अजेश कुमार
मरीज को दवा के साथ-साथ सहानुभूति और विश्वास की जरूरत होती है। अगर मरीज को विश्वास है कि वह जिस डॉक्टर से अपना इलाज करा रहा है,उसकी दवा से उसे आराम होगा,तो वह बेहतर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता है। मरीज को स्वस्थ्य होने में डॉक्टर द्वारा मरीज को देखते समय अपनाई जाने वाली प्रक्रिया और मरीज को दवाओं के इस्तेमाल करने के बारे में दी गई जानकारी का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। कई मामलों में मरीज और डॉक्टर के बीच बनने वाला आत्मीय संबंध दवा से ज्यादा कारगर साबित होता है,लेकिन आज के भौतिक युग में डॉक्टर मरीज को जरूरी समय नहीं दे रहे हैं। डॉक्टर द्वारा मरीज को सही समय न दे पाने के कई दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं,जिस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चिंता जताई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ; डब्ल्यूएचओद्ध की एक रिपोर्ट के अनुसार कई विकासशील देशों में डॉक्टर अपने पास आने वाले मरीजों को सही समय नहीं दे रहे हैं। अधिकतर डॉक्टर मरीज को देखने में औसतन एक मिनट से भी कम वक्त लगाते हैं,जिसका मरीज पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। डॉक्टर द्वारा मरीज को सही वक्त न देने के कारण अक्सर मरीज यह नहीं समझ पाते कि डॉक्टर ने मरीज के स्वास्थ्य के बारे में क्या पूछा और क्या जाना? उन्हें इसका भी पता नहीं होता कि डॉक्टर द्वारा लिखी गई दवाएं कब और कैसे लेनी हैं? डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार,डॉक्टर मरीजों को दवाओं के बारे में ठीक से नहीं समझाते,इस कारण मरीज नियमित रूप से दवाएं नहीं ले पाते। दवाएं भी सही क्रम में नहीं ली जातीं। नियमित रूप से सही दवा न लेने से मरीज के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिपोर्ट पर मनोवैज्ञानिकों ने गंभीर चिंता जताई हैं। मनोवैज्ञानिकों सहित समाजसेवियों की यह चिंता जायज है क्योंकि टीबी सहित कई बीमारियां ऐसी हैं,जिनका इलाज महीनों चलता है। डॉक्टर की सही राय न मिलने की वजह से मरीज थोड़ा ठीक होते ही या समय से पहले ही बीच में इलाज छोड़ देते हैं। इससे इन बीमारियों के नियंत्रण में काफी मुश्किलें आ रही हैं। मरीज के इलाज में कुछ एंटीबायोटिक दवाएं ऐसी होती हैं,जिन्हें यदि बीच में छोड़ दिया जाए या उनकी सही मात्रा न ली जाएं,तो बीमारी ठीक नहीं होती और इन दवाओं के लिए संबंधित रोग के जीवाणु, प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं। टीबी या मलेरिया जैसी बीमारियों में एंटीबायोटिक दवाएं प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में सफलता प्राप्त करके मरीज को स्वस्थ्य करती हैं। इन बीमारियों में दवाओं का नियमित व सही क्रम न मिलने पर मरीज को नई-नई और मंहगी दवाएं खोजनी पड़ती हैं।
ऐसे मामलों में डब्ल्यूएचओ का मानना है कि मरीजों के प्रति डॉक्टरों ने सही समय नहीं दिया। ऐसा विकासशील देशों के सरकारी अस्पतालों में आसानी से देखा जा सकता है,जहां डॉक्टर,मरीजों को देखने से ज्यादा समय दवा लिखने में लगाते हैं। निजी क्लीनिक चलाने वाले डॉक्टरों की भी कोशिश कम समय में ज्यादा से ज्यादा मरीजों को देखने की होती है। डॉक्टरी पेशे में मानवीय पक्ष गायब हो रहा है। डॉक्टर सोचता है कि असर तो दवा को करना है,ऐसे में उसकी पूरी कोशिश दवा लिखने की होती है। इस कारण डॉक्टर,मरीज के प्रति सहानुभूति व मानवीय रवैया नहीं अपना पाता। मरीज को दवा के बारे में सही तरीके से नहीं बता पाता।
डॉक्टर-मरीज के बीच के संबंध के बारे में किए गए सर्वे बताते हैं कि विकासशील देशों के अलावा विकसित देशों में भी डॉक्टर और मरीज के बीच संवाद और मानवीय नजरिया कम होता जा रहा है। डॉक्टरों में अधिक लाभ कमाने की ललक बढ़ रही है जिसके कारण वे मरीज को अधिक समय नहीं दे रहे हैं। इस बारे में शोध के नतीजे बताते हैं कि जितना महत्वपूर्ण इलाज है,उतना ही महत्वपूर्ण डॉक्टर का व्यवहार भी है। यूरोप और अमेरिका में हुए शोधों से पता लगता है कि अगर डॉक्टर,मरीज को ज्यादा समय देता है तो मरीज जल्दी अच्छे होते हैं। डॉक्टर द्वारा मरीज को ज्यादा समय देना कारगर औषधि हो सकती है।ऐसे में इस समस्या का महत्वपूर्ण समाधान यह भी है कि डॉक्टरी की पढ़ाई में डॉक्टर-मरीज संबंध के अलावा डॉक्टरों में मानवीय नजरिये को भी ध्यान रखने की शिक्षा भी दी जाए। इससे मरीज को बेहतर लाभ होगा।