गांदरबल हमला लोकतंत्र को दहलाने की साजिश

Ganderbal attack is a conspiracy to shake democracy

ललित गर्ग

जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में रविवार रात को आतंकवादियों ने जिस तरह टारगेट किलिंग से एक कंस्ट्रक्शन प्रॉजेक्ट में काम कर रहे लोगों को निशाना बनाया, वह कई लिहाज से गंभीर, चिन्ताजनक एवं चुनौतीपूर्ण घटना है। यह आतंक का अंधेरा फैलाने एवं अमन के उजाले को लीलने की गहरी साजिश है। यह जहां आतंकवादियों की बौखलाहट की निष्पत्ति है वहीं उनकी बदली प्राथमिकताओं की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। राज्य में टारगेट किलिंग की यह कोई नई घटना नहीं है बल्कि हाल ही के वर्षों में सुरक्षा बलों के कैम्पों से लेकर प्रवासी मजदूरों के घरों एवं कश्मीरी पंडितों पर ऐसे टारगेट किलिंग हमले होते रहे हैं जिसके पीछे आतंकी संगठनों की हताशा ही दिखाई देती है। टारगेट किलिंग पाकिस्तान की कश्मीर में अशांति एवं आतंक फैलाने की नई साजिश है। अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद से ही टारगेट किलिंग की घटनाएं बढ़ी हैं। वर्ष 2022 और 2023 में आतंकियों ने न केवल कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया बल्कि प्रवासी मजदूरों की भी लक्षित हत्याएं की। चुनाव में बाधा डालने के उनके तमाम प्रयास निष्फल हो जाने, लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव शांतिपूर्वक होने और इनमें लोगों की भागीदारी के भी रेकॉर्ड बनने से आतंकवादी हताश एवं निराश हो गये। पाकिस्तान बौखला गया। अब आतंकी तत्वों ने जम्मू-कश्मीर में निर्वाचित सरकार के गठित होते ही इस बड़े हमले को अंजाम देकर यह जताने का प्रयास किया है कि वे जनादेश के तहत बनी इस सरकार की राह में अड़ंगा डालने का हरसंभव प्रयास करते रहेंगे, अशांति एवं आतंक फैलाते रहेंगे। लेकिन इन चुनौतियों को निस्तेज करने के लिये प्रांत एवं केन्द्र सरकार को कमर कसनी होगी। सुरक्षा बलों को नये तेवर दिखाने होंगे।

लक्षित हत्याएं न केवल पीड़ितों और उनके परिवारों को अपूरणीय क्षति पहुंचाती हैं, बल्कि जम्मू-कश्मीर में स्थायी शांति को बढ़ावा देने के प्रयासों को भी गहरा झटका देती हैं। ये हत्याएं न केवल जम्मू-कश्मीर के समाज के विविध ताने-बाने को कमजोर करती हैं, बल्कि घाटी में रहने वाले गैर-स्थानीय और अल्पसंख्यक समुदायों में असुरक्षा भी पैदा करती हैं। ये हत्याएं विकास को अवरूद्ध करती है, बल्कि उद्योग, व्यापार, पर्यटन एवं सौहार्द को भी खण्डित करती है। सुरक्षा बलों पर विभाजनकारी एवं आतंकी ताकतों के खिलाफ अपना दृढ़ रुख बनाए रखने का दायित्व है, जिसे संदिग्ध गतिविधियों के बारे में जानकारी साझा करने में स्थानीय लोगों के सक्रिय सहयोग से बल मिलता है। जबकि घाटी में शांति ने प्रगति की है, इस नाजुक संतुलन को बाधित करने के किसी भी प्रयास का सुरक्षा बलों और स्थानीय लोगों, दोनों द्वारा कड़ा विरोध किया जाना चाहिए।

कश्मीर में लम्बे समय से अमनचैन एवं शांति के साथ विकास की गंगा प्रवहमान रही है। सुरक्षा बलों की सतर्कता से जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं में आई कमी और आम जनजीवन पर उनके घटते असर से चिंतित आतंकी आकाओं ने आम चुनावों के दरम्यान अपनी सक्रियता बढ़ा दी, लेकिन वे कुछ कर नहीं पाये। अब मौका मिलते ही उन्होंने ऐसे इलाकों को चुना है जहां सुरक्षा बलों की तैनाती कम और मुश्किल थी। टारगेटेड अटैक के जरिए बाहरी लोगों को निशाना बनाया गया ताकि उनमें घबराहट फैले, अफरा-तफरी मचे और पर्यटकों का आना कम हो। इसीलिये आतंकियों ने इस बार हमले के लिए श्रीनगर और सोनमर्ग के बीच बनाई जा रही जेड-मोड टनल का काम कर रहे लोगों को चुना गया। यह टनल न केवल जम्मू-कश्मीर के विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि रणनीतिक तौर पर भी खासी अहमियत रखती है। इसके निर्माण से श्रीनगर और करगिल के बीच निर्बाध संपर्क सुनिश्चित होगा और श्रीनगर व लेह के बीच की यात्रा में लगने वाला समय कम हो जाएगा। यही नहीं, इस टनल के जरिए पर्यटकोें के पसंदीदा शहर सोनमर्ग की हर मौसम में सुविधाजनक पहुंच भी सुनिश्चित की जा सकेगी।

गांदरबल का हमला आतंकियों की एक बड़ी सफलता है, कश्मीर में आतंक-अशांति फैलाने और विकास की गति को अवरूद्ध करने की साजिश है। जाहिर है, पाकिस्तानी जमीन पर बैठे आतंकवादी तत्वों ने इस एक हमले के जरिए कई उद्देश्य पूरे करने की कोशिश की है। उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में सरकार गठन के बाद पाकिस्तान के इशारे पर कश्मीर घाटी में एक बड़ी आतंकी घटना को सफलतापूर्वक अंजाम दे दिया जाना हमारे लिये चिन्ता के साथ चेतावनी भी है। यह घटना चेता भी रही है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के निर्वाचन क्षेत्र गांदरबल मेें केन्द्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे टनल प्रोजेक्ट में कार्यरत सात प्रवासी श्रमिकों पर अंधाधुंध फायरिंग कर आतंकवादियों ने उनकी हत्या कर दी। मृतकों में एक स्थानीय डॉक्टर भी शामिल था। मरने वालों मंे पंजाब, बिहार और कठुआ के रहने वाले मजदूर शामिल हैं। कई श्रमिकों के घायल होने की खबर है जिनका अस्पताल में उपचार चल रहा है। ये सभी श्रमिक काम खत्म करने के बाद मेस में खाना खाने बैठे थे। तभी आतंकवादियों ने उन्हें गोलियों से भून दिया। निश्चितरूप से यह आतंकवादियों की कायराना एवं शर्मनाक करतूत है। इस घटना से चार दिन पहले शोपियां में बिहार के एक मजदूर की हत्या कर दी थी। ये हत्याएं आतंकवाद की अंधाधुंध हिंसक एवं आतंकी प्रकृति को उजागर करती हैं जो अपने रास्ते में किसी को भी नहीं छोड़ते। निर्दाेष नागरिकों की बेवजह हत्या किसी एक परिवार के किसी प्रियजन को ही नहीं छीनता बल्कि उन लोगों में भी खौफ पैदा करता है जो आतंकवाद की छाया में भी रोजी-रोटी कमाने के लिए जम्मू-कश्मीर में मजदूरी करते हैं।

क्या नई सरकार का गठन आतंकवादियों के लिये सहुलियतभरा है? ऐसा है तो इसके सन्देश को समझना होगा। स्वयं उमर अब्दुल्ला सरकार एवं नेशनल कांफ्रेन्स को इसे गलत साबित करते हुए आतंकवादियों के खिलाफ सख्त होना होगा। एक बड़ा प्रश्न है कि जम्मू कश्मीर में उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में नई सरकार बनने के बाद वहां सक्रिय आतंकवादियों और अलगाववादी ताकतों के हौसले एकाएक बुलंद क्यों हो गये? गौरतलब है कि जब जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेन्स को बहुमत मिला था तो कश्मीर घाटी में इस जीत की खुशी में आपत्तिजनक नारे लगाए गए थे। यहां तक की पाकिस्तान के झंडे भी लहराए गए थे। ऐसा क्यों हुआ? इस तरह आतंकियों के हौसलें बुलन्द होना नवगठित सरकार एवं वहां की जनता के लिये गहन चिन्ता का विषय होना चाहिए। भले ही हमले के बाद आई प्रतिक्रियाओं से साफ है इस मसले पर पक्ष-विपक्ष पूरी तरह एकजुट है। सबसे बड़ी बात यह कि अब आतंक के खिलाफ उठे इन स्वरों में जम्मू-कश्मीर के लोगों की नुमाइंदगी कर रही आवाजें भी शामिल हैं।

सम्मिलित सुनियोजित प्रयासों से जम्मू-कश्मीर को आतंकवाद के बचे-खुचे निशानों से भी मुक्त करने का लक्ष्य अब पहुंच से दूर नहीं कहा जा सकता। लेकिन इसके लिये सन्देह एवं शंकाओं के घेरों को तोड़ना होगा। कश्मीर घाटी में आतंकवादियों के सफाए के लिए भारतीय सेना और सुरक्षा बल के जवान लगातार मुहिम चला रहे हैं उनके प्रयासों को बिना राजनीति किये तीक्ष्ण एवं तीव्र करना होगा। इस बीच जम्मू कश्मीर के उरी सेक्टर में पाकिस्तान के आतंकवादियों ने घुसपैठ करने की कोशिश की है जिसे भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया। जाहिर है पाकिस्तान कश्मीर घाटी में अशांति फैलाने के लिए सीमा पार से साजिशें कर रहा है। इसलिए जम्मू कश्मीर में भारतीय सेना और सुरक्षाबलों को और अधिक सतर्क रहने की जरूरत है ताकि आतंकवादी कश्मीर घाटी में फिर ऐसी आतंकी घटना की पुनरावृत्ति न कर पाए।

जनता ने स्पष्ट जनादेश देकर यह संदेश दिया कि घाटी में लोकतंत्र महके, ना कि दहके। यह जनादेश आतंकवाद और अलगाववाद से मुक्ति की चाहत का परिणाम है। राज्य की जनता ने अपनी उम्मीदों को लेकर सरकार चुनी और नैशनल कांफ्रैंस पर भरोसा जताया। नई सरकार के सामने जनता की उम्मीदों को पूरा करने की चुनौती तो है ही, सबसे बड़ी चुनौती तो आतंकवाद को जड़ से खत्म करना और ऐसा वातावरण सृजित करना है जिसमें आम आदमी खुद को सुरक्षित महसूस करे और इस क्षेत्र में विकास की धारा के साथ कदम से कदम मिलाकर चले। जम्मू-कश्मीर में गरीबी, अन्याय और आतंकवाद के खिलाफ अभी लम्बा सफर तय करना बाकी है। आतंकवाद के पैर उखाड़ने के लिये जनता एवं सरकार की मिली-जुली शक्तियां सामने आये।