प्रो. नीलम महाजन सिंह
किसी भी राजनीतिक दल की ताकत उसके संगठन और कार्यकर्ताओं से आती है। हरियाणा विधानसभा 2024 के चुनावों के नतीजों से कॉंग्रेस अचंभित क्यों है? जब तक कॉंग्रेस पार्टी में एकजुटता नहीं होगी, वो ऐसे ही मुहँ के बल गिरती रहेगी। आरंभ में ही यह कहना आवश्यक है कि, एग्ज़िट पोल के पंडितों को अपना सिर शर्म से झुका लेना चाहिए, क्योंकि वो हर बार शतप्रतिशत गलत निकालते हैं। ऐसा ही 2019 व 2024 के लोकसभा चुनावों में भी हुआ। एग्ज़िट पोल करने वाले यशवंत देशमुख तो (सी-वोटर) पोल में अपना मुंह बार-बार काला कर चुका है। इन एग्ज़िट पोल वालें पंडितों को ‘पोंगा पंडित’ ही कहा जाना चाहिए। फ़िर मल्लिकार्जुन खड़गे भी सोनिया गांधी की तरह 80 वर्षीय हो रहे हैं।
सच तो यह है कि कॉंग्रेस का संगठन, राज्यों में कमज़ोर होने के साथ-साथ विघटनकारी भी है। कैसे काँग्रेस ने चुनावों से पहले ही अपने आपको विजयी माना हुआ था? इसी कारण वे सत्य से बहुत दूर थी व उसका खेल बिगड़ गया। आधे से अधिक कॉंग्रेस के मौजूदा विधायकों को हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस की अंदरूनी कलह व बागियों की समस्या के कारण, कॉग्रेस एक दशक के बाद हरियाणा में वापसी करने में विफल रही। कॉंग्रेस हरियाणा में बीजेपी सरकार हटाने के प्रति आश्वस्त दिख रही थी, जो 10 सालों से सत्ता में है व सत्ता विरोधी लहर का सामना भी कर रही थी। हालांकि 48 सीटें जीतकर बीजेपी ने कांग्रेस की वापसी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया व कई एग्ज़िट पोलों को गलत साबित कर दिया। हरियाणा में काँग्रेस की आसान जीत की भविष्यवाणी की गई थी। कांग्रेस 90 सदस्यीय विधानसभा में 37 सीट जीतने में सफल रही। कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा, “चुनाव परिणाम, राज्य के माहौल के विपरीत हैं”।
इस वर्ष के लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ बीजेपी से पांच सीटें छीनने से काँग्रेस काफी उत्साहित थी। उसने बेरोज़गारी, किसानों की दुर्दशा, अग्निपथ योजना सहित, विभिन्न मुद्दों के इर्द-गिर्द अपना चुनावी अभियान चलाया। वह एकजुट लड़ाई लड़ने में विफल रही व उसकी गुटबाजी का सत्तारूढ़ बीजेपी ने फायदा उठाया। चुनाव के दौरान भूपेंद्र सिंह हुड्डा, रणदीप सुरजेवाला और हरियाणा में पार्टी की दलित नेता कुमारी सैलजा के बीच टकराव, कॉंग्रेस के लिए घातक सिद्ध हुआ।
इसके अलावा, बीजेपी के विपरीत, कॉग्रेस हरियाणा में पिछले कई वर्षों से ज़मीनी स्तर तक सुव्यवस्थित व मज़बूत संगठनात्मक ढांचा स्थापित करने में विफल रही है। संघटन तो था ही नहीं! हारने वाले कॉंग्रेस विधायकों में शमशेर सिंह गोगी, प्रदीप चौरी, मेवा सिंह, सुरेन्द्र पंवार, धर्म सिंह छोकर, अमित सिहाग, राॅव दान सिंह, व चिरंजीव राॅव शामिल हैं। अपने आधे से अधिक मौजूदा विधायकों के हारने से, कांग्रेस वापसी की संभावनाओं को झटका लगा। बागियों ने भी कॉंग्रेस का खेल बिगाड़ा व झटका दिया। बागियों ने वोटों को विभाजित कर दिया, जिससे बीजेपी को फायदा हुआ। कॉग्रेस की बागी चित्रा सरवारा, अंबाला कैंट से बीजेपी के दिग्गज नेता अनिल विज को चुनौती देने के लिए मैदान में उतरीं थीं।
हरियाणा में करारी हार पर कॉग्रेस की समीक्षा बैठक में भूपेंद्र हुड्डा, सैलजा व रणदीप सुरजेवाला अनुपस्थित थे। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की अगुवाई में कॉंग्रेस नेतृत्व ने हार के कारणों का आकलन किया। बैठक में राहुल गांधी, एआईसीसी महासचिव के.सी. वेणुगोपाल, अशोक गहलोत व अजय माकन शामिल हुए।
एआईसीसी के राज्य प्रभारी, दीपक बाबरिया वर्चुअली बैठक में शामिल हुए। विश्लेषकों का सुझाव है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा खेमे व शैलजा-सुरजेवाला गुट के बीच गुटबाज़ी ने कॉंग्रेस की हार में योगदान दिया। अनिल विज को 59,858 वोट मिले व सरवारा को 52,581 वोट मिले, जबकि कॉंग्रेस उम्मीदवार परविंदर पाल पारी को मात्र 14,469 वोट मिले। बहादुरगढ़, कालका, गोहाना व बल्लभगढ़ जैसी कुछ और सीटें थीं, जहां बागियों के कारण कॉंग्रेस को नुकसान हुआ।
