- मैं किसी एक खिलाड़ी की चर्चा नहीं, हमने टीम प्रयास से कांसा जीता
- सुनील, बीरेंद्र लाकरा और डिप्सन का अनुभव और मार्गदर्शन बहुत काम
- उत्तम, विष्णुकांत, मंजीत, मनिंदर व सुदेव ने जगाई सुनहरे भविष्य की आस
- बतौर कोच हॉकी इंडिया आगे भी जो जिम्मेदारी देगी शिद्दत से निभाउंगा
- हमने शिविर में बेसिक्स बाल ट्रेपिंग और बॉल लिफ्ट पर बहुत मेहनत की
- सुपर 4 के आते आते बतौर ड्रैग फ्लिकर नीलम खेस भी रंग में आ गए
- नौजवान खिलाडिय़ों के साथ इसी शिद्दत से मेहनत जारी रखनी होगी
सत्येन्द्र पाल सिंह
नई दिल्ली : बतौर हेड कोच पूर्व ओलंंपियन सरदार सिंह और उनके मार्गदर्शन में दर्जन भर से ज्यादा पहली बार सीनियर टीम के लिए आगाज करने वाले खिलाडिय़ों से सज्जित भारत की नौजवान टीम जकार्ता मे हॉकी एशिया कप में अपने पहले इम्तिहान में कामयाब रही। सरदार सिंह का बतौर हेड अपने एक दशक से ज्यादा के अनुभव को भारत भुवनेश्वर में जूनियर हॉकी विश्व कप में शिरकत करने वाले उत्तम सिंह, विष्णुकांत सिंह, मंजीत, मनिंदर, अभिषेक लाकरा सहित आधा दर्जन से ज्यादा खिलाडिय़ों ने सज्जित नौजवान खिलाडिय़ों के दमदार प्रदर्शन से भारत ने एशिया कप में मैच दर मैच बेहतर प्रदर्शन कर जापान को हराकर कांसा जीत सभी का दिल जीता। भारत को खिताब बरकरार नहीं रखने का गम नहीं होना चाहिए क्योंकि हॉकी एशिया कप से भविष्य के लिए उसने बहुत कुछ हासिल किया।
सरदार सिंह से खास बातचीत में बतौर हेड कोच अपनी पहली पारी और भारतीय टीम के प्रदर्शन के प्रदर्शन पर खुलकर चर्चा हुई। सरदार सिंह ने कहा, ‘बेशक हॉकी एशिया कप में हमारा आगाज अच्छा नहीं रहा लेकिन मैच दर मैच टूर्नामेंट के आगे बढऩे के हमारी इस नौजवान का प्रदर्शन बेहतर होता चला गया। मैं बतौर कोच इन नौजवान खिलाडिय़ों के साथ अपना एक दशक से भी ज्यादा का अनुभव बांटा। मैं किसी एक खिलाड़ी की चर्चा नहीं करूंगा कि यह कांसा हमारी इस नौजवान भारतीय टीम ने टीम प्रयास से जीता। अनुभवी कप्तान ओलंपियन बीरेन्द्र लाकरा, एस वी सुनील और डिप्सन टिर्की का अनुभव और मार्गदर्शन नौजवान भारतीय टीम का काम आया। एसवी सुनील के साथ खासतौर पर अग्रिम पंक्ति में पवन राजभर, सुदेव, शैशेगोड़ा और भुवनेश्वर में जूनियर विश्व कप में खेलने वाली उत्तम सिंह, विष्णुकांत सिंह, मंजीत और मनिंदर सिंह ने मैच दर मैच बेहतर प्रदर्शन कर सुनहरे भविष्य की आस जगाई है। एशिया कप से पहली बार भारतीय सीनियर टीम के लिए आगाज करने वाले भारत के नौजवान खिलाडिय़ों को जितना ज्यादा अंतर्राष्टï्रीय अनुभव मिलता जाएगा उतना ही उनका खेल तो बढ़ेगा ही उनका बड़े मंच पर बेहतर प्रदर्शन कर विश्वास भी बढ़ता जाएगा।’
