यात्रा करना नहीं, स्टेशन पर ट्रेन को रुकवाना उद्देश्य

The purpose is not to travel, but to stop the train at the station

रविवार दिल्ली नेटवर्क

तिलोनिया के ग्राम वासी ट्रेन का स्टेशन बरकरार रखने के लिए खरीदते हैं टिकिट : लेकिन नहीं करते हैं यात्रा

अजमेर : अजमेर में किशनगढ़ के पास स्थित गाँव तिलोनिया बेयरफुट कौलेज में विदेशी महिलाओं को सोलर कूकर , बल्ब आदि सोलर यंत्र बनाने का प्रशिक्षण देने के कारण अंतर्राष्ट्रीय महत्व रखता है लेकिन ट्रेन , बस या ट्रांसपोट की सुविधा नहीं होने के कारण इस गाँव के लोगों ने नयी और अनोखी मुहिम छेड़ रखी है । वे सब अपनी अपनी हैसियत के अनुसार अलग अलग राशि का चन्दा एकत्रित करके एमएसटी (पास ) बनवाते हैं या फिर टिकिट खरीदते हैं लेकिन उनका उद्देश्य यात्रा करना नहीं बल्कि स्टेशन पर ट्रेन को रुकवाना होता है । उनका उद्देश्य सिर्फ इतना है कि तिलोनिया रेलवे स्टेशन पर ट्रेन रुके और यहाँ के ग्रामवासी या युवाओं को जिनमें विशेषकर महिलाओं या बालिकाओं को ट्रेन से अजमेर या जयपुर जाने का अवसर मिल सके। उनके इन्हीं प्रयासों के कारण अजमेर से रेवाड़ी जाने वाली ट्रेन यहाँ पर रुकती है और अजमेर से गंगापुर जाने वाली ट्रेन भी यहाँ रुकती है ।

तिलोनिया ग्राम के लोगों का कहना है कि यहाँ कोरोना काल से पहले ट्रेनें रुका करती थीं , लेकिन कोरोना काल के बाद से किसी भी ट्रेन का यहाँ रुकना बंद कर दिया गया। इससे यहाँ के लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ती है । यहाँ की बालिकाएँ बाहर पढ़ाई लिखाई करने नहीं जा पाती हैं। कुछ लड़कियां किशनगढ़ अपने परिजनों के साथ पढ़ने के लिए जातीं हैं तो कुछ ने बारहवीं की पढ़ाई पूरी करके पढ़ना लिखना बंद कर दिया है ।

सरकारी अधिकारी या रेलवे अधिकारियों का कहना है कि रेल को राजस्व मिलना चाहिए जिससे कि ट्रेन को यहाँ रोकने के लिए मजबूर किया जा सके । इसलिए यहाँ के ग्रामवासी कोई 100 , कोई 200 या कोई 500 रुपए देकर अपने गाँव के लिए विशेष योगदान करते हैं और ट्रेन रुकती है । एक ही ट्रेन वहाँ पर दो बार रुकती है , अजमेर से रेवाड़ी जाने वाली ट्रेन जब अजमेर से रेवाड़ी जाती है तब वहाँ पर रुकती है और जब रेवाड़ी से वापस अजमेर आती है तब रुकती है व अजमेर से गंगपुर जाने वाली ट्रेन भी यहाँ पर रुकती है। इस गाँव की आबादी करीब 4500 है व आसपास में हरमाड़ा, तोलामोला, फलोदा और भोजियावास गाँव हैं । लेकिन यहाँ पर आवाजाही के कोई साधन नहीं हैं ।

गाँव की बेटी रिद्धिमा बताती हैं कि उनकी जैसी और भी कई बेटियाँ हैं जो गाँव से बाहर पढ़ने के लिए नहीं जा सकती हैं , क्योंकि किशनगढ़ इस गाँव से 10 किलोमीटर दूर है , अजमेर 40 किमी तो जयपुर और भी दूर है , ऐसे में वहाँ कोई साधन नहीं होने की वजह से ट्रेन का सहारा होता है , क्योंकि ट्रेन बिलकुल गाँव के करीब से निकलती है। लेकिन रेल अधिकारियों द्वारा ग्रामवासियों को ये कहा जाता है कि राजस्व बढ़ाने पर ही यहाँ स्टेशन बनाया जा सकता है । इस गाँव में ही डीएफसीसी का रेलवे ट्रैक और पैसेंजर ट्रेन का भी ट्रैक निकल रहा है ।

वहीं अरविंद जापान का उदाहरण देते हुये कहते हैं कि जापान में सिर्फ एक बालिका की पढ़ाई के लिए ट्रेन चलाई जाती है और यहाँ पर इस ओर किसी का ध्यान ही नहीं जाता है । इसलिए सभी ग्राम वासी राशि इकट्ठा करके करीब 15 से 16 हजार रुपए का राजस्व रेलवे को प्र्तिमाह देते हैं , ताकि ट्रेन वहाँ रुके और इसे स्टेशन बनाया जाये ।