आर.के. सिन्हा
राजधानी के संसद मार्ग पर बनी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) बिल्डिंग के बाहर लगी यक्ष और यक्षिणी की मूर्तियों के पास खड़े होकर बैंक के कुछ मुलाजिम बात कर रहे हैं कि अगर उनके बैंक ने कुछ करैंसी नोटों पर गांधी जी के जल चित्रों के अलावा किसी अन्य महापुरुष के चित्रों को भी जगह देनी शुरू कर दी तो क्या होगा?
दरअसल रिजर्व बैंक के मुंबई, दिल्ली, कानपुर आदि के दफ्तरों में आजकल इस तरह की चर्चाएं चल रही हैं। इसकी वज़ह य़ह है कि रिजर्व बैंक में शीर्ष स्तर पर विचार हो रहा है कि कुछ नोटों पर कुछ अन्य महापुरुषों के जल चित्र भी शामिल कर लिए जाएँ। यानी गांधी जी के साथ कुछ करैंसी नोटो में कुछ अन्य महापुरुषों को भी जगह मिल जाए।
अगर यह होता है तो फिर तमाम दूसरी हस्तियों के जल चित्र भी आरबीआई की तरफ से जारी होने वाले नोटों पर शामिल करने की मांग होने लगेगी। यह निश्चित है, इसलिए भारत के करैंसी नोटों पर बापू का ही जल चित्र बनें रहें तो सही होगा।
य़ह बात समझ से परे है कि हमारे नोटों में गांधी जी को अपदस्थ करने की कोशिशें क्यों होने लगी है। इसकी जरूरतही क्या है? क्या इस तरह की किसी ने मांग की है? गांधी जी का वैसे ही अब लगभग पूरे देश में भरपूर अनादर होने लगा है। उनकी मूर्तियों को तोड़ा जा रहा है। उनके हत्यारे को हीरो मानने वाले भी पैदा हो गए हैं। वे सिर्फ आरबीआई की तरफ से जारी होने वाले नोटों में ही सुरक्षित थे। अब वहां से भी उन्हें बाहर किया जा रहा है। इसे रोका जाना चाहिए। हां, रिजर्व बैंक अब तो यह सफाई दे रहा है कि गांधी जी अपनी जगह पर रहेंगे। पर जन्नत की हकीकत कुछ और है।
बेशक देश को उन लोगों के नाम बताये जायें, जो गांधी जी को नोट से भी बाहर करना चाह रहे हैं? यह किसकी शह और पहल पर हो रहा है? खबर है कि आईआईटी, दिल्ली के प्रो.दिलीप टी साहनी को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने एक बेहद अहम जिम्मेदारी सौंपी है कि वे यह देख कर बताएं कि भारत के विभिन्न करेंसी नोटों में महात्मा गांधी के साथ-साथ गुरुदेव रविन्द्रनाथ टेगौर तथा पूर्व राष्ट्रपति तथा मिसाइल मैन एपीजे अब्दुस कलाम के जल चित्रों (वाटर मार्क) का उपयोग करना कैसा रहेगा। बताया जाता है कि आरबीआई ने उन्हें इन दोनों महापुरुषों के जल चिन्हों (वाटर मार्क) के दो-दो सेट भेजे हैं।
प्रो. साहनी अब बताएंगे कि करेंसी नोटों में इन दोनों महापुरुषों के जल चिन्ह किस तरह के दिखाई देते हैं। दरअसल यह खबर है कि सरकार विचार कर रही है कि कुछ करेंसी नोटों में टेगौर तथा डॉ. कलाम के जल चित्र भी शामिल कर लिए जाएं। हालांकि, इस बारे में अंतिम निर्णय होना बाकी है, पर सरकार ने अपने कदम बढ़ाने जरूर शुरू तो कर ही दिए हैं। प्रो. साहनी को साल 2022 में शिक्षा के क्षेत्र में ठोस कार्य करने के चलते पदमश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे सरकार को रक्षा क्षेत्र में अनुसंधानों में मदद करते हैं। प्रो. साहनी ने आईआईटी, खड़गपुर से शिक्षा ग्रहण की है। उन्होंने आईआईटी, दिल्ली से पीएच़डी की। वे लगातार चार दशकों तक आईआईटी दिल्ली में पढ़ाते रहे। वे अब भी यहां पर विजिटिंग प्रोफेसर हैं।
एक बात साफ़ हो जाये कि इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिये कि गुरुदेव टैगोर और कलाम साहब भी देश के नायक हैं। सारा देश उनका आदर कर ता है। इस बारे में कोई दो राय नहीं है। पर गांधी जी के सामने सब उन्नीस हैं। गांधी तो सदियों में एक बार होते हैं। अगर देश ने अपने करैंसी नोटो में उन्हें जगह दी है तो कोई एहसान नहीं किया।
जो भी गांधी जी को नोटों से बाहर करने पर आमादा हैं, वे जान लें कि एक बार नोटों से गांधी जी को हटाया गया तो फिर तमाम महापुरुषों को नोटों में जगह देने की मांग होने लगेगी। उसका कोई अंत ही नहीं होगा। तब हालात हाथ से निकल चुके होंगे। इसलिए नोटों से गांधी जी को बाहर करने से पहले सौ बार सोच लेना चाहिए।
देश को कुछ चीजों में बदलाव के बारे में सोचना ही नहीं चाहिए। क्या राष्ट्र गीत को बदलने या संशोधन करने के प्रस्ताव या मांग को माना जा सकता है? नहीं न? यकीन कीजिए कि हमारे यहां राष्ट्रगान में संशोधन की मांग पहले भी उठ चुकी है। क्या राष्ट्रगान में संशोधन हो सकता है? क्या राष्ट्रगान में अधिनायक की जगहमंगल शब्द होना चाहिए? क्या राष्ट्रगान से सिंध शब्द के स्थान पर कोई और शब्द जोड़ा जाए? पहले भी सिंध शब्द को हटाने की मांग हुई थी, इस आधार पर कि चूंकि सिंध अब भारत का भाग नहीं है, इसलिए इसे राष्ट्र गान से हटाना चाहिए। ऐसी बेहूदगी भरी बातें करने वाले लोग हमारे बीच में कम नहीं हैं। अरबी लोग जब हिंदुस्तान आये तो सिन्धु नदी को पार करके आयेI अरबी में ‘’स’’ को ‘’ह’’ बोलते हैं इसलिए सिन्ध की जगह हिन्द कहकर उच्चारण करते थे I यानि सिंध के पार “हिन्द” और वहां के बाशिंदे “हिन्दू” I साल 2005 में संजीव भटनागर नाम के एक शख्स ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिकादायर की थी, जिसमें सिंध भारतीय प्रदेश न होने के आधार पर जन-गण-मन से निकालने की मांग की थी। इस याचिका को 13 मई 2005 को सुप्रीम कोर्ट के तब के मुख्य न्यायाधीश आर.सी. लाखोटी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सिर्फ खारिज ही नहीं किया था, बल्कि संजीव भटनागर की याचिका को “छिछली और बचकानी मुकदमेबाजी” मानते हुए उन पर दस हजार रुपए का दंड भी लगाया था।
तो फिर करैंसी नोटों में गांधी जी के साथ अन्य के जलचित्र क्यों जाए? चिंता इसलिए हो रही है कि बात बहुत आगे जा चुकी है। इससे पहले कि गांधी जी को नोट से बाहर कर दिया जाये, देश सरकार से माँग करे कि ऐसा कभी न किया जाये।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)