नृपेन्द्र अभिषेक नृप
महात्मा गांधी का सपना एक ऐसे भारत का निर्माण करना था, जहां गांवों का विकास हो, न कि केवल शहरों का। उनका मानना था कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है, और अगर गांवों का विकास नहीं हुआ, तो देश का संपूर्ण विकास असंभव होगा। आज़ादी के दशकों बाद भी, गांवों की हालत बहुत हद तक वैसी ही बनी हुई है। शहरों की ओर पलायन बढ़ता जा रहा है और ग्रामीण इलाकों की आबादी घट रही है। इस आलेख का उद्देश्य केंद्र और राज्य सरकारों को अपनी व्यवस्थाओं में जरूरी सुधार करने की आवश्यकता को रेखांकित करना है, ताकि गांधी जी के सपनों का भारत हकीकत बन सके।
भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां की अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। लेकिन विडंबना यह है कि विकास की मुख्यधारा शहरों में केंद्रित हो गई है और ग्रामीण क्षेत्रों को अपेक्षित महत्व नहीं मिल पाया है। वर्तमान समय में, जब सरकारें ग्रामीण विकास के लिए कई योजनाएं बना रही हैं, तब भी निचले स्तर पर आवश्यक सेवाओं और सुविधाओं की कमी बनी हुई है।
स्वास्थ्य सेवाओं का सुधार: प्राथमिक स्तर पर डॉक्टरों की तैनाती:
स्वास्थ्य सेवा किसी भी समाज की नींव होती है, और इसका मजबूत होना बेहद आवश्यक है। लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि शहरों में उच्च गुणवत्ता वाले स्वास्थ्य सेवाओं का अधिक प्रवाह हो रहा है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) जो ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मुख्य केंद्र होते हैं, अक्सर अच्छी सुविधाओं और विशेषज्ञ डॉक्टरों से वंचित रहते हैं।
वर्ष 2023 की स्वास्थ्य रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी के कारण कई लोग प्राथमिक इलाज के लिए शहरों की ओर रुख करते हैं। यह स्थिति ग्रामीण विकास में बाधा उत्पन्न करती है और गांवों में जीवन स्तर को नीचे लाती है। इसका समाधान यह हो सकता है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) में अच्छे डॉक्टरों की तैनाती सुनिश्चित की जाए , साथ ही उनके वेतन और भत्तों में अंतर रखा जाए, ताकि वे शहरों की बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने के लिए प्रोत्साहित हों। इस संदर्भ में, उन डॉक्टरों को जो दूरदराज क्षेत्रों में तैनात होते हैं, अधिक वेतन और भत्ते दिए जा सकते हैं।
शिक्षा का सुधार: प्राथमिक विद्यालयों में योग्य शिक्षकों की आवश्यकता
शिक्षा किसी भी समाज की प्रगति का आधार है। लेकिन जब बात ग्रामीण क्षेत्रों की आती है, तो स्थिति यहां भी दयनीय है। एक ओर, शहरों में जहां अच्छे शिक्षकों की अधिकता है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर कम योग्य और अयोग्य शिक्षक पाए जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि वहां के छात्र अपेक्षित गुणवत्ता की शिक्षा से वंचित रहते हैं।
वर्ष 2023 की शिक्षा रिपोर्ट में पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की संख्या कम है, और जो शिक्षक वहां तैनात हैं, उनकी गुणवत्ता भी सवालों के घेरे में है। इसका कारण यह है कि अधिकतर शिक्षक शहरों में तैनाती को प्राथमिकता देते हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में जाने से बचते हैं। इसे बदलने के लिए प्रोत्साहन भत्तों की व्यवस्था करनी चाहिए, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले शिक्षकों को अधिक वेतन और अन्य सुविधाएं दी जाएं, जैसे कि अतिरिक्त आवास भत्ता और यात्रा सुविधाएं।
एच.आर.ए. (हाउस रेंट अलाउंस) में सुधार:
वर्तमान व्यवस्था में शहरों के शिक्षकों और कर्मचारियों को अधिक हाउस रेंट अलाउंस (HRA) दिया जाता है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में तैनात कर्मचारियों को कम। यह एक असमान व्यवस्था है, क्योंकि शहरों में काम के अधिक अवसर होते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित। इसलिए, HRA का उल्टा होना चाहिए। गांवों में काम करने वाले शिक्षकों और कर्मचारियों को अधिक HRA मिलना चाहिए ताकि वे वहां रहकर कार्य करें और गांव के विकास में योगदान दें।
सरकारी आवास की अनियमितताएं:
