आत्महत्या नहीं है किसी भी समस्या का हल

Suicide is not the solution to any problem.

योगेश कुमार गोयल

दुनियाभर में तेजी से बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 10 सितम्बर को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से ‘विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस’ मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत ‘इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन’ (आईएएसपी) द्वारा 2003 में की गई थी। इन दिन एक पीले रंग के रिबन को प्रतीक के रूप में पहना जाता है, जो इस बात को फैलाने में मदद करने के लिए पहना जाता है कि आत्महत्या की रोकथाम के बारे में बोलने से लोगों की जान बचाई जा सकती है। इस दिवस को मनाने का प्रमुख उद्देश्य आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के व्यवहार पर शोध करना, जागरुकता फैलाना और डेटा एकत्रित करना है। दरअसल डब्ल्यूएचओ के मुताबिक दुनिया में हर 40 सैकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है यानी प्रतिवर्ष दुनियाभर में करीब आठ लाख लोग आत्महत्या के जरिये अपनी जीवनलीला खत्म कर डालते हैं, जिनमें से बड़ी संख्या में आत्महत्या के मामले 15 से 29 वर्ष के लोगों में होते हैं जबकि आत्महत्या का प्रयास करने वालों का आंकड़ा इससे बहुत ज्यादा है।

प्रतिवर्ष विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की एक थीम निर्धारित की जाती है। आत्महत्या रोकथाम दिवस की 2024 की थीम है ‘आत्महत्या पर कहानी बदलना’। इस थीम का उद्देश्य आत्महत्याओं को रोकने के लिए कलंक को कम करने और खुली बातचीत को प्रोत्साहित करने के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। लोगों में अवसाद निरन्तर बढ़ रहा है, जिसके चलते ऐसे कुछ व्यक्ति आत्महत्या जैसा हृदयविदारक कदम उठा बैठते हैं। लोगों में जीवन से निराश होकर आत्महत्या की बढ़ती दुष्प्रवृत्ति गंभीर चिंता का सबब बन रही है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में 79 फीसदी आत्महत्या निम्न और मध्यवर्ग वाले देशों के लोग करते हैं और इसमें बड़ी संख्या ऐसे युवाओं की होती है, जिनके कंधों पर किसी भी देश का भविष्य टिका होता है।

हालांकि बीते वर्षों में दुनियाभर में खुदकुशी की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं लेकिन भारत में आत्महत्याओं का आंकड़ा काफी चिंताजनक है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने वर्ष 2022 में भारत में आत्महत्या के मामलों को लेकर जारी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि वर्ष 2022 में भारत में कुल 170924 लोगों ने आत्महत्याएं की जबकि 2021 में भारत में 164033 लोगों ने आत्महत्या की थी। एनसीआरबी के मुताबिक आत्महत्या की घटनाओं के पीछे पेशेवर या कैरियर संबंधी समस्याएं, अलगाव की भावना, दुर्व्यवहार, हिंसा, पारिवारिक समस्याएं, मानसिक विकार, शराब की लत, वित्तीय नुकसान, पुराने दर्द इत्यादि मुख्य कारण हैं। आज छात्र अपनी शिक्षा एवं भविष्य को लेकर गहरे असमंजस में हैं। किसी को कैरियर या नौकरी की चिंता सता रही है तो कोई वित्तीय संकट से जूझ रहा है। तनाव के दौर में निजी रिश्तों में भी खटास बढ़ी है और आमजन में नकारात्मक विचारों का बढ़ता प्रवाह तथा उपरोक्त चिंताएं कई बार अवसाद का रूप ले लेती हैं, जिसके चलते कुछ लोग परेशानियों से निजात पाने के लिए आत्महत्या का खतरनाक रास्ता चुन लेते हैं।

जब कोई व्यक्ति ज्यादा बुरी मानसिक स्थिति से गुजरता है तो एकाएक अवसाद में चला जाता है और इसी अवसाद के कारण ऐसे कुछ लोग आत्महत्या कर लेते हैं, जिसका उनके परिवार के साथ-साथ समाज पर भी बहुत नकारात्मक असर पड़ता है। विशेषज्ञों के मुताबिक अवसाद और तनाव के कारण ही लोगों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है और जब व्यक्ति को परेशानियों से बाहर निकलने का कोई मार्ग नजर आता, ऐसे में वह आत्महत्या जैसा हृदयविदारक कदम उठा बैठता है। हालांकि जिन लोगों का मनोबल मजबूत होता है, वे प्रायः विकट परिस्थितियों से उबर भी जाते हैं लेकिन अवसाद के शिकार कुछ लोग विषम परिस्थितियों से लड़ने के बजाय हालात के समक्ष घुटने टेक स्वयं को मौत के हवाले कर देते हैं। मनोचिकित्सकों के अनुसार आत्महत्या करना काफी गंभीर समस्या है और आत्महत्या करने के पीछे अधिकांशतः अवसाद को ही जिम्मेदार ठराया जाता है, जो ऐसे करीब 90 फीसदी मामलों का प्रमुख कारण भी है लेकिन सभी आत्महत्याओं के लिए अवसाद को ही पूरी तरह जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। उनके मुताबिक आत्महत्या करने का विचार किसी इंसान के अंदर तब पनपता है, जब वह किसी मुश्किल से बाहर नहीं निकल पाता।

मनुष्य जीवन को संसार में सबसे अनमोल माना गया है क्योंकि हमारा यह जीवन एकमात्र ऐसी चीज है, जिसे हम दोबारा नहीं पा सकते। बहरहाल, यदि कभी जरूरत से ज्यादा तनाव अथवा किसी मानसिक बीमारी का अहसास हो तो तुरंत किसी मनोचिकित्सक से मिलकर अपनी परेशानियों के बारे में खुलकर बात करें। केन्द्र सरकार द्वारा अगस्त 2020 में एक मेंटल हैल्थ रिहैबिलिटेशन हेल्पलाइन (किरण हेल्पलाइन) नंबर भी जारी किया गया था, जिस पर कॉल करके ऐसी स्थिति में मदद या काउंसलिंग की मांग की जा सकती है। इसके अलावा भी कई सुसाइड हेल्पलाइन नंबर उपलब्ध हैं, जिनका उपयोग आत्महत्या की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए किया जा सकता है। लोगों में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता फैलाकर भी आत्महत्या जैसे मामलों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। किसी भी व्यक्ति के मन में आत्महत्या का विचार आए ही नहीं, ऐसा वातावरण तैयार करना परिवार के साथ-साथ समाज की भी बड़ी जिम्मेदारी है।