धर्मेंद्र मिश्र
जाति के आधार पर जनगणना कराने के लिए भाजपा विरोधी राजनीतिक दल बार फिर एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं I बिहार में जाति के आधार पर जनगणना के मुद्दे पर जारी राजनीति के बीच मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने इस मसले पर अपना स्टैंड साफ कर दिया है कि वह जाति आधारित जनगणना के पक्ष में है I नितीश कुमार की घोषणा के बाद अब अन्य सभी विपक्षी दल रविवार (29 मई ) को एक रैली आयोजित करने जा रहे हैं I
पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह की 35 वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आयोजित होने वाले कार्यक्रम के अवसर पर आयोजित होने वाली इस रैली में राजद, जद (यू), सपा, बसपा, टीएमसी, आप और माकपा सहित अन्य कई दल शामिल होंगे I भाजपा विरोधी इन सभी दलों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में होने वाली रैली में शामिल होने वाले नेताओं में एक ऐसे नेता के भी शामिल होने का दावा किया जा रहा हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने राज्यपाल के पद पर बैठा रखा है I मेघायल के वर्तमान राज्यपाल के पद पर बैठे सत्यपाल मालिक की इस रैली में होने वाली संभावित मौजूदगी ने भाजपा के शीर्ष नेताओं के कान खड़े कर दिए हैं I पिछले कई माह से राज्यपाल मालिक केंद्र सरकार के विरोध में दिए जाने वाले अपने बयानों के कारण चर्चा में बने हुए हैं i कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर तो कभी कृषि क़ानून के विरोध में तो कभी जम्मू-कश्मीर के विकास कार्यो में जारी विकास कार्यो में कथित भ्रष्टाचार को लेकर टिप्पणी करने वाले राज्यपाल मालिक केंद्र सरकार ने नाराज बताये जा रहे हैं I पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल के गढ़ वाले इलाके से आने वाली राज्यपाल मालिक को केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद सितंबर, 2017 को बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया था I अगस्त 2018 को उन्हें जम्मू-कश्मीर भेज दिया गया जहां से नवंबर 2019 को गोवा और फिर एक साल पूरा होने से पहले ही उन्हें मेघालय का राज्यपाल बना दिया गया था I
रविवार को जयंत चौधरी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोक दल द्वारा आयोजित किये जा रहे कार्यक्रम के अवसर पर आयोजित की जाने वाली रैली के माध्यम से विपक्षी दल केंद्र सरकार पर जाति के आधार पर जनगणना के मुद्दे पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं I बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की घोषणा से इस मुद्दे पर विपक्षी दलों को एक नयी ऊर्जा मिली है I विपक्षी दलों की योजना यह है कि वह इस रैली के माध्यम से जातिगत जनगणना के साथ ही एक सामाजिक न्याय आयोग के गठन की मांग के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की शिश करेंगे I
विपक्षी दलों द्वारा जातिगत जनगणना के मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने के लिए की जाने वाली कोशिशों के बीच स्थिति यह है कि केंद्र की मोदी सरकार जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में नहीं है I भाजपा का स्पष्ट मत है कि बिहार सहित देश के अन्य राज्यों में जातिगत जनगणना कराने की कोई आवश्यकता नहीं है I विपक्ष की यह मांग पूरी तरह उस वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित है, जो जाति-उपजाति के नाम पर वर्षों से चुनावी राजनीति करके सत्ता की मलाई खाते आ रहे हैं I 2014 के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने विकास की जिस राजनीति को दिशा दिखाई, उससे जाति के नाम पर राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों के सामने कई तरह की समस्याएं पैदा हुई हैं और जातिगत आधार पर होने वाली राजनीति पर अंकुश लगा है I पिछले आठ वर्षों के दौरान विकास की राजनीति ने समाज में जातिगत आधार पर होने वाले भेदभाव को दूर करने का जो काम किया है, वह स्वतंत्रता मिलने के बाद कई दशकों तक नहीं हो पाया था I ऐसे में जाति के नाम पर राजनीति करने वाले दलों के सामने अपने अस्तित्व को बचाने का संकट आ खड़ा हुआ I इसलिए वह अब जातिगत जनगणना के नाम पर अपनी राजनीति को बचाने की चेष्टा कर रहे हैं I
राज्य स्तर पर जातिगत जनगणना के नाम पर 2015 में कर्नाटक की तत्कालीन कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने एक सामाजिक एवं शैक्षणिक सर्वेक्षण कराया था I सर्वेक्षण के पीछे कर्नाटक की राजनीति में सबसे प्रभावशाली जातियां वोक्कालिगा और लिंगायत के राजनीति में वर्चस्व को तोड़ने का मकसद छिपा हुआ था I यह दोनों ही जातियां आर्थिक या सामाजिक रूप से पिछड़ी नहीं हैं, बल्कि राज्य में वर्चस्व वाली जातियां हैं I सिद्धारमैया सरकार ने सर्वेक्षण तो करा लिया था, लेकिन सर्वेक्षण की रिपोर्ट अब तक जारी नहीं हुई है I ऐसे में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार द्वारा कराई जाने वाली जातिगत जनगणना की घोषणा भी आगामी चुनाव की एक रणनीति से ज्यादा और कुछ नजर नहीं आती है I
देश में जातिगत जनगणना 1931 में अंग्रेजी शासन काल में हुई थी I उसके बाद से जातिगत जनगणना कभी नहीं हुई I 1941 में जाति के आंकड़े जुटाए गए पर उन्हें प्रकाशित नहीं किया गया I 1951 से लेकर 2011 तक की जनगणना में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आंकड़े तो जुटाए गए, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी ) सहित अन्य जातियों के आंकड़ों को एकत्र करने की कोई कोशिश नहीं की गयी I 1990 में केंद्र की तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग, जिसे मंडल आयोग के नाम से भी जाना जाता है, की एक सिफारिश को लागू करके ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण दे दिया था I लेकिन अब एक बार जातिगत जनगणना के नाम पर समाज में अस्थिरता फ़ैलाने के अजेंडे पर काम किया जा रहा है I ऐसे में देखना यह होगा कि रविवार को जातिगत जनगणना के मुद्दे पर एकजुट हो रहे विपक्षी दल क्या एजेंडा लेकर जनता के सामने आते हैं और जातिगत जनगणना के नाम पर किस तरह से आगामी राजनीति को प्रभावित करने का कौन सी रणनीति सामने आती है ?