शहरों में सरकारी आवास हेतु जहां लोगों को 1.5 लाख रुपये मिलते हैं, वहीं गांव में यह राशि 1.2 लाख तक सीमित है। यह व्यवस्था भी असंगत है, क्योंकि गांवों में काम के अवसर शहरों की तुलना में बहुत कम होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी कर्मचारियों को अधिक आवास सहायता दी जानी चाहिए, ताकि वे वहां अपनी स्थायी बसाहट कर सकें और शहरों की ओर पलायन न करें।
आर्थिक असमानता कम करने के लिए रोजगार सृजन:
गांवों से शहरों की ओर पलायन का एक मुख्य कारण रोजगार के सीमित अवसर हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करके इस पलायन को रोका जा सकता है। मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) जैसी योजनाएं इस दिशा में सहायक हो सकती हैं, लेकिन इसके साथ ही स्थायी रोजगार के अवसरों का निर्माण भी आवश्यक है।
सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग, हस्तशिल्प, और लघु उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए। इसके साथ ही, कृषि आधारित उद्योग और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की स्थापना करके ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सृजित किए जा सकते हैं। 2023 की एक आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, गांवों में स्वरोजगार को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष योजनाएं चलाई जानी चाहिए, जिससे ग्रामीण युवाओं को अपने क्षेत्र में ही रोजगार प्राप्त हो सके। इसके अलावा, सूक्ष्म वित्त (Microfinance) और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं और युवाओं को स्वावलंबी बनाया जा सकता है।
भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही पर नियंत्रण:
ग्रामीण विकास के कार्यों में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही। कई बार यह देखा जाता है कि गांवों में चल रही योजनाओं का लाभ वहां के लोगों तक नहीं पहुंच पाता है क्योंकि प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार और लापरवाही के कारण विकास कार्य अधूरे रह जाते हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना आवश्यक है।
इसके लिए सरकार को डिजिटल मॉनिटरिंग सिस्टम लागू करना चाहिए, जिसके माध्यम से ग्रामीण विकास योजनाओं की निगरानी की जा सके और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके। इसके अलावा, जनता की भागीदारी सुनिश्चित करके उन्हें विकास कार्यों का हिस्सा बनाया जाना चाहिए, ताकि वे भी योजनाओं की निगरानी कर सकें।पंचायती राज और लोकल गवर्नेंस को और मजबूत बनाकर प्रशासनिक स्तर पर जवाबदेही तय की जानी चाहिए।
न्यायिक और कानूनी सुधार:
गांवों में न्यायिक प्रणाली की पहुंच सीमित है, जिसके कारण वहां के लोग अक्सर न्याय से वंचित रह जाते हैं। गांधीजी के सपनों के भारत में न्याय की समान उपलब्धता एक महत्वपूर्ण पहलू था, जिसमें गांव के हर व्यक्ति को न्याय प्राप्त हो सके। इसके लिए जरूरी है कि गांवों में विकल्पी विवाद समाधान प्रणाली (Alternative Dispute Resolution) को प्रोत्साहित किया जाए, ताकि वहां के लोग छोटे-मोटे विवादों का निपटारा स्थानीय स्तर पर ही कर सकें।
सरकार को गांवों में लोक अदालतों और ग्रामीण न्यायालयों की स्थापना करनी चाहिए, जहां त्वरित और सस्ता न्याय प्राप्त हो सके। 2024 की ग्रामीण न्याय रिपोर्ट के अनुसार, यदि ग्रामीण क्षेत्रों में न्याय की पहुंच को बेहतर किया जाए, तो वहां के लोगों की समस्याओं का समाधान जल्दी और सुलभ तरीके से हो सकेगा। न्यायिक सुधारों के साथ ही, कानूनी साक्षरता पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि ग्रामीण लोग अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो सकें।
तकनीकी और डिजिटल साक्षरता का प्रसार:
वर्तमान युग में डिजिटल साक्षरता एक महत्वपूर्ण आवश्यकता बन चुकी है। शहरों में लोग इंटरनेट और डिजिटल सेवाओं का व्यापक रूप से उपयोग कर रहे हैं, जबकि गांवों में यह सुविधा अभी भी सीमित है। डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं के माध्यम से सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट सुविधाओं का विस्तार तो किया है, लेकिन इसे और व्यापक बनाने की जरूरत है।
