आर.के. सिन्हा
श्रुति शर्मा का नाम आजकल सब तरफ तैर रहा है। ये लाजिमी भी है उनकी अभूतपूर्व उपलब्धि को देखते हुए। 24 साल की श्रुति ने संघ लोक सेवा आयोग की 2021 की परीक्षा में टॉप किया है। उनकी इस कामयाबी पर सारा देश उन्हें बधाई दे रहा है। यहां तक तो सब ठीक है। पर दिक्कत तब शुरू हुई जब सोशल मीडिया में तमाम लोग ये बताने लगे कि वह जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी (जेएनयू), सेंट स्टीफंस कॉलेज और जामिया मिल्लिया इस्लामिया से है। हालांकि, जेएनयू वाली जानकरी तो सिरे से गलत साबित हुई। वह जेएनयू में कुछ समय के लिए रहीं और वहां से बिना कोई डिग्री लिए ही निकल गईं। पर असली बात यह नहीं है। असली बात तो यह है कि कोई भी उनके राजधानी के सरदार पटेल स्कूल को उनकी उपलब्धि के लिए क्रेडिट देने के लिए तैयार नहीं है। क्यों? क्या यह सही है? हरेक बच्चा लिखना-पढ़ना तो अपने स्कूल से ही शुरू करता है। स्कूल के अध्यापक ही उसे शब्द ज्ञान बताते-समझाते हैं। उन्हीं की ही देखरेख में रहकर वह एक बेहतर नागरिक बनने के रास्ते पर आगे बढ़ता है। क्या उस स्कूल और वहां के अध्यापकों की चर्चा भी नहीं करनी चाहिए? क्या यह उचित है? बेशक नहीं। पर हमारे देश- समाज में यही हो रहा है। हम अपने स्कूल की अपनी सफलताओं तथा उपलब्धियों को हासिल करने के वक्त भी चर्चा तक भी नहीं करते। यह तथ्य हम क्यों नजरअंदाज कर देते हैं कि सबसे पहले तो स्कूलों में ही विद्यार्थियों की प्रतिभा को विकसित और निखारा जाता है। वही उसका पूरे विश्व में “अल्मा माटर” कहा जाता है। अगर बात श्रुति शर्मा के स्कूल की करें तो इसे राजधानी के सबसे बेहतर स्कूलों में से एक माना जाता है। इधर बच्चों को भारतीय मूल्यों तथा संस्कारों को लेकर जागरूकता पैदा की जाती है। इसकी स्थापना सन 1958 में दिल्ली के गुजराती समाज ने की थी। तो लब्बो लुआब यह कि श्रुति शर्मा को सिर्फ दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस क़ॉलेज से ही मत जोड़िए। हां, ये सच है कि सेंट स्टीफंस कॉलेज से निकले दर्जनों छात्र आगे चलकर भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय विदेश सेवा या भारतीय पुलिस सेवा में गए हैं। आजकल रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास भी सेंट स्टीफंस कॉलेज से हैं। सेंट स्टीफंस क़ॉलेज में ही पढ़े थे केएम चंद्रशेखर (कैबिनेट सचिव भी रहे), अमिताभ पांडे, एमएन बुच, पुलोक चटर्जी, नवीन चावला, वजाहत हबीबउल्ला, नजीब जंग (दिल्ली के पूर्व उप राज्यपाल भी रहे) आदि।
चलिए अब श्रुति शर्मा से आगे बढ़कर सचिन तेंदुलकर पर भी पहुंचते हैं। कितने लोग जानते है कि सचिन तेंदुलकर ने मुंबई के शारदाश्रम विद्यामन्दिर में अपनी शिक्षा ग्रहण की। वहीं पर उन्होंने रमाकान्त अचरेकर सर के सान्निध्य में अपने क्रिकेट जीवन का श्रीगणेश किया। उधर ही क्रिकेट के गुर जाने-समझे। उन्होंने स्कूल में रहते हुए ही अपनी प्रतिभा से सारे देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा था। उन्होंने 1988 में स्कूल के एक हॅरिस शील्ड मैच के दौरान साथी बल्लेबाज विनोद कांबली के साथ ऐतिहासिक 664 रनों की अविजित साझेदारी की थी। इस धमाकेदार जोड़ी के अद्वितीय प्रदर्शन के कारण एक गेंदबाज तो रोने ही लगा था और विरोधी पक्ष ने मैच आगे खेलने से इनकार कर दिया। सचिन तेंदुलकर ने इस मैच में 320 रन और प्रतियोगिता में हजार से भी ज्यादा रन बनाये। अपने को क्रिकेट का दीवाना कहने वाले भारतीय इस सच्चाई को जानने में दिलचस्पी नहीं रखते कि सचिन तेंदुलकर ने किस स्कूल से पढ़ाई की थी।
दरअसल यह बात बार-बार सामने आती है कि हमारे समाज में स्कूलों और अध्यापकों पर बहुत कोई फोकस नहीं दिया जाता। वैसे ये भी कह सकते हैं कि स्कूलों के बहुत से मास्टरजी भी जुगाड़ करके नौकरी पा तो जाते हैं, पर वे अपने पेशे के साथ कभी न्याय नहीं करते। हां, सारे अध्यापक काहिल नहीं हैं और ना ही हो सकते हैं। इसलिए जब उनके विद्यार्थी कोई बड़ी सफलता को प्राप्त करें तो उन्हें भी वाजिब क्रेडिट दिया ही जाना चाहिए।
नामवर शख्सियतों के व्यक्तित्व और कृतित्व का मूल्यांकन करते हुए हमें यह मांग अवश्य करनी चाहिए बच्चों को प्राइमरी शिक्षा उनकी मातृभाषा में ही दी जाए। इससे देश के नौनिहालों को शिक्षकों की बात समझाने और अपने को व्यक्त करने का सही से मौका मिलेगा। श्रुति शर्मा ने बताया कि वह पिछले साल संघ लोक सेवा की परीक्षा में इसलिए पास नहीं हुईं थी क्योंकि उन्हें अपने पेपर हिन्दी में देने पड़े थे। जरा सोचिए कि यह कितनी विडंबना है कि एक हिन्दी भाषी राज्य की लड़की यह कहे कि वह परीक्षा में इसलिए सफल नहीं हुई क्योंकि उसे परीक्षा में हिन्दी में उत्तर देन पड़े थे। महत्वपूर्ण है कि गुरुदेव रविन्द्र नाथ टेगौर से लेकर देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और बाबा साहेब अंबेडकर तक सभी महापुरुर्षों सबने अपनी प्राइमरी की शिक्षा अपनी मातृभाषा में ली। गुरुदेव रविन्द्र नाथ टेगोर की शिक्षा का श्रीगणेश अपने उत्तर कोलकत्ता के घर में ही हुआ। उनके परिवार में बांग्ला भाषा ही बोली जाती थी। उन्होंने जिस स्कूल में दाखिला लिया, वहां पर भी पढ़ाई का माध्यम बांग्ला ही था। यानी बंगाल की धरती की भाषा। और इसी भाषा में उन्होंने महान साहित्य की रचना में भी की। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद की आरंभिक शिक्षा बिहार के सीवान जिले के अपने गांव जीरादेई में ही हुई। उधर तब तक अंग्रेजी का नामोनिशान भी नहीं था। उन्होंने प्राइमरी स्कूल में हिन्दी, संस्कृत और फारसी पढ़ी। उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से मैट्रिक की परीक्षा में टॉप कर अपनी उच्च शिक्षा कोलकात्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से ली। बाबा साहेब आम्बेडकर की प्राथमिक शिक्षा भी सतारा, महाराष्ट्र के एक मामूली से स्कूल से हुई। उधर पढ़ाई का माध्यम मराठी था। भारत की चोटी की इंजीनियरिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में सक्रिय लार्सन एंड टुब्रो के चेयरमेन रहे ए.वी.नाईक का संबंध दक्षिण गुजरात से है। उन्हें अपने इंदहल गांव के प्राइमरी स्कूली में दाखिला दिलवाया गया। वहां पर उन्होंने पांचवीं तक गुजराती, हिन्दी, सामाजिक ज्ञान जैसे विषय पढ़े। अंग्रेजी से उनका संबंध स्थापित हुआ आठवीं कक्षा में आने के बाद।
देखिए हम भारतीयों को अपने स्कूलों पर अतिरिक्त निवेश करना होगा। दरअसल प्रतिभाएं तो स्कूली स्तर से ही तराशी जानी चाहिए। वहां पर अध्यापक अपने बच्चों की रुचियों के अनुसार उन्हें तैयार करें। ये ज्ञान का युग है। अब वही देश सफलता की सीढ़ियों पर तेजी से आगे बढ़ते रहेंगे जो अपनी स्कूली शिक्षा को मजबूत करेंगे। हमें कोशिश करनी होगी ताकि हम अपने स्कूलों में योग्य नौजवानों को बतौर शिक्षक लाएं। अफसोस होता है कि हमारे स्कूलों में अब भी बहुत औसत दर्जे के नौजवान ही शिक्षक बन रहे हैं। ये स्थिति बदलनी होगी। तब ही श्रुति शर्मा जैसे सफल नौजवान के स्कूल को भी सब लोग जानने समझने लगेंगे।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)