भाजपा आईटी सेल के अमित मालवीय ने दलित नेता कुमारी सैलजा व सुरजेवाला को बैठक से बाहर रखने की ओर इशारा करते हुए कॉंग्रेस पर कटाक्ष साधा। उन्होंने ट्वीट किया, “आखिर में वे ई.वी.एम., चुनाव आयोग की धीमी वेबसाइट, सूरज, चांद वगैरह को दोष देंगें, लेकिन खुद को नहीं।” माकन ने कहा, “जैसा कि एग्ज़िट पोल व जनमत सर्वेक्षणों से पता चला है, परिणाम तो अप्रत्याशित हैं। एग्ज़िट पोल व वास्तविक परिणामों में बहुत अंतर है। इसके क्या कारण हो सकते हैं, इस पर कॉंग्रेस कड़े कदम उठायेगी”।
यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब कांग्रेस ने मतगणना के दौरान कुछ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) में पाई गई “विसंगतियों” की जांच की मांग की थी। भूपेंद्र सिंह हुड्डा, अशोक गहलोत, एआईसीसी नेताओं के.सी. वेणुगोपाल, जयराम रमेश, अजय माकन और पवन खेड़ा के अलावा हरियाणा कॉंग्रेस प्रमुख उदय भान सहित शीर्ष कॉंग्रेस नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग के अधिकारियों से मुलाकात कर ज्ञापन दिया।
कॉंग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया कि 20 ऐसी शिकायतें हैं, जिनमें से सात लिखित रूप में कई विधानसभा क्षेत्रों से हैं, जिनमें कई में ईवीएम के 99 प्रतिशत बैटरी क्षमता पर काम करने का उल्लेख है, जबकि औसत ईवीएम मतगणना के दौरान 60 से 70 प्रतिशत बैटरी क्षमता पर काम करते पाए गए। वैसे सच तो यह है कि भजन लाल और मोती लाल वोरा की मृत्य के बाद, भूपेंद्र सिंह हुड्डा को ‘मनी बैग, हरियाणा का प्रॉपर्टी डीलर’, प्रवर्तन निदेशालय के अनेक केस, जनता के कार्यों से दूर रहना, हुड्डा को भारी पड़ा। राॅव इंद्रजीत सिंह तो पहले ही कॉंग्रेस को छोड़ कर भाजपा के मंत्री हैं।
सोनिया गांधी ने 2004 में भजन लाल, राॅव बीरेन्द्र सिंह, कुमारी सैलजा को दरकिनार कर भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्य मंत्री बनाया था। हुड्डा दस वर्षों तक मुख्य मंत्री रहे परंतु उन पर सीबीआई, इ.डी. केस, ‘डीएलएफ भूमि स्कैम’, कृषि भूमि को कमर्शियल में परिवर्तित करने के लिए जाना गया। फिर गांधी परिवार के समान, हुड्डा पर भी वंशवाद का आरोप है। दीपेन्द्र सिंह हुड्डा (जो रोहतक से 2019 में चुनाव हर गए परंतु हुड्डा की चापलूसी से वो राज्य सभा में आ गए)। 2024 चुनाव में दीपेन्द्र रोहतक से सांसद हैं। किरण चौधरी, जो कि राजीव गांधी के समय से कॉंग्रेस के साथ हैं, फ़िर भी हुड्डा ने किरण और उनकी बेटी श्रुति को भी अलग-थलग किया। फ़िर किरण चौधरी ने भाजपा का दामन पकड़ा है। इसी प्रकार अशोक तंवर को भी कॉंग्रेस में होते हुए, ‘गुलाबी पगड़ी व लाल पगड़ी’ विवाद में उन्हें कॉग्रेस पार्टी छोड़नी पड़ी।
चुनाव प्रचार के आख़िरी सप्ताह में राहुल गांधी ने अशोक तंवर को पार्टी में वापिस लिया। सारांशार्थ, ‘हरियाणा इज़ हुड्डा, हुड्डा इज़ हरियाणा’; कॉंग्रेस को नुकसानदायक रहा। फ़िर पीएम नरेंद्र मोदी ने हरियाणा चुनाव प्रचार में, गांधी परिवारवाद आदि पर प्रहार किया, जिसका जनता पर प्रभाव पड़ा। कॉंग्रेस उत्तर भारत में लगभग शून्य है। संगठनात्मक रूप से कॉंग्रेस को मेहनत कर कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने की आवश्यकता है। यह भी सत्य है कि हरियाणा में, कॉंग्रेस नेताओं के घमंड, परिवारवाद, वंशगत चुनाव, अपने मुद्दों को जनता तक नहीं पहुंचा पाई। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने, अनेक नए चेहरों को प्रोत्साहित किया। मोहन लाल खट्टर की जगह नेब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाना, अच्छी कूटनिति थी, जिसका प्रभाव चुनावों के परिणाम में स्पष्टतः से नजर आ रहा है। अब 2029 तक कॉंग्रेस को इंतजार करना होगा, तब तक अनेक राजनीतिक परिवर्तन हो जायेंगें।
प्रो. नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, शिक्षाविद, सालिसिटर फाॅर ह्यूमन राइट्स संरक्षण व परोपकारक)