2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण भारत में केवल 45% लोग ही डिजिटल सेवाओं का लाभ उठा पा रहे हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 85% से अधिक है। इस अंतर को कम करने के लिए सरकार को ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी में सुधार करना होगा, साथ ही वहां के निवासियों को डिजिटल साक्षरता प्रदान करने के लिए विशेष कार्यक्रम चलाने होंगे। जब ग्रामीण क्षेत्रों के लोग तकनीकी और डिजिटल साक्षर बनेंगे, तब वे अधिक कुशलता से सरकारी योजनाओं और सेवाओं का लाभ उठा सकेंगे।
गांवों के विकास के लिए आधुनिक तकनीक और नवाचार का उपयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है। कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, और उद्योगों में आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके गांवों में नई संभावनाएं उत्पन्न की जा सकती हैं। उदाहरण के लिए, सटीक कृषि (Precision Agriculture) के माध्यम से किसानों को उनकी फसल उत्पादन क्षमता बढ़ाने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, ग्रामीण उद्योगों में मशीनरीऔर प्रौद्योगिकी का अधिक उपयोग करके उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है।
2023 की तकनीकी रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया है कि यदि गांवों में तकनीक का सही से उपयोग किया जाए तो यह ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से बदल सकता है। इसके लिए सरकार को तकनीकी प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए, ताकि ग्रामीण युवा नई तकनीक को अपनाकर उसे अपने जीवन और कार्यक्षेत्र में लागू कर सकें। इससे गांवों में रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे और वहां की आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा।
कृषि और ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा:
गांवों के आर्थिक विकास के लिए कृषि और ग्रामीण उद्योग महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। कृषि जहां ग्रामीण जीवन का प्रमुख आधार है, वहीं ग्रामीण उद्योगों को प्रोत्साहन देकर रोजगार के नए अवसर सृजित किए जा सकते हैं। सरकार द्वारा कृषि के क्षेत्र में किसानों के लिए नई तकनीकों का परिचय कराना, सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार करना, और फसल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नई योजनाएं लाना आवश्यक है।
साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देकर वहां रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं। इस संदर्भ में, सरकार को स्थानीय उत्पादों को बाजार में पहचान दिलाने के लिए विशेष योजनाएं शुरू करनी चाहिए, जैसे कि ओडीओपी (वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट) योजना, जिसके अंतर्गत प्रत्येक जिले के विशिष्ट उत्पाद को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सके।
पर्यावरण संरक्षण और हरित विकास:
ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के साथ-साथ पर्यावरण का संरक्षण भी आवश्यक है। अक्सर यह देखा गया है कि जब भी विकास कार्य होते हैं, तो पर्यावरणीय संसाधनों की अनदेखी की जाती है। गांधीजी का ग्रामीण विकास का सपना केवल आर्थिक और सामाजिक विकास तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना भी शामिल था।
इस दिशा में सरकार को सौर ऊर्जा, विंड एनर्जी, और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली और ऊर्जा की समस्या का समाधान किया जा सके। इसके अलावा, वृक्षारोपण, जल संरक्षण, और स्थानीय जल संसाधनों का संरक्षण ग्रामीण विकास के लिए महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।
ग्राम पंचायतों का वित्तीय स्वायत्तता:
गांधी जी का मानना था कि गांवों का विकास तभी हो सकता है जब पंचायतों को सशक्त किया जाए। पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करके ही गांवों का समग्र विकास किया जा सकता है। इसमें गांव की आवश्यकताओं के अनुरूप विकास योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा सकता है। पंचायती राज के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क निर्माण, पानी, बिजली जैसी बुनियादी सेवाओं को सुनिश्चित करना चाहिए।
सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि गांव के लोग ही गांव के विकास का नेतृत्व करें। उन्हें पंचायत स्तर पर अधिक अधिकार दिए जाएं, जिससे वे अपने गांव की जरूरतों के हिसाब से योजनाएं बना सकें और उनका सही क्रियान्वयन कर सकें। इसके लिए आवश्यक वित्तीय और तकनीकी सहायता भी सरकार को प्रदान करनी चाहिए।
गांवों का विकास पंचायती राज व्यवस्था के सशक्तिकरण से ही संभव है। वर्तमान में पंचायतों के पास सीमित वित्तीय संसाधन होते हैं, जिसके कारण वे गांवों में आवश्यक विकास कार्य करने में असमर्थ होते हैं। 2023 की पंचायती राज रिपोर्ट के अनुसार, ग्राम पंचायतों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिए, ताकि वे स्वतंत्र रूप से अपने गांवों के विकास के लिए निर्णय ले सकें।
सरकार को पंचायतों को कर लगाने और संसाधनों को आवंटित करने की शक्ति प्रदान करनी चाहिए, ताकि वे अपने गांवों में स्वायत्त रूप से काम कर सकें और विकास के कार्यों को तेजी से पूरा कर सकें। इससे न केवल गांवों में अधिक तेजी से विकास होगा, बल्कि वहां की जनता भी अपने गांव के विकास में सक्रिय रूप से भागीदार बन सकेगी।
सामाजिक विकास और समावेशीता:
विकास केवल आर्थिक और भौतिक संसाधनों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह सामाजिक समावेश और समानतानपर भी आधारित होना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी जाति, वर्ग, और लैंगिक भेदभाव जैसी समस्याएं मौजूद हैं, जो वहां के सामाजिक विकास में बाधा डालती हैं।
सरकार को सामाजिक समावेश के लिए सशक्तिकरण योजनाएं लानी चाहिए, जिनके माध्यम से ग्रामीण समाज के सभी वर्गों को विकास में भागीदार बनाया जा सके। विशेष रूप से महिला सशक्तिकरण और दलित एवं पिछड़े वर्गों के विकास पर ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि ग्रामीण समाज में समरसता और समानता की भावना विकसित हो सके।
गांधीजी के सपनों का भारत: ग्रामीण स्वराज
महात्मा गांधी का सपना था कि हर गांव स्वावलंबी बने और अपने संसाधनों का उपयोग करके आत्मनिर्भरता हासिल करे। इसके लिए आवश्यक है कि गांवों को उनकी स्थानीय जरूरतों के अनुसार संसाधन और सुविधाएं प्रदान की जाएं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय शिल्पकारों, किसानों, और उद्योगपतियों को बढ़ावा देकर उन्हें सशक्त बनाया जा सकता है। गांधीजी के आदर्शों पर आधारित ग्राम स्वराज को साकार करने के लिए पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत बनाना होगा और ग्रामीण इलाकों में आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देना होगा।
गांव-शहर सहयोग मॉडल का विकास:
गांवों और शहरों के बीच संतुलित विकास के लिए गांव-शहर सहयोग मॉडल विकसित किया जा सकता है। यह मॉडल इस आधार पर काम करेगा कि गांव और शहर एक-दूसरे के पूरक बनें और उनके बीच संसाधनों और सेवाओं का आदान-प्रदान हो। उदाहरण के लिए, गांवों में उत्पादित कृषि उत्पादों को शहरों में बेचा जा सकता है, जबकि शहरों की तकनीकी सेवाएं और उद्योग गांवों तक पहुंचाई जा सकती हैं।
इस सहयोग से दोनों क्षेत्रों का संतुलित विकास संभव हो सकेगा। इसके लिए सरकार को लॉजिस्टिक्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करना होगा, ताकि गांव और शहर के बीच आपसी व्यापार और सेवाओं का आदान-प्रदान सुचारू रूप से हो सके। इससे न केवल ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था में वृद्धि होगी, बल्कि शहरों पर भी जनसंख्या और संसाधनों का दबाव कम होगा।
सामुदायिक सहभागिता और स्थानीय नेतृत्व का विकास:
गांवों के विकास में सामुदायिक सहभागिता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि गांव के लोग अपने विकास के प्रति जागरूक और सक्रिय होते हैं, तो वे न केवल सरकारी योजनाओं का बेहतर उपयोग कर सकते हैं, बल्कि अपनी जरूरतों और समस्याओं का समाधान भी निकाल सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि स्थानीय नेतृत्व को प्रोत्साहन दिया जाए और गांवों में सामुदायिक संगठन और सहकारी समितियों का विकास किया जाए।
