सीता राम शर्मा ” चेतन “
कल्पना कीजिए एक ऐसी दुनिया की, जिसमें वर्षों तक ना तो किसी देश के साथ दूसरे देश का युद्ध हुआ हो और ना ही भविष्य में होने की अंश मात्र भी संभावना ही हो ! बड़े-बड़े देशों की लाखों मील की सीमाओं पर गिनती के हजार- दो हजार सैनिक हों और वो भी ऐसे कि उन्हें कभी सीमा पार के किसी सैनिक पर गोली चलाने की जरूरत ही नहीं पड़े ! सीमा पार के सैनिकों से उनकी गाढ़ी दोस्ती हो ! दोस्ती ऐसी कि कईयों ने उसे रिश्तेदारी में बदल दिया हो ! सबका मिलजुलकर रहना, खाना, पीना, खेलना और मौज मस्ती करना ही उनकी दिनचर्या हो ! किसी भी देश के भीतर कभी सैनिकों की कोई जरूरत ना पड़े, उनकी राष्ट्रीय तथा राज्य स्तरीय व्यवस्था को बनाए रखने की पूरी जिम्मेवारी पुलिस प्रशासन के ही जिम्मे हो ! दुर्भाग्यवश यदि किसी देश की सीमा के आसपास कोई आकस्मिक प्राकृतिक आपदा विपदा आए तो सहयोग के लिए उसे सुदूर क्षेत्रों से अपने अधिकारियों, कर्मचारियों को बुलाने की जरूरत ही ना पड़े, पास के पड़ोसी देश के सैनिक स्वंय सहयोग के लिए उपस्थित हों ! सबसे सुखद सत्य यह हो कि किसी भी देश के भीतर कहीं भी उसका कोई नागरिक अपराध की सोचने तक की हिम्मत ना करे ! छोटे अपराध की भी इतनी सख्त सजा हो कि बड़े अपराध की बात सोचने मात्र से ही अपराध और अपराधी की रूह कांप उठे ! हर देश में हर एक नागरिक अपनी इच्छानुसार अपने धर्म और कर्म को यूं आचरण में लाए कि उससे दूसरे किसी भी व्यक्ति को किसी भी तरह का कोई कष्ट ना हो ! हर मनुष्य दूसरे मनुष्य का, हर समूह दूसरे समूह का, हर समाज दूसरे समाज का, हर धर्मानुयायी दूसरे धर्म का और हर राष्ट्र दूसरे राष्ट्र का शुभचिंतक हो, मित्र हो, हितैषी हो, सहयोगी हो ! हर मनुष्य एक दूसरे के सुख-दुख, आपदा-विपदा, उत्सव और पीड़ा में उसके साथ हो ! बहुत संक्षिप्त में कहें तो वसुधैव कुटुम्बकम के भारतीय विचार और महामंत्र को दुनिया का हर एक मनुष्य, समाज और देश पूर्ण ज्ञान, निष्ठा और आचरण कर्म से चरितार्थ कर रहा हो ! उपर लिखे ये कुछ शब्द और विचार निःसंदेह आपको एक अविश्वसनीय खूबसूरत सपना लग सकता है ! जिसे पढ़ते सुनते हुए ही त्वरित ये विचार और विश्वास पूरी ताकत के साथ आपके मन-मस्तिष्क में आए कि यह तो बिल्कुल असंभव है ! पौराणिक अनगिनत धार्मिक और सामाजिक सत्य कथाओं और इतिहास के जानकार भी यह बखूबी जानते हैं कि समय राम और कृष्ण का रहा हो या फिर ईसा मसीह, नानक, पैगंबर और बुद्ध, महावीर का, दुष्ट, अपराधी लोगों की कभी कमी नहीं रही । स्वर्णिम इतिहास की रामराज्य जैसी व्यवस्था में भी अपराध और संहार की अनगिनत घटनाओं को अंजाम देने वाले अज्ञानी, निडर, दुस्साहसी और अपराधी लोग रहे हैं । फिर आज मनुष्यता के ज्ञान, भाव, विचार और कर्म से दूर होती, घोर स्वार्थी, लोभी, हिंसक होती, उपभोक्तावाद की शिकार हुई मनुष्य जाति के लिए ऐसी उत्कृष्ट मानवीय जीवन शैली, अपराध मुक्त व्यवस्था का सुंदर स्वप्न देखने का औचित्य क्या ? बहुत स्पष्ट और सपाट शब्दों में कहूं तो एक पल के लिए मैं भी ऐसे ही विचार से पूरी तरह सहमत हो जाता हूँ पर अगले ही पल एक नहीं, कई ऐसे ही विचार और असंभव दिखते स्वप्न जो बहुत पहले कभी हमारी मनुष्य जाति के कुछ लोगों ने विचारे और देखे थे, अपने अद्भुत, सफल परिणामों के साथ रोमांचित करते यह विश्वास पुख्ता कर जाते हैं कि ऐसी खूबसूरत दुनिया के सपनें देखना और उसे साकार करना, जिसकी कल्पना मैंने उपर की है, असंभव नहीं है ! बिल्कुल संभव है ! जब पृथ्वी पर घोर अज्ञानता, अभाव और अव्यवस्था