गोपेन्द्र नाथ भट्ट
नई दिल्ली : लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संसद भवन में मंगलवार को आयोजित प्रेस वार्ता में बताया कि इस वर्ष 67 वाँ राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन तीन से आठ नवम्बर तक ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में आयोजित होगा।
उन्होंने बताया कि नवंबर में होने वाले 67वें राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन में लोकतंत्र की मजबूती, सामाजिक सशक्तीकरण, मानव तस्करी, लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती और जनप्रतिनिधियों पर हमले जैसे विषयों पर चर्चा होगी।
उन्होंने बताया कि भारत से भी सम्मेलन में प्रतिनिधि गण हिस्सा लेंगे।उन्होंने बताया कि इसमें विधानमंडलों से भी सदस्य हिस्सा लेते हैं।
बिरला ने बताया कि राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन में संपर्क सूत्र का निर्माण, मूल निवासियों के साथ सार्थक रूप से जुड़ने के लिए संसदीय फ्रेमवर्क, संसदीय प्रक्रियाओं और प्रथाओं में एआई का उपयोग, अवसर और चुनौतियां,सांसदों के विरुद्ध हिंसा और दुर्व्यवहार, राष्ट्रमंडल से केस स्टडीज, विधानमंडल एलजीबीटीक्यू भागीदारी का सर्वोत्तम समर्थन और प्रचार कैसे कर सकते हैं,
राष्ट्रमंडल देशों में मानव तस्करी, शरणार्थी और आप्रवासनः चुनौती अथवा अवसर, बेंचमार्किंग, मानक और दिशा-निर्देश, सर्वोत्तम अभ्यास को अपनाने के माध्यम से लोकतांत्रिक संस्था को मजबूत करना,भेदभावपूर्ण कानून का मुकाबलाः लिंग आधारित हिंसा के खिलाफ सक्रियता,दिव्यांग व्यक्तियों के लिए समावेशी निर्वाचन प्रक्रिया आदि विषयों पर मंथन होगा।
संसद भवन परिसर में 23 सितंबर 2024 को शुरू हुआ 10वां राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) भारत क्षेत्र सम्मेलन मंगलवार को संपन्न हो गया। समापन सत्र की अध्यक्षता लोक सभा अध्यक्ष और सीपीए भारत क्षेत्र के अध्यक्ष ओम बिरला ने की। सीपीए भारत क्षेत्र सम्मेलन में चार सभापतियों और 25 अध्यक्षों सहित 42 पीठासीन अधिकारी और राज्यों के प्रधान सचिव/सचिव और उनके साथ आए अधिकारी शामिल हुए।
सम्मेलन का विषय था “सतत और समावेशी विकास की प्राप्ति में विधायी निकायों की भूमिका।” सम्मेलन से पहले 23 सितंबर, 2024 को सीपीए भारत क्षेत्र की कार्यकारी समिति की बैठक हुई।
सम्मेलन के दूसरे दिन मंगलवार को लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने राज्य विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के साथ संसद परिसर में प्रेरणा स्थल पर महान विभूतियों को श्रद्धासुमन अर्पित किए ।
इसके बाद प्रेस वार्ता को सम्बोधित करते हुए बिरला ने कहा कि इस मुद्दे पर समय-समय पर पीठासीन अधिकारियों के साथ चर्चा की गई है और पीठासीन अधिकारियों से सदन की कार्यवाही का संचालन गरिमा और शिष्टाचार के साथ तथा भारतीय मूल्यों और मानकों के अनुसार करने का आग्रह किया गया है।
उन्होंने यह भी कहा कि सदन की परम्पराओं और प्रणालियों का स्वरूप भारतीय हो तथा नीतियां और कानून भारतीयता की भावना को मजबूत करें ताकि ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का लक्ष्य प्राप्त हो सके। श्री बिरला ने कहा कि पीठासीन अधिकारी यह सुनिश्चित करें कि सदन में सभी की भागीदारी हो और सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों पर शालीनतापूर्वक चर्चा हो ।
किसी भी देश और राज्य के विकास में विधानमंडलों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए श्री बिरला ने कहा कि हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं को जनता से जुड़ने और उनकी अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निरंतर प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि पीठासीन अधिकारियों को देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को पारदर्शी, जवाबदेह और परिणामोन्मुखी बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए। उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि विधानमंडलों के प्रभावी कार्यकरण के लिए नए सदस्यों को सदन के कामकाज, सदन की गरिमा और शिष्टाचार तथा जनसाधारण के मुद्दों को उठाने के लिए उपलब्ध विधायी साधनों के बारे में व्यापक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। उन्होंने पीठासीन अधिकारियों से आग्रह किया कि वे दलों के बीच निरंतर और सुसंगत संवाद बनाए रखें और राजनीति के नए मानक स्थापित करें।
लोक सभा अध्यक्ष ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कि विधायी निकाय अपने राज्यों में विधानमंडलों में प्रक्रियाओं और अभिलेखों का डिजिटलीकरण कर रहे हैं और सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करके जनप्रतिनिधियों के क्षमता निर्माण के लिए प्रयास कर रहे हैं। ऐसे उपाय विधानमंडलों की कार्यकुशलता और प्रभावशीलता को बेहतर बनाने में बहुत सहायक साबित होंगे। उन्होंने सुझाव दिया कि जहां आवश्यक हो, राज्य विधानमंडलों को डिजिटलीकरण की गति को बढ़ाना चाहिए ताकि ‘एक राष्ट्र, एक डिजिटल प्लेटफॉर्म’ के सपने को साकार किया जा सके। उन्होंने यह आश्वासन भी दिया कि सम्मेलन के दौरान पीठासीन अधिकारियों द्वारा उठाए गए मुद्दों जैसे वित्तीय स्वायत्तता, सदनों के सत्रों के दिनों की संख्या में कमी, ई-विधान आदि पर आगे चर्चा की जाएगी और स्वीकार्य समाधान निकाले जाएंगे।
बिरला ने आशा व्यक्त की कि इस दो दिवसीय सम्मेलन से विधानमंडलों के कामकाज में बदलाव आएंगे । उन्होंने सुझाव दिया कि पीठासीन अधिकारियों को नई सोच, नई विजन के साथ काम करना चाहिए और भविष्य के लिए अनुकूल नए नियम और नीतियां बनानी चाहिए। श्री बिरला ने इस बात पर भी जोर दिया कि सतत और समावेशी विकास का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए।