यासीन मलिक को सजा

नीलम महाजन सिंह

कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक को ‘आतंक-वित्त पोषण’ मामले में सजा सुनाए जाने से पहले, कश्मीर के कुछ हिस्सों में, मलिक के पैतृक क्षेत्र में झड़पों, नारेबाजी के साथ, स्वतःस्फूर्त बंद देखा गया। मलिक ने आतंकी संगठनों से अपना जीवन अलग कर लिया था। यह 1917 का मामला है। कश्मीर मैं 1990 से ही आतंकवाद अपनी चरम सीमा पर था।

मलिक, हालांकि उच्च न्यायालय में अपील करने के पात्र हैं। अदालत ने पांच अन्य मामलों में दो आजीवन कारावास और प्रत्येक को 10-10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। इसमें कहा गया है कि सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी। 19 मई को, मलिक को धारा 120बी आईपीसी, 121 आईपीसी, 121ए आईपीसी, 13 यूएपीए आर/डब्ल्यू 120बी आईपीसी, 15 यूएपीए आर/डब्ल्यू 120बी आईपीसी, 17 यूएपीए, 18 यूएपीए, 20 यूएपीए, 38 यूएपीए और के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था। अदालत के फैसले से पहले जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के कुछ हिस्सों में बंद रहा। आगे भी शहर के कुछ हिस्सों में दुकानें और अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद रहेंगे। अधिकारियों ने कहा कि किसी भी सार्वजनिक विरोध को विफल करने के लिए अर्धसैनिक केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवानों और जम्मू-कश्मीर पुलिस सहित सरकारी बलों को तैनात किया गया है। कश्मीर अब ‘पुलिस राज्य’ सा लगता है। इसका प्रभाव राजधानी के संवेदनशील इलाकों में भी होगा। नज़र रखने के लिए ड्रोन तैनात किए गए थे। खैर किसी भी संगठन ने बंद का आह्वान नहीं किया था। दोपहर में नागरिक प्रदर्शनकारी, सरकारी बलों से भिड़ गए और पथराव किया। प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए सरकारी बलों ने आंसू गैस के गोले दागे। मुकदमे के दौरान मलिक ने आरोपों का विरोध किया और कहा कि वह एक ‘स्वतंत्रता सेनानी’ थे। अल जज़ीरा ने बताया, “मेरे खिलाफ लगाए गए आतंकवाद से संबंधित आरोप मनगढ़ंत, मनगढ़ंत और राजनीति से प्रेरित हैं,” उनके संगठन, जम्मू – कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) ने अदालत को बताया। उन्होंने न्यायाधीश से कहा, “अगर आजादी की मांग करना अपराध है तो मैं इस अपराध और इसके परिणामों को स्वीकार करने के लिए तैयार हूं।” मालिक आम कश्मीरी के मन में जगह रखते हैं। इस कारण से वहां उन्हें बहुत समर्थन प्राप्त है। मलिक के मैसूमा आवास पर भीड़ इकट्ठा होते देखा गया, जहां महिलाओं ने मलिक के समर्थन में नारे लगाए। जेकेएलएफ 90 के दशक की शुरुआत में जम्मू और कश्मीर में अस्तित्व में आने वाले पहले सशस्त्र विद्रोही समूहों में से एक था। मलिक के नेतृत्व में जेकेएलएफ ने ‘एक स्वतंत्र कश्मीर’ का समर्थन किया और 1994 में हथियार डाल दिए। 2019 में सरकार ने मलिक को गिरफ्तार कर लिया और जेकेएलएफ पर प्रतिबंध लगा दिया। जब भारत सरकार कश्मीर में शांति लाने के प्रयास कर रही है तो फिर कश्मीर के नेताओं से मुलाकात व बातचीत अवश्यक है। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने धारा 307 व 35-A हटाने के उपरांत कश्मीरी जनमानस से सीधा संबंध बनाया है। PAGD के सभी नेताओं से मुलाकात करना जरूरी है। Kashmiriyat इंसानियत और Jamhuriat, प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रयत्नों को नकारा जा चुका है। यासीन मालिक को उम्रकैद देने से कश्मीर की समसामयिक परिस्थितियों पर प्रभाव तो पड़ेगा ही। वैसे अब कश्मीर में आम चुनाव भी होंगे। परिसीमन का कार्य पूरा हो चुका है जिसे कश्मीर के सभी राजनीतिक दलों ने अस्वीकार किया है। क्या भारत का ताज सदा राजनीतिक संकट मैं ही रहेगा? दो मुद्दों पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यानाकर्षक अवश्यक है: 1. कश्मीर में लोकल नेताओं के साथ कम्युनिकेशन रखना 2. कश्मीरी जनता के हितों, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक की तरह ध्यान दिया जाना चाहिए। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का स्वभाव और व्यवहार से जनता में लोकप्रियता है। अभी कश्मीर में लोकल आतंकवाद घट गया है। अधिकतर हिंसात्मक घटनाएं सीमा पार से हो रही हैं फिर चाहे यासीन मालिक हो या बीटा कराटए, निर्णय तो न्यायालय ही करेंगे हिंसात्मक लोग तो कश्मीर में हैं ही। केंद्र शासित प्रदेश कश्मीर व नरेंद्र मोदी- अमित शाह सरकार के 8 वर्ष हो गये हैं परंतु अभी भी कश्मीर में शांति के आसार नजर नहीं आ रहे। सरकार का कहना कि all is well; परंतु धरातल पर ऐसा प्रतीत नहीं होता। अंततः ‘कश्मीर की बेटी’ होने के नाते मेरा हृदय बहुत पीड़ित है, कि जहां केसर व कमल के फूल खिलने चाहिय वहां 75 वर्ष प्रान्त उपरांत भी एक ही देश में हम झुज रहे हैं। हमें अतीत में नहीं परंतु आज और भविष्य के लिए सोचना चाहिए। कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और कश्मीर के लोग भी भारत के ही हैं। नकारात्मक नीतियों को त्यागने का समय है। ओ मई कश्मीर!