करौली : आज भी जीवित है सांझी की परंपरा

Karauli: The tradition of Sanjhi is still alive

रविवार दिल्ली नेटवर्क

करौली में आज भी जीवित है सांझी की परंपरा, श्राद्ध पक्ष में चुटकी से रंग भरकर बनाई जाती है सांझी, 200 वर्ष से अधिक पुरानी है सांझी की परंपरा, पूरे श्राद्ध पक्ष में कृष्ण लीला आर ब्रजमंडल के होते है दर्शन,

करौली : श्राद्ध पक्ष में सांझी बनाने की परंपरा करौली में आज भी जीवित है। श्राद्ध पक्ष के पहले दिन से प्रतिदिन चित्रकारी से अलग-अलग झांकी बनाई जाती है। लघु वृंदावन के नाम से प्रसिद्ध करौली में श्राद्ध पक्ष में सांझी बनाने की अनूठी परंपरा है। पहले करौली के घर-घर में सांझी बनाई जाती थी। जो अब केवल मदन मोहनजी मंदिर तक सिमट कर रह गई है।इस अनूठी परंपरा में मिट्टी के चबूतरा पर रंगों के माध्यम से एक विशाल रंगोली हाथ से रंग भरकर तैयार की जाती है। जिसे पुराने कलाकार हाथों से रंग भर कर तैयार करते है।

श्राद्ध पक्ष में 16 दिन सांझी में पूरे ब्रजमंडल के प्रतिदिन अलग अलग स्वरूप में दर्शन होते है। लघु वृंदावन के नाम से प्रसिद्ध करौली अपने आंचल में आज भी कई प्राचीन और अनूठी परंपराएं समेटे है।

कई परंपराएं तो ऐसी हैं जिनका प्रचलन थोड़ा कम हुआ हो गया लेकिन करौली में आज भी क्षेत्र लोग खास परंपराओं को जीवित रखे है। करीब 200 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन सांझी पहले घर-घर में बनाई जाती थी। प्रत्येक घर में महिलाएं गाय के गोबर से घर की दीवार पर सांझी बनाती थी। जबकि पुरुष मिट्टी का छोटा चबूतरा बनाकर रंगों के माध्यम से सांझी बनाते थे। साथ ही आरती भजन और पूजा होती थी और भोग लगाया जाता था। लेकिन अब सांझी की परंपरा जन-जन के आराध्य देव भगवान मदन मोहन जी के प्रांगण में बड़े और विशाल रूप में रंगों से सजाई जाती है।

हर साल पितृपक्ष में सांझी बनाने का सिलसिला शुरू होता है। जो भाद्रपद माह की पूर्णिमा से आश्विन मास की पितृमोक्ष अमावस्या तक तक चलता है। बिना किसी ब्रश के हाथ की चुटकी से रंगोली में रंग भरकर सांझी बनाई जाती है।

विजय भट्ट ने बताया कि सांझी करौली की एक प्राचीन परंपरा है। जिसे पहले पूर्वज बनाते थे और अब वो बना रहें है। श्राद्ध पक्ष में बनने वाली रंगों की सांझी में पूरे ब्रजमंडल के दर्शन होते है। रंगों से बनाई जाने वाली सांझी में रोज कृष्ण लीला का चित्रण होता हैं। श्राद्ध पक्ष की परंपरा सांझी पहले करौली के प्रत्येक घर में बड़ी धूमधाम के साथ मनाई जाती थी। लेकिन अब ये परंपरा मदन मोहनजी मंदिर तह सिमटकर लुप्त होने की कगार पर है।

मदन मोहन जी मंदिर में सांझी बनाने वाले कलाकारों में से एक मनोज हरदेनिया ने बताया कि सांझी करौली में बहुत ही पुराने समय से बनाई जाती है। पूर्वजों से ही सांझी बनाना सीखा हैं। अब मदन मोहन जी मंदिर के अलावा शहर में एकाध स्थान पर ही बनाई जाती है। इसीलिए मदन मोहनजी मंदिर में दूरदराज से लोग सांझी के दर्शन करने आते हैं। श्राद्ध पक्ष के दिन से बनने वाली सांझी में मधुवन, तालवन, कुमोदवन, बहुलावन, शांतनु कुंड, राधा कुंड, कुसुम सरोवर, बरसाना, नंदगांव सहित राधा कृष्ण की युगल झांकी, मथुरा, वृंदावन को दर्शाया जाता है।