वन नेशन, वन इलेक्शन: एक नए युग की शुरुआत या संघीय ढांचे पर प्रहार?

One Nation, One Election: The beginning of a new era or an attack on the federal structure?

प्रीति पाण्डे

भारत में चुनाव प्रक्रिया में एक नए युग की शुरुआत होने जा रही है, जिसका नाम है ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर रामनाथ कोविंद पैनल की सिफारिशों को मंजूरी दे दी। इसका मकसद लोकसभा के साथ सभी राज्यों के विधानसभा और स्थानीय निकायों का चुनाव कराना है। सरकार का कहना है कि इससे देश में चुनावों की गति और पारदर्शिता में वृद्धि होगी, लेकिन विपक्ष इसका विरोध कर रहा है, कहकर कि यह संघीय ढांचे पर प्रहार होगा।केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर रामनाथ कोविंद पैनल की सिफारिशों को मंजूरी दे दी। हालांकि सरकार का मकसद लोकसभा के साथ सभी राज्यों के विधानसभा और स्थानीय निकायों का चुनाव कराना है।लेकिन ये इतना भी आसान नहीं जितना सुनाई पड़ता है। इसे लागू करने के लिए सरकार को एक नहीं, बल्कि दो-दो संविधान संशोधन विधेयकों को पास कराना होगा जिसके तहत संविधान में कई बदलाव करने पड़ेंगे। जिस कमेटी ने ये सिफारिशें तैयार की उसमें गृह मंत्री अमित शाह समेत आठ सदस्य हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि 62 राजनीतिक दलों से संपर्क किये जाने की बात कही गई , इनमें 47 ने अपना जवाब दिया है. 15 राजनीतिक दलों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. पैनल की रिपोर्ट के मुताबिक, 32 राजनीतिक दलों ने एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव का एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव का समर्थन किया है. जबकि 15 ने इसका विरोध किया है । राष्ट्रीय दलों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP), बहुजन समाज पार्टी (BSP) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने प्रस्ताव का विरोध किया जबकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) ने इसका समर्थन किया ।क्या रहेगी एक साथ चुनाव की प्रक्रिया देश में एक साथ चुनाव को दो चरणों में कराया जाएगा. पहले चरण में लोकसभा, विधानसभा चुनाव कराए जाने की सिफारिश की गई है जबकि दूसरे चरण में 100 दिन बाद नगर निकाय और पंचायत चुनाव कराए जाने का प्रावधान की सिफारिश है ।

सभी चुनाव के लिए एक ही वोटर लिस्ट तैयार की जाए जिससे अलग-अलग वोटर लिस्ट तैयार करने का झंझट खत्म हो जाएगा । वर्तमान में लोकसभा-विधानसभा के लिए अलग और नगर निकाय-पंचायतों के चुनाव में अलग वोटर लिस्ट तैयार होती है. वहीं अगर केंद्र या राज्य सरकार में से कोई अपना बहुमत खोते है या भंग की स्थिती होती है तो ऐसी स्थिति में बची हुई अवधि के लिए ही चुनाव कराए जाएं यानी पूरे पांच साल की सरकार फिर से नहीं चुनी जाएगी ।लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने के साथ ही राज्य विधानसभाओं के चुनाव भी कराए जाने पर विचार किया जाए अगर किसी विधानसभा का चुनाव किसी कारणवश एक साथ नहीं हो पाता है तो बाद की तारीख में होगा, लेकिन कार्यकाल उसी दिन समाप्त होगा जिस दिन लोकसभा का कार्यकाल का समाप्त हो. पूरे देश में विस्तृत चर्चा शुरू की जाए. एक कार्यान्वयन समूह का गठन किया जाए जानिए कौन से दल कर रहे विरोध ?इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल जैसे दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन का खुलकर विरोध किया है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इसे साजिश करार दिया है. वहीं आप का कहना है कि इसके जरिए बीजेपी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहती है.तृणमूल सुप्रीमो और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे संघीय ढांचे के विरुद्ध बताया है. केरल के सीएमन पिनराई विजयन और एआईएमआईएम प्रमुख असुद्दुदीन औवेसी ने कहा कि इसके जरिए सरकार क्षेत्रिय पार्टीयों को खत्म करना चाहती है । जिस तरह से विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार के खिलाफ हमलावर है, उससे संसद के शीतकालीन सत्र में इस मुद्दा के गर्माने की उम्मीद जताई जा रही है. हालांकि वन नेशन वन इलेक्शन पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति के प्रस्ताव को केंद्रीय केबिनेट ने मंजूरी दे दी है. लिहाजा सरकार बिल को शीतकालीन सत्र में संसद से पास कराएगी, जिसके बाद यह कानून बन जाएगा और इसके साथ ही देश में एक साथ चुनाव कराने के द्वार भी खुल जाएंगे. यदि बिल पास हो जाता है और एक देश एक चुनाव लागू किया जाता है तो ऐसे में सभी विधानसभा चुनाव 2029 के लोकसभा चुनाव के साथ होंगे तो कई राज्यों में इसका असर पड़ेगा.22 राज्यों में पहले कराने पड़ेंगे चुनावअगर देश में वन नेशन वन इलेक्शन लागू होता है तो 22 ऐसे राज्य हैं जहां समय से पहले चुनाव कराने होंगे. इन राज्यों में असम, गोवा,गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, पुडुचेरी, पंजाब, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में समय से पहले चुनाव कराने होंगे. हालांकि वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने से आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम के कार्यकाल पर कोई असर नहीं होगा, क्योंकि यहां लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं. इसके अलावापांच राज्यों में चुनाव देरी से होंगेएक देश एक चुनाव लागू होता है तो राजस्थान,मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में देरी से चुनाव होंगे. सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रस्ताव को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मिली मंजूरी की जानकारी हुए कहा कि “पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों को आगे बढ़ाने के लिए एक क्रियान्वयन समूह का गठन किया जाएगा और अगले कुछ महीनों में देश भर के विभिन्न मंचों पर विस्तृत चर्चा की जाएगी, सरकार अपने मौजूदा कार्यकाल में इसे लागू करेगी.”पहले भी लोकसभा – विधानसभा चुनाव हो चुके हैं एकसाथऐसा नहीं है कि वन नेशन वन इलेक्शन देश में नया विषय है या पहले ऐसा सोचा नहीं गया वर्ष 1951 से 1967 के बीच देश में एक साथ चुनाव हुए थे, लेकिन उसके बाद समय से पहले कई राज्यों में मिड टर्म चुनाव की स्थितियां पैदा हुई , एवं कई अन्य वजहों के चलते केंद्र और राज्यों के चुनाव अलग-अलग होने लगे. हालिया संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के दौरान ही ओडिशा, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में विधानसभा भी चुनाव हुए