उन्होंने कहा, ‘मुझे हॉकी इंडिया ने जब टीम को कोचिंग की जिम्मेदारी सौंपी तो मैंने बस यही कोशिश की अपने अनुभव को इन नौजवान खिलाडिय़ों के साथ साझा कर उनका खेल बेहतर करने में योगदान करूं। भारतीय हॉकी ने मुझे बतौर खिलाड़ी बहुत कुछ दिया है। मेरी भी जिम्मेदारी बनती है कि भारतीय हॉकी ने जो इतना कुछ दिया उसका कुछ कर्ज तो उतारूं। बतौर कोच हॉकी इंडिया आगे भी मुझे जिम्मेदारी देगी मैं उसके लिए सहर्ष पूरी शिद्दत से निभाउंगा। मुझे बतौर कोच इस भारतीय टीम के साथ बहुत कम वक्त मिला। फिर भी मुझे जो महीने भर से ज्यादा का वक्त शिविर में इन खिलाडिय़ों के साथ मिला उसमें मैंने उनसे अपना अंतर्राष्टï्रीय हॉकी का अनुभव बांटा। शिविर में इन नौजवान खिलाडिय़ों के साथ अंतर्राष्टï्रीय हॉकी के लिए जरूरी बेसिक यानी बॉल ट्रेपिंग, लिफ्ट बॉल और स्ट्रक्चर पर कायम रहकर खेलने पर जोर देना इन नौजवान खिलाडिय़ों के साथ मेहनत करना बहुत काम आया। मैंने भी टीम के साथ एशियाई टीमों के खिलाफ खेलने के अनुभव को साझा किया। हमने जकार्ता जाने से पहले भी इसमें शिरकत करने वाली सभी टीमों के मैचों के विडियो को देख कर खुद को एशिया कप के लिए तैयार किया। ïहमने जकार्ता में एशिया कप में खेलने जाने से पहले तीन और सीनियर टीम के साथ चार अभ्यास खेले उसमें भी टीम के नौजवान खिलाडिय़ों ने बहुत उम्मीद जगाई।
सरदार कहते हैं, ‘हम एशिया कप में अलग अलग पद्धति से खेले। हमले के लिए 4-2-2-2 की पद्धति से खेले। दो फारवर्ड, दो आक्रामक मिडफील्डर ,दो मिडफील्डर और चार बैक और एक गोल रक्षक। जब हम पर हमला हुआ तो हमने 3-3-4 की नीति अपनाई। मैं सभी लड़कों की तारीफ करुंगा कि सभी ने टीम की जरूरत के मुताबिक खुद को ढाला ही आखिरी क्षण तक हार न मानने का जज्बा दिखाया। हमने पूल ए में पाकिस्तान के खिलाफ ड्रॉ के साथ आगाज करने के बाद जापान से 2-5 से हारने के बाद आखिरी पूल ए मैच में मेजबान इंडोनेशिया को अंतिम दो मिनट में दो गोल कर 16-0 से हरा सुपर 4 में जगह बनाई। हमने सुपर 4 में जापान को 2-1 से और फिर कांसे के लिए मैच में उसे 1-0 से हराकर अंतत: कांसा जीता। ड्रैग फ्लिकर रूपिंदर पाल सिंह के एशिया कप में टीम की रवानगी से कुछ दिन पहले प्रैक्टिस में चोट लगने से बाहर होने पर पेनल्टी पर बतौर ड्रैग फ्लिकर पूरी जिम्मेदारी नीलम संजीप खेस पर आ गई थी। नीलम शुरू के मैचों में बहुत कामयाब नहीं रहे लेकिन सुपर 4 के आते आते बतौर ड्रैग फ्लिकर वह भी रंग में आ गए और इसके बाद उन्होंने एशिया कप में लगभग हर मैच में एक गोल जरूर किया। डिप्सन टिर्की ने भी पेनल्टी कॉर्नर पर ड्रैग फ्लिक से अच्छे गोल किए। हर मैच के बाद अपने खेल के वीडियो और हर आने वाले मैच की प्रतिद्वंद्वी टीम के खेल का जायजा ले गलतियों से खुद की रणनीति बनाना हमारे बहुत काम आया। हमें आगे आने वाले टूर्नामेंट के लिए इन नौजवान खिलाडिय़ों के साथ इसी शिद्दत से मेहनत जारी रखनी होगी।’