सुशील दीक्षित विचित्र
इधर कुछ महीनों से देश के विभिन्न हिस्सों में रेलवे ट्रैक पर पत्थर , सिलेंडर य विस्फोटक प्लांट करने की जो घटनाएं घट रही हैं उनके पीछे ट्रेनों के बहाने सरकार को पटरी से उतारने की साजिश है | ऐसी साजिशें कौन कर रहा है यह किसी से छिपा नहीं है | यहां पर एक सवाल यह भी है कि पत्थर आखिर वंदे ट्रेनों पर ही क्यों मारे जाते हैं आला हजरत या निजामुद्दीन औलिया एक्सप्रेस पर ऐसी पत्थरबाजी क्यों नहीं होती ?
मोदी सरकार को पटरी से उतारने के लिए ही पिछले दस सालों से कभी सेना को , कभी अर्थव्यवस्था को कभी सामाजिक ताने बाने को , कभी न्यायपालिका को कभी मीडिया को और हर उस व्यक्ति , संस्था , प्लेटफार्म को निशाना बनाया जाता रहा जो मोदी से जुड़ा है | सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के घर गणपति पूजा में मोदी के शामिल होने पर चीफ जस्टिस को ही निशाने पर ले लिया | निशाने पर भी उन लोगों ने लिए जो दरगाहों पर बढ़ चढ़ कर गाजेबाजे के साथ चादर चढ़ाते रहे हैं | पिछले दस वर्षों की घटनाओं पर सरसरी नजर डालें तो आसानी से यह निष्कर्ष सामने आ जाएगा कि हर वर्ष कुछ न कुछ ऐसा किया गया जिससे देश में संकट का दौर शुरू हो और वे उसका लाभ उठा कर सत्ता हथिया लें |
इसके लिए कई बार देश को गृह युद्ध में झोंक देने की साजिश रची गयी , देश के पूर्वोत्तर हिस्से को अलग करने की साजिश रची गयी , लाल किले पर हमला कर खालिस्तानी झंडा लगाने का प्रयास हुआ , संसद से पारित क़ानून के खिलाफ दिल्ली को किसानों के नाम पर खालिस्तानियों ने महीनों घेरे रखा | दस सालों में भारत के खिलाफ देश से ले कर विदेशों तक एक दो नहीं दर्जनों टूल किट्स चलाई गयीं और चल भी चलाई जा रही हैं | ट्रेनों को ट्रैक से उतारने और वन्दे ट्रेनों को क्षतिग्रस्त करने की कोशिशें भी इन्हीं टूलकिट्स में से किसी एक का हिस्सा हैं | दुर्भाग्यपूर्ण यह कि इन घटनाओं पर विपक्ष ऐसे मौन है जैसे ऐसे अवरोधों से होने वाली किसी बड़ी ट्रेन दुर्घटना या दुर्घटनाओं की प्रतीक्षा में हो |
इन दस सालों में राजनीतिक दुर्भावनाओं का जो चेहरा सामने आया वह देश के लिए और दुर्भाग्यपूर्ण है | मोदी का विरोध देश विरोध तक पहुँच गया | राहुल गांधी ने सिखों को ले कर जो कुछ विदेश में कहा उसे कमसेकम राष्ट्रहित में तो नहीं माना जा सकता | पहले वे प्रचार करते थे कि मुसलमान डरा हुआ है और अब इस प्रचार में लगे हैं कि भारत में सिख न गुरूद्वारे जा सकता है और न अपने धार्मिक चिन्ह धारण कर सकता है | मुसलमानों की तरह क्या यह सिखों को भड़काने का प्रयास नहीं है ? उनके इस वक्तव्य के बाद प्रतिबंधित खालिस्तानी संगठन सिख फॉर जस्टिस के गुरपतवंत सिंह पन्नू ने तत्काल उसे अपने पक्ष में भुनाना शुरू कर दिया | यह खालिस्तानी आंदोलन को हवा देने जैसा है और ऐसी ही गलती कभी उनकी दादी ने भी की थी जिसके दुष्परिणाम उन्हें ही नहीं निर्दोष सिखों को भुगतने पड़े थे |
भारत के किसी भी समुदाय की धार्मिक आजादी पर कोई बंधन नहीं | यह हर सुबह चर्च में एंकलेट बजने से , मंदिरों में घंटे बजने से , मस्जिदों में अजान होने से और गुरुद्वारों में पवित्र गुरुग्रंथ साहब के सबद और बानियां गूंजने से शुरू होती है | सिख पंजाब में ही नहीं भारत के विभिन्न हिस्सों में हैं | हर शहर यहां तक कि कई गावों में भी उनके गुरुद्वारे हैं | वे शान से उनमें सभी धार्मिक चिन्हों सहित जाते हैं | रास्ते में न उन्हें कोई रोकता है और न ही कोई हमला करता है | प्रकाश पर्वों पर सिख समुदाय की शोभा यात्राएं निकलती | उनमें जुलूस के आगे आगे सड़क झाड़ू लगाते युवकों के साथ युवतियां भी होती हैं | यह शोभा यात्रायें शहर के विभिन्न हिस्सों से गुजरतीं | सभी धर्मों के लोग जगह जगह उनका स्वागत करते | उन्हें देखने शहर उमड़ पड़ता लेकिन आज तक कहीं किसी से नहीं सुना कि सिखों की शोभायात्रायें रोंकी गयीं |
