फ़िल्मी दुनिया से उच्चतम न्यायालय के न्याययमूर्ति तक सफर तय किया न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव ने

धर्मेंद्र मिश्र

वर्ष 1989 में एक फिल्म आयी थी, जिसका नाम था कानून अपना अपना I यह फिल्म अपने समय की एक हिट फिल्म थी I हालांकि फिल्म में दिलीप कुमार, संजय दत्त, नूतन, माधुरी दीक्षित, कादर ख़ान जैसे अपने समय के चर्चित फिल्म कलाकारों ने काम किया था, लेकिन फिल्म में पुलिस इंस्पेक्टर के किरदार के रूप में एक ऐसा कलाकार भी मौजूद था, जिसकी चर्चा तत्कालीन समय में आम जनता के बीच में ज्यादा नहीं हुई I पुलिस इंस्पेक्टर का किरदार निभाने वाला यह कलाकार बाद में वास्तविकता की दुनिया में कानून और न्याय के क्षेत्र में धूमकेतु के रूप में कुछ इस तरह से उभरा कि वह भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद तक पहुंच कर अपनी प्रतिभा का डंका बजवाने में सफल हुआ I

यहां प्रश्न यह उठता है कि यह कैसे संभव हो सकता हैं ? लेकिन ऐसा हुआ और फिल्म में पुलिस इंस्पेक्टर का किरदार निभाने वाले एल. नागेश्वर. राव ने बाद में वास्तविक दुनिया में सफलता के कदमों के साथ उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति पद को सुशोभित किया I न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव के अभिनय कौशल की यह सम्पूर्ण कहानी तीन दशक से ज्यादा समय के बाद गत शुक्रवार को उस समय आम जनता के सामने आयी, जब उनके सेवानिवृत्ति से पहले विदाई समारोह का आयोजन किया गया I उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (एससीबीए) द्वारा विदाई समारोह में यह तथ्य सामने आया कि कालेज में पढ़ाई के दौरान न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव थियेटर की दुनिया में सक्रिय थे I उन दौरान उनके चचेरे भाई फ़िल्मी दुनिया में निर्देशक के रूप में काम कर रहे थे I अपने चचेरे भाई के कहने पर न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव फिल्म ने इंस्पेक्टर की भूमिका के रूप में फिल्म में अभिनय किया था I बहुआयामी प्रतिभा के धनी न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव सिर्फ फ़िल्मी दुनिया तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि क्रिकेट की दुनिया में भी उन्होंने अपनी क्षमता को प्रदर्शित किया I विश्वविद्यालय टीम की ओर से खेलते हुए न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव ने 1982 में रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट में भी हिस्सा लिया था I

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की क्षमताओं की सराहना करते हुए विदाई समारोह में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन. वी. रमण ने कहा कि न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की गहन विश्लेषणात्मक कौशल और कार्य के प्रति जुनून को हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने कानून और संविधान की व्याख्या करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आंध्र प्रदेश के एक किसान परिवार से देश के शीर्ष अदालत तक बिना किसी गॉडफादर के न्यायमूर्ति राव की यात्रा कई युवा वकीलों और न्यायाधीशों को प्रेरित करेगी। दो कार्यकाल के लिए भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में नियुक्ति के दौरान उन्होंने देश में सबसे मेहनती और समर्पित एएसजी के रूप में अपनी छाप छोड़ी। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में, उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों में तर्क दिया। वह हैदर कंसल्टिंग के प्रमुख मामले में पेश हुए, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता अधिनियम की धारा 31 (7) की व्याख्या की। इसके अलावा आपराधिक मानहानि की संवैधानिकता से संबंधित सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ के प्रसिद्ध मामले में भी उन्होंने तर्कों को सामने रखा I कई अन्य हाई प्रोफाइल मामलों में पेश होने के साथ ही वह अपने समय में देश में सबसे अधिक मांग वाले अधिवक्ताओं में से एक थे I एक न्यायाधीश के रूप में, न्यायमूर्ति राव ने कानून की व्याख्या करने और कई उल्लेखनीय विचारों में संविधान की व्याख्या करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई ऐतिहासिक निर्णय लिए। वह अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता और मध्यस्थता केंद्र, हैदराबाद के संस्थापकों में से एक हैं।

जानकारी हो कि न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव उच्चतम न्यायालय के के इतिहास में सातवें ऐसे वकील थे, जिन्हें सीधे बार से पदोन्नत किया गया था I उनके पिता स्वर्गीय लवू वेंकटेश्वरलु गारू सामाजिक चेतना और समाज के प्रति प्रतिबद्धता के साथ एक कृषि-उद्यमी थे। उनके आदर्शों से प्रेरित होकर न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव ने अपने गांव गोद लिया और विकास एवं प्रगति के नए अध्याय लिखे I न्यायमूर्ति के रूप में उन्होंने 163 फैसले दिए हैं और 552 बेंचों का हिस्सा रहे हैं। न्यायमूर्ति राव आगामी 7 जून को सेवानिवृत्त होंगे। गत शुक्रवार को उनके कार्यकाल का अंतिम दिन था और इसी दिन से न्यायालय में प्रारम्भ हो चुके ग्रीष्मकालीन अवकाश के कारण उनकी विदाई समारोह का आयोजन किया गया था I विदाई समारोह में सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न न्यायाधीश और बार के सदस्य मौजूद रहे I

आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले के चिराला के रहने वाले न्यायमूर्ति राव ने गुंटूर के नागार्जुन विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई की और 1982 में आंध्र प्रदेश के बार काउंसिल में एक वकील के रूप में नामांकित हुए। दो साल तक गुंटूर जिला न्यायालय में कानून का अभ्यास करने के बाद, वह आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में स्थानांतरित हो गए और दिसंबर 1994 तक वहां रहे। जनवरी 1995 से मई 2016 तक, उन्होंने उच्चतम न्यायालय में एक वकील के रूप में अभ्यास किया और फिर एक वरिष्ठ अधिवक्ता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बने।