मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से बाहर करने के लिये अयोध्या के साधु संतों ने संभाला मोर्चा

Saints of Ayodhya took charge to take the temples out of government control

अजय कुमार

लखनऊ : सरकारी नियंत्रण वाले आन्ध्र प्रदेश के तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद में मिलने वाले लड्डू में चर्बी मिली होने की खबर के बाद एक तरफ जहां हिन्दू समाज गुस्से में है,वहीं इस खबर के बाद साधु संतों के सब्र का भी बांध टूट गया है। इसको लेकर जगह-जगह प्रतिक्रिया हो रही है। इसी कड़ी में अब प्रभु श्री राम की नगरी अयोध्या के संतों ने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने की छटपटाहट दिखाई दे रही है। इस ओर उनका ध्यान तिरुपति बालाजी के लड्डू में प्रयुक्त होने वाले घी में गोमांस और मछली के तेल की मिलावट से उपजे आक्रोश के बीच सामने आया है। जिसके बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि तिरूपति की व्यवस्था पर सरकारी नियंत्रण की जगह यदि आस्था से अनुप्राणित संतों का नियंत्रण होता, तो यह अनर्थ नहीं हो पाता। संतों की नाराजगी तब सामने आई जब वह अयोध्या के बड़ा भक्तमाल आश्रम में रामलीला के आयोजन की रूपरेखा तय करने के लिए एकत्र हुए थे, लेकिन उसमें यह चिंता भी दिखी।

बैठक का संयोजन कर रहे बड़ा भक्तमाल के महंत अवधेश कुमार दास ने कहा कि सरकारी नियंत्रण के बाद किसी भी मंदिर की पवित्रता नहीं कायम रह सकती है। जानकीघाट बड़ा स्थान के महंत जन्मेजयशरण ने याद दिलाया कि चाहे वह तिरूपति हो या काशी विश्वनाथ, नाथद्वारा और महाकालेश्वर, ये सभी स्थान आस्था के महनीय केंद्र तो है, किंतु व्यवस्था के फेर में आस्था की परंपरा जड़ों से कटी प्रतीत होती है। संकटमोचन सेना के अध्यक्ष एवं हनुमानगढ़ी से जुड़े महंत संजयदास सरकारी नियंत्रण की व्यवस्था को धार्मिक केंद्रों की संप्रभुता पर आघात मानते है। वह कहते हैं कि हमारी अस्मिता से खिलवाड़ हो रहा है, किंतु अब हम लंबे समय तक चुप नहीं बैठेंगे। सुप्रसिद्ध कथाव्यास जगदगुरू रामानुजाचार्य डा. राघवाचार्य भी मंदिरों के सरकारी नियंत्रण के विरोध में मुखर हुए हैं। उनका मानना है कि जहां-जहां सरकार का हस्तक्षेप है, वह मंदिरों की व्यवस्था यांत्रिकता की शिकार है। प्रसाद का टेंडर देने की जगह मंदिर का प्रबंधन व्यापक स्तर पर गोपालन करे और भगवान के भोग-राग में भाव तथा शुद्धता सुनिश्चित करे, यह सरकार के प्रतिनिधियों से संभव नहीं होगा।