संसद में वन नेशन, वन इलेक्शन बिल पास कराना आसान नहीं… केंद्र को घेरने के लिए विपक्ष की अलग तैयारीवन नेशन, वन इलेक्शन पर बात बनेगी या नहीं इसका सारा दारोमदार विपक्षी एकजुटता पर है । लोकसभा में इसे पारित कराना सरकार के लिए आसान नहीं होने वाला. एक देश एक चुनाव अधिनियम को पास कराने के लिए सरकार को विशेष बहुमत की जरूरत होगी. यानी दो तिहाई बहुमत की.सरकार को इस बिल को पास कराने के लिए कम से कम 362 वोटों की जरूरत होगी, लेकिन वर्तमान में एनडीए में सिर्फ 293 सांसद ही है. यह जरूरी 362 वोटों से काफी कम है. ऐसे में अगर इंडिया लोकसभा में एकजुट रहती है तो मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती है. वन नेशन वन इलेक्शन पर सरकार की मजबूत घेराबंदी के लिए कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों को साधना शुरू कर दिया है. पार्टी की कोशिश इंडिया गठबंधन के दलों को एकजुट रखते हुए बीजेपी के इस बिल को पास कराने की कोशिश को फेल करने की है. जल्द ही इसकी कवायद जमीन पर दिख सकती है. सूत्रों की मानें तो कुछ वक्त पहले तक भले ही सपा या एनसीपी सरीखे दलों की वन नेशन वन इलेक्शन की कोई भी राय रही हो, लेकिन अब इस मसले पर इंडिया गठजोड़ एकजुट है, इसलिए कांग्रेस का अगला कदम अब सहयोगियों के साथ मिलकर बीजेपी के प्रयास को विफल कराने का होगा . विपक्ष की कोशिश इसे संघीय ढांचे पर प्रहार बताकर सरकार को घेरना है, विपक्ष का मानना है कि अगर यह प्रस्ताव लागू हो जाता है तो मनमाने ढंग से राज्यों की सरकार गिराई जाएंगी जिसे रोकने के लिए एकमात्र मंत्र है एकजुटता.खर्च और नीति वाले तर्क के खिलाफ दलील तैयारविपक्ष लोगों को यह समझाने का प्रयास करेगी कि वन नेशन, वन इलेक्शन कैसे प्रैक्टिक्ल नहीं है. इसके लिए पुराने रिपोर्ट को आधार बनाया गया है. पूरे देश का साल 1952 में एक साथ चुनाव कराया गया था, लेकिन सरकार गिरने और राष्ट्रपति शासन लगने की वजह से अब अलग-अलग चुनाव कराए जाने लगे, विपक्ष का कहना है कि आगे यह नहीं होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है. विपक्ष की सरकार के उन तर्कों के खिलाफ भी दलील है, जिसमें कहा जा रहा है कि इससे पैसों की बचत होगी और नीति बनाने में सहूलियत होगी । विपक्षी खेमे का कहना है कि उद्योगपतियों का लोन माफ करते समय सरकार इन बातों का ध्यान क्यों नहीं रखती है? बात नीति निर्माण की है तो सरकार के पास नीति बनाने के लिए 4 साल 11 महीने का वक्त होता है. हालांकि एक्सपर्टस की माने तो वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने पर चुनाव खर्च में कम से कम 30 प्रतिशत की कमी आ सकती है. तीन दशकों से चुनाव खर्च पर नजर रखने वाले एक एक्सपर्ट ने भास्कर राव के मुताबिक ‘वन नेशन वन इलेक्शन के विचार को अपनाने से अनुमानित 10 लाख करोड़ रुपये के चुनाव खर्च में से 3-5 लाख करोड़ रुपये की बचत हो सकती है, जो निर्वाचन आयोग की कार्यकुशलता और राजनीतिक दलों के सहयोग पर निर्भर करेगा.उनके मुताबिक, ‘वन नेशन वन इलेक्शन पहल से चुनाव खर्च में कोई खास कमी नहीं आएगी. जब तक राजनीतिक दलों की ओर से उम्मीदवारों के चयन, प्रचार और वर्तमान पदाधिकारियों की सुविधाओं के संबंध में अपनाए जाने वाले मौजूदा तौर-तरीकों पर लगाम नहीं लगाई जाती, जब तक चुनाव आयोग ज्यादा कार्यकुशल नहीं हो जाता, उसकी आदर्श आचार संहिता को राजनीतिक दलों की तरफ से नहीं अपनाया जाता और चुनाव कार्यक्रम अधिक तर्कसंगत नहीं हो जाता, तब तक चुनाव खर्च में खासी कमी की उम्मीद नहीं की जा सकती.