राहुल गांधी पहले भी विदेशों में ऐसे ही आरोप लगाते रहे हैं जिनका इस्तेमाल दुश्मन देश अंतरराष्ट्रीय मंचो पर किया | एक राष्ट्रीय पार्टी के ऐसे राष्ट्रीय नेता को जो खुद को भारत का प्रधानमंत्री बनने के योग्य मानता है , ऐसे आचरण की प्रशंसा नहीं की जा सकती | इसकी भी प्रशंसा सम्भव नहीं कि देश को जातियों , वर्गों के खाने में बांट कर राज करने के सपने देखे जा सकते हैं | माना यह जा रहे हैं कि राहुल गांधी के विचार दस वर्षों में बार बार पराजय की कुंठा से उपजे हैं | कभी कभी तो ऐसा लगने लगता है कि कांग्रेस विदेशी दखल करा कर सत्ता पाना चाहती है | मणिशंकर अय्यर पाकिस्तान से हस्तक्षेप कर कांग्रेस को सत्ता दिलाने का अनुरोध भी कर चुके हैं | कांग्रेस नेशनल कांफ्रेंस से चुनावी गठबंधन किये है और जम्मू कश्मीर में फिर से धारा 370 की वापसी का वादा भी करती है | नेशनल कांफ्रेस के फारुख अब्दुल्ला चीन से भारत में हस्तक्षेप करने की भी गुहार लगा चुके हैं ताकि धारा 370 की वापसी के साथ ही पाकिस्तान के सहयोग से घाटी में आंकवाद को फिर जिंदा किया जा सके |
सारे हालातों का लब्बो लुआब निकाला जाए तो यह कहना कोई बहुत कठिन नहीं होगा कि देश के खिलाफ षड्यंत्र रचने वालों और समाज में जघन्य अपराध करने वालों के पीछे कहीं न कहीं विपक्षी पार्टियां खड़ी दिखाई देती हैं | केरल में प्रतिबंधित पीएफआई को सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थन हासिल है | बिहार में लम्बे समय तक वोट बैंक के लिए देश विरोधी इस्लामी आतंकवादियों को संरक्षण देती रही | बिहार और मध्य प्रदेश में पीएफआई के कार्यालयों पर छापा मारा गया तो षड्यंत्र खुला कि देश को 2047 तक इस्लामिक राष्ट्र बनाने की मुहिम चल रही है | इस संगठन के बचाव में भी धर्मनिरपेक्ष दलों ने कुछ उठा नहीं रखा |
इन बातों से यह निष्कर्ष निकालना कठिन नहीं है कि देश को संकटों में झोंक देने के लिए बाहर और भीतर दोनों स्तर से प्रयास किये जा रहे हैं | पटरियों पर अवरोध , गुंडा माफियाओं का समर्थन , डकैतों की जाति आधार पर संरक्षण और मारे जाने पर विधवा विलाप , सिखों , दलितों और मुस्लिमों को भड़काने की कोशिशें , वक्फ बोर्ड के लैंड जेहाद का बचाव , खालिस्तानी आंदोलन को कांग्रेस द्वारा हवा देना जैसे दुर्योगों को मात्र संयोग कह आकर नहीं टाला जा सकता | यह सब देश को अस्थिर करने के प्रयोग हैं और अपने सिख वाले ब्यान पर अड़ कर राहुल गांधी ने जाता भी दिया कि ऐसे भले ही देश रसातल में चला जाए वे मोदी सरकार को गिराने के लिए ऐसे प्रयोग करते रहेंगे | अंधविरोध से देश विरोध तक पहुँची यह राजनीति देश को किस रसातल में डुबोयेगी यह तो भविष्य बतायेगा लेकिन विपक्षी दल जो खेल खेल रहे हैं वह खतरनाक है | यह और भी खतरनाक है कि यह खेल संविधान के पीछे छुप कर किया जा रहा है | कुल मिला कर यह कि ऊपर से भले ही न लगता हो लेकिन देश को चारों ओर से खतरा है और इससे तभी निपटा जा सकता है जनता सत्ता लोभी दलों से देश को बचाने आगे आये |