इंद्र वशिष्ठ
सीजीएचएस की त्री नगर स्थित डिस्पेन्सरी में मरीजों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। इस डिस्पेन्सरी में डाक्टर कितने संवेदनहीन है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि डाक्टर तो वातानुकूलित कमरे में बैठते हैं और मरीज को बाहर धूप में बैठा कर देखते हैं। एसी लगे कमरे में बैठे डाक्टर दीपक गुप्ता खिड़की में बनाए गए छोटे से झरोखे से बाहर बैठे मरीजों को देखते है। यानी मरीजों को डाक्टर अपने कमरे के अंदर अपने निकट बिठा कर नहीं देखता। डाक्टर अपने कमरे की खिड़की के बाहर रखे स्टूल पर बिठा कर मरीज़ को देखते हैं। मरीज का चेहरा भी खिड़की में से सही तरह डाक्टर देख ही नहीं सकते, तो उनकी बीमारी का सही अंदाजा भला कैसे लगा सकते हैं ? मरीज झरोखे से तो अपनी बीमारी के बारे में तसल्ली/ विस्तार से बता ही नहीं सकता। डाक्टर ने कमरे में पारदर्शी प्लास्टिक का पर्दा लगा रखा है। इसके बावजूद वह मरीजों को अंदर बिठा कर नहीं देखते। दरअसल कोरोना काल के दौरान यह व्यवस्था की गई थी। लेकिन इस डिस्पेन्सरी में अभी तक यह व्यवस्था जारी है। सर्दी, गर्मी, धूप, बरसात में मरीज इस स्टूल पर बैठ कर ही अपनी बीमारी के बारे में डाक्टर को बताने को मजबूर हैं।
त्री नगर के ओंकार नगर – सी की गली नंबर 37 में सीजीएचएस वेलनेस सेंटर है। इस डिस्पेन्सरी में दो डाक्टर तैनात हैं डाक्टर सरिता पंवार और डाक्टर दीपक गुप्ता। डाक्टर सरिता पंवार इंचार्ज है। वह तो बहुत ही कम संख्या में मरीजों को देखती हैं।
सीजीएचएस के अधिकारी अगर रिकॉर्ड की जांच करें तो, आसानी से यह पता चल जाएगा, कि डाक्टर सरिता और डाक्टर दीपक गुप्ता रोजाना औसतन कुल कितने- कितने मरीजों को देखते हैं।
डाक्टर सरिता पंवार द्वारा बहुत ही कम संख्या में मरीजों को देखने की वजह से डाक्टर दीपक गुप्ता के पास मरीजों की भीड़ लग जाती है। डाक्टर दीपक पर काम का बोझ बढ़ जाता हैं और मरीजों को भी काफ़ी समय लग जाता है। जिसकी वजह से खासकर बुजुर्गों और महिलाओं को परेशानी का सामना करना पड़ता हैं। हालांकि डाक्टर सरिता अपने कमरे में ही मरीज को देखती है। उन्होंने भी पारदर्शी प्लास्टिक का पर्दा लगा रखा है।
डिस्पेन्सरी के प्रशासनिक कार्य भी इंचार्ज डाक्टर को ही करने होते हैं। लेकिन उनका मुख्य कार्य तो मरीज को देखना ही है। मरीजों की संख्या ज्यादा होने पर तो इंचार्ज डाक्टर का यह कर्तव्य है कि वह पहले मरीजों को देखें। जिससे अकेले एक डाक्टर पर बोझ न पड़े और मरीजों को परेशानी ना हो।
इस डिस्पेन्सरी में इंडेंट वाली दवा सिर्फ बारह बजे तक ही दी जाती है। जबकि अन्य सभी डिस्पेन्सरी में पौने दो बजे तक इंडेंट वाली दवा दी जाती है।