को जीते हमारे पूर्वज, आदि मानव, अपने विचारों, सपनों, प्रयासों और कर्मों के बूते मानवीय जीवन के लिए आदर्श विचार, आहार, विहार, व्यवहार, संस्कार वाले ज्ञान-विज्ञान की सभ्यता और विकास से परिपूर्ण ऐसी विकसित मानवीय दुनिया का स्वप्न साकार कर सकते हैं, जो आज मानवीय जीवन के लिए जरूरी ज्ञान, अन्न, फलफूल, औषधि, वस्त्र, आवास, बाजार, परिवहन और अनेकानेक संसाधनों की उत्तम व्यवस्था बना चाँद सितारों पर जा रही है, जो घर के बंद कमरे में बैठकर या दुनिया के किसी भी हिस्से में बैठकर या चलती-फिरती एक दूसरे से बात कर रही है, जो एक दूसरे को देख सुन रही है, तो फिर अपने इस ज्ञान और विकास को अपने मानवीय विचार और व्यवहार से नियंत्रित, संशोधित, संयोजित कर उस उत्कृष्ट और बेहद शानदार व्यवस्था को जन्म क्यों नहीं दे सकती ? उस उत्कृष्ट व्यवस्था को उसके लिए जरूरी हर नियम कानून के साथ व्यवहार में शत-प्रतिशत लागू क्यों नहीं कर सकती ? कर सकती है, बस इस सपनें को पूरी ईमानदारी से देखने, दिखाने और जीने की जरूरत है ! इसके लिए एक दृढ़संकल्प की जरूरत है ! कुछ सरल बड़े प्रयासों की जरूरत है ! कुछ बेहद जरूरी मानवीय, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक, वैधानिक वैश्विक नियम कानूनों की जरूरत है । यदि ऐसा हो तो यह बिल्कुल संभव है कि मेरे सपनों की दुनिया, जो दुनिया के शत-प्रतिशत शांति पसंद लोगों की दुनिया का सपना है और हो सकता है, वह यथार्थ में बदल सकता है ! यह दुनिया जातिभेद, धर्मभेद, रंगभेद के साथ ऊँच-नीच और छुआछूत जैसे तमाम भेदभावों से मुक्त होकर, उसे छोड़कर, उससे उपर उठकर एकमात्र मानवता के ज्ञान, भाव और धर्म-कर्म से ओतप्रोत होकर एक शांतिपूर्ण, सभ्य, सुंदर, सुरक्षित, समृद्धशाली दुनिया हो सकती है ! बस, इसके लिए व्यापक चिंतन और फिर उसके लिए सफलतम प्रयासों की जरूरत है ! अंत में बात यह कि इस बदलाव की शुरुआत कैसे और कहां से हो ? किस-किस स्तर पर हो ? कैसे अत्यंत सरल तरीके और सलीके से इस स्वप्न को सच और साकार किया जाए ? कैसे यह स्वप्न सबका स्वप्न बने और सब मिलकर सबके लिए इस स्वप्न को साकार करने में लग जाएं ? गौरतलब है कि वर्तमान समय में किसी भी अत्यंत प्रभावी, बड़ी, शक्तिशाली और सर्वमान्य व्यवस्था का सूत्रधार चाहे जो हो, उसका संचालन विधान के माध्यम से शासन-प्रशासन और उसका प्रशासक ही करता है । चुकि यह स्वप्न और इससे जुड़ी चुनौतियाँ बड़ी, सर्वव्यापी और वैश्विक हैं तो इसके लिए सबसे पहले चिंतन और प्रयास भी वैश्विक स्तर के शासकों और धर्मगुरूओं को ही करना होगा । जब तक इनमें मनुष्यता के ज्ञान, भाव और धर्म-कर्म का विकास नहीं होगा, यह असंभव है, परंतु यदि एक बार ये पूरी ईमानदारी से मनुष्यता और अपनी संपूर्ण मनुष्य जाति के प्रति ईमानदार हो जाएं, अपनी मानवीय दुनिया के हित की सोचें, अपने स्वार्थ, अपने पापी विकास और प्रभाव की नीतियों और कार्यों को छोड़कर सम्पूर्ण मानव जाति के शांतिपूर्ण, सुरक्षित, सुखद, समृद्धशाली और स्वर्णिम वर्तमान और भविष्य को ध्यान में रखते हुए एक वैश्विक मानवीय संविधान की रचना कर उसके अनुसार ही तमाम राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय नियम कानून बनाएं तो निःसंदेह बहुत सरलता से बहुत जल्दी हम अपनी मनुष्य जाति, अपनी धरती, अपने मानव धर्म और कर्म के लिए एक सर्वोत्तम व्यवस्था के चिंतन, विचार और स्वप्न को व्यवहारिकता के धरातल पर उतारकर अपनी धरती को ही स्वर्ग बना सकते हैं ! मानवीय वैश्विक संविधान पर चर्चा आगे – – –