पिंकी सिंघल
भारत में स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के मामले में केरल राज्य प्रथम स्थान पर आता है और दूसरे स्थान पर तमिलनाडु का नाम है ,यह सुनकर मन अति प्रसन्न होता है कि भारत जो कि अभी भी एक विकासशील देश की श्रेणी में ही गिना जाता है ,में भी स्वास्थ्य सेवाएं सभी नागरिकों को बेहतरीन तरीके से उपलब्ध कराई जा रही हैं। देश के हर छोटे बड़े सरकारी अस्पताल में मरीजों का निशुल्क इलाज किया जाता है। विभिन्न प्रकार के टेस्ट और दवाइयों के लिए सरकार देशवासियों से एक रूपया तक नहीं लेती। जाहिर है कि जनमानस सेवा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता निभाने के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है जो कि अति सराहनीय एवं प्रशंसनीय है।
यह तो रही बात भारत के सरकारी अस्पतालों की। सरकारी अस्पतालों के साथ-साथ सरकार ने देश के प्रत्येक राज्य ,प्रत्येक कस्बे ,शहर और गांव में निजी अस्पतालों को खोलेने और इलाज मुहैया कराने की आज्ञा भी दी हुई है ताकि लोगों के पास अपनी इच्छा अनुसार इलाज कराने के विकल्प और अवसर उपलब्ध हों। देशवासी अपनी इच्छा और सहूलियत के हिसाब से जहां चाहे अपना इलाज करवा सकते हैं। एक तरफ जहां सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता वहीं निजी अस्पतालों की स्थिति अलग है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य की बात करें, तो ,निजी अस्पतालों ने अस्पताल को मानव सेवा केंद्र ना समझ कर लूट का धंधा बनाया हुआ है। गरीब हो अथवा अमीर ,निजी अस्पतालों के मैनेजमेंट को इस बात से कोई लेना-देना नहीं ।इलाज के नाम पर लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जाता है और साथ ही साथ मोटी रकम भी वसूली जाती है। जो लोग इलाज के लिए भारी-भरकम फीस नहीं भर पाते उन्हें निजी अस्पतालों में घुसने तक नहीं दिया जाता है। बात इतने तक ही सीमित होती तो भी कोई समस्या नहीं, परंतु जब निजी अस्पतालों की लापरवाही की वजह से मरीज को अपने प्राण गंवाने पड़ जाते हैं तब स्थिति असहनीय हो जाती है। निजी अस्पतालों द्वारा मनचाही फीस वसूलने के पश्चात भी मरीजों को यथोचित इलाज नहीं मिल पाता। कभी-कभी मरीज के परिवार जनों को मरीज के इलाज के लिए उधार तक लेना पड़ता है,अपना घर और जमीन तक गिरवी रखनी पड़ जाती है और जब यह उधार की राशि भी उनके स्वजनों को बचा नहीं पाती तो उस गरीब पर दोहरी मार पड़ती है ,एक तरफ कर्ज चुकाने की जद्दोजहद दूसरी ओर अपने ही परिवार के सदस्य को सदा सदा के लिए खो देने का असहनीय गम।
निजी अस्पतालों के इस निरंकुशता पूर्ण रवैए पर सरकार को लगाम कसनी ही होगी ।सरकार को कुछ मानदंड तय करने होंगे,जिनका पालन प्रत्येक निजी एवं प्राइवेट अस्पताल को हर हाल में करना ही होगा और ऐसा न करने पर निजी अस्पतालों का लाइसेंस सरकार रद्द कर सकती है और चेतावनी दे सकती है कि उपयुक्त मानदंडों पर जो भी अस्पताल खरा नहीं उतरा, उस निजी अस्पताल को तत्काल बंद करवा दिया जाएगा। साथ ही साथ सरकार यह भी स्पष्ट कर सकती है कि प्रत्येक अस्पताल में गरीबों और असहाय लोगों के इलाज की मुफ्त सुविधाएं उपलब्ध हों ताकि कोई भी व्यक्ति इलाज से वंचित न रहने पाए ।वर्तमान में निसंदेह अधिकतर अस्पतालों में यह सुविधा दी जाती है परंतु हकीकत तो यह है कि यह सुविधा केवल अस्पतालों में लगे नोटिस बोर्ड और फाइलों में बंद कागजों पर ही नजर आती है। परंतु सच तो यह है कि निजी अस्पताल किसी ना किसी बहाने टालमटोल करते हैं और जिन लोगों के पास इलाज के लिए पर्याप्त मात्रा में धन नहीं होता उन्हें वे वापस लौटा देते हैं जो कि बेहद शर्मनाक है ।ऐसे मामलों को सरकार को संज्ञान में लेना चाहिए और दोषी पाए जाने पर उचित कार्यवाही भी करनी चाहिए।