पिंकी सिंघल
विचारों के आदान-प्रदान के लिए हम विभिन्न प्रकार के शब्दों ,वाक्यों एवं हाव भावों का प्रयोग करते हैं और अपने आप को अभिव्यक्त करते हैं ।अपने मन की बात दूसरों तक पहुंचाने के लिए हम किसी न किसी भाषा का प्रयोग अवश्य करते हैं। विभिन्न देशों और प्रांतों की भाषाएं और बोलियां अलग अलग होती हैं। कभी-कभी बिना कुछ कहे भी हम अपनी बात दूसरों को समझा सकते हैं, परंतु, हमेशा ऐसा कर पाना संभव नहीं होता क्योंकि बिना शब्दों के प्रयोग के असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न ना होने पाए, इसलिए हम भाषाओं का सहारा लेते हैं ।प्रयुक्त भाषा के शब्दों और वाक्यों का प्रयोग कर कर खुद को अभिव्यक्त करते हैं।
अंग्रेजी भाषा, जिसे हम विदेशी भाषा का नाम देते हैं, का भी हम अपने दैनिक बोलचाल में बहुत अधिक प्रयोग करते हैं । जिस प्रकार हिंदी भाषा का अपना महत्व है उसी प्रकार अंग्रेजी भाषा का महत्व भी कुछ कम नहीं है। हां ,यह अवश्य है कि हिंदी हमारी मातृभाषा है और हमारी मातृभाषा का स्थान कोई अन्य भाषा कभी ले ही नहीं सकती ।किंतु ,यह कहना उचित नहीं होगा कि हमें केवल अपनी मातृभाषा का ही प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि समय, स्थान और परिस्थिति के अनुसार हमें विभिन्न प्रकार की भाषाओं और बोलियों का प्रयोग करना पड़ जाता है जिसमें कोई बुराई भी नहीं है ।अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने के लिए हमें जिस भी भाषा का प्रयोग करना पड़े हमें करना चाहिए ,बशर्ते, वह भाषा सहज, सरल, सभ्य और नैतिकता के दायरे में आती हो। यदि हमारी बात सामने वाला समझ जाता है तो यह मायने नहीं रखता कि हमने किस भाषा का प्रयोग किया है। भाषा में सहजता और सरलता का होना भी अति आवश्यक है।सामने वाले को ध्यान में रखकर भी हमें भाषा का चयन करना चाहिए ताकि वह हमारी बात आसानी से समझ सके । अंग्रेजी भाषा इतनी भी क्लिष्ट नहीं है जितनी कि उसे समझा जाता है। हम रोजमर्रा की जिंदगी में ना जाने कितने ही अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग कर जाते हैं। कभी-कभी तो हमें हिंदी के ही कुछ शब्द अंग्रेजी के शब्दों से अधिक क्लिष्ट जान पड़ते हैं और हम इन हिंदी शब्दों के स्थान पर अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करना ज्यादा बेहतर समझते हैं, ताकि हम उन्हें सहजता से बोल पाए और सामने वाला उन्हें सरलता से समझ पाए। इस बात से यह साबित नहीं हो जाता कि हम अपनी मातृभाषा का अपमान कर रहे हैं या उसे कम तवज्जो दे रहे हैं।जैसा कि ऊपर भी बताया गया कि भाषा संप्रेषण का एक सशक्त माध्यम है और संप्रेषण ही यदि सहज सरल न हो तो अर्थ का अनर्थ होने में ज्यादा समय नहीं लगता।
बोली और भाषा के अलग होने से हमारे एहसास और जज्बात कभी अलग नहीं होते ।खुद को अभिव्यक्त करने के लिए हम चाहे जिस भाषा या बोली का प्रयोग करें ,परंतु ,यदि सामने वाले ने हमारे एहसासों को वैसे का वैसा ग्रहण कर लिया है समझ लिया है, तो हमारी अभिव्यक्ति सफल अभिव्यक्ति कही जाती है। परंतु यदि सामने वाला हमारी किसी बात को समझ ही नहीं पा रहा है तो हमारे बोलने का कोई अर्थ और महत्व नहीं रह जाता है ।उदाहरण के तौर पर, सामने वाला व्यक्ति हिंदी भाषी है और वह केवल हिंदी समझता है और हम उसके समक्ष किसी अन्य भाषा में बात करते रहें तो उसे कुछ समझ नहीं आएगा और वह हमारे मन के भावों को ग्रहण नहीं कर पाएगा, तो फिर ऐसे संप्रेषण का क्या फायदा। ऐसी स्थिति उत्पन्न ना होने पाए इसलिए हमें उसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए जिसमें हम खुद को अभिव्यक्त करने में सहज महसूस करें और साथ ही साथ सामने वाला भी हमारी बात को बिना किसी परेशानी और दिक्कत के सही सही समझ सके ।
अक्सर लोगों को यह कहते सुना जाता है कि पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति के हमारी सभ्यता और संस्कृति पर हावी हो जाने से हमारी संस्कृति का पतन हो रहा है ।अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करने से हमारी मातृभाषा हिंदी अपमान हो रहा है।लेकिन,व्यक्तिगत तौर पर मुझे ऐसा नहीं लगता ।अपनी भाषा अपनी ही होती है परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि हम केवल एक सीमित दायरे में ही रहकर दूसरी भाषाओं का कदापि प्रयोग ना करें ।ऐसा करने से हमारे विकास और प्रगति के अवसर अवरुद्ध हो सकते हैं। अंग्रेजी भाषा एकमात्र ऐसी भाषा है जो विश्व के अधिकतर देशों में बेशक बोली ना जाती हो परंतु समझी अवश्य जाती है।इस बात से ही अंग्रेजी भाषा का महत्व स्पष्ट हो जाता है। हिंदी भाषा के प्रति हमारा स्नेह और सम्मान कभी भी केवल इस बात से कम नहीं हो जाता कि हम हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा का भी पठन ,लेखन और वाचन में प्रयोग करते हैं। अंग्रेजी ही क्यों,अंग्रेजी के साथ साथ विश्व भर की अनेक भाषाओं को सीखने सिखाने में कोई हर्ज़ नहीं, कोई बुराई नहीं, क्योंकि सीखना एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है। हमें जहां से भी कुछ नया और बेहतर सीखने को मिले, हमें सीखने के लिए तत्पर रहना चाहिए। कहा भी जाता है कि सीखा हुआ कुछ भी कभी बेकार नहीं जाता ।कभी ना कभी हमारा ज्ञान हमारा अधिगम फलदाई अवश्य सिद्ध होता है।
अंत में मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगी कि अंग्रेजी भाषा के महत्व को हमें कभी नहीं नकारना चाहिए। हिंदी के प्रति प्रेम और सम्मान दिखाने के साथ-साथ हमें अंग्रेजी भाषा को भी दिल से स्वीकार करना चाहिए।