग्रेस के कद्दावर नेता चौ. बीरेंद्र सिंह कुछ समय पहले भाजपा में शामिल हुए व फ़िर अब वापिस कांग्रेस में आ गए हैं। हाल ही में भाजपा में शामिल होने वाले अन्य लोगों में कुलदीप बिश्नोई, पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा, जिन्होंने 2005 में, भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुख्यमंत्री रहते हुए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दक्षिणी हरियाणा के अवतार सिंह भड़ाना भी बीजेपी में आ गए हैं। क्या कारण है कि पूर्व कॉंग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने केवल भूपेंद्र सिंह हुड्डा को इतनी ढील दी है? ‘एजेएल’ (Associated Journals Limited) प्लॉट पुनर्आवंटन मामले में विशेष सीबीआई अदालत ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ आरोप तय कर दिए हैं। मामले से बरी होने की मांग करने वाली भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अदालत में याचिका खारिज कर दी गई है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) और 120-बी (आपराधिक साजिश में शामिल होना) तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(डी) के तहत आरोप तय किए गए हैं।
पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत ने ‘एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल)’ प्लॉट पुन:र्आवंटन मामले में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ़त में आरोप तय किए हैं। जब आरोप तय किए गए, तब हुड्डा अदालत में मौजूद थे। हुड्डा व कांग्रेस नेता स्वर्गीय मोती लाल वोरा, को मामले में आरोपी बनाया गया था। केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने दिसंबर 2018 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा व वोरा, जो ‘ऐजीएल’ के तत्कालिक अध्यक्ष थे, के खिलाफ पंचकूला में भूखंड के पुनः आवंटन में कथित अनियमितताओं के संबंध में आरोप पत्र दायर किया था। सीबीआई ने दावा किया है कि ‘ऐजीएल’ को भूखंड के पुनः आवंटन से सरकारी खजाने को ₹67 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। मुख्यमंत्री के रूप में, हुड्डा ‘प्राधिकरण के अध्यक्ष’ थे। ईडी ने पहले एक ब्यान में आरोप लगाया था कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने मई, 2008 से 10 मई, 2012 तक एजेएल द्वारा वर्ष 2014 में निर्माण पूरा करने तक उक्त भूखंड पर निर्माण के लिए तीन अनुचित विस्तार देकर ‘एजेएल’ के साथ पक्षपात किया। एजेंसी ने आरोप लगाया कि हुड्डा ने “अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करके ‘एजेएल’ को भूखंड आवंटित किया। 28 अगस्त, 2005 के आदेश के अनुसार, हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (HUDA) की आवश्यक शर्तों और नीतिगत उलंघन करते हुए, मूल दरों व ब्याज पर ‘एजेएल’ को पुनः आवंटन की आड़ में; ‘बेईमानी से उक्त भूखंड को नए सिरे से आवंटित किया गया’। ईडी ने 2016 में इस मामले में ‘मनी लॉन्ड्रिंग’ की आपराधिक शिकायत दर्ज की थी, जो सीबीआई की एफआईआर पर आधारित थी। इसमें हरियाणा की भाजपा सरकार के अनुरोध पर मामले की जाँच सीबीआई ने अपने हाथ में ले ली थी।यह हरियाणा सतर्कता ब्यूरो द्वारा दर्ज की गई आपराधिक एफआईआर पर आधारित थी। सच तो ये है कि सोनिया गांधी के राजनैतिक सलाहकार, स्वर्गीय अहमद पटेल ही कॉंग्रेस के सर्वे-सर्वा थे। उन्हें कोषाध्यक्ष होने के नाते ‘कॉंग्रेस का मनी बैग’ कहा जाता था। फ़िर ‘हरियाणा के प्रॉपर्टी डीलर” कहलाने वाले के पास तो पैसे की कोई कमी नहीं थी? बिल्डर माॅफिया ने ताबड़तोड़ बहु-मंजिले मॉल व निर्माण कार्य किये। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने खेती-बाड़ी की ‘अग्रिकल्चर, कृषि-भूमि को कमर्शियल’ कर बहुत राजकीय धन एकत्रित किया और ‘मोगेमबो (अहमद पटेल) खुश हुआ’। कांग्रेस में ‘एस-आर-के’ (SRK शेलजा, रणदीप सुरजेवाल व किरण चौधरी) समूह के भविष्य को उस समय गहरा झटका लगा, जब किरण चौधरी ने हाल ही में कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थामा। चौधरी बीरेंद्र सिंह इस समूह में शामिल हो गए हैं, जिसे अब ‘एस-आर-बी’ (SRB शैलजा, रणदीप, बीरेंद्र) समूह के रूप में जाना जाता है। वे हरियाणा कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट को चुनौती देने के लिए कॉग्रेस में फिर शामिल हो गए हैं। यह एक विनाशकारी नीति है कि ‘हरियाणा में कांग्रेस का मतलब: भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही है’ व कांग्रेस हाईकमान को उन पर ही भरोसा है। हरियाणा में हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में कुमारी शैलजा को छोड़कर सभी उम्मीदवार भूपेंद्र सिंह हुड्डा की पसंद के थे। कांग्रेस पांच सीटों पर चुनाव जीतने में सफल रही, जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटों पर हार गई थी। प्रदेश अध्यक्ष उदयभान तो मात्र नाम के लिए हैं। कांग्रेस में ‘एस-आर’ (शैलजा, सुरजेवाल) गुट के भविष्य का क्या होगा? कुमारी शैलजा भी सोनिया गांधी की बहुत करीबी हैं। परंतु उनमें विद्रोह की क्षमता नहीं है। हरियाणा कांग्रेस में ‘डेयरी गुट’ का मुकाबला करने के लिए चौधरी बीरेंद्र सिंह की भूमिका महत्वपूर्ण है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 2019 में बगावत का बिगुल फूंका था, व कहा था कि कांग्रेस भटक गई है, लेकिन वे पार्टी नहीं छोड़ेंगें। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने रोहतक से चुनाव हारा। 18 अगस्त, 2019 में खुद को ही मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित किया था। क्या बात है? ऐसा करते हुए हुड्डा ने नई पार्टी की घोषणा करने से परहेज़ किया। लेकिन उनके लहज़े व बागी तेवर से पता चलता है कि वे राज्य कांग्रेस प्रमुख के पद व पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार से कम वे किसी चीज़ पर समझौता नहीं करेंगें। उन्होंने रैली के दौरान अपने ‘व्यक्तिगत घोषणापत्र’ की घोषणा करते हुए चुनावों में भाजपा के खिलाफ़ मोर्चा संभालने का बीड़ा उठाया।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा, “आज की कांग्रेस किसी भी तरह से पहले की कांग्रेस जैसी नहीं है”। फ़िर हुड्डा व नरेंद्र मोदी की दोस्ती से कॉंग्रेस डर गई। क्या 80 वर्षीय भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस के गले की हड्डी बन गए हैं? उन्होंने 2005 से 2014 तक हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। पर मन तो फ़िर भी नहीं भरा ! गढ़ी – सांपला – किलोई से वे विधायक रहे हैं। हुड्डा ने रैली में कहा, “मैं कांग्रेसियों के परिवार से हूँ। मेरे दादा, सर छोटू राम; व मेरे पिता रणबीर सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे। हालांकि, अगर हरियाणा में भाजपा सरकार सोचती है कि वह इस आधार पर वोट बटोर सकती है, तो यह उसकी गलतफहमी है।” गीता भूकल, हुड्डा दल की विशेष प्रिय नेत्री है। फ़िर वे भी ‘परिवारवाद’ के अनुसार अपने बेटे दपिंदर हुड्डा को ही अपनी ‘रियासत’ की कमान देना चाहते हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा की हाल ही में दिल्ली में, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेताओं के साथ बैठक हुई है। सारांशार्थ यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हरियाणा में आगामी चुनावों में भजन लाल तो नहीं हैं पर उन्हीं के पदचिन्हों का अनुसरण करने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा सभी साम, दाम, दंड, भेद लगा कर पांसे फेंकेगें, ताकि 100 वर्ष तक वो ही हरियाणा की राजगद्दी पर राजतिलक लगाए। ‘वैसे मैने बेरा है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा, हुक्का, फुक्का, धन, ताकत सभी फूंके आ”, एक हरियाणवी महिला ने कहा। ऐसा ना हो कि कॉंग्रेस की जो हालात दिग्विजय सिंह ने मध्य प्रदेश में की, वो भूपेंद्र सिंह हुड्डा आगामी हरियाणा विधानसभा चुनावों में कर दें ! वैसे राजनितिक सत्ता में आने के लिए मर्यादा का कोई मापदंड नहीं है।