ग्राम सभा और पंचायतों के माध्यम से ग्रामीण जनता की समस्याओं को सुना जाए और उनके सुझावों को विकास योजनाओं में शामिल किया जाए। गांधीजी का ग्राम स्वराज का विचार इसी सामुदायिक सहभागिता पर आधारित था, जिसमें गांव के लोग खुद अपने फैसले लेते थे और अपने विकास के लिए प्रयासरत रहते थे। इसे साकार करने के लिए सरकार को पंचायती राज संस्थाओं को और सशक्त बनाना होगा और ग्रामीण जनता की भागीदारी को बढ़ावा देना होगा।
वित्तीय समावेशन और ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था का सुधार:
ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन एक बड़ी चुनौती है। हालांकि सरकार ने जन धन योजना, आधार और मोबाइल बैंकिंग जैसी योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण बैंकिंग प्रणाली में सुधार करने के प्रयास किए हैं, फिर भी कई ग्रामीण इलाकों में अभी भी लोग बैंकिंग सेवाओं से वंचित हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में सूक्ष्म वित्त (Microfinance) और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को बढ़ावा देकर वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहित किया जा सकता है। इसके अलावा, सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों की पहुंच बढ़ाने के लिए निवेश करना चाहिए और डिजिटल बैंकिंग को प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि लोग अधिक आसानी से बैंकिंग सेवाओं का लाभ उठा सकें। जब गांवों में वित्तीय साक्षरतानऔर बैंकिंग सेवाएं सुलभ होंगी, तब लोग अपने आर्थिक संसाधनों का बेहतर प्रबंधन कर पाएंगे और गांवों में आर्थिक उन्नति संभव हो सकेगी।
गांवों में बुनियादी ढांचे का सशक्तिकरण:
गांवों के विकास में सबसे बड़ी बाधा वहां के बुनियादी ढांचे की कमी है। सड़क, पानी, बिजली, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाएं कई ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हैं। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना,हर घर जल योजनान, और सौभाग्य योजना जैसी सरकारी योजनाओं के माध्यम से गांवों में इन सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है, लेकिन इसे और अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
2023 की बुनियादी ढांचा विकास रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों की गुणवत्ता और बिजली की उपलब्धता में सुधार की आवश्यकता है। इसके अलावा, सुरक्षित पेयजल और सैनिटेशन की सुविधाओं का विस्तार भी किया जाना चाहिए, ताकि गांवों में स्वास्थ्य और स्वच्छता का स्तर बढ़ सके। जब गांवों में बुनियादी सुविधाएं बेहतर होंगी, तब वहां का जीवन स्तर भी ऊंचा उठेगा और लोगों को शहरों की ओर पलायन करने की आवश्यकता नहीं होगी।
गांवों का विकास भारत के समग्र विकास की कुंजी है। महात्मा गांधी के सपनों का भारत तभी साकार हो सकता है, जब गांवों में रहने वाले लोग खुशहाल और आत्मनिर्भर बन सकें। इसके लिए सरकारों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, बुनियादी ढांचे, और वित्तीय समावेशन जैसी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में ठोस सुधार करने की आवश्यकता है।
शहरों और गांवों के बीच की असमानता को समाप्त करने के लिए गांवों में काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों को प्रोत्साहन भत्तों, आवास भत्तों, और अन्य सुविधाओं का विस्तार करना होगा। साथ ही, गांवों में स्थानीय नेतृत्व और सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देकर वहां के लोगों को अपने विकास की दिशा में सक्रिय रूप से भागीदारी निभाने का अवसर प्रदान करना होगा।
गांधीजी का ग्राम स्वराज केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि एक व्यावहारिक दृष्टिकोण है, जिसे सही नीतियों और योजनाओं के माध्यम से साकार किया जा सकता है। जब गांवों का विकास होगा, तब ही भारत का वास्तविक विकासन संभव होगा और हम एक समृद्ध, स्वावलंबी, और खुशहाल राष्ट्र का निर्माण कर सकेंगे।